अम्मा सोच रही थीं कि अब वो कहां जाए. कोई मंज़िल होती, तो दूसरों की तरह वो भी उस ओर चल देतीं. कुछ सोचकर वो उठी सूर्य देवता को नमस्कार किया. आंख बंद कर अपने प्रभु को याद किया और अपनी मंज़िल क़िस्मत पर छोड़कर बस कदम बढ़ाने लगी. दिमाग़ में बस यही चल रहा था इन रुपयों के ख़त्म होने के पहले कुछ काम ढूढ़ना है, पर कैसे और क्या काम. जब कुछ उसे समझ नहीं आया, तो उसने अपने सारे सवाल अपने प्रभु को समर्पित कर दिए और शांत मन से अपने कदम बढ़ाने लगी.
इलाहाबाद के कुंभ मेले में हज़ारों की भीड़ में मुन्ना-मुन्ना कहते एक विधवा वृद्ध औरत पागलों की तरह इधर-उधर दौड़े जा रही थी. वहां उसकी कौन सुननेवाला था. सबको संगम में नहा के पुण्य कमाने की पड़ी थी. भीड़ और शोर में मानो उसकी आवाज़ कहीं गुम हो जा रही थी. उसने लोगों का हाथ पकड़-पकड़कर पूछना शुरू कर दिया.
"लाल रंग की चेक की शर्ट में मेरे मुन्ना को कहीं देखा है…"
लेकिन लोग ना में सिर हिलाकर आगे बढ़ जाते. किसी को संगम में स्नान करके पुण्य कमाने थे, तो किसी को अपने किए पापों का कर्ज़ स्नान करके एक झटके में उतारना था. लेकिन उस मां को यक़ीन था हज़ारों की इस भीड़ में कोई उसकी ये आवाज़ सुने या ना सुने, पर उसका बेटा ज़रूर सुन लेगा. वो भी तो कहीं मां-मां कहता घूम रहा होगा शायद वो ही बेटे की आवाज़ सुन ले.
अब तो सूरज भी डूबने को था. थकहार के वो बूढ़ी औरत एक किनारे बैठ गई. जैसे-जैसे दिन का प्रकाश कम हो रहा था उसकी हिम्मत भी टूटती जा रही थी. एक बार फिर उसने ज़मीन का सहारा लेकर उठने की कोशिश की. एक साधु ने उस वृद्ध को हाथ देकर उठाया. वो एक बार फिर से अपनी पूरी शक्ति लगाकर मुन्ना-मुन्ना पुकारने लगी.
बचपन में तो मेरी आहट सुनते ही मेरा मुन्ना भागा चला आता था, आज इस भीड़ में कहां खो गया मेरा मुन्ना. मेरा मुन्ना ठीक तो होगा, कहीं कुछ हो तो नहीं गया… अनगिनत सवाल उस मां को परेशान कर रहे थे.
"क्या हुआ अम्मा?" एक आदमी ने परेशान-सी नज़र आ रही उस मां से पूछा.
"मेरा मुन्ना मुझसे बिछड़ गया."
"उसकी उम्र कितनी है?"
"45 साल."
"तो आप घबराओ नहीं वो मिल जाएगा. आप दाएं जाना, वहां पुलिस कैंप लगा होगा. उन्हें बता देना. वो आपके बेटे का नाम लाउडस्पीकर पर बुलवा देंगे.
"मेरा बेटा मुझे मिल जाएगा…" ये बुदबुदाते हुए वो मां पुलिस कैंप की ओर तेजी से अपने कदम बढ़ाने लगी.
मेले की भीडभाड़ में मानो उसे दिशा का कोई भान ही नहीं रहा. किसी तरह लोगों से पूछ-पूछ कर वो कैंप तक पहुंची.
"मेरा बेटा खो गया है." हांफते हुए उसने कहा. उसका शरीर ऐसे कांप रहा था जैसे सूखे पत्ते को ज़रा-सी हवा हिला देती है.
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"बैठो अम्मा. पहले थोड़ा पानी पी लो." एक पुलिसवाले ने कहा.
उस बूढ़ी औरत ने पानी पिया, तेज सांस भरी और बोली, "बेटा मोए बचुए को ढूंढ़ दो ई. भीड़ में कहीं खो गओ है…"
"अपने बेटे का नाम और उम्र बताओ. अम्मा कितनी देर पहले खोया?"
"बेटा उसका नाम मुकुल रहा, पर घर में सब उसे मुन्ना बुलाते हैं. 45 साल का है मोरा बचवा. किती देर पहले गुम हो गया ईह तो नहीं बता सकत. क़रीब 3 घंटे हो गओ रहे. मोए खड़ा करके कछु सामान लेने गए रहो, पर लौट के वापस नई आओ. मोए बेटे से मुझे मिलाए दो बचवा."
जो पुलिसवाला सारी जानकारी लिख रहा था और जो उसके पास खड़ा था दोनों ने एक-दूसरे को आंखों ही आंखों में कुछ कहा, जिसे वो बुढ़िया नहीं समझ पाई.
" अम्मा कौन से गांव से हो?"
" ललितपुर के पास बमरोला गांव."
"हां अम्मा, आप बैठ जाओ. हम भोंपू पर बोल देते है तुमाओ बचवा आ जाएगा."
लाउडस्पीकर से एनाउंस किया गया. 'बमरोला गांव के मुकुल की मां उसका कैंप नंबर 5 में इंतज़ार कर रही हैं जहां भी हो जल्दी आए.' कई बार ऐसी घोषणा की गई.
वो वृद्ध औरत कैंप में बैठकर इंतज़ार करने लगी.
एक डेढ़ घंटा और बीत गया, लेकिन उसका बेटा नहीं आया.
दोनों पुलिसवाले कैंप के बाहर खड़े थे.
वो चिंतित बुढ़िया उनसे कुछ पूछने के लिए गई.
वो आपस में बात कर रहे थे. उन्हें आभास नहीं हुआ कि वो बुढ़िया उनके पीछे खड़ी है.
उनकी बातें सुनकर उसका दिल बैठ गया और बिना कुछ पूछे वो कैंप में आकर बैठ गई.
'नहीं मेरा लल्ला ऐसा नहीं कर सकता. जो बचपन में हमेशा मेरी उंगली पकड़े रहता था कहीं मेले की भीड़ में वो खो ना जाए, वो मुझे इस भीड़ में अकेला छोड़कर नहीं जा सकता…'
जहां उसका दिल उसे ऐसी दिलासाएं दे रहा था, वहीं उसका दिमाग़ कुछ और कह रहा था.
'मुझे क्यों नहीं समझ में आया, जो बेटा पिछले छह महीने से मेरा एक चश्मा नहीं बनवा पा रहा है, वो अचानक कुंभ के मेले में क्यों ले आया. मेरे जाते समय मेरी बहू ख़ुश क्यों थी? उससे तो देर-सबेर कभी भूख लग जाए, तो खाना मांगने में भी डर लगता था. जिस रसोई की कभी मैं मालकिन थी, अब उस रसोई में से खाना पूछकर खाना पड़ता है. मुझे क्यों समझ नहीं आया कि अचानक बेटे-बहू को मेरा ख़्याल कैसे आ गया…'
उसके घर छोड़ते जाते समय बहू और बेटे का हंसता हुआ चेहरा उसे याद आ गया. उसकी आंखें छलक पड़ीं.
शाम के सात बच गए थे. दिल फिर भी मानने को तैयार नहीं था कि उसका बेटा उसे ऐसे छोड़ सकता है. जैसे-जैसे समय बीत रहा था दिल पर दिमाग़ हावी होता जा रहा था.
मुन्ना के बापू के जाने के बाद उसने घर बेटे के नाम कर दिया था, तो क्या ग़लत किया था. उसी का तो घर है, लेकिन उसकी मां उसके लिए पराई कब हो गई. किसी दूसरे घर की बेटी को क्या दोष दूं, जब अपना लड़का ही मां को बोझ समझ ले…
क़िस्मत से हारी, थकी बेहाल उस बुढ़ी औरत को समझ ही नहीं आ रहा था कि अब करे तो क्या करे.
पुलिसवालों ने अपने लिए चाय मंगाई और एक चाय उसे भी दी. तभी एक नवयुवक आया.
पुलिसवाले उसे राधे नाम से बुला रहे थे.
उसकी नज़र उस वृद्धा पर नहीं पड़ी थी.
“आज भी कोई बेटा अपने मां या बाप को छोड़कर गया है क्या परिहासजी?”
पुलिसवालों ने उस वृद्धा की ओर इशारा कर दिया.
“अम्मा परेशान ना हो आप, मेरा नाम राधे है. मैं आश्रय नाम से बुज़ुर्ग लोगों के लिए घर चला रहा हूं आप वहां चल सकती हैं.”
“धन्यवाद बेटा, लेकिन जब मेरे बेटे ने ही मुझे पराया कर दिया, तो अब तुम पर मैं बोझ नहीं बनना चाहती.”
“बूढ़ों को बोझ समझनेवाले ये क्यों नहीं सोचते की वो कोई अमरबेल खाकर नहीं आए, वो भी तो कभी बूढ़े होंगे.”
“अम्मा, आप मुझ पर बोझ नहीं हो सरकार की तरफ़ से भी मुझे मदद मिलती है घर को चलाने में. आप मेरे साथ चलो बहुत से हमउम्र मिलेंगे आपको वहां.”
“नहीं बेटा बूढ़ी ज़रूर हुई पर मजबूर नहीं.”
“अम्मा तो तुम जाओगी कहां?”
“जहां मुझे मेरे राम ले जाएंगे.”
पुलिसवालों ने कहा, "अम्मा, ऐसे तो हम तुम्हें नहीं जाने देंगे. घर का या किसी रिश्तेदार का पता दो, तो तुम्हें वहां छुड़वा देंगे, नहीं तो फिर आपको राधे के साथ ही जाना पड़ेगा."
जब बेटे ने ही अपनी मां को इस हालत में अकेले छोड़ दिया, तो किन रिश्तेदारों का नाम बताऊं इन्हें… बुढ़ी औरत ने मन में सोचा.
“बेटा, मेरी एक बहन है उसका पता जैसे ही याद आ जाएगा तुम्हें बता दूंगी.”
उस बूढ़ी औरत ने झूठ बोल दिया. अगर सच बोलती तो उसे राधे के साथ जाना पड़ता और स्वाभिमानी बुढ़िया को ये मंज़ूर नहीं था किसी की दया पर जिए.
उसकी साड़ी में कुल 600 रुपए बंधे थे. 500 का एक पूरा नोट और बाकी के छुट्टे. उसने 50 रुपए निकालकर राधे को दिए और कहा, “बेटा मेरे खाने के लिए कुछ ले आओ. शायद खाकर थोड़ा दिमाग़ चले और मैं अपनी बहन के घर का पता याद कर पाऊं.”
राधे चला गया और कुछ देर बाद पूरी-सब्ज़ी ले आया.
बूढ़ी ने खाने के बाद कहा कि उसे शौच के लिए जाना है.
राधे पुलिसवालों को बोलकर उन्हें एक मोबाइल टॉयलेट के पास ले गया. लाइन लगी थी वहां.
“बेटा, मैं यहां बैठ जाती हूं तू कब तक खड़ा रहेगा मैं आ जाऊंगी तू जा.”
“नहीं अम्मा, तुम इस भीड़ भाड़ में खो जाओगी. मैं उधर बैठ जाता हूं. तुम फारिग होकर वहां आ जाना.”
“ठीक है बेटा.”
राधे कुछ दूरी पर जाकर बैठ गया.
लाइन काफ़ी लंबी थी. वो अपने मोबाइल से किसी से बातें करने लगा.
आधे घंटे बाद राधे वहां पहुंचा, लेकिन वो बूढ़ी अम्मा वहां नहीं थी.
लोगों से पूछने पर पता चला की वो काफ़ी समय पहले चली गई.
राधे ने कैंप की ओर तेजी से कदम बढ़ाए.
कैंप पहुंचने पर देखा कि वो वहां भी नहीं है. फिर उसने पुलिसवालों को सारी बात बताई.
इतनी भीड़ में उस बूढ़ी को ढूंढ़ना आसान नही
था.
बूढ़ी औरत बस कदम बढ़ाए जा रही थी. कहा किस ओर जाना है ये तो उसे पता ही नहीं था. जैसे-जैसे उसके कदम आगे बढ़ रहे थे, वैसे ही दिमाग में उसकी यादें पीछे कदम बढ़ा रहीं थी.
उसे आज भी मुन्ना की वो छवि याद थी जब पहली बार उसे उसने अपने हाथों में लेकर निहारा था. उसके गुलाबी छोटे-छोटे से पंजे और कैसे उस नन्हीं-सी जान ने अपनी मुट्ठी में मां की एक उंगली कस कर पकड़ ली थी. ऐसे जैसे अब ये साथ वो कभी नहीं छोड़ेगा. जब उसके मुंह से पहली बार मां शब्द सुनकर वो निहाल हो गई थी. कैसे उसने उसे चलना सिखाया, फिर दौड़ना और पढ़ना. बूढ़ी औरत की आंखों से अश्रुओं की धार बह रही थी. जो यादें उसे कभी स्वार्ग सुख का अनुभव कराती थीं आज वही उसे पीड़ा दे रही थीं.
मेरा मुन्ना आज इतना बड़ा हो गया कि अब उसे मां की ज़रूरत ही नहीं रही.
अपने अतीत और वर्तमान में उलझी हुई वो भीड़भाड़ से काफ़ी दूर निकल आई थी.
अब पैर भी साथ नहीं दे रहे थे. सड़क के किनारे एक बड़ा-सा पत्थर था, वो उस पर जाकर बैठ गई.
ये पत्थर भी हारे-थके लोगों को कितना सुकून देता है. फिर क्यों लोग इंसानों को पत्थरदिल बोलते हैं?
क़रीब दस मिनट सुस्ता के वो फिर अनजानी मंज़िल की ओर कदम बढ़ाने लगी.
रात के क़रीब आठ बज रहे थे. उसे कहीं दूर से मंदिर की घंटियों की आवाज़ आ रही थी. अपने आप ही उसके कदम उस ओर बढ़ चले.
अब मेरे प्रभु ही मेरी नैया पार लगाएंगे इस दृढ़ निश्चय ने उसे एक नई ऊर्जा से भर दिया. घंटियों का स्वर उसके हर कदम के साथ तेज होता जा रहा था.
मंदिर में शिवजी की आरती हो रही थी. वो भी अपने प्रभु के सामने हाथ जोड़े खड़ी हो गई.
आरती के बाद प्रसाद वितरण हुआ. प्रसाद ग्रहण करके उसने मंदिर में लगे नल से पानी पिया. और मंदिर परिसर में बनी बेंच पर जाकर बैठ गई. लोगों की भीड़ धीरे-धीरे कम हो रही थी.
बहुत थके होने के कारण उसकी आंख लग गई.
“अम्मा किसके साथ आई हो?”
मंदिर के पुजारी ने बूढ़ी औरत से पूछा.
वृद्धा ने कोई उत्तर नहीं दिया.
“घर कहां है तुम्हारा?”
"घर नहीं है." उसने धीरे से कहा.
“तो फिर कहां जाओगी?”
“जहां मेरे प्रभु ले जाएंगे”
“कौन जात से हो? पंडित हो क्या?”
“कायस्थ.”
“अम्मा, यहां ऐसे तो नहीं रह पाओगी तुम”
“अगर पंडित होती तो क्या रह जाने देते?”
“यहां पहले एक पंडिताइन थी, जिसे कई लोग दान देने आते थे. पिछले महीने उसकी मौत हो गई, इसलिए पूछा था.”
“दान के पैसे लेकर जीने से तो अच्छा है मुझे मौत आ जाए. आप परेशान ना हो पड़ितजी मैं कल सुबह यहां से चली जाऊंगी.”
“मंदिर के पीछे मेरा घर है किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो आ जाइएगा.”
“आपका बहुत धन्यवाद. मेरे सामने मेरे प्रभु बैठे हैं वही मेरी जरूरत का ध्यान रखेंगे.”
मंदिर के पंडितजी जब सुबह उस वृद्धा को कहने जा रहे थे कि थोड़ी देर बाद वो वहां से चली जाए, तो देखा बेंच खाली थी. वो पहले ही जा चुकी थी.
वद्धा कमज़ोर ज़रूर थी, लेकिन उसकी बूढ़ी हड्डियों में आज भी खुद्दारी ज़िंदा थी.
उसकी साड़ी में साढ़े पांच सौ रुपए बंधे थे.
उसने उसमें से दस रुपए का नोट निकालकर एक चायवाले को दिए, जो साइकिल पर चाय बेच रहा था. सड़क पर कम ही लोग थे.
“अम्मा चाय के साथ बन पाव भी दूं क्या?”
“कितने का है?”
“5 रुपए की चाय और 5 का बन.”
“ठीक है बेटा दे दो.”
बूढ़ी एक हाथ में प्लास्टिक के कप में चाय लिए और दूसरे हाथ में बन लिए कोई साफ़-सुथरी जगह देखने लगी, जहां बैठकर वो खा सके.
शायद चायवाला समझ गया बूढ़ी औरत क्या देख रही है. उसने कहा, “अम्मा, 10 कदम की दूरी पर एक बगीचा है, वहां बैठकर आराम से चाय पीना. बोलो तो मैं वहां छोड़ दूं?”
बेटे ने पहले ही छोड़ दिया अब तुम मत छोड़ो… बुढ़ी बुदबुदाई.
“नहीं बेटा, मैं चली जाऊंगी. भगवान तुम्हें ख़ुश रखे.”
बूढ़ी अपनी चाय का कप लिए बगीचे में पहुंची. दोनों हाथों में समान था और बगीचे में घूमनेवाला दरवाज़ा. वो भी इतना भारी की पैर से हिलाना मुश्किल.
लोग सुबह मॉर्निग वॉक के लिए एक के बाद एक दरवाज़ा खोलकर अंदर जाते जा रहे थे और वो बूढ़ी ओरत वहीं खड़ी थी.
ट्रैक सूट पहने एक लड़की दौड़ते हुए आई कानों में उसने ईयरफोन लगा रखे थे. उसने उस बूढ़ी को देखकर स्माइल दी और पहले उनके लिए वो दरवाज़ा घुमा दिया.
अम्मा ने उसे आशीर्वाद दिया और आगे बढ़ गई.
एक खाली पड़ी बैंच पर बैठकर वो चाय पीने लगी.
चाय ठंडी हो गई थी, लेकिन पाव में डुबोकर अच्छी लग रही थी. बिना खाना खाए सोने के बाद कुछ मिल जाए, तो वो ही बहुत हो जाता है.
चाय पीने के बाद वो लोगों को देखने लगी. सब कानों में तार डाले चल रहे थे, तो कोई दौड़ रहा था. लेकिन एक-दूसरे से बातें नहीं कर रहे थे.
गांव में तो कोई एक-दूसरे से बिना 'राम राम' कहे नहीं जाता. हालचाल तो पूछ ही लेते हैं.
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शहर के लोग कितना बदल गए है. एक ही दुनिया में एक ही रास्ते पर सबकी अलग अलग दुनिया चल रही है. एक-दूसरे से ना बोलकर उससे बोल रहे हैं, जो उनके सामने है ही नहीं.
तभी उसका ध्यान पास के पेड़ पर मौजूद पंक्षियों के स्वर ने खींचा. घोंसले में दो बच्चे थे और शायद उन्हें उड़ना सिखाने के लिए चिढ़वा और चिड़ी बारी-बारी से अपने पर फैलाए आसमान में उड़ जाते. फिर वापस लौट कर अपनी ही भाषा में बच्चों को कुछ बोलते जैसे कह रहे हों, देखो अब ऐसे ही उड़ना है तुम्हें. अब उड़ने की बारी बच्चों की थी. एक बच्चे को मां ने घोंसले से धक्का दिया, वो बच्चा नीचे गिरने लगा, फिर उसे मां का सबक याद आया और अपने पंख फैलाकर फड़फड़ाने लगा. ज़मीन पर गिरने के पहले उसने ख़ुद को संभाल लिया और उड़ना सीख लिया. बच्चे के मां और पिता ख़ुशी से चहचहा उठे. अब दूसरे बच्चे की बारी थी. मां ने एक बार फिर उसे उड़ने का डेमो दिया. अब तो उसका नन्हा भाई भी उसे सिखाने और उसका डर निकालने की कोशिश कर रहा था.
अपने भाई का हौसला बढ़ाने के लिए वो एक बार फिर उड़ने को तैयार हो गया. दोनों भाइयों ने साथ में घोंसले से छलांग लगाई. पर छोटा भाई कुछ ही सेकंड में ज़मीन पर गिर गया. माता-पिता उस नन्ही-सी जान को एक बार फिर उत्साहित करने के लिए घोंसला छोड़कर उसके पास बैठ गए. भाई ने भी कोशिश की, लेकिन कुछ देर बाद वो हवा में अपने पंख फैला कर उड़ गया. नया-नया उड़ना जो सीखा था. मां-बाप अभी भी अपने कमज़ोर बच्चे के पास बैठे थे और उसे जीवन से लड़ने की ट्रेनिंग दे रहे थे.
बहुत कोशिशों के बाद उसने छोटी-सी उड़ान भरी और फिर नीचे आ गया. लेकिन इस छोटी-सी उड़ान ने उसे इस बात का एहसास करा दिया कि वो उड़ सकता है. उसने फिर कोशिश की. तब तक करता रहा, जब तक उड़ना नहीं सीख लिया. चिड़वा और चिड़ी अपने घोंसले में जाकर बैठ गए और बच्चों को उड़ता देख आनंदित हो गए. बच्चों ने फिर घोंसले में आने का प्रयास किया, तो उन्होंने मना कर दिया. अब तुम्हें हमने काबिल बना दिया है अब अपनी देखभाल ख़ुद करो.
बूढ़ी सोचने लगी. हम भी तो ऐसे ही अपने बच्चों को अपने सारे हुनर सिखाते हैं, लेकिन इन पंक्षियों से एक बात हमें भी सीखनी चाहिए कि बच्चों को काबिल बनाना हमारा फर्ज है, लेकिन बच्चों को ना ख़ुद पर आश्रित रहने दें और ना बच्चों पर आश्रित रहे. काश! ये सीख मैंने पहले सीख ली होती.
धीरे-धीरे पार्क में मॉर्निंग वॉक करनेवाले लोगों की भीड़ कम होने लगी.
अम्मा सोच रही थीं कि अब वो कहां जाए. कोई मंज़िल होती, तो दूसरों की तरह वो भी उस ओर चल देतीं. कुछ सोचकर वो उठी सूर्य देवता को नमस्कार किया. आंख बंद कर अपने प्रभु को याद किया और अपनी मंज़िल क़िस्मत पर छोड़कर बस कदम बढ़ाने लगी. दिमाग़ में बस यही चल रहा था इन रुपयों के ख़त्म होने के पहले कुछ काम ढूढ़ना है, पर कैसे और क्या काम. जब कुछ उसे समझ नहीं आया, तो उसने अपने सारे सवाल अपने प्रभु को समर्पित कर दिए और शांत मन से अपने कदम बढ़ाने लगी.
मुन्ना के बेटे विरल की उसे रह-रह कर याद सता रही थी.
15 साल का हो गया, लेकिन अब भी मुझसे जब तक कोई कहानी नहीं सुन लेता सोता नहीं है. अपने बाप को अकेला आते देखकर उस पर क्या बीतेगी.
मुन्ना क्या कहेगा उसे? क्या कह पाएगा कि वो अपनी मां को मेले में छोड़ आया. मुन्ना ने जो मेरे साथ किया, क्या सपने में भी वो कभी सोचेगा की भविष्य में विरल भी ऐसा ही कर सकता है उसके साथ. इतना सब सोचा होता, तो शायद वो ऐसा करता ही नहीं. ख़ैर जैसी प्रभु की इच्छा ज़रूर उन्होंने मेरे लिए कुछ अलग सोच रखा है…
बूढ़ी औरत चलते-चलते एक जगह जाकर ठहर गई. कई बच्चे एक बिल्ड़िग के अंदर जा रहे थे. कुछ समय बाद मेरा विरल भी इतना बड़ा हो जाएगा. वो भी ऐसे बड़े कॉलेज में जाएगा.
कॉलेज रोड के उस तरफ़ था और बूढ़ी औरत रोड के इस तरफ़. वो खड़ी होकर बच्चों को निहारने लगी. इन बच्चों को देखकर उसे बड़ी खुशी मिल रही थी.
तेज आवाज़ों ने उसका ध्यान खींचा.
एक चाय की टपरी जैसी कच्ची दुकान थी, उस पर एक स्टोव था. दुकान के अंदर एक आदमी खड़ा था, जिससे कई लड़के बातें कर रहे थे.
“क्या पांडेजी कितना इंतज़ार करवाइएगा परांठे के लिए 10 मिनट से तो खड़े है.”
“बस, आनेवाला होगा परमेश्वर. इस हरामखोर को भी धंधे के वक़्त उलजुलूल काम याद आते हैं. दो मिनट की कह कर गया था अब तक नहीं आया.”
“इस बार तो काम से निकाल दूंगा. मेरे गांव का है, वरना कब का नौकरी से निकाल दिया होता.”
“दस मिनट बाद लेक्चर शुरू हो जाएगा. अच्छा एक चाय और टोस्ट ही दे दो.”
बूढ़ी औरत उस दुकानवाले के पास गई बोली, “आप कहें, तो मैं परांठा बना दूं. इन बच्चों के लिए?”
“अरे, आप क्यों बनाएंगी?”
“इन बच्चों को खिलाकर अच्छा लगेगा मुझे. चिंता मत करो तुमसे कुछ लूंगी नहीं.”
बूढ़ी अम्मा के लिए 4-5 परांठे बनाना तो मामूली-सा काम था. ज़िंदगीभर खाना ही तो बनाया था और उनके हाथ का स्वाद ऐसा की पूरे गांव में उनकी तारीफ़ होती थी.
उन्होंने परांठे बनाकर बच्चों को खिलाए.
आज के परांठे बच्चों को कुछ अलग ही मज़ा दे रहे थे.
“वाह! क्या परांठे बनाए हैं अम्मा. मज़ा आ गया.”
हर रोज़ लड़कों की बातें सुननी पड़ती थी पांडेजी को कभी परांठा कच्चा, तो कभी जला हुआ.
बच्चों के मुंह से तारीफ़ सुनकर आज उनका सीना थोड़ा चौड़ा हो गया.
थोड़ी देर में परमेश्वर भी आ गया.
“ये क्या मैं गया और किसी और को काम पर रख लिया. ये तुमने सही नहीं किया.”
बिना पूरी बात समझे परमेश्वर बिगड़ गया.
पांडे फिर कहा चुप रहनेवाले थे.
“हां रख लिया. मेरी दुकान है और मेरी मर्ज़ी. तू साले क्या करेगा. मेरे गांव का नहीं होता, तो कब का निकाल बाहर किया होता.”
“अरे, क्यों लड़ रहे हो बेटा. किसी ने तुम्हारी नौकरी नहीं ली. मैं चली तुम करो अपनी नौकरी.”
पांडेजी ने अम्मा को रोका.
“अम्मा, तुम काम करोगी?”
“बेटा, काम तो मुझे चाहिए, लेकिन किसी का काम छीनकर नहीं.”
“काम का क्या लोगी?”
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“जितने में स्वाभिमान से जी सकूं.”
“तुम्हारा घर कहां है?”
“जब से घर छोड़ा है, तब से अब पूरा संसार ही मेरा घर है.”
“अम्मा, तुम यहां काम करो रात में यहीं सो सकती हो. गद्दे का इंतज़ाम मैं कर दूंगा. महीने का 5 हज़ार दूंगा. रहना-खाना मुफ़्त.”
“परमेश्वर तुझे मैं आख़री मौक़ा दे रहा हूं. तू अम्मा की मदद करेगा. परांठे वो बनाएंगी. सब्ज़ी बाज़ार से लाना, उबालना, मसाला बनाना और आटा गूंधना तेरे ज़िम्मे और परांठा बनाना अम्मा के, समझ आई बात.”
बेमन से परमेश्वर ने हां कह दिया जैसे किसी ने उससे उसकी गद्दी छीन ली हो.
आज अम्मा के परांठे की शायद कॉलेज के अंदर ज़्यादा ही तारीफ़ हो गई. लेक्चर के बाद काफ़ी लड़के परांठा खाने आने लगे.
अम्मा ने जो काम शुरू किया, तो फिर दोपहर तीन बजे जाकर ही उन्हें विश्राम मिला.
आज पांडेजी बहुत ख़ुश थे. पूरे दिन की आमदनी कुछ ही घंटों में निकल आई.
"अम्मा, अब तुम भी कुछ खा लो."
अम्मा ने कुछ और परांठे बनाकर परमेश्वर और पांडेजी को भी खाने को दिए और फिर ख़ुद खाने बैठ गई. और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया. उसने कभी ज़िंदगी में नहीं सोचा था कि वो कभी ख़ुद कमाएगी. अपनी कमाई की रोटी खाना कितना सूकून देता है आज उसे पता चल रहा था.
पांडेजी ने शाम को एक गद्दे का इंतज़ाम कर दिया, ताकी दुकान में ही अम्मा सो सकें.
“परमेश्वर, कल ठीक समय पर आ कर अम्मा की मदद करना, वरना समझ ले कल तेरा आख़री दिन होगा.”
“क्या आप बार-बार धमकियाते रहते हो हमें.”
“अबे धमकी नहीं है. ये आख़री चेतावनी है समझा.”
शाम आठ बजे पांडेजी और परमेश्वर निकल गए. रह गई अकेली अम्मा.
सुबह ये जगह जो बच्चों से गुलज़ार थी अब सुनसान-सी पड़ी थी.
इंसान जब अकेला होता है, तो उसे अपनों की यादें अपनी ओर खींच लेती हैं.
अम्मा भी उन यादों में खिंची चली जा रही थी. कहते भी हैं मूल से ज़्यादा सूद प्यारा होता है.
उन्हें विरल की बहुत याद सता रही थी. यहीं वो समय होता था, जब वो अम्मा से कहता आज कोई नई कहानी सुनाओ और अपने स्कूल की सारे दिन की दिनचर्या बताता. किससे झगड़ा किया. किस टीचर ने तारीफ़ की, तो किसने आज क्लास के बाहर खड़ा किया.
अम्मा विरल की ख़ास दोस्त थी, जिनसे वो कुछ नहीं छुपाता था.
विरल जानता था की उसकी मां, अम्मा को पसंद नहीं करती, इसलिए अपनी पॉकेटमनी में से वो अपनी प्रिय अम्मा के लिए चीज़ें लाता रहता.
अम्मा को इस उम्र में भी इमली की खट्टी-मीठी गोलियां बड़ी पसंद थीं और मोतीचूर के लड्डू. बाहर आंगन में उनकी खटिया डली रहती थी. और स्कूल से आकर विरल अपना बैग खटिया के नीचे रखकर पहले अपनी अम्मा के पास जाता और अम्मा उसका माथा चूमकर कहती, "आज मेरे बेटे ने क्या कारनामें किए." और फिर शुरू हो जाती विरल की कभी ख़त्म ना होनेवाली बातें. और मौक़ा देखकर वो चुपके से अम्मा के हाथ में कभी लड्डू थमा देता, तो कभी उनकी प्रिय इमली की खट्टी-मीठी गोली.
गद्दे पर लेटी अम्मा अपने पोते को याद कर आंसू बहा रही थी. सोच रही थी कि विरल कैसे रह रहा होगा उनके बिना. अब तक तो मुन्ना घर पहुंच चुका होगा. क्या कहा होगा उसने. विरल ने मुझे इलाहाबाद से अमरूद लाने को कहा था. बेचारा… जाने अब कब उसकी ये फ़रमाइश पूरी कर पाऊंगी, कर भी पाऊंगी या नहीं. सोचते-सोचते रात के क़रीब दो बज गए. अम्मा ने सोचा अब थोड़ा सो लेती हूं, फिर सुबह से मेहनत करनी है. नींद नहीं होगी, तो काम भी ठीक से नहीं कर पाऊंगी.
लेकिन सोचने से ही नींद आ जाए, तो क्या बात होती… नींद अम्मा की आंखों से कोसो दूर थी. बेटे के लिए मां एक सामान भी हो सकती है, जिसकी एक मुद्दत होती है. जैसे मुद्दत पूरी होने पर सामान को फेंक दिया जाता है आज वो ख़ुद को वैसा ही महसूस कर रही थीं.
सुबह सात बजे जब परमेश्वर आया अम्मा जाग रहीं थीं.
“क्या अम्मा नई जगह नींद नहीं आई क्या?”
अम्मा मुस्कुरा दीं, क्योंकि कई सवालों के जवाब नहीं होते.
“अम्मा मैं सब्ज़ी ले आया हूं. आलू उबलने के लिए चढ़ा रहा हूं. उसके बाद आटा गूंध दूंगा और कोई काम हो तो बता देना. सेठ से शिकायत मत करना बहुत खिटपिट करता है.”
“बेटा चाय पियोगे?”
“नेकी और पूछ-पूूूछ.”
अम्मा ने दो कप चाय बनाई और एक कप परमेश्वर को दी.
“एक बात पूंछू अम्मा?”
“पूछो बेटा.”
“तुम यहां की तो लगती नहीं हो कहां से आई हो? तुम्हारे घर-परिवार में क्या कोई नहीं है?”
“नहीं, सब हैं.”
“तो तुम यहां क्यों हो?”
“बस, अपना वजूद ढूंढ़ने निकली हूं.”
“अम्मा, तुम्हाई बातें किसी पहेली से कम नहीं. चाय बहुत बढ़िया बनाई है अम्मा.”
चाय पीने के बाद दोनों खाने की तैयारी करने लगे.
नौ बजे से बच्चों की दुकान पर चहल-पहल शुरू हो गई.
कल वाले बच्चे कुछ और नए बच्चों के साथ लौट आए थे.
“अम्मा कल जैसे ही मज़ेदार दो आलू के परांठे बना दो.”
किसी ने कहा गोभी के, तो किसी ने मूली के…
अम्मा बड़ी तन्मयता और प्रेम से बच्चों के लिए परांठे बनाने लगीं, जैसे घर में आए किसी मेहमान के लिए कोई बनाता है.
आज तो चटनी भी अम्मा ने बनाई थी, तो बच्चों को कुछ ज़्यादा ही स्वाद आ रहा था.
इस काम के रूप में अम्मा को जीने का सहारा मिल गया था और इन बच्चों की हंसी और कहकहों में वो अपना दुख भूल जाती.
धीरे-धीरे वो बच्चों को उनके नाम से जानने लगी.
सिगरेट पीते बच्चों को अब अम्मा बड़े अधिकार से टोक भी देतीं. बच्चे भी अम्मा का बड़ा सम्मान करने लगे थे, इसलिए सिगरेट कहीं और पीने के बाद ही परांठे खाने जाते.
पांडेजी भी अपनी बढ़ती बिक्री से ख़ुश थे.
अम्मा को अब काम ज़्यादा करना पड़ता था, पर इस काम की वजह से ही वो विरल की याद से आज़ाद रह पाती थीं.
अम्मा खाना बनाने में इतनी एक्सपर्ट थी कि परांठे बनाते-बनाते बच्चों से बातें भी करती रहतीं. बच्चों की बातें सुन-सुनकर उनका ज्ञान भी बढ़ रहा था.
नोटबंदी की बात हो या अमेरिका में ट्रंप द्वारा लिया कोई नया फैसला अम्मा बहुत गौर से बच्चों की बातें सुनती थी.
हर दिन अम्मा को कुछ नया सीखने को मिलता. लेकिन हर रात अब भी ठीक वैसी ही होती. अम्मा जैसे ही अकेली होतीमोह के धागे उन्हें फिर अपनी ओर खींचने लगते.
ऐसे ही होते हैं ना मोह के धागे देखने में बहुत नाजुक लेकिन इतने मजबूत की टूटते ही नहीं. टूट भी जाएं तो लगता है गांठबाद कर फिर दो अलग हुए धागों को एक कर दें.
अम्मा का तकिया रोज रात को भीग जाता. अब ये उनकी दिनचर्या का ही हिस्सा था. अपनी इन्हीं यादों के जरिए ही तो वोअपने परिवार से जुड़ी हुईं थी.
कई महीनें हो गए थे पांडे जी का बिजनेस तेजी से तरक्की कर रहा था. लेकिन मुनाफे के इस हिस्से को वो बांटने को तैयारनहीं थे जिससे परमेश्वर अक्सर उखड़ा रहता.
“अम्मा तुम बोलती क्यों नहीं काम बढ़ गया है और सेठ तनख्वाह बढ़ाने को तैयार नहीं”
“पहले बोलते थे की आमदनी ही नहीं होती पैसे क्या खाक बढ़ाउं और अब जब काम अच्छा चल रहा है तो भी पैसा देने कोतैयार नहीं”
“बेटा मुझे आए 6 महीने हुए है और जितना मिल रहा है वो भी बच ही जाता है मैं क्या बोलूं?”
“आज तुम्हारे लिए बात करके देखती हूं”
बच्चों ने अम्मा का बैंक में अकाउंट खुलवा दिया था. अम्मा बच्चों को ही पैसे दे देती थी बैंक में जमा करवाने के लिए. एटीएम कार्ड भी था उनके पास जिसका इस्तेमाल उन्होंने अब तक नहीं सीखा था जरूरत ही नहीं पड़ी थी. खाने और सोनेकी उनकी जरूरत इस काम से ही पूरी हो जाती थी.
परमेश्वर को बहुत उदास देखकर उन्होंने सोचा वो आज जरूर मौका देखकर पांडे जी से उसकी पगार बढ़ाने के लिए बातकरेंगी.
पांडे जी अब दुकान पर कम बैठते थे अम्मा पर पूरा भरोसा जो था. शाम 7 बजे करीब वो आते और दिनभर की कमाई में सेअगले दिन का सामान लाने के लिए परमेश्वर को पैसे देते और निकल जाते.
आज भी नियत समय पर पांडे जी आ गए.
अम्मा ने आज उनके लिए चाय बनाई.
“बेटा परमेश्वर बहुत मेहनत करता है दिनभर मेरे साथ उसका काम भी काफी बढ़ गया है”
“उसकी तनख्वाह बढ़ा दो उचित समझो तो”
“क्या रे अम्मा के भी कान भरने लगा है तू”
“अम्मा तुम बीच में मत पड़ो आजकल सब्जियां कितनी महंगी हो गई हैं और मुनाफा भी इतना नहीं है आगे देखूंगा”
अम्मा को कल की सब्जी लाने के लिए पैसे देकर पांडेजी निकल गए.
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अम्मा को लगा था शायद उनके कहने से वो उसकी पगार बढ़ा दे बेचारा 2 साल से उसी तनख्वाह पर काम कर रहा है. लेकिन शायद पैसा पाकर इंसान और लोभी हो जाता है.
“देखा अम्मा एक नंबर का हरामी है ये सारा पैसा बस खुद रखना चाहता है”
“गांव में मां है बीवी है दो बच्चे हैं 8 हजार में कुछ होता है क्या?”
“बड़ी मुश्किल से महीने के आखिर में थोड़ा रूपया बचाकर घर भेज पाता हूं”
“इस बार तो अम्मा बीमार पड़ी खर्चा ज्यादा हो गया”
“गांव जाने के लिए किराए के पैसे निकालना भी मुश्किल हो रहा है सोच रहा हूं और दो महीने बाद जाउं”
“बेटा पैसा चाहिए तो मुझसे ले लो बैंक में बेकार पड़ा है”
“अम्मा आपसे पैसा लेना अलग है और हक का पैसा अलग”
“2 साल से उसी तन्ख्वाह में काम कर रहा हूं. अब यहां मन नहीं लगता”
“बेटा धैर्य रखो आगे अच्छा होगा”
“अम्मा क्यों ना हम दोनों मिलकर नया धंधा लगाना शुरू करें मेहनत तो हम दोनों ही करते हैं ना मुनाफा ये खाता है”
“तब मेहनत भी हमारी होगी और मुनाफा भी”
“बेटा मुश्किल में पांडे जी ने मुझे सहारा दिया मुझे ऐसे अच्छा नहीं लगेगा एक बार फिर तुम्हारे लिए बात करूंगी मौकादेखकर”
“ठीक है अम्मा चलो अब मैं चलता हूं फिर कल आउंगा हम तो नौकर लोग है देखों कब तक भगवान इस सेठ की चाकरीकरवाता है”
कुछ दिन और निकल गए अब परमेश्वर काम पर तो आता पर उसका काम में मन नहीं लगता था. अम्मा उसका उदासचेहरा देखकर दुखी हो जाती वो इस बीच कई बार पांडे जी से उसकी पगार बढ़ाने की सिफारिश कर चुकीं थी पर मानोंउनके कान पर जूं ही नहीं रेंग रही थी.
अम्मा जी अपना काम उसी उत्साह से कर रही थी. बच्चों को अच्छा खाना बनाकर खिलाना उन्हें बहुत अच्छा लगता था.
अम्मा एक गोभी का पराठा और बना दो थोड़ा कड़क सेकना दीपक ने कहा.
‘हां मुझे मालूम है तुम्हें कड़क और मनीष को मुलायम पराठे पसंद हैं अम्मा ने मुस्कराते हुए कहा.
पराठे बनाते-बनाते अम्मा की नजर पास खड़े एक बच्चे पर पड़ी.
उसकी उम्र विरल से 2-3 साल कम हीर ही होगी. देखने में गरीब घर का बच्चा लग रहा था.
पराठों की उठती महक उसके खाली पेट में शायद और तरंगे पैदा कर रहीं थी. वो ललचाई नजरों से देख रहा था.
अम्मा ने उसे अपने पास बुलाया.
“पाराठा खाएगा?”
उसने हां में सिर हिलाया और धीरे से कहा
“पैसे नहीं हैं”
“कोई बात नहीं वहां बैठो में देती हूं तुम्हें”
दीपक और मनीष का पराठा बनाने के बाद अम्मा ने उस लड़के के लिए पराठा बना दिया.
वो बच्चा शायद बहुत भूखा था. उसने गर्म पराठा ही मूंह में डाल लिया और उसका मूंह जल गया.
“बेटा आराम से ये लो पानी पी लो”
“और एक पराठा बना दूं?”
उसने फिर एक बार हां में सिर हिला दिया.
अम्मा ने एक और पराठा बनाकर उसके दिया.
उसे पराठा खाता देख अम्मा को विरल की याद आ गई. इतना बड़ा हो गया फिर भी कई बार जिद करता था मुझे आजअपने हाथ से खिलाओ.
अम्मा उसकी यादों में खोई ही थी की पांडे जी की कर्कश आवाज उनके कानों में पड़ी.
“इसने पराठे के पैसे दिए हैं क्या?”
अम्मा ने कहा नहीं.
“मैं इतनी मेहनत से कमाता हूं, आज दिन में नहीं आता तो पता ही नहीं चलता की तुम लोगों ने यहां लंगर खोल के रखा है”
अम्मा को पांडे जी की ये बात अच्छी नहीं लगी. “बेटा मेरी तनख्वाह में से काट लेना”
“देख लिया तो तनख्वाह में से काट लेना नहीं देखता तो? मेरा पैसा ऐसे ही लुटाती”
आज अम्मा को महसूस हो रहा था की नौकरी में कितनी मजबूरी होती है. गलत ना होते हुए भी सुनना पड़ता है.
पांडे जी कुछ और बोलते उससे पहले परमेश्वर बोल पड़ा ठीक से बात करो उनसे बहुत बड़ी है.
पांडे जी को अपने यहां नौकरी करने वाले की ये बात कैसे बर्दाश्त होती वो और भड़क गए.
ऐसा माहौल देखकर वो बच्चा आधा पराठा छोड़कर जाने कहां चला गया था.
अम्मा को बहुत दुख हुआ.
वहां बैठे बच्चे भी अब इस लड़ाई में शामिल हो गए अम्मा से कोई तेज़ आवाज़ में बोले ये उन्हें कहां बर्दाश्त था.
इतनी आवाज़ो में अम्मा की आवाज कौंन सुनने वाला था.
थोड़ी देर बाद परमेश्वर और अम्मा सड़क पर बैठे थे. पांडे जी ने दोनों को काम से निकाल दिया था. कॉलेज के कुछ बच्चेभी उनके पास ही खड़े थे.
“अम्मा तुम परेशान मत हो”
“बेटा मुझे अपनी नहीं परमेश्वर की चिंता है मैं तो अकेली हूं उसके काम से उसके पूरे परिवार का पेट पलता है”
“अम्मा तुम मेरी चिंता मत करो मैं तंग आ गया था इस हरामी के साथ काम करते करते.
पराठे का ही धंधा करेंगे और इधर ही करेंगे देखते हैं क्या करता है ये और इससे ज्यादा कमाकर दिखाएंगे”
“एक चूल्हे और टेबल का ही तो इंतेजाम करना है कर लेंगे कुछ ना कुछ जुगाड़”
“ठीक है बेटा तुम चाहते भी यही थे की खुद का काम शुरू करें जो होता है अच्छे के लिए होता है”
आज रात को कहां जाओगी अम्मा दीपक ने पूछा.
“जहां मेरे भगवान मुझे ले जाएं”
“अम्मा परमेश्वर माने भी तो भगवान ही होता है ना तो तुम मेरे साथ चलो”
परमेश्वर अम्मा को अपने लाथ अपने कमरे पर ले गया
परमेश्वर अम्मा को अपने कमरे पर ले आया जो सोबतिया बाग में था.
“आओं अम्मा हमारे गरीब खाने में तुम्हारा स्वागत है”
“बेटा मेरे लिए तो ये किसी महल से कम नहीं है”
कमरे में सामान ना के बराबर था पर खूटिंयां कई थी जो कपड़ों से लदी थीं.
कमरे के एक कोने में स्टोव था और गिनती के कुछ बर्तन. कमरे से लग कर ही बाथरूम था.
एक किनारे पर चटाई के ऊपर एक गद्दा बिछा था और उसी के पास एक घड़ा था जो एक छोटी तश्तरी से ढका था औरउसपर एक ग्लास उलटा रखा था.
“अम्मा बैठने और सोने के लिए यही है जो है”
“जो है बहुत है बेटा”
गद्दा इतना बड़ा तो था नहीं जिसपर दो लोग सो सकें. इसलिए अम्मा के बैठने के पहले परमेश्वर ने गद्दे के नीचे से चटाईनिकाली.
“अम्मा तुम गद्दे पर सो जाना मैं चटाई पर सो जाउंगा”
“बेटा मां को नींद तभी आती है जब मां अपने बच्चे को सुकून से सोते देखती है”
परमेश्वर अम्मा की गोदी में सर रखकर रोने लगा शायद उसे अपनी मां की याद आ गई थी.
अम्मा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा.
“बेटा ये मुश्किल का समय भी कट जाएगा”
“हां अम्मा मां की दुआओं में बहुत ताकत होती है”
“अच्छा बताओ क्या खाओगी?”
“घर पर क्या रखा है?”
“सब्जी तो नहीं है मैं बाहर से लेकर आता हूं”
“बेटा दाल चावल है तो खिचड़ी बनाती हूं मैं आज”
“हां अम्मा ये तो मिल जाएगा”
परमेश्वर ने दो डब्बे निकाल कर अम्मा के सामने रख दिया और मसालेदानी भी.
“अम्मा तीसरे डब्बे में आटा रहता है”
“अम्मा बाथरूम में सुबह शाम ही पानी आता है एक एक घंटा इसलिए भरके रखना पड़ता है”
“खिचड़ी बनाने के लिए घड़े का पानी इस्तेमाल कर लेना अम्मा में नीचे से होकर आता हूं”
परमेश्वर नीचे गया और करीब आधे घंटे बाद आया. कमरे में खिचड़ी की सुगंध आ रही थी.
“अहा! अम्मा मां के हाथों में जादू होता है मेरी खिचड़ी से तो ऐसी महक कभी नहीं आती”
परमेश्वर के हाथ में एक चादर था अम्मा ये तुम्हारे लिए एक ही चादर था इसलिए लेने गया था.
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अम्मा सोच रही थी कोई भी तो रिश्ता नहीं है इससे मेरा फिर भी मेरे लिए कितना कर रहा है ये.
सच में कई बार खून के रिश्तों से बढ़कर हो जाते हैं प्रेम के रिश्ते.
खिचड़ी खाते-खाते दोनों बातें करने लगे.
“अम्मा मैं खाना खाकर बाहर जाता हूं और कल के लिए एक चूल्हे और टेबल का इंतजाम करता हूं. कल से ही हम कामशुरू करेंगे”
“ठीक है बेटा मेरा एटीम कार्ड ले जाना जितने पैसों की जरूरत हो निकाल लेना”
“नहीं अम्मा अभी है जब जरूरत होगी बताउंगा”
खाना खाकर हाथ धोते-धोते परमेश्वर ने कहा
“अम्मा मेरा इंतजार मत करना सो जाना हो सकता है मुझे देर हो जाए”
और वो कमरे से बाहर निकल गया.
करीब साढ़े 10 बजे परमेश्वर कमरे में दाखिल हुआ उसके हाथों में एक पुराना गद्दा था.अम्मा किसी सोच में डूबीं थीं.
गद्दा जमीन पर पटकते हुए परमेश्वर ने पूछा
“अरे अम्मा तुम सोईं नहीं?”
“बेटा कमरे की कड़ी बहुत ऊंची है इसलिए लगा नहीं पा रही थी और फिर कमरा खुला छोड़कर कैसे सो जाती?”
“अरे अम्मा यहां कमरे में लेने के लिए है ही क्या और जो इस समान को भी चुराकर लेकर जाएगा तो संतोझ कर लूंगा येसोचकर की उसकी हालत मुझसे भी कमजोर होगी. पुराने कपड़े और कुछ गिने चुने बर्तन ही तो हैं”
अम्मा हंस दी
“ये गद्दा कहां से ले आए तुम?”
“अम्मा मेरे गांव का ही एक लड़का है अभी एक महीने के लिए गांव गया है तो बस उसका गद्दा उठा लाया. बच्चों को भी तोमां को जमीन में सुलाकर नींद नहीं आती. अब आप भी गद्दे पर सोना मैं भी”
“टेबल और स्टोव का भी जुगाड़ कर लिया है”
“अम्मा में सुबह घर से जल्दी निकल जाउंगा आप सुबह साढ़े 10 बजे तक युनिवर्सिटी के पास आ जाना वहीं से शुरू करेंगेअपना नया धंधा ठीक पांडे जी की दुकान के सामने जो नीम का पेड़ है उसके नीचे”
“बेटा मैं वहां कैसे पहुचूंगी?”
कमरे से निकलकर दाए जाना 2,3 दुकाने छोड़कर ही ऑटो खड़ा होगा उसे कहना यूनीवर्सिटी छोड़ दे. जब ऑटो में सवारीपूरी हो जाएंगी तो वो 10 रु. में आपको कॉलेज के पास छोड़ देगा.
“अच्छा याद दिलाया ये 50 रु. आप रखो ऑटो से जाने के लिए”
“बेटा अभी मेरे पास हैं कुछ पैसे”
“ठीक है अम्मा. कभी अचानक जरूरत पड़ जाए तो दाल के डिब्बे में 100 डेढ़ सौ रु. पड़े रहते हैं”
“अच्छा बेटा अब सो जाओ कल जल्दी उठना भी है तुम्हें.”
“हां अम्मा”
परमेश्वर गद्दे पर लेट गया. लेकिन तकिए के बिना उसे नींद नहीं आ रही थी वो उठा खूंटी पर से कुछ कपड़े उठाए और सिरके नीचे लगाकर सो गया. 3 मिनट में ही वो खर्राटे भी मारने लगा.
बेखबरी से उसे सोते देख अम्मा को अच्छा लगा. वो मन ही मन ईश्वर से उसके लिए प्रार्थना करने लगीं की उसके नए धंधेमें उसे सफलता मिले. अम्मा अतीत और वर्तमान में उलझी कब सो गईं उन्हें पता ही नहीं चला. जब नींद खुली तो देखा परमेश्वर कमरे में नहीं था.
नियत समय पर अम्मा जी यूनिवर्सिटी पहुंच गईं. नीम के पेड़ के नीचे परमेश्वर ने अपनी दुकान सजाई थी और वो काम मेंव्यस्त था.
अम्मा को देखकर बोला.
“अरे आ गई अम्मा”
“बस तुम्हारा ही इंतजार हो रहा था”
“पराठों का मसाला तैयार कर दिया है बच्चे कई बार पूछकर जा चुकें है फिर आते ही होंगे”
“मैंने उन्हें कह दिया पहला पराठा तो अम्मा के हाथों से ही बनेंगा”
पांडे जी की दुकान सामने बंद पड़ी थी. अम्मा उस ओर देखने लगी.
6 महीने उस दुकान में ही उन्होंने बिताए थे उन्हें बंद दुकान देखकर अच्छा नहीं लगा.
अम्मा को देखकर कॉलेज के बच्चे आ गए.
दीपक ने कहा
“अम्मा तुम्हाए पराठे का ही इंतजार कर रहे थे अब बस जल्दी खिला दो बहुत भूख लगी है और आज पहला पीरियड अटेंडकरना ही है मुझे”
“परीक्षाएं आ रही हैं बहुत मटरगश्ती हो गई अब पढ़ाई पर फोकस”
“ठीक है बेटा अभी बनाती हूं”
“मनीष कहां है आज तुम्हारे साथ दिखाई नहीं दे रहा?”
“अम्मा उसकी बहन को आज लड़के वाले देखने आ रहे हैं इसलिए नहीं आ रहा है आज”
अम्मा पराठे बनाने लगी.
परमेश्वर ने नीम के पेड़ पर एक तख्ती लटकाई थी जिसपर पराठे के दाम लिखे थे.
पराठों का दाम पांडे जी की दुकान से कम रखा था और आज विशेष ऑफर भी था 2 पराठे के साथ तीसरा मुफ्त.
परमेश्वर पराठे बनाने में अम्मा की मदद करने लगा.
विशेष ऑफर का लाभ उठाने के लिए आज कुछ ज्यादा ही भीड़ लग गई.
अम्मा के हाथ निरंतर चल रहे थे और परमेश्वर के भी.
दोनों ने ही सुबह से कुछ नहीं खाया था लेकिन दुकान अच्छी चलती देख दोनों अपनी भूख प्यास भूल चुके थे.
12 बजे के करीब उन्हें थोड़ी राहत मिली.
“अम्मा चलो अब तुम बैठो में पराठे बनाता हूं. थोड़ी देर बाद खाने के लिए फिर भीड़ लगने लगेगी”
अम्मा बैठ गई वो भी थक गई थी.
परमेश्वर ने पराठे बनाकर उन्हें दिए और फिर दोनों मिलकर पराठे खाने लगे.
आज परमेश्वर ने बिना कुछ खाए रोज के मुकाबले ज्यादा मेहनत की थी फिर भी उसके चेहरे पर प्रसन्नता थी.
अम्मा ने मन में सोचा यही अंतर होता है जब हम किसी की नौकरी करते हैं और जब खुद का काम करते हैं.
पराठे खाते खाते अम्मा की नजर सामने की दुकान पर पड़ी. पांडे जी के साथ एक आदमी और था जो दुकान खोल रहा था.
शायद परमेश्वर की जगह उसे काम पर रखा था.
पांडे जी की नजर भी परमेश्वर की नई दुकान पर पड़ी.
परमेश्वर और पांडे जी की नजर टकराई.
दोनों की आंखों में एक दूसरे के लिए साफ कड़वाहट पता चल रही थी.
करीब एक घंटे बाद परमेश्वर की दुकान पर फिर भीड़ जमा होने लगी वहीं पांडे जी की दुकान खाली पड़ी थी इक्का दुक्कालोग वहां चाय और सिगरेट पी रहे थे.
एक बार फिर पांडे और परमेश्वर की नजर आपस में टकराई इस बार परमेश्वर की आंखों में जीत की खुशी थी वहीं पांडेजी अपनी इस हार से तिल मिला रहे थे.
जीतने के लिए उन्होंने पराठों के दाम आधे कर दिए. कुछ लोग इस ऑफर का लाभ उठाने भी पहुंचे.
लेकिन जिन्होंने अम्मा जी के प्यार से निर्मित स्वादिष्ट पराठे चख लिए हों उन्हें ये कहां पसंद आने वाले थे.
पांडे जी का ये पैतरा भी फेल हो गया.
परमेश्वर अपनी जीत से कुछ ज्यादा ही उत्साहित होते हुए अब जोर जोर से बोलकर कस्टमर को आकर्षित करने कीकोशिश करने लगा.
हालांकी ये बस वो पांडे जी को सुनाना चाह रहा था.
“अम्मा के हाथ में है ऐसा स्वाद
जो चख ले एक बार खाए वो बार बार”
काम करते करते कब शाम हो गई पता ही नहीं चला.
“चलो अम्मा अब घर निकलते हैं”
परमेश्वर अपनी दुकान का सारा सामान समेटने लगा. और फिर अम्मा को लेकर घर निकल गया.
घर पहुंचते ही सबसे पहले उसने सारे रुपए निकालकर गिनना शुरू किया.
“अम्मा जानती हो आज कितनी कमाई हुई है कुल 15 सौ रु. अगर 500 रु. सामाना का भी हटा दें तो एक दिन की कमाईकुल एक हजार रु.”
अम्मा उसकी खुशी से बेहद खुश हुईं और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया.
अगले दिन अम्मा और परमेश्वर दुकान पर जाने के लिए साथ में निकले.
यूनिवर्सिटी पहुंचे तो देखा उनकी टेबल टूटी पड़ी है.
दुकान के नाम पर एक टेबल ही तो थी परमेश्वर के पास उसे टूटा देखकर उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका सपना हीतोड़ दिया हो.
आज पांडे जी की दुकान जल्दी खुल गई थी और मुस्कुराहट आज उनके होंठो पर थी.
परमेश्वर निराश होकर वहीं जमीन पर बैठ गया
अम्मा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा “क्या हुआ काम शुरू नहीं करना है क्या तुम्हें?”
“अम्मा तुम देख नहीं रही क्या टेबल टूटी पड़ी है. काम कैसे करेंगे?”
“बेटा टेबल की टूटी हुई टांग तो नहीं जोड़ सकते पर बाकी की बची एक टांग तो तोड़ सकते हैं ना”
“तोड़ दो इसे आज पराठे बैठकर बनाएंगे”
परमेश्वर को अम्मा की ये युक्ति भा गई. उसने टेबल की बची हुई एक टाँग भी तोड़ दी. अब टेबल नहीं लकड़ी की एक पाटथी जिसपर उन्होंने सामान रखा और काम में जुट गए ताकी बच्चों के आते ही उन्हें पराठे दे सकें.
बच्चों को पांडे जी की हरकत के बारे में जब पता चला तो इक्का दुक्का लोग जो कल उनकी दुकान पर गए थे उन्होंने भीआज अम्मा की दुकान का रुख कर लिया.
एक बार फिर परमेश्वर की दुकान पर भीड़ थी और पांडे जी मख्खियां मार रहे थे.
वो अपनी इस हार से तिलमिला उठे. उनके अंडर काम करने वाला नौकर आज उनकी दुकान के सामने ही दुकान लगा करउन्हें चुनौती दे रहा था. अपनी हार उन्हें मंजूर नहीं थी कहते भी है मुहब्बत और जंग में सबकुछ जायज है.
पांडे जी अपमान का ये घूंट पीकर चुप रह जाने वालों में से नहीं थे.
पांडे जी के इरादों से अंजान परमेश्वर अपने काम में लगा था.
परमेश्वर आज ग्राहकों की बढ़ती संख्या से और खुश नजर आ रहा था.
कोई अपनी सफलता से खुश था तो कोई किसी को आगे बढ़ते देख ईर्ष्या की अग्नि में जल रहा था.
आज के दिन का काम खत्म करने के बाद परमेश्वर अपना पूरा सामान लेकर अम्मा के साथ घर को निकल गया आज वोलकड़ी की पाट भी अपने साथ ले गया.
उसे पांडे जी के इरादों पर बिलकुल भरोसा नहीं था.
“अम्मा मुझे इस हरामी पर बिलकुल भरोसा नहीं है”
“कल पता नहीं ये क्या करेगा?”
“बेटा ये कुछ भी कर ले होगा तो वही जो ईश्वर चाहेंगे”
“तुम सो जाओ बस अपनी मेहनत पर भरोसा रखो”
“जो हमारे हाथ में है बस उसपर ध्यान दो जो नहीं उसे सोचकर बेकार परेशान होकर क्या फायदा”
“हां अम्मा तुम सही कह रही हो”
परमेश्वर ने बोल तो दिया लेकिन उसके अंदर का डर अब तक नहीं गया था पिछले कई सालों से पांडे जी के यहां काम कररहा था इसलिए जानता था वो कितना घाग है.
अम्मा की बातें याद करके उसने खुद को समझा लिया जो होगा देखा जाएगा अभी सोच कर नींद खराब करके क्याफायदा. पूरे दिन कड़ी मेहनत करने के चलते दोनों को जल्दी नींद आ गई.
अगले दिन भी परमेश्वर की दुकान पर भीड़ थी और पांडे जी की दुकान पर सिगरेट और चाय के लिए जाते कुछ लोग.
तभी एक पुलिस वाला परमेश्वर की दुकान पर आ धमका.
पुलिस वाले ने डंडा जमीन पर ठोकते हुए कहा
“किस की दुकान है ये?”
“मेरी दुकान है साहब”
“ये तुम्हारी जमीन है?”
“नहीं सरकार बस अभी दो दिन हुए यहां धंधा लगाते हुए”
“जहां जगह मिली दुकान लगा दी अपने बाप का राज समझ के रखा है क्या?”
“हटाओ ये दुकान अभी के अभी या फिर में हटाउं अपने तरीके से”
“ऐसे ना कहो सरकार ये हमारी रोजी रोटी है”
“किसी के लिए चोरी करना रोजी रोटी है तो किसी के लिए डाका डालना उन्हें भी उनका काम करने दें?”
“अभी के अभी ये दुकान बंद कर”
पुलिस वाले ने परमेश्वर और अम्मा की एक ना सुनी और अपने डंडे से उनका पूरा सामना पाट पर से जमीन पर गिरा दिया.
“आज समान फेंका है कल फिर से दिखा तो तूझे फेंकूगा समझा”
ऐसा कहकर पुलिस वाला सड़क के दूसरी तरफ पांडे जी की दुकान पर जाकर सिगरेट पीने लगा.
सारा सामान सड़क पर पड़ा धूल खा रहा था. परमेश्वर अपनी किस्मत पर रो पड़ा.
अम्मा ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला चलो घर चले.
अम्मा सड़क पर गिरे आलू उठाने लगी उनकी मदद को कॉलेज के कुछ बच्चे भी आ गए.
अम्मा ने कॉलेज के बच्चों से कहा बेटा एक टेंम्पो का इंतजाम कर दो.
लड़कों ने जल्द ही एक टेंम्पो की व्यवस्था कर दी.
अम्मा ने परमेश्वर को टेंम्पो में बिठाया.
बच्चों ने सामान टेंम्पो में रखने में मदद की.
दीपक बोला
“अम्मा अब कल से तुम नहीं आओगी यहां?”
अम्मा कुछ जवाब नहीं दे पाईं.
दीपक ने कहा परमेश्वर भइया कुछ मदद चाहिए हो तो संकोच मत करना अपना पता तो देते जाओ.
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सोबतिया बाग में रोजा मजार के पास है बस इतना ही कह सका परमेश्वर.
कमरे पर पहुंच के वो एक दम चुपचाप गद्दे पर लेट गया.
अम्मा ने पूछा चाय बनाउं?
“नहीं अम्मा”
अम्मा ने फिर भी दो कप चाय बनाई और एक कप ले जाकर उसे दी.
“नहीं अम्मा नहीं पी पाउंगा मैं”
आंसूओ के रूप में उसका दर्द बाहर निकाल आया.
“बेटा हिम्मत मत हारो”
“इतनी हिम्मत लाउं कहां से सही ही तो करते हैं चोर लुटेरे इमानदारी से लोग पैसे कहां कमाने देते हैं”
“किसी का क्या जा रहा था अम्मा अगर हम मेहनत करके कुछ कमा लेते थे तो?”
“मेहनत मजदूरी भी नहीं करने देते लोग”
“बेटा जरूर इसमें भी कुछ हमारा अच्छा छुपा होगा”
“जे का बात हुई अम्मा की हर मुसीबत में सोचे की जो हो रओ है हमाए भले के लाने हो रओ है”
“साले को छोडूंगा नहीं मैं चाहें जेल क्यों ना जाना पड़े”
“बेटा ऐसे हार मत मानों लोगों से नहीं अपने इस वक्त से लड़ो”
“ये वक्त जरूर बदलेगा मेरी बात पर भरोसा रखो”
“अम्मा मैं आता हूं कहकर परमेश्वर बाहर जाने लगा”
“बेटा कुछ ऐसा मत करना की जिंदगी भर पछताना पड़े”
परमेश्वर अम्मा की बात का कोई जवाब दिए बिना कमरे से बाहर निकल गया.
रात के 10 बज गए थे परमेश्वर अब तक घर नहीं आया था. अम्मा को उसकी चिंता सताय जा रही थी, वो कई बार कमरेसे बाहर निकलकर सड़क पर जाकर देख चुकीं थी.
जैसे जैसे समय बीत रहा था उनकी चिंता बढ़ती जा रही थी.
कहां जाएं किससे परमेश्वर के बारे में पूछें उन्हें समझ नहीं आ रहा था.
रात के 12 बज गए थे लेकिन अम्मा की नींद उनकी आंखों से कोसों दूर थी.
करीब साढ़े 12 बजे परमेश्वर लड़खड़ाता हुआ कमरे में दाखिल हुआ.
अम्मा जाग रहीं थी लेकिन उन्होंने ऐसे जताया की मानो वो सो चुकी हैं.
परमेश्वर नशे में धुत था. इस वक्त उससे बात करने का भी कोई फायदा नहीं था और उन्हें जागते देख शायद वो शर्मिंदा होजाता. सुबह के 10 बजे भी जब परमेश्वर नहीं उठा तो अम्मा ने उसे जगाया.
“अरे उठना नहीं है क्या?”
“अम्मा सर दुख रहा है उठा नहीं जा रहा”
“आज काम पर नहीं जाना क्या?”
“अम्मा अब क्या खुद मार खाने जाउं वहां”
“वो नीच मुझे कभी काम नहीं करने देगा”
“बेटा ऐसा कहकर तो तुमने पहले ही हार मान ली”
“मतलब?”
“मतलब की अपने दुश्मन को खुद से ज्यादा ताक़तवर समझकर घुटने टेक दिए”
“तो क्या करें अम्मा?”
“फिर जाउं वहां अपने सामान का नुकसान करवाने?”
“देखो बेटा मुझे ज्यादा तो नहीं पता पर क्यों हमें उसकी दुकान के सामने ही अपनी दुकान खड़ी करनी है”
“इतना बड़ा शहर है कहीं और अपनी दुकान लागाएंगे”
“अम्मा तुम उसे नहीं जानती उसे जैसे ही पता चलेगा वो वहां भी अपना धंधा नहीं चलने देगा”
“तो हम दुकान खरीदकर काम करेंगे”
परमेश्वर अम्मा की बात पर हंस दिया
“अम्मा दुकान पता भी है कितने की आती है?”
“नहीं बेटा”
“अपने बस की बात नहीं है अम्मा इतना पैसा नहीं है”
अम्मा ने अपने हाथ में पहनी सोने की चूड़ियां और गले की चेन देखकर कहा इससे कुछ होगा तो ले लो बेटा.
“नहीं अम्मा तुम चिंता मत करो सोच रहा हूं तुम्हें लेकर गांव चला जाउं फिर देखते हैं आगे क्या होगा?”
अम्मा परमेश्वर की बात सुनकर मन ही मन उदास हो गईं. उन्हें लगा की वो परमेश्वर पर बोझ ना बन जाएं वो मन ही मनअपने मुरली मनोहर को याद करने लगी.
“अम्मा ने बोला चाय बनाउं क्या बेटा शायद सर दर्द में आराम मिले”
“हां ठीक है अम्मा”
अम्मा चाय बना रही थी की किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.
परमेश्वर सर पकड़कर उठा और दरवाजा खोला.
सामने दीपक और मनीष खड़े थे.
“तुम दोनों यहां?”
“अम्मा राम राम”
बच्चों को देखकर अम्मा मुस्कुरा दी
“आओ बच्चों एकदम सही वक्त पर आए हो चाय बनकर तैयार है”
अम्मा ने आधा आधा कप चाय सबको दी.
“अब बताओ कैसे आना हुआ?”
“बस अम्मा के पराठों की याद आई और चले आए उस महक को ढूंढते हुए”
“परमेश्वर भइया आप ज्यादा उदास मत हो हम लोग कोशिश कर रहे हैं इस समस्या का हल निकालने की”
“कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी से से हम आज बात करेंगे कुछ ना कुछ जुगाड़ हो जाएगा”
परमेश्वर उनके दिलासे पर मुस्कुरा दिया. जब हर तरफ अंधेरा नजर आ रहा हो तो एक छोटी सी दिलासा भी बहुत मायनेरखती है.
दीपक और मनीष चाय पीकर जाने के लिए खड़े हुए जाते जाते एक बार फिर मनीष ने परमेश्वर को दिलासा दी की कुछना कुछ जरूर हो जाएगा हिम्मत मत हारना.
दीपक और मनीष के जाने के बाद परमेश्वर थोड़ा उत्साहित दिखाई दे रहा था.
“अम्मा तुम्हें क्या लगता है कुछ अच्छा होगा?”
“जरूर अच्छा होगा बेटा. समय जरूर बदलता है”
“अम्मा अब भूख लग रही है कुछ बना दो ना मैं घर फोन पर बात करके आता हूं बहुत दिनों से बात नहीं की मन ही अच्छानहीं था तो बात क्या करता”
“हां बेटा जाओ सबको मेरा आशीर्वाद कहना”
परमेश्वर मुस्कुरा कर कमरे से बाहर निकल गया.
अम्मा खाना बनाने में जुट गई और सोचने लगीं मन की गति भी कैसी होती है. उदास था तो चाय पीने का मन भी नहीं कररहा था और कुछ अच्छा होने की आस जगते ही भूख भी लग गई. भूख प्यास सब हमारी मन की गति पर निर्भर हो जाते हैं.
अम्मा का मन भी उन्हें अतीत में ले गया. अब तो मुझे घर छोड़े हुए लंबा समय हो गया.
“क्या इस बीच मुन्ना को कभी मेरी याद आई होगी?”
“क्या वो मुझे ढूंढने इलाहाबाद आया होगा?”
“विरल अब भी मुझे याद करता होगा या अब भूल गया होगा?”
कितने सारे सवाल थे लेकिन जवाब एक का भी नहीं था
आज एक बार फिर अम्मा की आंखों में नमी थी.
“पीछे से परमेश्वर ने आवाज दी देखो अम्मा में क्या लाया हूं”
“क्या लाया है मेरा विरल अपनी अम्मा के लिए?”
“ये विरल कौन है अम्मा?”
“परमेश्वर ने अम्मा की आखों में आंसू देखे तो बोला क्या हुआ अम्मा रो क्यों रही हो?”
“अरे कहां रो रही हूं मैं, थोड़ी देर पहले प्याज काटी थी तो शायद इसीलिए आंखे गीली होंगी”
“नहीं अम्मा आज तो तुम्हें बताना होगा हमेशा टाल जाती हो”
“कौन है ये विरल जिसके नाम से मुझे पुकारा था?”
“मेरा पोता है बहुत प्यारा”
“अम्मा तुम्हारा घर परिवार है तो तुम यहां क्यों हो?”
“बेटा सारे सवालों के जवाब अगर मेरे पास होते तो मैं यहां थोड़ी ही होती”
“मैं तो अब एक सूखे पत्ते की तरह हूं हवा जहां बहाए ले जा रही है मुझे बहे जा रही हूं. जैसी प्रभू की इच्छा”
“चल अब तू खाना खा वरना ठंडा हो जाएगा”
“हां अम्मा तुम खाना लगाओ मैं अभी हाथ धोकर आया”
परमेश्वर ने हाथ धोए मिठाई का जो डब्बा लाया था कमरे में लगे भगवान शिव के कैलेंडर को समर्पित करने के भाव सेउनके सामने रखा कुछ सेकेंड के लिए आंखे बंद की और फिर आंख खोलकर डिब्बे में से एक लड्डू निकालकर अम्मा कोअपने हाथे से खिलाया और बोला
“अब दो खाना मुझे”
अम्मा ने आज बहुत दिनों के बाद मोतीचूर के लड्डू खाए थे. कई बार विरल भी ऐसे ही आकर उनके मूंह में लड्डू डाल देताथा. फिर वो उसे शैतान कहकर हल्के से उसकी पीठ पर एक धौल देती थी और सीने से लगा लेती थी.
“अरे अम्मा कहां खो गई खाना दो ना मुझे
हां बेटा अभी देती हूं”
“खाना खाते खाते परमेश्वर ने कहा अम्मा चलो आज शाम को तुम्हें संगम के दर्शन कराते हैं”
“अम्मा ने पूछा घर में सब कैसे हैं?”
“सब ठीक है अम्मा बस पैसों की वजह से बच्चों की पढ़ाई ना रुके. जल्दी कुछ हो जाए”
“हो जाएगा बेटा चिंता मत कर”
“हां अम्मा कहीं सुना है चिंता चिता समान, लेकिन ज़िंदगी में इसे अमल करना बहुत मुश्किल हो जाता है”
अम्मा ने परमेश्वर की पीठ पर प्यार से हाथ फेरा.
“सब ठीक हो जाएगा”
परमेश्वर खाना खाकर उठा ही था की किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.
परमेश्वर ने दरवाजा खोला तो दीपक और मनीष के साथ एक लड़का और खड़ा था. गले में उसके मफलर डला था औरचहरे पर काला चश्मा.
“ये हैं हमारे छात्र युवा संघ के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी”
दीपक ने कमरे के अंदर कदम रखते हुए कहा.
बैठने के लिए कुर्सी तो थी नहीं ये देख विश्वनाथ ने अपने जूते कमरे में उतारे और गद्दे पर बैठ गया.
अम्मा को देखकर विश्वनाथ बोला.
“अम्मा पहचाना तुमने उस दिन मुझे सिगरेट पीने को टोका था और मेरे पास खुले पैसे नहीं थे तो भी पराठा खिलाकर तुमनेकहा था बाद में दे देना”
अम्मा मुस्कुरा दी
“हां बेटा याद है”
“तो पहले तो ये 30 रु. पकड़ो वो उधारी खत्म करूं पहले”
अम्मा ने परमेश्वर को इशारा किया और परमेश्वर ने विश्वनाथ से वो रु. ले लिए.
“बेटा चाय बनाउं पियोगे?”
“नहीं अम्मा अब तो तुम्हारे हाथ के कल पराठे खाने आउंगा वो भी कॉलेज के सामने. देखते हैं कौन माई का लाला तुम्हारीदुकान हटाता है”
“लेकिन बेटा वो पुलिस वाला?”
“अरे टेंशन क्यों लेती हो अम्मा मेरे जीजाजी थाना इंचार्ज है किसी की जुर्रत नहीं होगी तुम्हे कुछ कहने की. तुम कल से हीअपनी दुकान लगाना शुरू करो. कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन कर लेना”
“मेरा नंबर नोट कर लो मोबाइल में”
“भइया मोबाइल तो नहीं है रुको पर्चे पर लिख लेता हूं”
परमेश्वर ने इधर उधर ढूंडा लेकिन पर्चा नहीं मिला.
केलेंडर पर लिख लो बेटा अम्मा ने कहा
अब लिखने के लिए पैन कहां से लाउं परमेश्वर सोच ही रहा था की दीपक ने अपनी शर्ट की जेब से निकालकर पेन देदिया.
विश्वनाथ, दीपक की ओर देखते हुए बोला
“तो जनाब पढ़ भी रहे हैं. हम तो सोच रहे थे बस लोंडे आवारगर्दी कर रहे हैं”
दीपक झेंप कर मुस्कुरा दिया.
चलो अम्मा अब मैं चलता हूं विश्वनाथ ने कहा.
हां अम्मा हम भी चलते हैं दीपक और मनीष एक साथ बोल पड़े.
ठीक है बेटा अम्मा ने कहा.
“भइया कल आप लोग दुकान पर पराठे खाने जरूर आइयेगा”
हां जरूर कहकर विश्वानथ कमरे से बाहर निकला. और उसके पीछे पीछे दीपक और मनीष.
तीनों के जाने के बाद परमेश्वर खुशी से झूम उठा.
“अम्मा चलो तुम तैयार हो जाओ जल्दी आज ही बनारस चलकर विशवनाथ जी के मंदिर के दर्शन करके आते हैं. रात तकआ जाएंगे”
“और कल से धंधे की नई शुरूआत करेंगे”
ठीक है बेटा कहकर अम्मा जल्दी जल्दी तैयार हुई और परमेश्वर से बोली
“अब तू नहा तो ले ऐसे ही जाएगा क्या बाबा के दर्शन करने”
अम्मा भगवान तो भावना देखते है पर तुम कहती हो तो नहा लेता हूं परमेश्वर मुस्कुराते हुए बाथरूम में घुस गया.
और कुछ देर बाद दोनों बनारास के लिए निकल पड़े.
परमेश्वर और अम्मा को बनारस से इलाहाबाद लौटते काफी रात हो गई. अम्मा को गंगा घाट पर होने वाली आरती जोदेखनी थी. लेकिन इस थकान के बावजूद दोनों के चहरे आज खिले हुए थे.
अम्मा को खुशी थी की परमेश्वर एक बार फिर से काम शुरू कर सकेगा.
दोनों को सोते सोते रात के 2 बज गए सुबह 8 बजे जब अम्मा की आंख खुली परमेश्वर बाहर जाने की तैयारी कर रहा था.
“अम्मा मैं निकल रहा हूं तुम एक घंटे बाद आ जाना”
“तुम्हारे लिए चाय बना कर रखी है और पैसे चावल के डिब्बे में रखे हैं याद है ना?”
“हां बेटा याद है तुम आधा घंटा रुकों तो साथ में चलते हैं?”
“नहीं अम्मा अभी सब्जी मंडी से धनिया आलू मिर्च सब लेना है तो मुझे टाइम लगेगा थोड़ा, तुम साढ़े 9 तक यूनिवर्सिटीपहुंच जाना मैं वहीं मिलूंगा तुम्हें”
“ठीक है बेटा”
परमेश्वर कमरे से बाहर निकल गया
परमेश्वर को फिर से कमरे के अंदर आता देख अम्मा ने पूछा
“क्या भूल गया रे?”
“मां का आशीर्वाद लेना काम शुरू करने से पहले”
परमेश्वर अम्मा के पैर छूने के लिए झुका
“बहुत कामयाब हो बेटा” अम्मा ने परमेश्वर के सिर पर हाथ रखते हुए बोला.
“दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करो”
“अब होगी ना काम की सही शुरुआत”
ऐसा कहकर मुस्कुराते हुए परमेश्वर कमरे से बाहर निकल गया
परमेश्वर के कहे अनुसार अम्मा नियत समय पर यूनिवर्सिटी पहुंच गई.
मां बेटे ने मिलकर अपनी दुकान सजाई. अम्मा के पहुंचने के पहले ही आलू उबाल कर उनका भर्ता बनाकर, धनिया औरमिर्च काटकर परमेश्वर पूरी तैयारी कर चुका था.
अब बस अम्मा के पराठे डलने का तवा इंतजार कर रहा था.
अम्मा को देखकर बच्चों की भीड़ वहां लग गई.
सामने पांडे जी की दुकान एक बार फिर अपने रोज के ग्राहकों की राह तक रही थी.
पांडे जी आज दुकान पर नहीं थे उन्हें अंदाजा ही नहीं होगा की परमेश्वर फिर दुकान लगाने का साहस करेगा.
पर शायद उनके नौकर ने उन्हें फोन पर सारी जानकारी दे दी. कुछ ही देर में पांडे जी अपनी दुकान पर थे. और सामने कानजरा देखकर उनके चेहरे पर जो भाव आ रहे थे उसे देखकर कोई भी कह सकता था उनके दिमाग में क्या चल रहा है.
अपने नौकर को तेजी से डांटते हुए बोले कितनी गंदगी है. कितनी ही सफाई रखो गंदगी फिर आ जाती है. इस बार ऐसीसफाई करूंगा की बस.
परमेश्वर समझ रहा था जोर जोर से किसे बातें सुनाईं जा रही हैं लेकिन वो अपने धंधे में इतना व्यस्त था की जवाब देनाउसे ठीक नहीं लगा.
पांडे जी और तिलमिला उठे.
उन्होंने किसी को फोन घूमाया.
इधर सबसे अंजान अम्मा और परमेश्वर बच्चों को उनके पसंद के पराठे खिला रहे थे.
तभी परमेश्वर की नजर सामने से आते उसी हवलदार पर पड़ी जिसने उसका सारा सामान पहले गिराया था और दुकान नालगाने की धमकी दी थी. उसे अपनी ही दुकान की ओर आते देख उसके हाथ पांव फूलने लगे.
परमेश्वर ने धीरे से कहा
“अम्मा स्टोव बंद कर दो”
अम्मा ने उसकी कपकपाती आवाज सुनी तो ऊपर सर उठाकर देखा सामने से हवलदार पूरे ताव में अपना डंडा हिलाते चलाआ रहा था.
“तेरे को प्यार से समझाया यहां दुकान नहीं लगाना तो समझ नहीं आया क्या?”
“किसी ने सच ही कहा है की लातों के भूत बातों से नहीं मानते”
“साहब वो तो मैं”
“साले अब मेरे सामने जबान भी चलाएगा”
पुलिस वाले ने परमेश्वर पर हाथ उठाते हुए कहा
वो दूसरा हाथ परमेश्वर पर उठाता की किसी ने हवलदार के कंधे पर हाथ रखा
“क्या त्रिभुवन बहुत काम हो रहा है आजकल”
“कौन है बे?”
“अरे विशवनाथ जी बहुत दिनों बाद दिखाई दिए आप कहीं बाहर गए थे क्या?”
“हां बाहर की गंदगी साफ करने गया था अब वापस आ गया हूं यहां की सफाई करने”
“आप की बातें भी ना”
त्रिभुवन ने झूठी हंसी हंसते हुए कहा.
“ये हमारा आदमी है आज के बाद इसे कुछ कहने से पहले मेरे से बात करना”
“इसने पहले कह दिया होता तो कुछ होता ही नहीं”
“करो भउया जो काम करने है सो करो भारत स्वतंत्र ही जा के लाने हुआ है”
त्रिभुवन जाने से पहले विश्वनाथ के कान में धीरे से बोला प्रमोशन की सिफारिश करवा दो हुजूर.
“हां कराता हूं”
विश्वनाथ ने परमेश्वर के कंधे पर हाथ रखकर बोला
“अब कोई तुम्हें परेशान नहीं करेगा आराम से काम करो”
“कोशिश कर रहा हूं की यूनिवर्सिटी के अंदर ही तुम्हें कॉन्ट्रेक्ट दिलवा दूं देखते हैं. “खैर अभी यहां तो तुम अपना काम चालूरखो”
अम्मा ने विश्वनाथ को धन्यवाद दिया और आशीर्वाद भी.
“अम्मा ऐसे काम नहीं चलेगा आज तो तुम्हें अपने हाथ की खीर खिलानी होगी”
“अरे बेटा जरूर खिलाती लेकिन दूध चावल और बड़े से भगौने का इंतजाम करना होगा”
“अरे वो तो एक मिनट में हो जाएगा”
विश्वनाथ ने अपने चेले चपाटों से कुछ ही समय में चावल और भगोने का इंतजाम करवा दिया और पांडे जी को जलाने केलिए दूध उनकी दुकान से मंगवाया गया.
अम्मा की खीर की खूशबू आज दूर दूर तक उड़ रही थी बच्चे जहां इस खुशबू का आनंद ले रहे थे वहीं पांडे जी इस खुशबूसे परेशान हो रहे थे.
उन्हें अपनी हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी. लेकिन विश्वनाथ के इस मसले में घुसने के बाद उन्हें पता था की अब वो कुछ नहींकर पाएंगे वरना उनको दुकान चलाना मुश्किल हो जाएगा.
खीर की खुशबू बर्दाश्त नहीं कर सकने के कारण उन्होंने अपनी दुकान आज जल्दी बंद कर दी और वहां से निकल गए.
खीर के साथ बच्चों ने पूड़ी की फरफाइश भी कर दी. पूड़ी के लिए आनन फानन में कड़ाही का इंतजाम किया गया.
आज वहां का माहौल किसी त्यौहार की तरह लग रहा था बच्चे बहुत खुश थे. खुश क्यों ना होते घर के बाहर घर जैसाखाना मिलना कितनी बड़ी बात होती है ये घर से दूर जाकर ही पता चलता है.
दुपहर के बाद जैसे बच्चों की भीड़ लगी थी वैसे ही धीरे धीरे छटने लगी.
“अम्मा तुम तो चखो खीर कैसी बनी है?”
“बेटा मुझे तो खाने से ज्यादा बच्चों की फरमाइश पूरी करने में आनंद आता है”
“तू खा ले. अभी तेरे लिए गरम गरम पूड़ी निकालती हूं”
“नहीं अम्मा तुम आराम करो सुबह से लगी हो थक गई होगी”
“अब मैं बनाता हूं दोने साथ में खाएंगे”
“दोनों साथ में खाना खाने लगे”
“अम्मा मैं सोच रहा हूं चाय का बिजनेस भी शुरू कर दूं”
“पांडे जी की दुकान ही बंद करवा देता हूं बहुत परेशान किया है इसने मुझे अब इसकी बारी है”
“नहीं बेटा तुम भी उसके साथ वैसा ही करोगे तो फर्क क्या रह जाएगा उसमें और तुममे”
“तुम गलत नहीं थे तो देखो मुश्किलों के बाद भी तुम्हार काम शुरू हुआ. अब ये सोचो की अपने काम को बढ़ाना कैसे हैदूसरे का काम बंद करने का मत सोचो”
“पांडे जी कैसे भी हो पर उस दुकान ने हमें कई दिनों साहारा दिया है मैं उस दुकान को बंद होते देखना नहीं चाहती”
“हां अम्मा कह तो तुम सही रही हो”
कुछ देर बाद शाम को बच्चों का फिर से दुकान पर मजमा लगना शुरू हो गया.
अब तो रोज ही बच्चों की भीड़ दुकान पर लग जाती. लेक्चर खत्म होने के बाद स्टूडेंट्स की प्रिय जगह बन गई अम्मा कीरसोई.
अब दुकान पर अम्मा की रसोई का बोर्ड भी लग गया
परमेश्वर के मानों दिन ही फिर गए थे. उसके चेहरे पर चमक आ गई थी वजन भी बढ़ गया था.
धीरे धीरे उसने खुद का मकान बनवा लिया और अपने परिवार को गांव से शहर बुला लिया. घर में अम्मा के लिए अलग सेकमरे का इंतजाम किया गया. अम्मा को मानों पूरा परिवार मिल गया परमेश्वर की बीवी कमला उनका खास ख्याल रखतीथी.
अम्मा भी परमेश्वर के बच्चों को विरल की तरह ही छुट्टी के दिन कहानियां सुनाती.
सभी के दिन हंसी खुशी में बीत रहे थे.
अम्मा की रसोई में दिन के हिसाब से अब अलग अलग खाना बनता था.
किसी दिन नाश्ते में हल्वा पूरी. तो खाने में कड़ी चावल. अम्मा की रशोई अब और चल पड़ी थी.
स्टूडेंट ही नहीं अब शाम को दूर दूर से लोग अम्मा की रसोई का स्वाद चखने आते. काम बढ़ने पर एक दो लोगों को काम केलिए और रखा गया जो अम्मा की निगरानी में काम करते.
कड़ी कितनी पकानी है उसमे नमक कितना डालना है सब अम्मा बताती और श्याम सुंदर अम्मा की आज्ञा का पालनाकरते.
दोनों ही जुड़वा भाई थे परमेश्वर के ही गांव के जिन्हें परमेश्वर काम के लिए ले आया था.
सबकी गाड़ी अच्छे से चल रही थी और समय मानों पंख लगाकर उड़ रहा था देखते ही देखते 4 साल बीत गए.
अम्मा 5 वीं तक पड़ी थी. अब उनके हर दिन की शुरूआत अखबार पढ़कर ही होती थी. कॉलेज के बच्चों की बातें सुनसुनकर उन्हें खबरों की अहमियत पता चलने लगी थी.
आज भी रोज की ही तरह अम्मा सुबह चाय की चुस्कियों के साथ खबरें पढ़ रही थीं. एक खबर ने अचानक उनका ध्यानअपनी ओर खींचा.
उस खबर को पढ़कर अम्मा ने अखबार टेबल पर रख दिया.
थोड़ी देर में अपनी चाय का कप लेकर परमेश्वर अम्मा के कमरे में आया.
अम्मा के हाथों में आज पेपर नहीं थी और वो किसी गहरी सोच में खोईं थी.
“क्या हुआ अम्मा?”
“बेटा जितनी तेजी से दुनिया बदल रही है उससे ही कहीं तेजी से रिश्ते”
“आज एक 70 साल की बूढ़ी को कोई इलाहाबाद के स्टेशन पर अकेला छोड़ गया”
इस खबर में अम्मा को अपना अतीत दिखाई दे रहा था. वो उस औरत के लिए बेचैन हो रहीं थी.
“क्या करेगी कहां जाएगी वो”
किस्मत अच्छी होगी तो कोई वृद्ध आश्रम वाले ले जाएंगे वरना कुछ दिनों में उसकी मौत की खबर भी इसी पेपर में छपेगी.
आज शनिवार का दिन था अम्मा को काम पर नहीं जाना था.
उन्होंने मन ही मन कुछ ठान लिया था.
“परमेश्वर”
“हां अम्मा” ( आज पहली बार अम्मा ने परमेश्वर को उसके नाम से पुकारा था)
“देखो में पिछले 4 सालों से काम कर रही हूं मैंने तुमसे कभी पैसे का हिसाब किताब नहीं लिया”
“मैं जानना चाहती हूं मेरे पास कितने पैसे हैं”
“अरे अम्मा तुम्हें जितने चाहिए ले लो ना हिसाब किताब किसलिए. तुम्हें किसी बात की कोई तकलीफ है?”
“नहीं ऐसी बात नहीं है मैं ये सवाल अम्मा बनकर नहीं तुम्हारे धंधे में तुम्हारे सहयोगी के तौर पर पूछ रही हूं. और उम्मीदकरती हूं मुझे मेरे पैसे अपने मन से खर्च करने पर तुम टोकोगे नहीं”
आज अम्मा का मूड परमेश्वर को समझ नहीं आ रहा था.
“अम्मा मैंने कभी तुम्हारा हिसाब नहीं रखा हिसाब में इतना अच्छा भी नहीं हूं कभी स्कूल गया ही नहीं. बस पैसे गिनना हीसीख पाया हूं”
“तुम्हें कितने रू. की जरूरत है बता दो?”
“अगले महीने से तुम्हारे अकाउंट में एक निश्चित राशी जमा करा दिया करूंगा”
“ठीक है बेटा मैं बता दूंगी तुम्हें कितने पैसों की मुझे जरूरत है”
“अभी मुझे कहीं जाना है”
“दुपहर तक वापस आ जाउंगी”
“अम्मा मोबाइल रख लेना अपना तुम अक्सर ले जाना भूल जाती हो”
“तुम्हारा सगा बेटा तो नहीं हूं पर कहां जा रही हो बता दोगी तो चिंता थोड़ी कम हो जाएगी”
“बेटा मैंने तुम्हें कभी पराया नहीं समझा कोई निश्चित जगह होती तो बता देती. मैं उस औरत की तलाश में जा रही हूं”
“लेकिन अम्मा”
“बस इसीलिए नहीं बता रही थी”
“ठीक है अम्मा जाओं मैं श्याम को बुला लेता हूं वो तुम्हारे साथ जाएगा”
ठीक है कहकर अम्मा अपने कमरे से निकल गई.
अम्मा वो अखबार लेकर पुलिस स्टेशन पहुंची. और उस महिला के बारे में जांच पड़ताल करने लगी.
“कोई रिश्तेदार है ये आपकी?”
“हां मेरी बहन है”
“तो ऐसे कैसे छोड़ दिया उसे रेलवे स्टेशन पर?”
“खबर तो आज आई है एक दिन तो बेचारी ने स्टेशन पर ही गुजार दी”
“सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया है”
“बिना कुछ खाए पिए तबियत बिगड़ गई है उसकी”
“ठीक है धन्यवाद अब मैं चलती हूं”
“आप अपना नाम, पता और मोबाइल नंबर लिखवा दीजिए”
“उसके ठीक होने पर क्या उसे अस्पताल से ले जा सकती हूं मैं?”
“हां”
“आपकी बहन के दस्तखत चाहिए होंगे पेपर पर की वो अपनी मर्जी से आपके साथ जा रही है”
“ठीक है”
अम्मा श्याम के साथ सरकारी अस्पताल पहुंची.
अस्पताल में काफी मश्क्कत करनी पड़ी उन्हें अपनी इस नई बहन को खोजने में”
वो वृद्धा आंखे बंद किए जमीन पर पड़ी थी और उसके हाथ में सुई के जरिए ग्लूकोज़ पहुंचाया जा रहा था.
अस्पताल के एक कर्मचारी से अम्मा ने पूछा
“इसे जमीन पर क्यों लिटाया है बिस्तर क्यों नहीं दिया?”
“अरे शुक्र मनाओ की इसका इलाज हो रहा है बिस्तर एक भी खाली नहीं था”
“घर वालों ने तो इससे अपना पीछा छुड़ा लिया हम इलाज तो कर रहें हैं कम से कम इसका”
ये कहते हुए वो कर्मचारी बेपरवाही से निकल गया.
अम्मा कुछ सेंकेंड सन्न खड़ी रह गईं.
तभी उन्हें सामने से एक डॉक्टर आता दिखाई दिया.
“डॉक्टर साहब इन्हें क्या हुआ है?”
“क्या इन्हें घर ले जाया जा सकता है?”
“इन्हें बहुत कमजोरी है शायद बहुत दिनों इन्होंने ठीक से खाना नहीं खाया है”
“अच्छी खुराक से इनकी कमजोरी जल्दी चली जाएगी लेकिन इनके परिवार से कोई आया ही नहीं बस ग्लूकोज औरदवाइयों पर जिंदा हैं ये अभी”
अम्मा ने श्याम को कुछ पैसे देकर बाहर से अनार का जूस लाने के लिए कहा.
“डॉक्टर साहब लेकिन ये कुछ बोल क्यों नहीं रहीं”
“इनकों नींद की दवा दी है जागने पर बस रोती रहती हैं रात में भी जागती रहती है”
“एक घंटे में उठ जाएंगी दवा का असर खत्म हो जाएगा”
अम्मा से बेहतर भला कौन जानता की परिवार द्वारा ठुकराए जाने पर नींद कहां गुम हो जाती है.
वो जमीन पर बैठ कर उस वृद्धा का हाथ अपने हाथ में लिए सहलाने लगीं और अपने अतीत में खो गईं.
अम्मा अब भी उसका हाथ अपने हाथ में लिए बैंठी थीं. धीरे धीरे उस वृद्धा ने अपनी आंखे खोलीं.
अम्मा और श्याम दोनों ही अजनबी चेहरे थे उसके लिए.
“तुम लोग?”
“मुझे अपनी बहन समझो”
“श्याम अनार का रस ग्लास में डाल दो”
वो वृद्धा अभी भी हैरानी से उन दोनों को देख रही थी.
“ज्यादा सोचो मत पहले ये रस पी लो बहुत कमजोर हो गई हो डॉक्टर साहब ने बोला है”
अम्मा ने रस से भरा प्लास्टिक का ग्लास उसके हाथ में दिया
ग्लास पकड़ते ही उस वृद्धा के हाथ कांपने लगे.
अम्मा ने उसके हाथ को सहारा दिया और उसे रस पिलाने में मदद की और फिर अम्मा ने श्याम को बाहर कुछ फल लानेको भेज दिया.
“देखो बेहन आज तुम जिस स्थिती में हो 4 साल पहले वहीं स्थिती में भी भोग चुकी हूं”
“तुम्हारा दर्द बहुत अच्छे से महसूस कर सकती हूं”
“जब अपने साथ छोड़ देते हैं तो लगता है जैसे दुनिया ही खत्म हो गई मुझे भी ऐसा ही लगा था पर अब लगता है जो होताहै अच्छे के लिए होता है”
“मेरे बेटे ने मुझे छोड़ा ना होता तो खुद कमाकर खाने में जो सुकून मिलता है उसे समझ नहीं पाती. हमेशा उनकी दया परजीती और उनके लिए एक बोझ बनी रहती”
“उसी स्वाभीमान से मैं तुम्हें भी जीते हुए देखना चाहती हूं. खुद को बोझ और बेसहारा मत समझना मैं तुम्हारे साथ हूं”
वो वृद्धा रोते हुए बोली
“पर जिउं किसके लिए? जीने की इच्छा ही खत्म हो गई है”
“अपने लिए जिओ. जीवन ऐसे जिओ की जब तक जिंदा हो शान से जिओ किसी का मोहताज और बेसहारा बनकर नहीं”
“इस उम्र में मैं क्या कर पाउंगी?”
“बहुत कुछ कर पाओगी पर पहले अपनी तबियत संभालो बहुत कमजोर हो गई हो”
“अपनी इस बेहन के साथ रहना पसंद करोगी?”
“लेकिन तुम मेरी मदद क्यों करना चाहती हो?”
“मैं तुम्हारी नहीं अपनी मदद कर रही हूं. क्योंकी तुममे मैं खुद को देखती हूं”
“लो अम्मा ये फल कटवा के ले आया हूं”
अम्मा ने फलों से भरी प्लेट को उसके पास रख दी.
अम्मा के सामने से फिर से अस्पताल का वहीं कर्मचारी निकला.
बुढ़िया के पास रस का ग्लास और कटे फल देखकर बोला
“अरे ये आपकी रिश्तेदार है क्या?”
“हां क्यों?”
“वो अम्मा के पास बैठकर धीरे से बोला कुछ पैसों का इंतजाम हो जाए तो बेड का बंदोबस्त करा सकता हूं”
“अच्छा! लेकिन बिस्तर तो नहीं था अभी तुमने थोड़ी देर पहले ही कहा था”
“अम्मा पैसा हो तो सब जुगाड़ हो जाता है”
“अच्छा कितना पैसा लगेगा?”
उसने अम्मा के कान के पास जाकर कुछ बोला
“इतना? पर ये तो सरकारी अस्पताल है”
“पता है यहां रोजाना कितने लोग आते हैं बिस्तर का इंतजाम कैसे होगा बोलो. ब्लड बैंक के बाहर जाकर देखना कितनेलोग बैठे हैं जो इंतजार कर रहे हैं बेड मिलने का”
“वो तो एक मरीज की अभी अभी मौत हुई है तो एक बेड खाली हुआ है. तुम्हें लेना हो तो बता दो वरना बहुत लोग राह देखरहे हैं”
अम्मा पैसे के लिए हां बोलती की वो वृद्धा बोल पड़ी
“मैं अपने आप ठीक हो जाउंगी मुझे घर ले चलो”
“लेकिन?”
“मैं यहां रही तो और बीमार हो जाउंगी ठीक नहीं होउंगी”
“अच्छा मैं डॉक्टर से बात करती हूं”
अम्मा ने डॉक्टर से बात की
“आप इन्हें घर ले जा सकती हैं लेकिन खाने पीने का खास ध्यान रखना होगा. कुछ दवाइयां हैं उन्हें समय पर खिलाइएंगा. और तीन दिन बाद एक बार मुझसे चेक कराने जरूर आइए”
अम्मा ने अस्पताल की सभी फॉर्मेलिटी पूरी कीं और फिर उसे लेकर पुलिस स्टेशन गई और वहां वृद्धा को पुलिस के दिएएक कागज पर दस्तखत करने को दिया.
“मुझे लिखना नहीं आता”
“ठीक है अंगूठा लगा दो”
फिर अम्मा अपनी बहन को लेकर घर की ओर निकल गईं.
अम्मा ने घर का दरवाजा खटखटाया. परमेश्वर ने दरवाजा खोला.
अम्मा के साथ उस वृद्धा को देखकर वो कुछ नहीं बोला बस मुस्कुरा दिया.
अम्मा ने कहा
“ये मेरा बेटा है जैसे तुम अब मेरी बहन हो”
आवाज़े सुनकर भी परमेश्वर की पत्नी कमरे से बाहर नहीं निकली.
अम्मा उसे अपने कमरे में ले गई और बिस्तर पर लिटा दिया.
अम्मा अपने कमरे से निकलकर परमेश्वर के कमरे की ओर जा ही रही थीं की उन्हें बहू की तेज आवाज सुनाई दी.
“ये घर है या सराएं”
“मैंने पहले अपनी सास की सेवा की फिर तुम्हारे धंधे के कारण अम्मा का ध्यान रखती हूं. अब वो किसी और को यहां लेआई ना जान न पहचान. कल किसी और को उठाकर ले आएंगी”
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“देखो मुझसे ये सब नहीं हो पाएगा. घर को घर ही रहने दो”
“और अम्मा से कुछ नहीं कह सकते तो मुझे गांव भेज दो. दिन रात सबकी तीमारदारी नहीं कर सकती मैं”
अम्मा ने अपने कदम पीछे खींच लिए और रसोई में खुद चाय बनाने चलीं गई.
पीछे से परमेश्वर के बेटे ने आकर अम्मा का पल्लू खींचा. उसकी भोली सूरत देखकर अम्मा ने उसका नाम भोला रख दियाथा.
“अम्मा आज कौन सी कहानी सुनाओगी?”
“बेटा आज कहानी नहीं, मेरी बेहन आई है ना तो आज तो उसे वक्त देना होगा”
“आपकी बेहन मतलब मेरी दादी ना”
हां अम्मा ने मुस्कुराकर कहा
“अरे फिर तो अब मुझे दो दो कहानी सुनने मिलेंगी”
“मैं जाउं उनसे मिलने?”
“अभी नहीं उनकी तबियत ठीक नहीं है ना कल मिल लेना उनसे ठीक है मेरा भोला”
“ओके दादी मैं बाहर पार्क में खेलने जाउं?”
“नहीं, अपनी दीदी को लेकर जाओ अकेले नहीं”
“वो तो पढ़ रही है”
“तो पापा को ले जाओ”
“मम्मी पापा तो आज लड़ रहे है मुझे मार पड़ जाएगी कमरे में गया तो”
“आप चलो ना दादी मेरे साथ”
“बेटा मेरी बेहन आई है बताया ना तुम्हें”
“ठीक है तो मैं भी जाकर पढ़ ही लेता हूं”
भोला ने मायूस होकर बोला और रसोई से बाहर निकल गया.
अम्मा दो कप चाय लेकर पहले परमेश्वर के कमरे में गईं.
“लो बहू आज मेरे हाथ की चाय पियो तुम दोनों”
“अम्मा इसकी क्या जरूरत थी”
“अपनी बहन के लिए चाय बना रही ती तो सोचा तुम लोगों के लिए भी बना दूं”
“बेटा मैं सोच रही हूं की एक अलग घर ले लूं. अब मेरी बहन भी आ गई है”
परमेश्वर समझ गया की अम्मा ने उनकी बातें सुन ली हैं
“अम्मा लेकिन”
तभी परमेश्वर की पत्नी ने उसे कोहनी मारी
“बेटा आज में उम्र के जिस पढ़ाव पर हूं वहां अब बस मेरी एक ही इच्छा बची है की किसी को भी बुढ़ापे में दर दर की ठोकरेखाते ना देखूं. उस बुरे वक्त में जैसे तुमने मेरी मदद की मैं भी किसी की मदद करना चाहती हूं”
“अम्मा मैंने तुम्हारी नहीं तुमने मेरी मदद की है”
“मैंने तुमसे कभी पगार नहीं मांगी. तुमने और बहू ने मुझे मां का पूरा सम्मान दिया. लेकिन अब मुझे कुछ पैसों की जरूरत हैताकी एक घर किराए से ले सकूं और अपनी बेहन को लेकर वहां चली जाउं”
“ठीक है अम्मा मैं कोशिश करता हूं जल्दी से जल्दी कोई मकान ढूंढ लूं तुम्हारे लिए”
अम्मा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कमरे से निकल गई.
फिर रसोई में जाकर अपनी बेहन के लिए चाय ली और अपने कमरे की ओर बढ़ गईं.
कुछ दिन और अम्मा परमेश्वर के साथ रहीं फिर परमेश्वर ने अम्मा के लिए एक नया मकान किराए पर देख लिया और वोअपनी बेहन के साथ वहां रहने चली गईं.
जब परमेश्वर जा रहा था तो उसने अम्मा के पैर छूकर कहा
“अम्मा माफ कर देना मुझे कभी कभी मजबूरी में घर की शांति के लिए कुछ कदम उठाने पड़ते हैं”
“कोई भी जरूरत हो मुझे कॉल कर लेना. मैंने घर का किराया दे दिया है और आपके बैंक अकाउंट में भी कुछ रुपए डालदिए है. अब हर महीने आपके खाते में पैसे डालता रहूंगा”
“बेटा अपने दिल पर कोई बोझ बिलकुल मत रखना की तुमने कुछ गलत किया. बहू गलत नहीं है. उसका कहना बिल्कुलठीक है अब मुझे घर की नहीं वाकई एक सराएं की आवश्यकता है जहां लोग अपनी जीवन संध्या में आश्रय पा सकें. अबमेरा यही उद्देश्य है”
“बहू और बच्चों को मेरा आशीर्वाद देना और जब समय मिले तो बच्चों को मुझसे मिलाते रहना”
परमेश्वर चला गया.
अम्मा की बहन का नाम था कमला. अच्छा खाने पीने से उनकी कमजोरी अब धीरे धीरे खत्म हो रही थी.
अम्मा को वो छोटी कहकर बुलाती थीं.
कमला की कहानी भी अम्मा से मिलती जुलती थी. कमला के 4 बेटे थे एक बेटा गांव में और तीन शहर में पति की मौतपहले ही हो गई थी. बारी बारी से उन्हे हर बेटे के पास रहने का मौका मिला. इसलिए नहीं की वो सब मां के साथ रहनाचाहते थे बल्की इसलिए की कोई हमेशा के लिए उनका बोझ उठाना नहीं चाहता था. इसलिए अपने इस बोझ को उन्होंनेबांट लिया था.
लेकिन धीरे धीरे स्थिती बिगड़ने लगी कमला की बच्चों ने अवेहलना शुरू कर दी. जिन बच्चों को पालन पोषण करने में एकमां ना दिन को दिन समझती है ना रात को रात. हर पल बस बच्चों का ख्याल लेकिन जब बच्चों की बारी आती है उस मांका ख्याल रखने की तो सब बदल जाता है. उन्हें कभी रात में मां के खांसने से तकलीफ होने लगती है तो कभी उनकीबीमारी पर दवाइयों का खर्च फालतू का खर्चा लगने लगता है.
तीनों भाइयों ने आपस में सलाह करके मां को गांव वाले भाई के पास भेज दिया हांलाकी उसकी आर्थिक स्थिती भी ठीकनहीं थी. उसे भरोसा दिलाया की मां का खर्चा वो भेज दिया करेंगे. मां की शहर में तबियत अक्सर खराब हो जाती है उन्हेशहर रास नहीं आ रहा इसलिए गांव भेज रहे हैं.
लेकिन धीरे धीरे पैसे भेजने भी बंद कर दिए. मां एक बार फिर अपने एक बेटे पर बोझ बन गई.
कैसा लगता होगा एक मां को जो 9 महीने कितनी खुशी से अपने बच्चे को कोख में पालती है और कभी उसे बोझ नहींसमझती लेकिन बड़े होने पर उन्ही बच्चों के लिए मां एक बोझ बन जाती है.
गांव वाले बेटे के पास खुद खाने के लिए नहीं था मां को क्या खिलाता. जब उससे मां की जिम्मेदारी नहीं उठाई गई तो एकदिन मां को ट्रेन में बिठा कर छोड़ दिया.
बस यही थी कमला की कहानी. अम्मा से मिलकर उसे एक बात की संतोष हुआ की वो अकेली नहीं है जिसके साथ उसकेबच्चों ने ऐसा किया. पहले उसे लगता था की उसकी परवरिश में कोई खोट है लेकिन लगता है अब समय बदल रहा है. जैसे इंसान पुरानी आउटडेटेड चीजों को अपने घर में नहीं रखना चाहता वैसे ही एक दिन उसके मां बाप भी उनके लिएआउटडेटेड हो जाते हैं.
काम पर जाते समय अम्मा हमेशा कमला को अपने साथ ले जातीं. ताकी घर का अकेलापन उसे अतीत में ना ले जाए.
अम्मा ने महसूस किया सबको काम करते देख कमला थोड़ी मायूस हो जाती थी. क्योंकी वो किसी काम में हाथ नहीं बटापाती थी.
एक दिन बातों-बातों में अम्मा ने पता कर लिया की कमला बड़े अच्चे अचार बनाती थी. एक तो गरीब घर की थी तो सब्जीरोज नसीब भी नहीं होती थी शायद यही वजह थी उनके हाथ के बनाए अचार ऐसे होते थे की रिश्तेदार कहते कमलाजिज्जी के हाथ का बना अचार हो तो सब्जी किसे चाहिए.
बस अम्मा को मिल गया आयडिया.
अम्मा ने कमला से अचार बनवाना शुरू कर दिया और बच्चों को पराठे के साथ देने लगीं.
जैसे बच्चों के बीच अम्मा के पराठे फेमस थे वैसे जल्द ही कमला दादी का अचार भी फेमस हो गया.
अब अम्मा अचार के छोटे-छोटे पैकेट बनाकर दुकान पर रखने लगीं.
अब अम्मा को लगने लगा था की हर औरत में कोई ना कोई गुण ऐसा होता है की वो अपनी रोटी का इंतजाम खुद करसकती है.
उन्होंने एक मुहिम शुरू कर दी.
जब भी छुट्टी का दिन होता वो श्याम के साथ अपनी गाड़ी लेकर निकल जातीं कभी किसी रेलवे स्टेशन तो कभी कोई मंदिरऐसे बुजुर्ग लोगों की तलाश में जिन्हें मजबूरी के कारण अपना घर छोड़ना पड़ा या जिनसे उनके बेटे बहू ने जिंदा रहते हीनाता तोड़ दिया.
अम्मा के घर में अब कुछ और नए सदस्य जुड़ गए थे. वो कमला को अचार बनाने में मदद करते. देखते ही देखते कमला काअचार इलाहाबाद में मशहूर हो गया. कॉलेज के बच्चे कहते
“कमला दादी का अचार जो चख ले एक बार वो खाए बार बार”
अम्मा बहुत खुश थी की अपनी जिंदगी के साथ-साथ वो दूसरों की जिंदगी भी सवार पा रही थीं.
दिन यूं ही गुजर रहे थे एक दिन जब वो पराठा बना रही थीं
किसी ने उन्हें अम्मा कहकर पुकारा
अम्मा ने पराठे बनाते बनाते पूछा.
“क्या चाहिए बेटा”
“एक कहानी अम्मा”
अम्मा ने नजर उठा कर देखा सामने विरल खड़ा था लेकिन उसे पहचानने में अम्मा को कुछ सेकेंड का समय लग गया..
इन 5 सालों में विरल काफी लंबा हो गया था चेहरे पर हल्की मूछें भी आ गईं थीं.
“विरल”
“हां अम्मा, तुम क्यों चली गई हमें छोड़कर?
“पिताजी जब कई दिनों बाद इलाहाबाद से वापस आए तुम्हें उनके साथ ना देखकर बहुत रोया था मैं”
“पहली बार माई को भी तुम्हारे लिए रोते देखा था तब मैंने जाना साथ रहने में कितने भी आपसी मतभेद हो लेकिन किसीअपने के दूर जाने पर उसकी कमी बहुत खलती है”
अम्मा को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की क्या बोलें..
अम्मा मन में सोचने लगी तो क्या मुन्ना ने मुझे नहीं छोड़ा था.
“वो चला कहां गया था उस दिन मुझे कुंभ के मेले में छोड़कर..”
कई सवाल अम्मा के ज़हन में घूमने लगे..
“मुन्ना उस दिन मुझे कुंभ के मेले में छोड़कर गया कहां था?”
“अम्मा वो तो तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेने गए थे..लेकिन भीड़ में अचानक किसी ने बम होने की अफवाह फैला दीअफरा-तफरी मच गई ..उनके आगे चल रहा बच्चा अचानक गिर गया उसे बचाने के लिए वो नीचे झुके लेकिन फिर उठ नहींपाए लोगों की भीड़ उन्हें रोंदती हुई आगे बढ़ती रही”
“जैसे अचानक अफरा तफरी मची थी वैसे ही शांत भी हो गई..किसी ने बाबा को अस्पताल में भर्ती करवाया.
3 चार दिन वहीं अस्पताल में भर्ती रहे बाद जब वो ठीक हुए उन्होंने पुलिस स्टेशन में जाकर पूछताछ शुरू की”
“पुलिस ने बताया की मेले में उन्हें एक वृद्धा मिली तो थी पर कहां गई उन्हें नहीं पता..उन्होंने आपको ढूंढ़ने की बहुत कोशिशकी पर आपका कहीं पता ही नहीं चला”
“लेकिन मैंने मन में ठान लिया था अपनी अम्मा को जरूर ढूंडूगा. इसलिए इलाहाबाद युनिवर्सिटी में एडमीशन ले लिया”
आज दिन भर भटकने के बाद किसी ने बताया अम्मा के हाथ के पराठे खाकर देखो मजा आ जाएगा”
“बस फिर यहां चला आया और मुझे मेरी अम्मा मिल गईं”
अम्मा की आंखों में आंसू थे मन में पश्चाताप भी की उन्होने अपने बेटे को ऐसा समझ लिया पुलिस वालों के कहने पर.. हकीकत जानने की कोशिश भी नहीं की..
अम्मा ने विरल को गले से लगा लिया...उसका माथा बार बार चूमती रहीं.
अम्मा ने उसे प्यार से बिठाया और अपने हाथ से उसे पराठा खिलाने लगीं..
“अम्मा अब मैं तुम्हें वापस ले जाउंगा”
अम्मा ने मन में सोचा जो होता है अच्छे के लिए होता है..अगर मुझे ये गलतफहमी नहीं होती तो इलाहाबाद में नहीं रूकतीऔर कुछ लोगों की जिंदगी संवारने का सौभाग्य कभी नहीं मिल पाता.
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