"यह सोनाली… अं मेरा मतलब है सोनाली चौधरी, ख़ुद तो अपने साइबर प्रेमी के संग भाग गई और हम सबकी लुटिया डुबो गई." नुपूर ने आह भरते हुए कहा.
"और क्या? पापा-मम्मी की खोजी निगाहों और पड़ोसियों की शक्की नज़रों ने जीना मुहाल कर दिया है." सोनाली ने भी अपनी व्यथा उड़ेली.
"अब तो जी करता है सचमुच कोई साइबर प्रेमी बना लूं." स्वाति ने रोष से कहा.
"अरे कोई ढंग का मिले तब ना. मैंने तो सारी वेबसाइट्स खंगाल डाली. लेकिन सब लल्लू ही लगे." सबसे चार कदम आगे रहने वाली नेहा ने अपनी बात इस अदा से कही कि लड़कियों के समूह में हंसी का फव्वारा फूट पड़ा.
"लता आज का अख़बार देखा तुमने?"
"हां."
"सोनाली वाली ख़बर से नर्वस हो?"
"क्या? सोनाली का नाम आया है अख़बार में?"
"अरे, अपनी सोनाली का नहीं. हूं तो इसका मतलब है तुमने अख़बार पढ़ा ही नहीं है."
"हां नहीं पढ़ा. तुमने पूछा देखा है. मैंने कह दिया हां. पढ़ूंगी तो अब लॉन में पानी देने के बाद."
"उफ़! यह बाल की खाल निकालने का नहीं है. अपनी बेटी पर नज़र रखने का वक़्त है. सोनाली की ही स्कूल की… अरे स्कूल की ही नहीं, उसकी क्लास की लड़की अपने इंटरनेट प्रेमी एक क्लर्क के संग भाग गई है. और मज़े की बात तो देखो उसका नाम भी सोनाली है. सोनाली चौधरी." पूरे रहस्य का खुलासा करने के बाद सारिका ने चैन की सांस ली. सवेरे अख़बार पढ़ने के बाद से उसके पेट में मरोड़ें उठ रही थीं कि कब वह अपनी पड़ोसन सहेली लता को यह चटपटी ख़बर सुनाए और उसे थोड़ी नसीहत दे. पेट का गुबार निकल जाने के बाद अब वह काफ़ी राहत महसूस कर रही थी.
"क्या कह रही हो सारिका? मुझे विश्वास नहीं हो रहा. सोनाली तो अभी बच्ची है. उसकी क्लास की लड़की भी उसकी हमउम्र ही होगी. सिर्फ 5 साल की उम्र में ऐसा कदम?"
"लो और सुनो. 15 साल की लड़की तुम्हें बच्ची ही नज़र आती है. अरे, जब उसकी शादी हो जाएगी और वह 2 बच्चों की मां बन जाएगी, तब भी तुम्हें तो बच्ची ही लगेगी. अपने बच्चों को ज़रा ज़माने की नज़र से देखना भी सीखो."
"अच्छा मैं अंदर जाती हूं. अभी सारा काम पड़ा है." कहकर लता अंदर चली गई.
"ये लो. तो यहां भला कौन शतरंज की बिसात बिछाकर बैठा है? मुझे भी तो पचास काम हैं. भलाई का तो ज़माना ही नहीं है." बड़बड़ाती सारिका भी अंदर खिसक ली.
लता ने बिना पलक झपकाए पूरी ख़बर पढ़ डाली. इसके बाद और कोई ख़बर पढ़ने में उसका मन नहीं लगा. पति ऑफिस चले गए थे नहीं तो उन्हीं पर गुबार निकाल लेती. थोड़ी देर पूर्व सारिका की जो हालत थी, वही अब लता की थी. विनीत घर पर होते तो सुना डालती कि युवा होती बेटी पर नज़र रखना केवल मां की ही नहीं बाप की भी ज़िम्मेदारी है. जब देखो तब ऑफिस और बस ऑफिस के दोस्त.
'अरे मैं तो ऐसे सोच रही हूं जैसे मेरी बेटी भाग गई है, पर कौन जाने कल ऊंट किस करवट बैठे? अभी से संभल जाने में ही समझदारी है." दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है...' सोचते हुए लता ने सोनाली का पूरा कमरा छान मारा कि कहीं कोई सुराग लग जाए, पर निराशा ही हाथ लगी.
दोपहर में सोनाली लौटी, तो उसका कमरा एकदम नए सिरे से जमा हुआ था.
"यह कायापलट कैसे मां?"
"तू पिछले महीने कह रही थी न कि मेरा कमरा ठीक कर दो."
"हां और आपने कहा था कि अब तुम बड़ी हो गई हो अपना काम स्वयं करो."
"हां, पर आज मैंने सोचा कि तुम इतना कह रही हो तो कर ही देती हूं."
"क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, यह तो पता था. पर इतनी देरी से होती है यह आज पता चला." बुदबुदाती सोनाली कपड़े बदलने बाथरूम में घुस गई. कपड़े बदलती सोनाली का दिमाग़ हाथों से भी तेज चल रहा था.
‘आज तो उस सोनाली चौधरी की बच्ची ने पूरा दिन बरबाद कर दिया. दिनभर सारी मैडम नसीहतें ही देती रहीं. सिस्टर अलग फटकार लगाकर चली गई. करे कोई, भरे कोई. नेहा बता रही थी पेपर में ख़ूब बड़ी न्यूज़ है. अभी पढ़ती हूं सवेरे तो पेपर देख ही नहीं पाई. ओह शिट! लगता है मम्मी ने भी पूरी न्यूज़ पढ़ ली है. उनके दिमाग़ में शक का कीड़ा घुस गया होगा और उन्होंने मेरी स्टडी टेबल और आलमारी खंगाल डाली. अब सफ़ाई का बहाना मार रही हैं. वाह मम्मा तुसी ग्रेट हो.’
"सोनाली… सोनाली… जल्दी आओ खाना लग गया." भड़ाक की आवाज़ से बाथरूम का दरवाज़ा खुला और बिफरी हुई सोनाली बाहर आई.
"आप अब से मुझे सोनाली कहकर नहीं बुलाएगी. मुझे मेरे निक नेम चिंकी से ही बुलाएं."
"कमाल है. पहले चिंकी कहते थे, तो चिढ़ती थी कि अब मैं बड़ी हो गई हूं, मुझे सोनाली कहा करो."
"चिढ़ हो गई है मुझे इस नाम से. आज स्कूल में भी मुझे चिढ़ाने के लिए सभी जान-बूझकर 'सोनाली... सोनाली...' आवाज़ दे रहे थे. मैंने भी साफ़ कह दिया है कि मुझे मेरे पूरे नाम सोनाली राय से बुलाएं तभी मैं सुनूंगी."
"वो क्या तेरी अच्छी दोस्त थी?" लता ने टोह लेनी चाही.
"कभी नाम भी सुना है आपने मेरे मुंह से उसका? एक ही क्लास में पढ़ने से कोई दोस्त नहीं हो जाता."
"फिर भी थोड़ी पहचान…"
"प्लीज़ मेरा सिर वैसे ही दर्द से फटा जा रहा है. खाना खाकर थोड़ा आराम कर लूं फिर कोचिंग का वक़्त हो जाएगा. परसों कम्प्यूटर प्रैक्टिकल है, उसकी भी तैयारी करनी है. यहां तो सांस लेने का वक़्त नहीं है. पता नहीं लोग साइबर लव के लिए कहां से समय निकाल लेते हैं?"
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लता बेचारी को गुबार निकालने का मौक़ा ही नहीं मिला. वह फिर फूला पेट लिए घूमने लगी. शाम को पति विनीत के आते ही लता तुरंत उधर लपक ली. उसे पेट का गुबार जो निकालना था.
"आपने अख़बार की वह न्यूज़ पढ़ी? एक लड़की अपने इंटरनेट प्रेमी क्लर्क के संग भाग गई."
"हां, तब से उसी बारे में तो सोच रहा हूं."
"सच! क्या सोच रहे हैं?" विनीत भी इस ख़बर को लेकर चिंतित हैं, सोचकर लता मन ही मन प्रसन्न हुई.
"यही कि क्लर्क बनता तो ज़्यादा स्कोप था, व्यर्थ ही इंजीनियरिंग की."
"विनीत! तुम्हें हर वक़्त मज़ाक ही सूझता है. यहां सवेरे से सोच-सोचकर मेरी जान निकली जा रही है. ज़रा सोचो, उस लड़की के माता-पिता कितना परेशान हो रहे होंगे."
"परेशान तो होंगे ही. अगर किसी ओहदेदार या पैसेवाले के संग भागी होती, तो वे चैन की बंसी बजा रहे होते कि चलो बिना दहेज ही लड़की अच्छे घर चली गई."
"ओफ़! अब मज़ाक बंद भी करो. मैं अपनी सोनाली के लिए परेशान हूं."
"क्यों? उसे क्या हुआ?"
"अभी तो कुछ नहीं हुआ, पर होते देर नहीं लगती. एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है."
"मुझे तो अपनी बेटी पर पूरा विश्वास है, इसलिए मुझे तो कोई चिंता नहीं है. तुम्हारी तुम जानो."
"हे भगवान यहां तो पूरे तालाब में ही भांग घुली हुई है."
रात में सोनाली कंप्यूटर प्रैक्टिकल की तैयारी कर रही थी. उधर लता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जाने प्रैक्टिकल की आड़ में क्या गुल खिला रही हो? उसने खर्राटे भरते पति को उठाया.
"आप जाकर देखकर आइए सोनाली क्या कर रही है?"
"अपने प्रैक्टिकल की तैयारी कर रही है और क्या करेगी? तुम भी जाने क्या-क्या सोचती रहती हो?" फिर लता का उखड़ा मूड देखकर,
"ठीक है बाबा, जाता हूं."
"आओ पापा, ध्यान से देख लो. प्रैक्टिकल की तैयारी ही कर रही हूं ना." सोनाली ने बिना पीछे मुड़े कहा.
"अरे तुम्हें कैसे पता चला कि मैं पीछे से झांक रहा हूं."
"मम्मी तो इतनी रात गए रजाई से बाहर निकल नहीं सकतीं. अब रही आपकी बात, तो आपने परदा हटाया, हवा का एक झोंका आया और विंडचाइम ने आपके स्वागत में तान छेड़ दी."
'उफ़! यह वास्तु शास्त्र का नमूना है या ख़तरे की घंटी?’ बुदबुदाते हुए विनीत ने बात संभालते हुए कहा, "अं वो… मैं तो ऐसे ही पानी पीने उठा था. सोचा तुम्हें देखता चलूं. ओके गुडनाइट."
"देख आए? क्या कर रही है?"
"तुम्हारी यह शक करने की आदत तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी बेटी की नज़रों में गिरा देगी. अब ख़ुद भी सो जाओ और मुझे भी चैन से सोने दो." ग़ुस्साई लता मुंह फेरकर सो गई.
स्कूल में लड़कियों में कानाफूसी का बाज़ार गर्म था.
"यह सोनाली… अं मेरा मतलब है सोनाली चौधरी, ख़ुद तो अपने साइबर प्रेमी के संग भाग गई और हम सबकी लुटिया डुबो गई." नुपूर ने आह भरते हुए कहा.
"और क्या? पापा-मम्मी की खोजी निगाहों और पड़ोसियों की शक्की नज़रों ने जीना मुहाल कर दिया है." सोनाली ने भी अपनी व्यथा उड़ेली.
"अब तो जी करता है सचमुच कोई साइबर प्रेमी बना लूं." स्वाति ने रोष से कहा.
"अरे कोई ढंग का मिले तब ना. मैंने तो सारी वेबसाइट्स खंगाल डाली. लेकिन सब लल्लू ही लगे." सबसे चार कदम आगे रहने वाली नेहा ने अपनी बात इस अदा से कही कि लड़कियों के समूह में हंसी का फव्वारा फूट पड़ा.
"अरे शैली, तू इतनी गुमसुम क्यों है?" अपने ही विचारों में खोई शैली की ओर स्वाति का ध्यान गया तो वह उसे टोक बैठी.
"तुम लोग सोच रही हो कि सोनाली तो अपने प्रेमी के संग मस्त है और हमें व्यंग्यबाण सुनने के लिए छोड़ गई है. नहीं, ऐसा नहीं है. कल पुलिस उसे पकड़कर ले आई है और अब वह अपने ही घर में नज़रबंद है. उसका वह प्रेमी जेल में बंद है."
"क्या?" सब लड़कियों के मुंह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए.
"मेरा घर उसके घर के पास ही है. कल उसकी मम्मी ज़बरदस्ती मुझे अपने घर ले गई. सोनाली मेरे गले लगकर फफककर रो पड़ी. वह अपने किए पर बहुत शर्मिंदा है. कह रही थी कि क्षणिक उन्माद में आकर उसने ऐसा बेवकूफ़ी भरा कदम उठा लिया और अपनी ज़िंदगी शुरू होने से पहले ही तबाह कर डाली. अब वह कैसे लोगों की तीक्ष्ण नज़रों का सामना करे? उसके पापा तो उसे ग़ुस्से में मार ही डालते. उसकी मम्मी ने ही बीच-बचाव कर उसे बचाया. उन्हें चिंता है कि इस बदनाम लड़की से अब कौन शादी करेगा? क्या यह इसी तरह घुट-घुटकर अपनी पूरी ज़िंदगी बिता देगी? मुझसे बात करके सोनाली अपने दिल का बोझ थोड़ा हल्का कर ले, इसीलिए उसकी मम्मी मुझे ज़बरदस्ती उसके पास ले गई थी. सोनाली अपनी ज़िंदगी के इस कटु अध्याय को भुलाकर नए सिरे से जीवन जीना चाहती है. वह फिर से स्कूल आना चाहती है. पर हम साथी छात्राओं और अध्यापिकाओं के कटु व्यंग्यबाणों से भय खा रही है. उसे डर है सिस्टर उसे फिर से स्कूल में आने देंगी या नहीं?" इतना कहकर शैली थोड़ा रूकी. लड़कियों को मानो सांप सूंघ गया था.
"क्या सचमुच उसकी ग़लती इतनी बड़ी है कि अब उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं है? क्या हम सब उसे सहज दिल से स्वीकार कर फिर से एक नई ज़िंदगी बनाने में मदद नहीं कर सकते?" शैली ने आशा से सबकी ओर देखा.
"ज़रूर कर सकती हो मेरी बच्चियों." एक गंभीर आवाज़ ने सबको चौंका दिया. सबके चेहरे पीछे आवाज़ की दिशा में घूम गए. सामने सिस्टर प्रिंसिपल को देख वे भौंचक्की रह गईं.
"मैं इधर गलियारे से गुज़र रही थी. तुम्हारी बातें सुनकर यहीं ठिठककर खड़ी रह गई. मुझे आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी है कि मेरी बच्चियां इतनी समझदार हो गई हैं. उम्र के जिस पड़ाव से तुम लोग गुज़र रही हो, यह न केवल ज़िंदगी का सबसे नाज़ुक, वरन सबसे ख़तरनाक पड़ाव है. जो इंसान इस दौर में अपनी भावनाओं और यौन उन्माद पर नियंत्रण रख अपने लक्ष्य की ओर एकाग्रचित्त रहता है, वह तो अपना करियर बना लेता है, लेकिन जो अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता और अपने लक्ष्य से डिग जाता है वह अपने पांवों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारकर अपना जीवन बर्बाद कर लेता है. जैसा कि सोनाली के साथ हुआ. उसे अपने किए पर पश्चाताप है, तो हम उसे सुधरने का एक मौक़ा अवश्य देगें. हम सभी उसके पिता को समझाएंगे कि वे भी एक बार उसे क्षमा कर उसे फिर से सामान्य ज़िंदगी जीने का मौक़ा दें. आप सभी छात्राएं उसे अब तक पढ़ाई की जो क्षति हुई है, उसे पूरा करने में सहयोग दें. मुझे उम्मीद है सकारात्मक दिशा में ध्यान लगााने से वह निराशा के गर्त से बाहर आ सकेगी."
"लेकिन सिस्टर केवल हमारे द्वारा सहयोगात्मक रवैया अपनाने से क्या होगा? पूरा समाज तो उसे तिरस्कार की दृष्टि से ही देखता है ना." नेहा ने प्रश्न दागा.
"परायों की उपेक्षा से कहीं अधिक आदमी को अपनों की उपेक्षा दुख पहुंचाती है. फिर संभव है कल को हमारा सहयोगात्मक रवैया देखकर अन्य लोग भी अपना रवैया बदल लें. घाव अभी इतना गहरा भी नहीं हुआ है कि उसका उपचार न किया जा सके. हां, यदि उसे उपेक्षित छोड़ दिया गया, तो मवाद इतना फैल जाएगा कि कल को वह अंग ही काटकर फेंकना पड़ेगा. हो सकता है आप में से कुछ को इस कार्य में अपने माता-पिता का पूर्ण सहयोग मिले, तो कुछ को तीव्र विरोध झेलना पड़े. लेकिन यदि आप अपनी साथी छात्रा के सहयोग के लिए पूर्ण रूप से तत्पर हैं, तो इस नेक कार्य को करने से आपको कोई नहीं रोक सकता." सिस्टर की बातों ने सोनाली सहित सभी लड़कियों में एक नई ऊर्जा भर दी. उन्हें लग रहा था एक बड़े मिशन का दारोमदार उन पर है. सिस्टर की समझाइश ने उन्हें अपनी उम्र से कहीं अधिक गंभीर और परिपक्व बना दिया था. विचारों में खोई सोनाली कब घर पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला.
"अरे सोना... नहीं नहीं चिंकी. आ गई बेटी स्कूल से?"
"ममा आप मुझे सोनाली कह सकती हैं."
"ये लो. तू लड़की है या गिरगिट? पल-पल में रंग बदलती है. कभी चिंकी बन जाती है, तो कभी सोनाली. क्या मैं जान सकती हूं आज के विचार परिवर्तन की वजह क्या है?"
"ममा, दरअसल सोनाली चौधरी उतनी बुरी लड़की नहीं है, जितना हम उसे समझ रहे थे. अच्छा एक बात बताओ यदि मैं किसी के संग भाग जाऊं और फिर अपनी ग़लती समझ आने पर घर लौट आऊं, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी?"
"हाय राम. शुभ... शुभ बोल. तेरा इरादा क्या है?"
"घबराओ मत ममा. मैं ऐसा कुछ नहीं करने जा रही. सोनाली के इस कदम से हम सभी लड़कियों और ख़ुद सोनाली को एक बहुत बड़ा सबक मिल गया है. वह अपनी ग़लती पर बहुत पछता रही है. वह पुनः इस समाज का एक अंग बनकर सामान्य ज़िंदगी जीना चाहती है. क्या हम उसे फिर से नहीं अपना सकते?"
"लेकिन बेटी खाली तेरे या मेरे स्वीकारने से क्या होगा? समाज में और भी तो ढेर सारे लोग हैं."
"आपको समझाना इसी दिशा में तो एक कदम था ममा. सिस्टर ने हम लड़कियों को समझाया. हम अपने अभिभावको और संपर्क में आने वाले अन्य लोगों को समझाएगें. वे और आगे... इस तरह ही तो पूरा समाज बदला जा सकेगा ममा. यह तो मेरी एक छोटी-सी सफलता है."
"अरे वाह. मुझे नहीं मालूम था मेरी बेटी इतनी समझदार हो गई है. मैं तो व्यर्थ ही तांक-झांक कर उसकी जासूसी करती रही."
"आपकी तांक-झांक जायज़ थी ममा. जवान होती बेटी पर नज़र रखना, तो हर मां-बाप का फर्ज़ है, ताकि वे अपनी बेटी को भटकने से रोक सकें."
"पर हां, ये बंधन इतने भी न कस दिए जाएं कि बेटी उन्हें तोड़ने के लिए छटपटाने लगे." बड़ी देर से गुपचुप मां-बेटी का वार्तालाप सुन रहे विनीत सामने आकर बोले.
"यह देखो. हर हिंदी फिल्म की तरह पुलिस ने अंत में एंट्री मार ही ली और सारा क्रेडिट ले गई." लता की बात पर विनीत और सोनाली खुलकर हंस पड़े.
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