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कहानी- एक्सपायरी डेट (Short Story- Expiry Date)

क्या रिश्तों का मूल्य पैसों से ख़रीदी जा सकनेवाली वस्तु से भी कम होता है? क्या रिश्तों को भी रिसायकल करके एकबारगी फिर से एक सुंदर उपहार में परिवर्तित करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए? नहीं, एक्सपायरी डेट मनुष्यों की बनाई वस्तुओं की भले ही होती होगी, ईश्‍वर के बनाए रिश्तों की नहीं होती. अमिता घर के रोज़मर्रा के काम निपटाकर बैठी ही थी कि सामने रखे चेस्ट ऑफ ड्रॉवर्स पर नज़र पड़ गई. पति ऑफिस और दोनों बच्चे स्कूल जा चुके थे. बहुत दिनों से ध्यान नहीं दिया था उसने. पता नहीं कितना कुछ बेकार का सामान इकट्ठा हो गया होगा. घर में जिसके हाथ भी कुछ सामान आता है, लेकर ड्रॉवर में भर देते हैं. अमिता ने उठकर एक ड्रॉवर खोला और उसमें रखी हुई चीज़ें छांटने लगी. कई काग़ज़-पत्तर और छोटी-मोटी चीज़ों से वह भरा पड़ा था. उसने काम के काग़ज़ एक साथ पिनअप किए और फ़ालतू काग़ज़ अलग निकाल दिए. एक ड्रॉवर में कई सारी चीज़ों के साथ बहुत-सी दवाइयां भी निकलीं. अमिता ध्यान से सबकी डेट्स देखने लगी. “उ़फ्! इनमें से कई दवाइयों की एक्सपायरी डेट निकले भी कई महीने बीत चुके हैं. कभी ग़लती से इन्हें कोई खा न ले.” सोचते हुए अमिता ने सारी पुरानी दवाइयां लीं और डस्टबिन में फेंक दीं. दवाइयां फेंकते समय अचानक अमला की बातें याद आईं. दो दिन पहले ही अमला ने कहा था, “हर चीज़ की एक्सपायरी डेट होती है दीदी. डेट निकल जाने के बाद उन चीज़ों का उपयोग नहीं करना चाहिए, वरना वो हमें ही नुक़सान पहुंचाती हैं.” फिर अमिता के कंधे पर हाथ रखकर बोली, “चीज़ों की तरह रिश्तों की भी एक निश्‍चित उम्र होती है. उम्र निकल जाने के बाद वो भी ख़त्म हो जाते हैं. फिर उन्हें भी डस्टबिन में डालकर निश्‍चिंत हो जाना ही अच्छा है, वरना वो हमारे ख़ुशहाल जीवन और शांत दिमाग़ में ज़हर घोलने लगते हैं.” अमला तो अपने घर वापस चली गई, लेकिन अमिता के दिलो-दिमाग़ में तभी से उथल-पुथल मची थी. दरअसल, दो दिन पहले ही एक परिचित से ख़बर मिली थी कि अमिता के देवर का एक्सीडेंट हो गया है और वह बहुत ही गंभीर अवस्था में एक बड़े अस्पताल के आईसीयू में एडमिट है. जब से यह ख़बर मिली थी, तभी से अमिता का मन विचलित हो रहा था. छोटे बच्चों की ज़िम्मेदारी के चलते देवरानी घर और हॉस्पिटल के बीच भागदौड़ में पिस रही है. हॉस्पिटल में बैठनेवाला भी कोई नहीं है और बच्चों की देखभाल करनेवाला भी कोई नहीं. पूर्व के कुछ अत्यंत कटु अनुभवों और व्यवहार के चलते अमिता के पति सुदीप ने आहत होकर अपने छोटे भाई से रिश्ता ख़त्म कर लिया था. तब से पिछले पांच वर्षों से एक ही शहर में रहने के बावजूद दोनों भाइयों में औपचारिक बोलचाल तक नहीं है. सुदीप के छोटे भाई संदीप ने अमिता के सामने ही अपने बड़े भाई को कह दिया था, “आज से आपका और मेरा कोई रिश्ता नहीं है. आप लोग कभी मुझे अपना मुंह भी मत दिखाना.” यह भी पढ़े: हैप्पी फैमिली के लिए न भूलें रिश्तों की एलओसी (Boundaries That Every Happy Family Respects) वही बड़बोला संदीप आज असहाय अवस्था में हॉस्पिटल में एडमिट है. एक मन कह रहा है- ‘जाने दो, जब उसने ही मुंह तक देखने से मना कर दिया है, तो हमें भी क्या ज़रूरत पड़ी है?’ लेकिन दूसरी ओर वही मन छटपटा रहा था. ‘क्या हुआ छोटा है, ग़लती तो सबसे हो जाती है, लेकिन दुख-दर्द में तो अपने ही काम आते हैं.’ दो दिन पहले जब ख़बर मिली थी, तब से वह यही सोच रही थी कि संयोग से अमला आ गई और उससे अपने मन की उलझन बांटने लगी. अमला सारी घटनाओं से वाकिफ़ थी तभी उसे समझा गई. ड्रॉवर साफ़ हो चुके थे. सोचते-सोचते अमिता का सिर भारी होने लगा था. वह कमरे में जाकर पलंग पर लेट गई, लेकिन विचार कब पीछा छोड़ते हैं. आंख बंद करते ही फिर मस्तिष्क को घेरकर बैठ गए. ‘इस दुनिया में हर चीज़ की एक्सपायरी डेट यानी वह तारीख़ होती है, जिसके बाद वह चीज़ बेकार हो जाएगी. फिर चाहे वह खाने-पीने का सामान हो या दवाइयां या फिर कुछ और. हर वस्तु जो पैदा होती है, बनती है उसका मृत्यु दिवस तय है.’ “वस्तुओं की तरह संबंधों की भी एक एक्सपायरी डेट होती है दीदी, इसका ख़्याल कोई नहीं रखता. रिश्ते पैदा होते हैं और उम्र पूरी होने के बाद मर जाते हैं. लेकिन इसे महसूस करने के लिए पैनी नज़र और संवेदनशील हृदय होना ज़रूरी है, अन्यथा लोगों को पता ही नहीं चलता कि इस संबंध की उम्र पूरी हो चुकी है और इसे अब ख़त्म करना चाहिए. लोग शिष्टाचारवश उसकी लाश को भी ढोए चले जाते हैं और फलस्वरूप अपने जीवन को भी दूषित कर लेते हैं.” अमला की बातें फिर सामने आ गईं. “और गहरे जाएं, तो विचारों और भावों की भी डेट होती है. इस समय हम जैसा सोचते हैं ज़रूरी नहीं कि कुछ समय बाद भी वैसा ही सोचें. पहले के समय के संस्कार और मान्यताएं अब पुरानी पड़ गई हैं. आज के दौर में उनका कोई औचित्य नहीं है. इसलिए दूसरों की परवाह छोड़ो और अपने घर-परिवार को ही देखो बस. आजकल सब यही करते हैं और सुखी रहते हैं.” अमला तो अपनी बातें करके चली गई, लेकिन अमिता के मन को चैन कहां. भारतीय संस्कृति में तो आज भी रिश्ते-नातों का मूल्य अन्य किसी भी वस्तु से अधिक ही होता है. यही तो हमारे संस्कार हैं. दिमाग़ में इन्हीं सब विचारों के चलते कब ढाई बज गए और कब दोनों बच्चे स्कूल से लौट आए, पता ही नहीं चला. आते ही दोनों मां के आसपास चूज़ों की तरह फुदकने लगे और स्कूल के क़िस्से सुनाने लगे. उनकी बातों में अमिता थोड़ी देर के लिए अपना तनाव भूल गई. उनके कपड़े बदलवाकर और हाथ-मुंह धुलवाकर अमिता ने उन्हें खाना खिलाया. खाना खाकर दोनों अपना स्कूल बैग लेकर अमिता के पास आ बैठे. “देखो मां, आज हमने स्कूल में क्या बनाया.” छोटा बेटा रोहन अपने बैग में से कुछ निकालकर दिखाने लगा. “यह देखो, हमने आर्ट एंड क्राफ्ट की क्लास में क्या बनाना सीखा.” रोहन के हाथ में एक प्लास्टिक की पुरानी बोतल से बना हवाई जहाज़ था. वह बड़े उत्साह से अमिता को बताने लगा, “देखो मां, इसके पंखे और पूंछ सब पुरानी चीज़ों से बने हैं. देखो यह कितना सुंदर लग रहा है. हमारी क्राफ्ट टीचर कहती हैं कि कोई भी चीज़ कभी ख़राब नहीं होती. हर वस्तु को किसी न किसी रूप में फिर से उपयोग में लाया जा सकता है, बस मन में इच्छा होनी चाहिए.” “हां मां, हमारी एनवायरमेंट स्टडीज़ की टीचर ने भी आज हमें यही सिखाया कि कैसे ख़राब से ख़राब वस्तु को भी रिसायकल करके उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित किया जा सकता है. अगर हम वस्तु को पुरानी और बेकार मानकर फेंक देते हैं, तो वे पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाती हैं और प्रदूषण फैलाती हैं. इससे अच्छा है, उन्हें नए रूप में परिवर्तित करके फिर से उपयोग में लाया जाए. इससे पर्यावरण और हमें दोनों को ही फ़ायदा होता है.” रोहन की बातें सुनकर बड़ी बेटी रितिका भी उत्साह में भरकर बताने लगी. “मां, आजकल तो हर चीज़ रिसायकल हो जाती है प्लास्टिक, काग़ज़, धातुएं, कांच सब कुछ.” अमिता के मन के संशय धीरे-धीरे दूर होते जा रहे थे. कभी-कभी बच्चों की बातों में जीवन के बड़े सवालों के जवाब छुपे होते हैं. बच्चे साधारण-सरल बातों में गहरे ज्ञान और मूल्यों की बातें बोल जाते हैं. यह भी पढ़ेबच्चों की छुट्टियों को कैसे बनाएं स्पेशल? (How To Make Children’s Summer Vacations Special?) दोनों बच्चों को सुलाने तक अमिता का मन काफ़ी कुछ साफ़ और हल्का हो चुका था. आजकल के युग में जब आदमी साधारण-सी भौतिक चीज़ों को रिसायकल करके अपने लाभ के लिए उपयोग में लाता रहता है, तो फिर रिश्तों को डस्टबिन में डालने की बात क्यों करता रहता है? क्या रिश्तों का मूल्य पैसों से ख़रीदी जा सकनेवाली वस्तु से भी कम होता है? क्या रिश्तों को भी रिसायकल करके एकबारगी फिर से एक सुंदर उपहार में परिवर्तित करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए? नहीं, एक्सपायरी डेट मनुष्यों की बनाई वस्तुओं की भले ही होती होगी, ईश्‍वर के बनाए रिश्तों की नहीं होती. रितिका बड़ी और समझदार है. वह देवर के दोनों बच्चों को संभाल लेगी. वह आज ही दोनों को अपने घर ले आएगी, ताकि देवरानी अपने पति की ठीक से देखभाल कर सके और बाहर की भागदौड़ के लिए वह सुदीप को मना ही लेगी. सोचते हुए अमिता का मन पंख के समान हल्का और स्वच्छ हो गया. सुदीप के आने का समय हो रहा है. वह अभी हॉस्पिटल चली जाएगी और आते समय दोनों बच्चों को अपने साथ ले आएगी. अमिता ने झटपट हॉस्पिटल ले जाने के लिए थर्मस निकालकर रखा और गैस पर चाय का पानी चढ़ा दिया. Dr. Vineeta Rahurikar विनीता राहुरीकर

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