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कहानी- गमले के फूल (Short Story- Gamle Ke Phool)

"सर, बच्चे की तबियत ठीक नहीं है… बच्चा छोटा है उसे देखना पड़ता है… आज मदर इन लॉ को हॉस्पिटल ले जाना था… आप तो जानते ही हैं खाने के बाद पूरी साफ़-सफ़ाई करके ही आना पड़ता है…" ऐसे लोगों के  समय पर अपनी सीट पर न मिलने के दो-चार बहाने हों, तो कोई बताए, लेकिन सोने पर सुहागा तब होता है, जब ऐसे स्टाफ को कोई लंपट ऑफिसर मिल जाता है.

किसी स्त्री से उस समय लड़ना मुश्किल हो जाता है, जब वह अपने स्त्री होने का फ़ायदा उठाने लगती है. अपने फेमिनिन को एक टूल की तरह प्रयोग करती है. आज यही तो हुआ था उसके ऑफिस में. वह सोचने लगा लोगों ने ऑफिस को मज़ाक बना कर रख दिया है, ख़ासकर महिलाओं ने. जितनी सुविधा मिलती जाती है ये सुविधाओं का और अधिक दोहन करने लगती हैं. ऐसा लगता है ये काम करने नहीं आतीं, बल्कि काम करके लोगों पर एहसान करने आ रही हों.
ख़ासकर कुछ विभाग तो ऐसे हैं, जहां लोगों को पावर क्या मिल गई वे ख़ुद को खुदा समझ बैठते हैं. वे भूल जाते हैं कि ये ओहदे, ये पद प्रतिष्ठा, ये कुर्सी
उनसे कुछ डिमांड करती है, विशेष रूप से जब आप सेवा के पद पर बैठे हैं, तब जहां आप लोगों के हानि-लाभ के कारक हैं.
"सर, बच्चे की तबियत ठीक नहीं है… बच्चा छोटा है उसे देखना पड़ता है… आज मदर इन लॉ को हॉस्पिटल ले जाना था… आप तो जानते ही हैं खाने के बाद पूरी साफ़-सफ़ाई करके ही आना पड़ता है… ऐसे लोगों के  समय पर अपनी सीट पर न मिलने के दो-चार बहाने हों, तो कोई बताए, लेकिन सोने पर सुहागा तब होता है, जब ऐसे स्टाफ को कोई लंपट ऑफिसर मिल जाता है.
अचानक उसने देखा, गोयल साहब पूरी फौज लिए इधर से उधर टहल रहे हैं. पता लगा कोई वीआईपी आनेवाले हैं.
गोयल साहब कह रहे थे, "सुनो ये गमले इधर लगा दो. अरे, वही गुलाबवाला और वो जो ब्लू एंड व्हाइट फ्लावरवाला है, उसे सेंटर में कर दो."
उसे हंसी आ रही थी. हर वीआईपी विजिट में ये सौ पचास गमले इधर-उधर करना, फूल-पत्ती से स्टेज सजाना, लाइटें लगवाना, किस साहब को क्या पसंद है, कौन सी मिठाई आएगी, टेबल कैसे सजेगी, बड़े साहब के साथ आई मैडम का मनोरंजन कैसे होगा, उनका ख़्याल कौन रखेगा… लगता है इस संस्था में इससे बड़े कोई काम नहीं हैं.
ये लोग इतना ही करके सोचते हैं हमने बहुत बड़ा तीर मार लिया है. इसके बाद इन कामों को करने के लिए थिंक टैंक की सुबह-शाम पार्टी. साथ ही पूरे स्टाफ की मीटिंग. ख़ासकर लेडीज स्टाफ की ख़ास तवज्जो, क्योंकि विजिट में रौनक़ तो इन लोगों से ही होनी है. वैसे भी इन गोयल साहब को लेडीज स्टाफ को अपने सामने बिठाकर दरबार लगाने का कुछ ख़ास ही शौक है.

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कहते हैं, जब कोविड में लॉकडाउन था और सोशल डिस्टेंसिंग चल रही थी, तब ये गोयल साहब अपनी पावर का उपयोग कर कोविड मैनेज करने के नाम पर लोगों के चाट-पकौड़े और स्पेशल मिठाइयां खा रहे थे. गोयल  साहब तो अपने लेडीज स्टाफ पर कुछ ख़ास मेहरबान रहते थे. उस दौर में कोई काम तो था नहीं, सो उनके रूम में बैठकर कभी कोई  रेसिपी डिस्कस होती, तो कभी ड्रेस सेंस, कभी सामाजिक स्थित पर चिंता व्यक्त होती, तो कभी फिल्म और गाने पर रिसर्च.
उन्हें मालूम था स्त्री को हथियार की तरह कैसे प्रयोग  करना है. इतना ही नहीं उन्होंने बाकायदा अपने एक-दो क़रीबी चेले पाल रखे थे, जो इस तरह की लड़कियों को ही कैजुअल स्टाफ या सपोर्टिंग स्टाफ में रखते, जो किसी टूल की तरह ख़ुद इस्तेमाल होने को तैयार हों. कहीं कोई मामला खुलता या आगे बढ़ता, तो ऐसे स्टाफ की फटाफट विदाई हो जाती. लेडीज स्टाफ भी ख़ुश रहता.
आज स्वार्थ इतना हावी हो गया है कि ऐसे स्टाफ को लगता है बिना काम-धाम किए प्रशंसा, अवॉर्ड, पार्टी के साथ-साथ प्रमोशन मिल रही है, तो थोड़ी देर साहब के कमरे में बैठ कर नुमाइश करने में क्या फ़र्क़ पड़ता है. उसने देखा, ये क्या अचानक गोयल साहब उखड गए, "ये पीले फूलोंवाला गमला कौन ले आया यहां पर. ये फूल  कितने बीमार और थके हुए लग रहे हैं."
माली बोला, “सर, वो क्या है कि गुलाब के कम पड़ गए थे, सो सोचा दो-चार इन्हें लगा दूं. वो क्या है कि गुलाब का सीजन नहीं है और पौधे तैयार नहीं हुए हैं. वैसे भी आप तो जानते हैं कि ये गमले के पौधे बड़े डेलीकेट होते हैं. इन्हें बहुत संभाल कर रखना पड़ता है. ये खुले बगीचे या जंगल में लगे फूल तो हैं नहीं, जो हर हाल में खिले रहें." बात तो सही थी कि गमले के फूल बड़े नाज़ुक होते हैं. किसी ने ज़रा सा छुआ नहीं की मुरझा गए. अचानक उन्हें लगा, ये जो सेवा विभाग के लोग हैं, ये सब गमले के फूल हैं.
ये धूप, गर्मी और बारिश नहीं बर्दाश्त कर सकते. इन्हें बस आराम कुर्सी पर बिठा कर झूला झूलाते रहिए, वरना इनके चेहरे की हंसी ग़ायब हो जाएगी. इनकी आदत इतनी बिगड़ गई है कि इन्हें अपने प्रिंट किए हुए पेपर भी उठा कर लाने के लिए दो-दो स्टाफ चाहिए. ये कुर्सी से  उठकर पेपर तक नहीं ला सकते. उनके मुंह से बेसाख्ता निकला, “लानत है डूब मरो. क्या करेंगे ऐसे लोग ज़िंदगी में."

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लेकिन नहीं, सभी ऐसे नहीं होते. वो मैडम श्रीधरन ने गोयल साहब की हरकतें, गिरे हुए मूल्य और भेदभाव भरे व्यवहार को देखते हुए लंबी छुट्टी ले ली थी. बच्चों के करियर और परिवार को संभालने के लिए ख़ुद के करियर को दांव पर लगा दिया था उन्होंने.
दरअसल, कई बार ऑफिस के भीतर स्त्रियों के खून में यह मीठा ज़हर किसी नशे सा उतार दिया जाता है और इन्हें पता ही नहीं चलता कि यह जो छोटे-छोटे लाभ हैं, वे उन्हें भीतर से किस तरह खोखला करते जा रहे हैं. किस तरह ऐसे लोग महिलाओं के चरित्र को क्षीण करते जाते हैं और उन्हें अपनी उंगलियों पर नचाने लगते हैं.
शुरू में इन्हें लगता है क्या फ़र्क़ पड़ता है, अगर साहब की टेबल पर थोड़ा झुक कर बैठ गए.. क्या हुआ जो उनके पीसी पर फाइल और फोल्डर ढूंढ़ने के बहाने अपनी ख़ुशबू को थोड़ा सा आसपास बिखेर दिया.. क्या हुआ जो ऑफिस में आज थोड़ा ज़्यादा हंसी-मज़ाक और डबल मिनिंग प्रयोग हुआ.. आफ्टर आल वो हमारे बॉस हैं, उन्हें नाराज़ तो नहीं कर सकते.. और इस तरह कॉम्प्रोमाइज का यह सिलसिला यहां तक बढ़ जाता है कि अनजाने ही वह स्त्री के व्यक्तिगत जीवन में मुश्किलें खड़ी करने लगाता है. किसी भी कामकाजी महिला की ये मुश्किलें बा मुश्किल किसी और को समझ आती हैं, लेकिन तब तक यह आराम, सुविधा और ईज़ी प्रमोशन का ज़हर चरित्र में कुछ इस तरह उतर चुका होता है कि उसके लिए इस नशे से बाहर आना मुश्किल होता है.
ये जो गोयल साहब टाइप के ऑफिसर होते हैं, बड़े ही घृणित और गिरे हुए होते हैं. ऐसे लोग स्त्री को हथियार बनाकर अपना फ़ायदा उठाते चले जाते हैं और एक दिन अपना काम निकाल कर इन्हें मंझधार में छोड़ देते हैं. आज श्रुति मैडम अपनी जूनियर और नई स्टाफ सरिता  को यही टूल प्रयोग करना तो सीखा रही थीं.
गोयल साहब के जाने के बाद जो नए साहब आए थे, उन्होंने आते ही ऑफिस का कल्चर बदल दिया था. रमेश सर को यह दरबार पसंद नहीं था. उन्हें फैशन परेड से नहीं, काम से मतलब था और उनके आते ही पूरा कुनबा सहम गया था, ख़ासकर सो काल्ड गमले के फूल सरीखे स्टाफ, जिसे मेहनत करने और अपने क्लायंट को झेलने की आदत ही नहीं है. जिन्होंने बस झूला झूलते हुए सिवाय सुविधाओं का फ़ायदा उठाने के कुछ किया ही नहीं था.
इस बार बहुत दिनों बाद इस विभाग में प्रमोशन ड्राप हुई थी वह भी ऐसे स्टाफ की, जिन्हें गोयल साहब पलकों पर बिठाकर रखते थे, श्रुति मैडम भी उनमें से एक थीं कि जिन्हें काम धाम से कोई मतलब नहीं था. जिन्हें गोयल साहब ने गमले का फूल बनाकर रखा था, वक़्त बेवक़्त सजाने के लिए.

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आज जब एक ऑफिशियल काम के सिलसिले में मेहताजी ने सवाल-जवाब कर दिया था, तो मैडम श्रुति भड़क गई थीं. वे प्रमोशन ड्राप होने का अपना फ़्रशटेशन संभालने में नाकाम रही थीं और अपने फेमिनिन होने को पब्लिकली एक टूल की तरह प्रयोग करने से नहीं चूकी थीं. हां, इसके लिए उन्होंने अपनी जूनियर सरिता के   कंधे का  इस्तेमाल किया था.
ख़ैर मेहताजी के लिए बड़ा दुख यह था कि श्रुतिजी ने अपने फ्रस्टेशन  को निकालने के लिए अपनी नई जूनियर स्टाफ सरिता को टूल बनाया था. उससे सिम्पैथी दिखाते हुए उसके फेवर में मेहताजी से लड़ने आ गई थी.
मेहताजी जानते थे कि कोई स्त्री अगर बहस में ख़ुद के स्त्री होने को हथियार की तरह प्रयोग करें, तो शांत रहना ही बेहतर है. हां, उन्हें दुख था तो यह कि आज गोयल साहब जैसा कोई पुरुष किसी स्त्री को हथियार न बनाकर एक स्त्री ही दूसरी स्त्री को हथियार बना रही थी. उसे अपने फेमिनिन होने को कैसे प्रयोग करना है यह बता रही थी.

मुरली मनोहर श्रीवास्तव


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Photo Courtesy: Freepik

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