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कहानी- नेमप्लेट (Short Story- Nameplate)

“तुमसे मिलने आता ही कौन है? तुम्हारी जितनी भी सहेलियां हैं, वो सब मुझे जानती हैं. बाकी जो लोग तुम्हें जानते हैं, वो तुम्हें मिसेज़ नमन शर्मा के नाम से जानते हैं. और वैसे भी, तुमसे ज़्यादा मिलनेवाले अमन के आते हैं. मैं सोचता हूं मुझे अमन के नाम का नेमप्लेट लगवा लेना चाहिए...” Kahani कितनी देर से कॉलबेल बज रही थी. आरोही अंदर बाथरूम में थी. दौड़कर उसने दरवाज़ा खोला. पोस्टमैन खड़ा था बाहर. “आरोही शर्मा का घर यही है?” उसने पूछा. “जी हां, यही है. मैं ही आरोही हूं.” “अच्छा-अच्छा, नमन शर्मा का नेमप्लेट देखा था बाहर. आप उनकी मिसेज़ होंगी. अगली बार से भेजनेवाले को बोलना पते में नमनजी का नाम अवश्य लिखें. ढूंढ़ने में परेशानी होती है. अब सब उन्हीं को जानते हैं न.” आज फिर आरोही को काम करते-करते देर हो गई थी. कितना भी जल्दी करो, काम बारह बजे के पहले ख़त्म ही नहीं होता. अभी थोड़ी देर में अमन स्कूल से आ जाएगा. फिर उसे वक़्त मिल ही नहीं पाएगा, अपनी कहानी पूरी करने का. नमन और आरोही की शादी को पांच साल हो गए थे. उनका चार साल का एक बेटा था ‘अमन’. नमन एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर थे. आरोही भी काफ़ी पढ़ी-लिखी थी, लेकिन बेटे और घर की ज़िम्मेदारियों की वजह से जॉब नहीं कर पा रही थी. कॉलेज के दिनों से ही उसे लिखना बहुत पसंद था. शादी के बाद जब भी समय मिलता, वो अपनी मन की उधेड़बुन को काग़ज़ पर उतार लेती. यह भी पढ़ेपति की ग़लत आदतों को यूं छुड़ाएं (Make Your Husband Quit His Bad Habits) “मैडम-मैडम.” पोस्टमैन की आवाज़ से आरोही अपनी सोच से बाहर आई. “मैडम, ख़त पर साहब का नाम होता, तो पूछना नहीं पड़ता न! नेमप्लेट देखकर पहचान लेता. अब बताइए कितने फ्लैटों में पूछना पड़ा तब कहीं...” “थैंक्यू भइया, आगे से ध्यान रखूंगी.” कहकर आरोही ने चिट्ठी लेकर दरवाज़ा बंद कर लिया. सोच रही थी आज नमन आएंगे, तो बात करेगी नेमप्लेट के लिए.शाम को नमन ऑफिस से आते ही अमन के साथ खेलने लग गए. रात का खाना निपटाकर, अमन के सो जाने के बाद आरोही ने बात शुरू की. “नमन, मैं सोच रही थी बाहर मेरे नाम का भी नेम-प्लेट लगवा लें तो... मेरे नाम से ख़त आए या कोई मुझसे मिलने आए, तो द़िक्क़त नहीं होगी. आज मां की चिट्ठी आई थी तो वो...” थोड़ी देर नमन उसे देखते रहे. फिर हंसने लगे. आरोही को समझ नहीं आ रहा था कि इसमें हंसने की क्या बात है? आरोही को अपनी तरफ़ सवालिया नज़रों से देखते देख नमन ने अपनी हंसी रोक दी और बोले, “सॉरी आरोही, पर तुम भी खाली बैठे-बैठे क्या सोचती रहती हो? तुमसे मिलने आता ही कौन है? तुम्हारी जितनी भी सहेलियां हैं, वो सब मुझे जानती हैं. बाकी जो लोग तुम्हें जानते हैं, वो तुम्हें मिसेज़ नमन शर्मा के नाम से जानते हैं. और वैसे भी, तुमसे ज़्यादा मिलनेवाले अमन के आते हैं. मैं सोचता हूं मुझे अमन के नाम का नेमप्लेट लगवा लेना चाहिए. चलो अब सो जाओ जानू और मुझे भी सोने दो. बहुत रात हो चुकी है.” बात चुभनेवाली ज़रूर थी, पर सच थी और ये आरोही भी जानती थी. देखते-देखते दो साल बीत गए. इन दो सालों में काफ़ी कुछ बदल गया था. नहीं बदली थी, तो आरोही की दिनचर्या. हां, अब उसने घर का काम करने के लिए एक कामवाली लगा ली थी. जो समय बचता, उसमें वह एक कहानी लिखने लगी थी. आज उसकी कहानी पूरी हो चुकी थी. यह भी पढ़ेसेल्फी की लत से कैसे बचें? (Side Effects Of Selfie Addiction) समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे? नमन को बताने का मन नहीं था. नमन क्या, उसे ख़ुद अपने ऊपर भरोसा नहीं था. उसने सोचा, छोड़ो ऐसे ही रहने देते हैं. दोपहर में एक पत्रिका के पन्ने पलटते हुए उसने देखा ‘कहानी प्रतियोगिता’. प्रथम स्थान पाने वाले को 50 हज़ार नक़द इनाम मिलनेवाला था. नाम मिलता सो अलग. जीतनेवाले का साक्षात्कार भी उसी पत्रिका में छपनेवाला था. यही नहीं, जीतनेवाले को एक उपन्यास भी लिखने का मौक़ा दिया जाएगा. आरोही जानती थी कि उसकी कहानी कुछ ख़ास नहीं थी. फिर भी, उसने उस कहानी को दो साल दिए थे. अचानक फोन की घंटी बजी. पापा थे फोन पर. उसने इस कहानी के बारे में स़िर्फ उन्हीं को बताया था. “बेटा एक बार कोशिश तो करो. कोशिश किए बिना हार जाना तो ग़लत है. उससे अच्छा तो कोशिश करके हारना है. इससे कम से कम ये तसल्ली तो रहती है कि मैंने कोशिश की. और क्या पता अगली कोशिश क़ामयाब ही हो जाए.” आख़िर उसने कहानी पोस्ट कर दी. उस बात को पांच महीने बीत गए थे. आरोही भूल भी चुकी थी कि उसने कोई कहानी भी भेजी थी या फिर भूलने की कोशिश में लगी थी. रविवार का दिन था. नमन और अमन घर पर ही थे. फोन की घंटी बजी, तो नमन ने फोन उठाया. कोई ज़रूरी बात थी, तभी काफ़ी देर तक फोन पर बात करते रहे. अगले दिन, सुबह जब आरोही उठी, तो घर एकदम शांत था. नमन और अमन दोनों ही बिस्तर पर नहीं थे. जैसे ही उठकर ड्रॉइंगरूम में आई, तभी ज़ोरदार शोर से उसका स्वागत हुआ. उसका घर उसके दोस्तों से भरा हुआ था. सब उसे बधाई दे रहे थे. आज आरोही का जन्मदिन था. नमन सबको बड़े गर्व से बता रहे थे कि आरोही की कहानी को प्रथम पुरस्कार मिला है. संपादक कह रहे थे कि कई प्रकाशक कंपनियां चाहती हैं कि वो उनके लिए उपन्यास लिखे, लेकिन आरोही का पहला उपन्यास तो वो ही...” आरोही सब को धन्यवाद दे रही थी. पापा-मम्मी, सास-ससुर, भाई-भाभी सबके फोन आ रहे थे. सबके जाने के बाद आरोही नमन की बांहों में समा गई. “मुझे कल ही पता चल गया था. मुझे माफ़ करना, मैंने तुम्हें नहीं बताया. मैं तुम्हें आज के दिन बताना चाहता था. तुम्हारे गिफ्ट के साथ.” नमन बोले. यह भी पढ़ेलघु उद्योग- पोटैटो वेफर मेकिंग क्रंची बिज़नेस (Small Scale Industries- Start Your Own Potato Wafer-Making Business)   “गिफ्ट, लेकिन नमन आप मुझे बाहर क्यों ले जा रहे हैं?” आरोही ने पूछा. “मम्मा आओ न प्लीज़.” अमन अपनी मीठी-सी आवाज़ में बोला. नमन ने आरोही की आंखें बंद कीं और बाहर दरवाज़े के पास आकर खोल दीं. आरोही ने देखा, नमन शर्मा के नेमप्लेट के बिल्कुल पास एक सुंदर-सा गोल्डन फ्रेमवाला नेमप्लेट लगा हुआ था. उस नेमप्लेट पर लिखा था- आरोही शर्मा (लेखिका). इसे देख आरोही की आंखें नम हो गईं. जन्मदिन का यह अनोखा तोहफ़ा उसके लिए यादगार बन गया.

- पल्लवी

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