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कहानी- सुलझा हुआ आदमी (Short Story- Suljha Hua Aadmi)

“मैं अपनी फीलिंग्स को किसी के साथ शेयर करने को तरस जाती हूं. ऐसा बोरिंग इंसान पल्ले बंधा है कि मेरी ग़ज़ल, कविता व कहानियों की बातें उसके सिर के ऊपर से गुज़र जाती हैं. पता है, शुरू में एक बार मैंने उससे निदा फ़ाज़ली और अमीर कज़लबाश के बारे में पूछा कि इनमें से तुम्हें कौन ज़्यादा पसंद है? पहले तो वह मुझे मुंह बाए देखता रहा, फिर अपनी नासमझी पर पर्दा डालते हुए बोला कि मुझे तो तुम और स़िर्फ तुम पसंद हो...” Hindi Kahaniya यदि कोई मुझसे गुलमोहर के पेड़ और उसके फूलों के बारे में बातें करे, तो मैं भी उस पर बातें कर सकता हूं कि यह एक अच्छा, घना और छायादार पेड़ है, गर्मियों में खिलनेवाले इसके सुर्ख लाल और नारंगी फूल बड़े ख़ूबसूरत लगते हैं. तेज़ धूप में इसकी हरी-भरी पत्तियां आंखों को बड़ी भली लगती हैं... बस, इन्हीं दो-तीन वाक्यों को मैं चाहे जितनी बार दोहराऊं, लेकिन इससे ज़्यादा मैं इस विषय पर कुछ नहीं बोल पाऊंगा. पर मुझे ताज्जुब तब होता है, जब आभा और विशाल घंटों इस विषय पर जाने कितनी बातें कर जाते हैं. गुलमोहर से जुड़ी शेर-ओ-शायरी, उसके फूलों को देखकर कैसा महसूस होता है, किसी कवि और शायर ने उस पर क्या-क्या लिखा है वगैरह-वगैरह. यह तो एक मिसाल भर है. ऐसे सैकड़ों विषय होते हैं, जिन पर मेरे जैसा नीरस और आभा के शब्दों में अनरोमांटिक, बोरिंग आदमी कोई प्रतिक्रिया भी ज़ाहिर नहीं कर सकता, जबकि उस पर ये दोनों घंटों बहस करते हैं. इस बीच बच्चे शाम को दूध-नाश्ते के लिए कई बार किचन में झांक चुके होते हैं. दो-तीन बार अपनी मम्मी के आसपास से भी गुज़रते हैं, लेकिन आभा को इससे कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता. वह विशाल के साथ अपनी बतकहियों की उस आसमानी उड़ान पर होती, जहां उसके लिए घर-गृहस्थी, पति-बच्चे सब बौने साबित होते. वैसे भी वह अक्सर मेरी गृहस्थी में अपनी उपस्थिति ‘लिलीपुट्स के देश में गुलीवर’ की तरह ही दर्ज़ कराती. अपनी मम्मी की महानता से अनभिज्ञ बच्चे भूख से बेहाल हो मेरे पास आते. “भूख लगी है पापा. ये अंकल कब जाएंगे? ममा को तो हमारी फ़िक़्र ही नहीं है.” बारह वर्षीया तनु की आंखों में चिढ़ और आक्रोश का धधकता लावा मेरे अंदर के बंद पड़े ज्वालामुखी को मुंह चिढ़ाने लगता. एक बार ऐसे ही खीझकर तनु ने आभा से कहा था, “मम्मी, आप इन अंकल को आने से मना क्यों नहीं कर देतीं? जब देखो तब चले आते हैं.” तब आभा आगबबूला हो उठी थी. “क्यों? तुम्हें क्या तकलीफ़ हो रही है? इतने सालों तक दमघोंटू माहौल में रहने के बाद एक मुट्ठी आसमान मिला है और वह भी तुम बाप-बेटी से बर्दाश्त नहीं हो रहा है.” जैसे इसमें मेरी ही कोई साजिश हो, पर मेरे जैसा सुलझा हुआ आदमी ऐसी जुर्रत कर भी कैसे सकता था? वाकई इंसान यदि एक बार अपनी इमेज बना ले और दूसरों की आंखों में अपनी उस पुख़्ता इमेज की प्रशंसा देख ले, तो फिर ज़िंदगीभर अपनी उस छवि की लाश अपने कंधों पर ढोने के लिए मजबूर हो जाता है. यूं देखा जाए तो आभा का इरादा स़िर्फ मुझे आहत करने का था, बेटी तो बस बहाना थी. लेकिन उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार से तनु का चेहरा तमतमा गया था और वह आंखों में आंसू लिए अपने होंठ भींचती अपने कमरे में चली गई. मैंने भी अपनी मुट्ठियां कसी पाईं. भूख से बेहाल बच्चों के लिए फिर मैं ही उठकर कभी मैगी बनाता, ब्रेड सेंकता, दूध गरम करता. रसोई में खटर-पटर मैं ज़रूरत से ज़्यादा ही करता. बच्चे भी भूख के कारण शोर-शराबा करते. लेकिन बगल के ड्रॉइंगरूम में बतियाती आभा के कानों में लगता विशाल की आवाज़ के अलावा दुनिया की सारी आवाज़ों की नो एंट्री रहती. चाय-कॉफी का शौक़ विशाल को नहीं है, स़िर्फ सिगरेट और रात की शराब ही बहुत है उसके लिए. ड्रॉइंगरूम में फैली सिगरेट की गंध उसके जाने के घंटों बाद तक इधर-उधर भटकती रहती. शादी के बाद शुरुआती दिनों में मैं भी कभी-कभी शौक़िया सिगरेट पी लिया करता था. लेकिन आभा को उसकी बू से मितली आने लगती, सो मैंने सिगरेट पीना ही छोड़ दिया. मैं उसके लिए कुछ भी कर सकता हूं. पर अब वह कहती है कि सिगरेट पीनेवाले पुरुष कितने डैशिंग लगते हैं. वह शायर ही क्या, जो शराब न पीए. यह भी पढ़े: कैसे जीतें पति का दिल? (How To Win Your Husband’s Heart?) हैरानी होती है केमिस्ट्री जैसे नीरस सब्जेक्ट का लेक्चरर होकर विशाल कैसे फूल, पौधे, गीत-ग़ज़ल, भावनाओं से भरी बातें कर लेता है. मैं भी तो केमिस्ट्री पढ़ाता हूं, पर फूलों की ख़ुशबुओं की जगह लैब के तीखे केमिकल्स की कसैली गंध ही मुझ पर हावी रहती. आभा अक्सर मेरी पकड़ से छिटककर दूर चली जाती थी. “तुम स्वभाव से तो एकदम अनरोमांटिक हो ही, तुम्हारी बॉडी से भी किसी केमिकल फैक्ट्री की तरह ही गैस लीक करती रहती है.” मैं शर्म से पानी-पानी हो जाता. नहा-धोकर, पऱफ़्यूम और पाउडर से लैस होकर ही मैं बिस्तर पर जाता था. यूनिवर्सिटी का टॉपर, एक परिपक्व और सॉफ़िस्टिकेटेड इंसान पत्नी के इस तरह के कमेंट पर हीनभावना से ग्रस्त हो जाता. ख़ूबसूरत और छुईमुई-सी नाज़ुक पत्नी के इस तरह के व्यवहार से ज़िंदगी में जाने कितनी बार आहत और अपमानित भी हुआ मैं. कभी शिकायत करने पर वह मुंह बिचकाकर कहती, “तुम्हें कुछ महसूस भी होता है रवि?” शायद संवेदनाओं की सारी जड़ी-बूटियों को उसने ही पेटेंट करवा लिया है. मानो ‘महसूस करना’ पर स़िर्फ उसी की मोनोपोली है. कभी अपनी बचपन की सहेलियों से बतियाती, “मैं अपनी फीलिंग्स को किसी के साथ शेयर करने को तरस जाती हूं. ऐसा बोरिंग इंसान पल्ले बंधा है कि मेरी ग़ज़ल, कविता व कहानियों की बातें उसके सिर के ऊपर से गुज़र जाती हैं. पता है, शुरू में एक बार मैंने उससे निदा फ़ाज़ली और अमीर कज़लबाश के बारे में पूछा कि इनमें से तुम्हें कौन ज़्यादा पसंद है? पहले तो वह मुझे मुंह बाए देखता रहा, फिर अपनी नासमझी पर पर्दा डालते हुए बोला कि मुझे तो तुम और स़िर्फ तुम पसंद हो... “हां, पता है कि वह मुझे बहुत प्यार करता है. लेकिन इससे मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. मेरे लिए तो ज़्यादा इंपॉर्टेंट यह है कि मैं उसे प्यार कर पाती... “वो तो ठीक है, हज़ारों की शादीशुदा ज़िंदगी ऐसे ही चलती है, बिना प्यार के, एक-दूसरे को ईमानदारी से झेलते हुए, शहीद होते. मेरी ज़िंदगी भी बस ऐसे ही बीत जाएगी...” और वह लंबी आह भरकर फ़ोन रख देती. मैं यह नहीं कहता कि वह ये सारी बातें तब ज़ोर-ज़ोर से बोलती है, जब मैं बगल के कमरे में रहता हूं. पर मैं तो यह सोचता हूं कि जब वह मेरे सामने इतना कुछ कहती है, तो मेरे पीठ पीछे न जाने क्या-क्या कहती होगी. वैसे उसके मायकेवालों ने हमेशा मेरी तारीफ़ की है और यह भी जताया कि आभा मेरे साथ बहुत सुखी और संतुष्ट है. फिर भी जैसी है, वह मेरी है और मेरे पास है. मेरे प्यारे बच्चों की मां है. घर को प्यार से सजाती-संवारती, बच्चों को ख़ूब प्यार करती, खाली समय में कविताएं लिखती-पढ़ती मेरी प्यारी आभा. लेकिन विशाल के आते ही वह किसी दूसरी दुनिया में पहुंच जाती. पांच साल पहले जब केमिस्ट्री डिपार्टमेंट में विशाल की नियुक्ति हुई, तो मुझसे जूनियर होने के नाते वह ‘सर-सर’ कहकर मेरे आगे-पीछे लगा रहता. दुबला-पतला, मासूम-सा विशाल, 27-28 की उम्र का होने के बावजूद कम उम्र का लगता था. बी.एससी. के स्टूडेंट्स उसे घास नहीं डालते, तो रुआंसा होकर मेरे पास आता, “सर, इन लड़कों को समझाइए न. ये मेरे साथ बदतमीज़ी करते हैं.” वह एजुकेशन मिनिस्टर का भांजा था, इसलिए उससे ज़्यादा क़ाबिल लोगों को पीछे धकेलकर उसे अपॉइंट किया गया था. स्टूडेंट्स कहां चूकनेवाले थे. लेकिन लड़कों के दर्द की वजह एक और भी थी. क्लास की लड़कियों का झुकाव तेज़ी से उसकी तरफ़ बढ़ रहा था, जो उन्हें कतई गवारा न था. जब वह पहली बार अपनी पत्नी के साथ घर आया था, तो उसके जाने के बाद आभा देर तक पानी पी-पीकर अपने नसीब को कोसती रही, “कितनी सुंदर जोड़ी है, कितना प्यार है दोनों में...” से शुरू होकर “कितनी लकी है जया, जो उसे विशाल जैसा रोमांटिक, ख़ुशमिजाज़ पति मिला है...” पर आकर अटक गई. उसे कैसा पति मिला है, यह तो वह जानती ही थी. शुरू में दोनों साथ आते थे. वह ‘सर-सर’ कहकर मेरे पास बना रहता. पत्नी को आभा अपने पास बिठाए रखती. फिर पता नहीं कब वह मुझे छोड़ आभा की तरफ़ मुख़ातिब हो गया. धीरे-धीरे पत्नी को भी साथ लाना बंद कर दिया या उसने ही आने से मना कर दिया. कोई तुक भी तो नहीं कि हर दूसरे-तीसरे दिन मुंह उठाकर बिन बुलाए किसी के घर धरना दिया जाए. लेकिन विशाल को शायद आभा का मौन निमंत्रण मिल चुका था. फिर उसमें बीवी या काज़ी किसी का क्या दख़ल? यह भी पढ़े: लघु उद्योग- जानें सोप मेकिंग बिज़नेस की एबीसी… (Small Scale Industry- Learn The Basics Of Soap Making) घर में प्रवेश करते ही सोफे पर बैठने से पहले वह बड़े अदब और नज़ाकत के साथ एक शेर सुनाता. आभा वाह-वाह करके बैठने का इशारा करती, तो लखनवी अंदाज़ में आदाब करता हुआ तड़ से शेर शुरू कर देता. उसके हर शेर पर आभा झूम उठती. “पता है विशाल, जब मैं क्लास टेंथ में थी, तो यह मेरे फेवरेट शायर हुआ करते थे.” फिर वह कोई दूसरी ग़ज़ल छेड़ देता. “पता है विशाल, जब मैं ट्वेल्थ में थी, तो इस शायर की दीवानी थी.” पहले वह मुझसे इज़ाज़त लेकर सिगरेट पिया करता था. पर अब उसे मेरे वहां होने, न होने से कोई मतलब ही न रहा, फिर वह इज़ाज़त किससे और क्यों ले? सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुए वह कभी शैली का प्रेम-प्रसंग छेड़ बैठता, तो कभी कीट्स का. कभी सीमोन द बोउआर और ज्यां पॉल सार्त्र के प्लेटोनिक लव से अभिभूत होकर ‘लव इज़ इंपॉसिबल’ की व्याख्या करता, तो कभी ‘किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता’ का रोना रोता. इधर उसने फ्रेंच कट दाढ़ी रखनी शुरू कर दी थी. चश्मे के मोटे फ्रेम के पीछे से झांकती भावपूर्ण आंखें, होंठों के बीच दबी सिगरेट इंटलेक्चुअल लुक देने के लिए काफ़ी होते हैं. चार-पांच सालों में उसने यूनिवर्सिटी में भी अच्छा रंग जमा लिया था, ख़ासकर लड़कियों पर. इन दिनों उसका घर आना भी धीरे-धीरे कम हो रहा था. आभा फ़ोन पर फ़ोन करती. “क्या बात है विशाल? मैं कई दिनों से तुम्हारी राह देख रही हूं. तुम आए ही नहीं... ओह! बिज़ी विदाउट बिज़नेस. तुम जैसे निट्ठलों को क्या काम? फ़ौरन घर आओ. मैंने एक नई क़िताब ख़रीदी है, उसी पर तुमसे बात करनी है...” फिर भी वह कई दिनों बाद आता और काफ़ी झुंझलाया हुआ. आभा की कोई अदा अब उसे बांध नहीं पा रही थी. इधर यूनिवर्सिटी में भी उसके कई क़िस्से मशहूर होने लगे थे. किसी स्टूडेंट के भाइयों के हाथों पिटाई भी हो चुकी थी उसकी. फिर भी आए दिन किसी न किसी स्टूडेंट के साथ उसका नाम कैंपस में उछलता रहता था. आभा के कानों तक भी ये क़िस्से पहुंचते रहते. उसे अपना तिलस्म टूटता-सा जान पड़ता. तीसरे पहर यूनिवर्सिटी से लौटा, तो देखा आभा बेड पर औंधे मुंह पड़ी है. आवाज़ देने पर भी नहीं बोली. बच्चे अपने कमरे में थे. “क्या बात है तनु, आज तुम्हारी मम्मी की तबीयत ख़राब है क्या?” “हां, शायद उनका मूड बहुत ख़राब है.” “क्यों? क्या बात हो गई?” “पापा, आज सुबह जया आंटी अपनी बेबी के साथ आई थीं. उनके हाथ में प्लास्टर और सिर पर भी पट्टी बंधी थी. वे बहुत रो रही थीं. विशाल अंकल ड्रिंक करने के बाद उन्हें बहुत मारते हैं. दो दिन पहले उन्हें सीढ़ियों से धक्का दे दिया था... पापा, विशाल अंकल बहुत गंदे हैं, वे जया आंटी को बहुत टॉर्चर करते हैं. आज आंटी अपनी मम्मी के घर जा रही हैं. अब वे कभी नहीं लौटेंगी. जाने से पहले मम्मी से मिलने आई थीं. मम्मी उनसे कह रही थीं कि अब वे अंकल को कभी घर में घुसने भी नहीं देंगी.” तनु के चेहरे पर एक सुकून और इत्मीनान की छाया स्पष्ट दिख रही थी. लेकिन उस बेचारी को मम्मी के मूड ऑफ़ होने की असली वजह कहां मालूम?   Geeta Singh        गीता सिह

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