Close

कहानी- वसंत बीत जाने के बाद… (Short Story- Vasant Beet Jane Ke Baad…)

“मैं वसंत की तरह तुम्हारे जीवन में रंग-बिरंगे फूल भले ही ना खिला पाऊं, लेकिन सावन बन कर थोड़ी हरियाली की सुकून भरी ठंडक तुम्हारे तपते मन को दे पाऊं, थोड़ी छांव तुमसे पा लूं… क्या यह अधिकार दोगी मुझे तुम, बोलो मधुरा?” प्रियांशु की आवाज़ में एक दर्द भरा आग्रह था. आंखों में एक प्यार भरी विनती थी.

प्रियांशु ने जैसे ही स्टाफ रूम में कदम रखा, उसकी नज़र मधुरा पर गई, जो टेबल पर झुकी कोई किताब पढ़ रही थी. वह किताब पढ़ने में इतना डूबी हुई थी कि उसे प्रियांशु के आने का पता ही नहीं चला. प्रियांशु ने देखा है कि मधुरा वैसे भी बहुत कम बोलती थी. बहुत ज़रूरी होता है तभी बात करती है. लेकिन ऐसा भी क्या कि कलीग्स का अभिवादन भी ना करे.
“गुड मॉर्निंग, मधुराजी.” प्रियांशु ने ही आगे रहकर पहल की.
“गुड मॉर्निंग.” एक संक्षिप्त उत्तर देकर वह फिर किताब पर झुक गई.
प्रियांशु को थोड़ा बुरा लगा मधुरा का यह रूखापन, लेकिन तब भी बातों का सिलसिला आगे बढ़ाने के लिए वह बोला, “आज तो लगातार चार पीरियड हैं, उसके बाद प्रैक्टिकल करवाना है. आपकी क्लास कब से है?”
“जी मेरा फर्स्ट पीरियड फ्री है. उसके बाद तीन क्लासेस, फिर प्रैक्टिकल.” मधुरा ने बताया.
“किस क्लास को प्रैक्टिकल करवाना है आज आपको?” प्रियांशु ने अगला सवाल कर दिया.
“सेकंड ईयर सेक्शन बी को.” मधुरा ने संक्षिप्त उत्तर दिया.
“तब तो आपकी डयूटी मेरे साथ है आज. मिलते हैं क्लास के बाद लैब में.” कहते हुए प्रियांशु अटेंडेंस रजिस्टर लेकर क्लास में चला गया.
हर पीरियड के बाद वह दूसरी क्लास का अटेंडेंस रजिस्टर लेने आता, तो स्टाफ रूम में अन्य शिक्षकों के साथ ही मधुरा भी टकरा जाती, मगर वैसी ही उदासीन अपने में खोई हुई.
12 बजे लंच ब्रेक में सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं स्टाफ रूम में इकट्ठा हुए, तो सबकी बातों की आवाज़ से स्टाफ रूम गुलज़ार हो गया. सब साथ लाया हुआ लंच खाने लगे. प्रियांशु ने कैंटीन से दो समोसे मंगवाए.
“फैमिली को बुला लो अब तो, कब तक समोसे का लंच करते रहोगे. अब तो मकान भी मिल गया है तुम्हें.” प्रोफेसर तिवारी ने कहा.
“जी…” प्रियांशु बस मुस्कुरा दिया. 15 दिन ही हुए थे उसे ट्रांसफर होकर इस शहर में, यह कॉलेज ज्वाइन करके. पहले आठ दिन तो वह यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में ही रहा, मगर अब उसे ख़ुद का मकान मिल गया था और वह छुट्टी वाले दिन इंदौर से अपना सामान भी ले आया था.
“कौन-कौन है परिवार में?” प्रोफेसर कनकलता ने पूछा.
“जी माता-पिता और छोटा भाई हैं.” प्रियांशु ने बताया.
“शादी नहीं हुई?” यह सवाल प्रोफेसर वर्मा का था.
इससे पहले कि प्रियांशु कुछ उत्तर देता, बेल बज गई. वह और मधुरा उठ खड़े हुए, उन्हें सेकंड ईयर को प्रैक्टिकल करवाना था. आज पहली बार वह मधुरा के साथ प्रैक्टिकल करवा रहा था. उन्हें पाइनस के कोन्स के बारे में बताना था और पाइनस नीडल (पत्ती) के बारे में पढ़ाकर उसकी स्लाइड बनानी थी.


यह भी पढ़ें: शादी से पहले होनेवाले पति को ही नहीं बाकी रिश्तों को भी परखें और बनाएं बेस्ट बॉन्डिंग (Best Ways To Build Your Bond And Relationship With Your Future In-Laws And Would Be Husband)

हमेशा चुप रहने वाली मधुरा लैब में एकदम सक्रिय थी. 15 दिनों में प्रियांशु ने उसे पहली बार मुस्कुराते और इतना बोलते हुए सुना था. अपनी छात्राओं के साथ वह बिल्कुल सहज लग रही थी. मधुरा ने उन्हें पाइनस वृक्ष (चीड़) की पत्ती की जानकारी दी और फिर उनसे टेंपरेरी स्लाइड बनवाई.
प्रियांशु देख रहा था अपने विषय को लेकर उसमें कितना आत्मविश्‍वास था. अभी जैसे वह कोई दूसरी ही मधुरा हो गई थी. छात्राएं भी उससे बहुत हिली हुई थीं. इसके बाद प्रियांशु ने उन्हें कोन्स की स्लाइड दिखाईं, उनकी बनाई हुई स्लाइड देखी. दो घंटे कब बीत गए, पता ही नहीं चला. मधुरा ने अटेंडेंस रजिस्टर उठाया और स्टाफ रूम में आ गई. कॉलेज के बॉटनी डिपार्टमेंट में कुल छह शिक्षक थे विभागाध्यक्ष मैडम को मिलाकर. मधुरा और प्रियांशु सहायक प्राध्यापक थे. शेष सभी वरिष्ठ थे.
तीन बजे एम. एससी. की छात्राओं के प्रैक्टिकल भी हो गए. साइंस फील्ड की छुट्टी हो गई. सभी स्टाफ रूम में ताला लगाकर निकल गए. प्रियांशु का घर 15 मिनट की दूरी पर ही था. वह साढ़े तीन बजे घर पहुंच गया. अब एक लंबा अकेला दिन उसके सामने था. आते ही उसने टीवी ऑन कर दिया. अब आभासी ही सही, कुछ चेहरे और आवाज़ें, तो ड्रॉइंगरूम में गूंजती रहेंगी.
कपड़े बदल कर उसने अपने लिए चाय बनाई और टीवी के सामने बैठ गया. जब तक वह कॉलेज में रहता है, तब तक अपने दर्द को भूला रहता है. वह दर्द जिससे भागकर वह इंदौर के कॉलेज से ट्रांसफर लेकर भोपाल चला आया था. लेकिन दर्द से भी क्या कभी कोई भाग पाया है? वह तो भीतर ही रहता है, यहां भी साथ चला आया. बस लोगों की सहानुभूति से भरी नज़रें यहां नहीं हैं. लेकिन कब तक, जल्दी ही यहां भी लोग उसके परिवार के बारे में पूछना शुरू कर देंगे और उसकी कहानी के बारे में जानकर यहां भी वह सबकी नज़रों में सहानुभूति का पात्र बन जाएगा.
प्रियांशु ने चाय का खाली कप टेबल पर रख दिया और टीवी में ध्यान लगाने लगा. उसे मधुरा की याद आ गई. ना जाने क्यों जब भी वह मधुरा को देखता है, उसे महसूस होता है कि जैसे उसकी ख़ामोशी के पीछे भी एक दर्द भरी चीख है. पीड़ा का हाहाकार है. वह भीतर की दर्द भरी अशांति और शोर को भीतर ही दबा कर ऊपर से शांत बनी रहती है. विवाहिता के कोई चिह्न नज़र नहीं आते, लेकिन उम्र में भी छोटी नहीं है, 30-32 साल की तो लगती है. तो क्या अब तक शादी नहीं हुई? क्या वजह है, क्या दर्द है उसके जीवन में?
अगले दो महीने में कई बार बी.एससी और एम.एससी के प्रैक्टिकल उसने मधुरा के साथ करवाए. उसकी कर्तव्यनिष्ठा, विषय का प्रगाढ़ ज्ञान और पढ़ाने के प्रति लगन व समर्पण देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ. यही नहीं वह एक अच्छी इंसान भी थी, जो सदा सबकी मदद करने के लिए तत्पर रहती.
जाने कब प्रियांशु के मन में उसके लिए एक ख़ास जगह बन गई. ख़ासकर तब से जब कई दिनों तक प्रियांशु को कैंटीन के समोसे, इडली-सांबर लंच में खाते देखकर वह एक दिन उसके लिए भी सब्ज़ी-परांठे ले आई और उसके बाद रोज़ ही लाने लगी. प्रियांशु ने संकोच से भरकर उसे बहुत बार मना किया, लेकिन वह नहीं मानी.
“सुबह तो मेरे लिए मां बनाती ही है, दो परांठे आपके लिए भी सेंक दिए, तो क्या हुआ. कभी मैं खाना नहीं लाई, तो आप समोसे खिला देना.”
प्रियांशु निरुत्तर हो गया, लेकिन उसकी सहृदयता उसके मन को छू लेती. जाने कब उसके लिए मन में एक आत्मीय भावना जागने लगी थी. इस पराए शहर में एक वही अपनी सी लगती. जिस दिन वह कॉलेज नहीं आती, उस दिन जाने क्यों प्रियांशु को दिन खाली-खाली सा लगता. अनजाने में ही मधुरा उसके दर्द पर भी हावी होने लगी थी. प्रियांशु अपने दर्द से उबरना नहीं चाहता था. इस दर्द के साथ ही उसके जीवन की सबसे मीठी यादें भी जुड़ी हुई थी. कैसी अजीब बात है एक छोर पर असह्य पीड़ा थी उसके जीवन की, तो वहीं उसी छोर के दूसरे सिरे पर सबसे बड़ी ख़ुशी थी. लेकिन उसके अकेलेपन में दर्द के साथ ही मधुरा की सोच भी उसकी साथी बनती जा रही थी.  वह दर्द में डूबा होता, तब मधुरा का ख़्याल जैसे उसकी पीड़ा को सहला जाता और जब मधुरा के बारे में सोचता, अनायास दर्द टीसने लगता.


यह भी पढ़ें: अपने रिश्ते में यूं एड करें मसाला, रोमांच और रोमांस और बनाएं अपने स्लो रिश्ते को फास्ट… (Smart Ways To Spice Up Your Marriage To Speed Up A Relationship)

दिसंबर के अंत में अचानक ही एम.एससी प्रीवियस की छात्राओं को ब्रायोफाइट्स व जिम्नोस्पर्म की स्टडी के लिए पचमढ़ी ले जाने की बात निकली. तय हुआ स्टडी टूर जनवरी के प्रथम सप्ताह में ही ले जाया जाए, क्योंकि फरवरी में फाइनल प्रैक्टिकल होने थे. कनकलता तिवारी को ठंड सहन नहीं होती थी, तो उन्होंने टूर ले जाने को मना कर दिया. शैलजा मैडम पर घरेलू ज़िम्मेदारी थी. अब बची मधुरा, क्योंकि छात्राओं के साथ किसी महिला का जाना तो ज़रूरी था. पुरुषों में प्रियांशु और प्रोफेसर वर्मा का जाना तय हुआ.
टूर में मधुरा के साथ ने प्रियांशु को आल्हाद से भर दिया. अपने दर्द से अकेले ही जूझते हुए अब वह थक चुका था. जीवन जैसे एक लंबी तपती सड़क थी, जिस पर अब उसे किसी आत्मीय साथी के साथ की ठंडी छांव की दरकार थी. लेकिन उसे जरा भी पता नहीं था कि मधुरा की भावनाएं उसके प्रति क्या हैं. उसका व्यवहार इतना शालीन व संयमित था कि पास होकर भी वह दूर लगती. प्रैक्टिकल के समय वह सहज होकर विषय पर बात करती. चर्चा भी करती, लेकिन इसके अलावा व्यक्तिगत बातें करने का कभी मौक़ा ही नहीं मिलता.
अब शायद टूर के बहाने वह उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में जान सके या उसके मन को टटोल सके. जाने क्यों प्रियांशु को लगता था कि मधुरा उसके दर्द को समझ सकती है, उसे इस दर्द से उबार सकती है.
नियत तिथि पर मधुरा, प्रियांशु और प्रोफेसर वर्मा प्रीवियस की 25 छात्राओं को बस से पचमढ़ी ले गए. रास्ते में छात्राओं ने ख़ूब मस्ती की, अंताक्षरी खेली. मधुरा संयत थी, लेकिन मुस्कुरा रही थी. पचमढ़ी में सरकारी गेस्ट हाउस में कमरे बुक थे.
मधुरा के कमरे में तीन लड़कियां थीं, बाकी लड़कियां चार-चार के समूह में अन्य कमरों में ठहरीं. प्रियांशु और प्रोफेसर वर्मा एक कमरे में थे. गेस्ट हाउस के लॉन में ही जिम्नोस्पर्म समूह के बहुत से पेड़ लगे थे और उन्हीं की छाल पर और आसपास की नम ज़मीन पर ब्रायोफाइट्स उगे थे. लड़कियों ने आज तक जिन पौधों को स़िर्फ किताबों में छपे चित्रों में देखा था, उन्हें प्राकृतिक परिस्थिति में उगा हुआ देखकर वे उत्साहित हो गई थीं. वहां ठंड बहुत ज़्यादा थी, तो लॉन में गुनगुनी धूप में अच्छा लग रहा था. मधुरा वही जाकर उन्हें पौधों के बारे में पढ़ाती गई और लड़कियां नोट्स बनाती गईं. लंच के बाद प्रोफेसर वर्मा और प्रियांशु ने उन्हें पढ़ाया.
रात में लड़कियां कैंप फायर करके नाचने-गाने लगीं. एक अलाव के पास मधुरा, वर्माजी और प्रियांशु कुर्सियों पर बैठ गए, ताकि छात्राओं पर दृष्टि भी रहे और उनके मनोरंजन में बाधा भी ना पड़े. प्रियांशु और वर्माजी में औपचारिक बातें चलने लगीं. बातों ही बातों में प्रोफेसर वर्मा ने प्रियांशु से उसके परिवार और शादी के बारे में पूछ लिया. प्रियांशु पहले तो झिझक गया, फिर उसकी आंखों में नमी छलकने लगी. अपने भीतर का सारा साहस बटोर कर उसने बताया.
“पांच साल पहले शादी हुई थी मेरी. सपना को मैं बहुत चाहता था. बहुत ख़ुशहाल रिश्ता था हमारा और जल्दी ही हमारे प्यार की निशानी जन्म लेने वाली थी. परिवार में सभी आतुरता से राह देख रहे थे उसके आने की. तीन साल पहले की बात है यह. बस एक महीना बचा था संतान के जन्म में और एक दिन सपना का पैर फिसला और वह पेट के बल गिर गई. डॉक्टर न सपना को बचा पाए ना हमारी बेटी को. चली गई मेरी नन्हीं बेटी भी मां के साथ ही.” प्रियांशु के भीतर का दर्द आंखों से बह निकला.
मधुरा और वर्माजी सन्न रह गए. प्रियांशु के जीवन में किसी ऐसे दुख की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी. वर्माजी को बराबर अफ़सोस हो रहा था कि उन्होंने आख़िर यह पूछा ही क्यों? उन्होंने कई बार प्रियांशु से माफ़ी मांगी.
“यह तो भाग्य का खेल है सर, नियति पर किसका बस चलता है. यहीं आकर मनुष्य विवश हो जाता है. आप दुखी मत होइए.” प्रियांशु ने उन्हें कहा. अभी भी उसका स्वर भीगा हुआ था और आंखें नम थी.
मधुरा भी उसके दुख से स्तब्ध थी. थोड़ी देर बाद वर्माजी सोने चले गए. लड़कियां अभी बाहर थीं, इसलिए मधुरा और प्रियांशु वहीं बैठे रहे.
“बहुत दुख हुआ आपके बारे में सुनकर. ज़िंदगी भी कैसे-कैसे दर्द देती है. कितना मुश्किल होता है इस दर्द को लेकर जीना, समझ सकती हूं.” मधुरा के स्वर के कंपन में किसी दर्द के एहसास ने प्रियांशु को चौंका दिया. तो क्या वह भी किसी ऐसे ही दर्द से गुज़री है.
“बुरा ना मानें, तो कुछ पूछ सकता हूं?” प्रियांशु ने विनम्रता से कहा.
“जी पूछिए.” मधुरा के स्वर में आत्मीयता थी.
“जाने क्यों आपको देखकर ऐसा लगता है जैसे आप भी अपने भीतर किसी दर्द को लेकर जी रही हैं.” प्रियांशु ने कहा.


यह भी पढ़ें: जानें दिल की दिलचस्प बातें(Know Interesting Facts About Your Heart)

मधुरा एकदम से कोई उत्तर नहीं दे पाई, लेकिन एक अव्यक्त पीड़ा के चिह्न उसके चेहरे पर दिखाई देने लगे, जैसे वह संघर्ष कर रही हो अपने आपसे कि कहे या ना कहे. उसकी आंखों में नमी थी और माथे पर इस ठंड में भी पसीना आ रहा था. कुछ देर तक वह हाथों की उंगलियों को आपस में मरोड़ती रही. फिर उसने कहना शुरू किया, “मेरे जीवन में भी वसंत आया था, जब मन में प्रेम की कोमल कलियां मुस्काने लगी थीं. जीवन लता पर नन्हीं हरी कोपलें खिलने लगी थीं. हमारी आंखों में भविष्य के सपने सजने लगे थे. जीवन एक ऐसे हरे-भरे बाग जैसा लगता, जिसमें वसंत के आगमन से रंग-बिरंगी फूल खिलने लगे थे. मन में हर समय वसंत की महक छाई रहती. खुमारी में डूबा रहता मन. महुए की मादक मिठास में खोया रहता.” मधुरा ने एक गहरी सांस ली, उसका स्वर कांप गया था. गला भर आया था.
प्रियांशु उसके दर्द को अपने भीतर महसूस कर रहा था. इस पीड़ा के सहयात्री थे दोनों. कुछ क्षण बाद मधुरा ने फिर कहना शुरू किया, “मगर बसंत बीत गया. कश्मीर की वादियों में आतंकवादियों से लड़ते हुए झर गया चार मिलिटेंट्स को मारकर ख़ुद भी. और वसंत के बीत जाने के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है. जीवन में सब कुछ झुलस गया. जीवन जेठ की तपती दोपहरी सा जल गया.” आगे उसके बहते आंसू उसके दर्द की कहानी कहते रहे. जीवन की सुगंध, सारे रंग वसंत के साथ ही चले गए. रह गया एक रेगिस्तान, जिसमें न हरियाली थी न रंग, बस तपती रेत पर वसंत के बीत जाने के बाद उसकी निशानी के रूप में सूखे निर्जीव तिनके बचे रह गए थे. वे तिनके जो रात-दिन दिल में चुभते रहते हैं.
अगले तीन दिन वे लोग हांडी खो, पांडव गुफा, चौरागढ़ पर छात्राओं को ले गए. प्राकृतिक परिवेश में उन्हें पढ़ाया और फिर ढेर सारे स्पेसिमेन इकट्ठा कर लौट आए. जीवन फिर उसी ढर्रे पर चलने लगा. दिनभर कॉलेज और शाम का अकेलापन. परीक्षाओं के समय व्यस्तता बढ़ गई और फिर छुट्टियां शुरू हो गईं. प्रियांशु और मधुरा में बस काम को लेकर औपचारिक बातें ही होतीं. लेकिन उनमें भी अपनेपन का एक पुट होता था, क्योंकि दोनों ही दर्द की संवेदना को समझते थे.
छुट्टियों में प्रियांशु घर चला आया, लेकिन पुरानी यादें और दर्द फिर सालने लगा. जीवन की तरह जब मौसम में भी ग्रीष्म की तपन बढ़ने लगी, तो प्रियांशु का दर्द किसी कंधे के सहारे के लिए ललकने लगा. दर्द की लू जब मन को छू जाती, तो किसी छांव के लिए मन तरसने लगता. उसे मधुरा की याद आती. क्या उसे किसी छांव की ज़रूरत नहीं है? क्या मधुरा को किसी छांव की तलाश नहीं है? वसंत के बीत जाने के बाद फूलों के झड़ जाने के बाद शेष बचे नुकीले कांटों और सूखे तिनकों की चुभन से क्या वह त्रस्त नहीं हुई?
छुट्टियां खत्म होने पर जब कॉलेज दुबारा खुल गए, तब प्रियांशु मधुरा से मिलने की बेचैनी में आधा घंटा पहले ही कॉलेज जा पहुंचा. अब उसका आधा दिन तो कम से कम अच्छा गुज़रता. मौसम भी बदल गया था और बारिश शुरू हो गई थी. प्रियांशु सोचता धरती का मौसम बदल जाता है, ग्रीष्म के बाद सावन आ जाता है लेकिन दर्द के मौसम क्या कभी नहीं बदलते? दर्द के मौसम क्या जीवन से कभी नहीं बीतते? क्या वे जीवन भर तपते ही रहते हैं?
एक दिन प्रैक्टिकल में मधुरा और प्रियांशु की साथ में ड्यूटी थी. प्रैक्टिकल समय से थोड़ी देर तक चला. बाद में फाइलें चेक करते हुए दोनों को देर हो गई. लैब असिस्टेंट उस दिन छुट्टी पर थी. छात्राओं के जाने के बाद स्पेसिमेन और स्लाइड्स आलमारियों में रखकर मधुरा ने ठीक से उनमें ताले लगा दिए. बाहर हल्की बारिश हो रही थी. प्रियांशु आज कुछ निश्‍चित करके आया था. उसने अचानक कहा-
“मधुरा…”


मधुरा चौंक गई, क्योंकि प्रियांशु उसे हमेशा मधुराजी कहता था, लेकिन प्रियांशु ने आज बिना किसी भूमिका के कहना शुरू किया.
“हम दोनों के ही जीवन से वसंत बीत चुका है और हम अपने भीतर ग्रीष्म का ताप सह रहे हैं. यह सच है कि वसंत के बीत जाने के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है, लेकिन यह भी सच है कि एक दिन ग्रीष्म के बीत जाने के बाद सावन भी आता है.  धरती सावन का स्वागत कर उसमें भीग जाती है. ग्रीष्म का ताप भूल जाती है. क्या हमारे जीवन में भी सावन नहीं आ सकता? क्या हम ग्रीष्म को विदा कर सावन का स्वागत नहीं कर सकते जीवन में?”
प्रियांशु ने आगे कहा, “मैं वसंत की तरह तुम्हारे जीवन में रंग-बिरंगे फूल भले ही ना खिला पाऊं, लेकिन सावन बनकर थोड़ी हरियाली की सुकून भरी ठंडक तुम्हारे तपते मन को दे पाऊं, थोड़ी छांव तुमसे पा लूं… क्या यह अधिकार दोगी मुझे तुम, बोलो मधुरा?” प्रियांशु की आवाज़ में एक दर्द भरा आग्रह था. आंखों में एक प्यार भरी विनती थी.
मधुरा अपलक उसे देखती रही. उसका दिल धड़क रहा था. भीतर कुछ घुमड़ रहा था, मगर होंठों पर चुप्पी थी. लेकिन उसके तपते मन को भी तो ठंडी फुहारों की शीतलता की ज़रूरत थी. तभी प्रियांशु ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.
“क्या इस दर्द को हम बांट नहीं सकते? क्या एक-दूसरे को थोड़ी सी छांव नहीं दे सकते? थोड़ी सी हरियाली, थोड़ा ठंडापन नहीं दे सकते?”
“कल घर आकर मां-पिताजी से बात कर लीजिएगा.” कहते हुए मधुरा ने उसका हाथ थाम लिया. दोनों की आंखें नम थीं, मगर होंठों पर मुस्कुराहट थी. बाहर सावन ज़ोरों से बरस रहा था और तपती धरती उसकी शीतल फुहारों में भीगती जा रही थी.

Dr. Vinita Rahurikar
विनीता राहुरीकर

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Share this article