Close

कहानी- हैप्पी न्यू ईयर (Story- Happy New Year)

"समीर इरिटेट कर देते हैं मुझे… शादी को चार महीने हुए होंगे दीदी, एक भी दिन ऐसा नहीं गया कि उठते ही चाय के अलावा इन्हें कोई और बात सूझी हो."
मैं समझ रही थी, ये सारा खेल 'चाय' का है. विभा चाय पीती नहीं, यही कारण रहा कि हमेशा ही उसको चाय बनाने से चिढ़ रही… पहले मायके में, अब यहां.

"जैसे विदेशी फिल्मों में दिखाते हैं ना, सुबह होते ही पति-पत्नी आपस में 'लव यू हनी' कहते हैं… हम लोगों को भी वैसे ही कहना चाहिए, यही तीन शब्द… है ना?" मेरी छोटी बहन विभा की जन्मदिन पार्टी के दौरान चलते हंसी-मज़ाक में उसकी सहेली ने परिहास किया.
"भई, हमारे यहां भी सुबह उठते ही बोले तो जाते हैं तीन शब्द, लेकिन ये वाले नहीं." विभा मुस्कुरा दी.
उसकी सब सहेलियां खुराफाती ढंग से हंसने‌ लगीं… उनके पति मेरे बहनोई समीर को छेड़ने लगे, तब एकदम से विभा बोली, "सुन तो लो सब लोग, वो‌ तीन शब्द हैं क्या?… चाय पिलाओ यार!"
विभा के ये बोलते ही सब हंसने लगे, मैंने भी मुस्कुराते हुए दोनों ‌की तरफ़ देखा; विभा खिलखिला रही थी, लेकिन समीर की हंसी स्वाभाविक नहीं थी. कुछ तो था… जहां वो‌ अटक गया था. थोड़ी देर बाद उसको‌ ढूंढ़ते हुए मैं बालकनी में गई, "तुमने कुछ भी नहीं खाया समीर… ये दही वड़े लो, ख़ास तुम्हारे लिए बनाए हैं." मैंने उसकी ओर प्लेट बढ़ाई, जो उसने वापस मेज पर रख दी.
"मेरा मन‌ नहीं है दीदी, आप लोग लीजिए." वो थोड़ा रुककर आगे बोला, "मेहमान तो‌ लगभग जा ही चुके हैं, मैं रूम में जा रहा हूं."
दांपत्य जीवन जैसी जटिलता किसी सफ़र में नहीं होती, कब किस बात पर गाड़ी अटक जाए, कब किस बात पर गाड़ी हवा से बात करने लगे… कोई नहीं जानता.
"तुम लोगों में कोई बात… मतलब सब ठीक है ना?" सुबह चाय पीते हुए मैंने विभा को कुरेदा, समीर सो रहा था.
"हां, सब ठीक है… ठीक ही है." विभा शून्य में देखते हुए बोली.
"देखो विभा, ऐसे हवा में बातें मुझसे तो किया मत करो… ये अमेरिका गए हैं, मैं अकेले परेशान हो जाऊंगी, ये कहकर तुम लोग मुझे यहां लाए थे ना? अब तुम ही लोग परेशान कर रहे हो…"
"प्लीज़ दीदी." विभा ने मेरी बात काटी, "दरअसल समीर ना… पता नहीं, लोगों के सामने इतना अजीब हो जाते हैं…"
वो कुछ सोचने लगी, शायद घटनाओं को जोड़ने में समय ले रही थी या मुझे समझाने के लिए शब्द ढूंढ़ने में..

यह भी पढ़ें: रिश्तों में बदल रहे हैं कमिटमेंट के मायने… (Changing Essence Of Commitments In Relationships Today)

"दीदी, अक्सर ऐसा होता है कि इन्हें मेरा मज़ाक चुभ जाता है… अब कल ही पार्टी में मैंने कुछ भी नहीं कहा, तब भी मुंह फ़ूला हुआ है." उसकी आंखें छलछला आईं. शायद रात को बात और बढ़ गई थी.
मैंने उसका हाथ सहलाते हुए कहा, "कहीं तुम्हारी चाय वाली बात…"
"चाय तो है ही सबसे बड़ा सिरदर्द दीदी." वो एकदम से झल्ला ‌गई.
"समीर इरिटेट कर देते हैं मुझे… शादी को चार महीने हुए होंगे दीदी, एक भी दिन ऐसा नहीं गया कि उठते ही चाय के अलावा इन्हें कोई और बात सूझी हो."
मैं समझ रही थी, ये सारा खेल 'चाय' का है. विभा चाय पीती नहीं, यही कारण रहा कि हमेशा ही उसको चाय बनाने से चिढ़ रही… पहले मायके में, अब यहां.
"गुड मॉर्निंग दी!" समीर एकदम तैयार था कहीं जाने के लिए विभा उसको हैरत से देख रही थी.
"इतनी सुबह-सुबह कहां? रुको, चाय लाती हूं…" मैं सशंकित थी.
"नहीं, चाय-नाश्ता कुछ नहीं… मुझे ऑफिस पहुंचना है थोड़ा जल्दी. एक बजे के आसपास ड्राइवर के हाथ खाना भेज देना…" विभा की ओर देखकर, बस इतना बोलकर वो‌ निकल‌ गया.
विभा दिनभर सामान्य रही, लेकिन गृहस्थी का मेरा अनुभव किसी ख़तरे को सूंघ रहा था… अगली सुबह मुझे पता भी चल गया कि मैं ग़लत नहीं थी.
"आज शाम को मैं अपने ‌घर‌ वापस चली जाऊंगी, आज 31 तारीख़ है… तुम लोग कहीं बाहर जाओ, नए साल का स्वागत करो… मैं कहां, कबाब में हड्डी." सुबह की चाय पर मैंने दोनों से ये बात कहते हुए चाय का कप समीर की ओर बढ़ाया.
"हम लोगों को कहीं नहीं जाना है… बस यहीं घर पर सब लोग साथ में टीवी देखेंगे… और जब तक आपके डॉक्टर साहब इंडिया वापस नहीं आ जाते, आपको यहीं रहना है." वो‌ मुस्कुरा दिया.
मेरा ध्यान दो‌ बातों पर था; एक तो वो चाय नहीं ‌पी रहा था, दूसरी बात आज विभा थोड़ी उखड़ी हुई थी. दिन में मैंने कई बार उससे जानना ‌चाहा, वो‌ टाल गई. रात में लगभग 11 बजे तक हम तीनों ने साथ बैठकर टीवी देखा, फिर अचानक जब समीर उठकर कमरे में चला गया, तब मैंने विभा को फटकार लगाई, "ये चल क्या रहा है पिछले कुछ दिनों से? बातचीत बिल्कुल बंद है क्या?.. इधर देखो, मेरी तरफ़."
" दीदी, उस दिन मैंने पार्टी में वो चायवाला जोक बोला था न, इनको अखर गया." वो खिसकते हुए मेरे पास आकर बैठ गई, "इतने से मज़ाक पर मुंह फुलाकर बैठ गए हैं. वैसे भी दीदी, चाय को लेकर हमेशा लड़ाई रही है… ख़ुद नहीं बना सकते हैं? ये पुरुष भी ना…"
"चुप रहो विभा! हर बात पर महिला सशक्तिकरण का झंडा लेकर मत खड़ी हो जाया करो… समीर कैसा है, ये मुझे बताना होगा अब तुम्हें? तुम्हारा, तुमसे जुड़े रिश्तों का कितना ध्यान रखता है, तुम्हें नहीं दिखता ये सब? और रही बात चाय की… तुम रह गई पगलिया ही." मैं उखड़ गई थी. वो चुपचाप मेरा मुंह देख रही थी, मैंने उसके चेहरे पर फैले बाल हटाते हुए प्यार से समझाया.

यह भी पढ़ें: रोज़मर्रा की ये 10 आदतें बनाएंगी आपके रिश्ते को और भी रोमांटिक (10 Everyday Habits Will Make Your Relationship More Romantic)

"समीर जब सुबह तुमसे 'चाय पिलाओ यार' कहता है, इसका मतलब कुछ और भी तो होता है… आओ, मेरे पास बैठो, मेरी सुबह मैं तुम्हारे साथ शुरू करूंगा, तुम्हें देखते हुए… तुम्हें महसूस करते हुए. चाय तो एक बहाना है आजकल की भागदौड़भरी ज़िंदगी में सुकून के, प्यार के दो‌ पल चुराने का… और तुमने इन्हीं पलों का मज़ाक बना दिया, बुरा नहीं लगेगा उसे?"
विभा जैसे एक नए अनुभव को आत्मसात कर रही थी. मैं बात को और ना‌ खींचते हुए अपने कमरे में आकर सो गई. सुबह रसोईं में खटपट की आवाज़ से आंख खुली… चुपचाप झांककर देखा, विभा चाय लेकर अपने कमरे में जा रही थी. मैं फिर से आकर लेट गई. मैं मुस्कुरा रही थी… शायद आज दोनों ने एक ही कप में चाय पीते हुए नए साल की शुरुआत की होगी. तब तक मेरे फोन में एक संदेश आया… देखा तो सात समंदर पार से मेरे लिए भी प्यार में पगे तीन शब्द आए थे- हैप्पी न्यू ईयर…

Lucky Rajiv
लकी राजीव
Kahaniya

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article