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कहानी- अस्तित्व 2 (Story Series- Astitva 2)

“हम समाज से नहीं, समाज हमसे है बेटी. महिलाएं स़िर्फ घर नहीं सवांरती, बल्कि समाज, देश, दुनिया को एक नई दिशा भी देती हैं. बच्चे को जन्म देने भर से महिलाओं की ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती, उसे क़ाबिल इंसान बनाकर हम समाज की दशा और दिशा दोनों बदल सकते हैं. फिर हमारा काम छोटा कैसे हो गया बेटी? यदि हर मां अपने बच्चों को सही परवरिश, सही संस्कार दे, तो दुनिया की तमाम समस्याएं ख़त्म हो जाएंगी.” शो के बाद पूजा जैसे ही बाहर निकली, उसके प्रशंसकों की भीड़ ने उसे घेर लिया. सब उसकी तारीफ़ों के पुल बांध रहे थे. अपने पति के साथ खड़ी पूजा सभी के साथ बड़ी सादगी से पेश आ रही थी. उसके सास-ससुर भी बहू की तारी़फें करते नहीं थक रहे थे. अनु चुपचाप यह सब देख रही थी. फिर जब सब घर चलने लगे, तो अनु को पूजा का व्यवहार कुछ अजीब लगा. उसने अपने परिवार को दूसरी गाड़ी में घर चलने को कहा और अपनी गाड़ी में स़िर्फ अनु को बिठाया. ड्राइव करती हुई पूजा उसे और भी कॉन्फिडेंट नज़र आ रही थी. अनु कुछ बोल नहीं रही थी, इसलिए पूजा ने ही बात शुरू की. “हां, तो क्या कह रही थी तुम? मेरे भाग्य से तुम्हें ईर्ष्या होती है. क्यों भला? तुम तो मुझसे ज़्यादा पढ़ी-लिखी हो, सुंदर हो, गुणी हो, तुम्हारे पति, सास सब तुम्हें प्यार करते है. फिर किस बात की कमी है तुम्हें?” “आपकी तरह अपनी पहचान बनाने का मौक़ा कहां मिला है मुझे? मेरी ज़िंदगी तो जैसे घर की चहारदीवारी में सिमटकर रह गई है. दिनभर घर के काम और बच्चे की देखभाल में उलझी रहती हूं. मैंने और आदि ने साथ पढ़ाई की थी. हम दोनों ही पढ़ाई में अव्वल थे, लेकिन शादी के बाद मेरी सारी पढ़ाई धरी की धरी रह गई है. घर का काम करनेवाली नैकरानी बनकर रह गई हूं मैं.” अनु की बात सुनकर खिलखिलाकर हंस दी पूजा. अनु को पूजा का हंसना अच्छा नहीं लगा. उसने चिढ़ते हुए कहा, “आपको इस तरह मेरा मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए.” अनु मुंह फुलाए चुपचाप गाड़ी में बैठी रही. तभी पूजा ने गाड़ी एक कॉफी हाउस के बाहर पार्क की और अनु का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले गई. यह भी पढ़ेअटेंशन पाने की चाहत आपको बना सकती है बीमार! (10 Signs Of Attention Seekers: How To Deal With Them) दो कॉफी ऑर्डर करके उसने बड़े प्यार से अनु का हाथ सहलाते हुए कहा, “देखो अनु, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो. तुम्हारा चंचल व्यवहार, मासूम हरकतें मुझे बहुत प्रभावित करती हैं. जब मैं तुम्हारे साथ होती हूं, तो लगता है जैसे अपना बचपन फिर से जी रही हूं. तुम्हारे जैसी प्यारी लड़की को इस तरह कुढ़ते देख मुझे बहुत दुख हुआ, इसीलिए मैं तुमसे अकेले में बात करना चाहती थी.” अनु आश्‍चर्य से पूजा को देखती रह गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वेटर उनकी कॉफी लेकर आ चुका था. कॉफी का सिप लेते हुए पूजा ने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया, “चलो, आज मैं तुम्हें अपने अतीत से मिलवाती हूं. कभी मैं भी तुम्हारी ही तरह बिंदास और चुलबुली हुआ करती थी. मैं पढ़ाई में भी अच्छी थी और डांस में भी. साथ ही लिखने का भी शौक़ था, लेकिन ग्रेज्युएशन ख़त्म होते ही अच्छा रिश्ता आया और मेरी शादी तय कर दी गई. मैं और पढ़ना चाहती थी, कुछ कर दिखाना चाहती थी, लेकिन घरवालों ने कहा, ऐसा रिश्ता बार-बार नहीं आता. लड़का मुझे पसंद था इसलिए मैंने भी हां कर दी. शादी के बाद मेरी हालत भी तुम्हारे जैसी थी. ज़िंदगी जैसे चाहरदीवारी में सिमट गई थी. हर वक़्त इस बात का डर लगा रहता था कि ससुरालवालों को मेरी किसी बात या व्यवहार का बुरा न लग जाए. फिर बेटी के जन्म के बाद तो जैसे सांस लेने की भी फुर्सत नहीं होती थी. इन्हें अक्सर टूर पर जाना होता था. ऐसे में घर के प्रति मेरी ज़िम्मेदारियां और बढ़ जाती थीं. अपने लिए जीना तो जैसे मैं भूल ही गई थी. मैं जब भी मायके जाती, तो अपने माता-पिता को ख़ूब कोसती थी, उन्हें ताने देती थी कि आप लोगों ने मुझे खुलकर जीने का मौक़ा तक नहीं दिया. मेरी सहेलियां करियर बना रही हैं और मैं चूल्हा-चौकी कर रही हूं. मेरी शादी करके आप लोग अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे वगैरह-वगैरह. मेरे माता-पिता चुपचाप मेरी बातें सुनते थे, कभी कुछ कहते नहीं थे. फिर एक दिन जब मैं अपने मायके गई थी, तो मेरी बुआ भी हमारे घर आई हुई थीं. मुझे यूं खिन्न देखकर जब उन्होंने मां से इसकी वजह पूछी, तो मां ने उन्हें सब बता दिया. यह भी पढ़ेसुख-शांति के लिए घर को दें एस्ट्रो टच… (Astrological Remedies For Peace And Happiness To Home) तब बुआजी मुझे अपने पास बिठाकर जो बातें समझाईं, उनसे मेरे जीने का नज़रिया ही बदल गया. बुआजी ने कहा, “पूजा, हम औरतों इस दयनीय स्थिति के लिए कोई और नहीं, हम ख़ुद ज़िम्मेदार हैं. हम महिलाओं को सदियों से शक्ति का रूप माना जाता है, फिर भी हम अपनी शक्ति को नहीं पहचान पाई हैं. हम समाज से नहीं, समाज हमसे है बेटी. महिलाएं स़िर्फ घर नहीं सवांरती, बल्कि समाज, देश, दुनिया को एक नई दिशा भी देती हैं. बच्चे को जन्म देने भर से महिलाओं की ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती, उसे क़ाबिल इंसान बनाकर हम समाज की दशा और दिशा दोनों बदल सकते हैं. फिर हमारा काम छोटा कैसे हो गया बेटी? यदि हर मां अपने बच्चों को सही परवरिश, सही संस्कार दे, तो दुनिया की तमाम समस्याएं ख़त्म हो जाएंगी. बलात्कार, चोरी-डकैती, खून-खराबा, धोखाधड़ी जैसी तमाम सामाजिक बुराइयां ही ख़त्म हो जाएंगी.” Kamala Badoni कमला बडोनी

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