Close

कहानी- नयन बिनु वाणी 3 (Story Series- Nayan Binu Vaani 3)

‘अब जा रही हूं मन में तुम्हारी याद लेकर. जानती हूं मुझे इन पत्रों को नष्ट कर देना चाहिए, वह भी जाने से पहले. करूंगी भी, बस, हर रोज़ कल पर टाल रही हूं. इनसे बिछड़ना मतलब तुमसे बिछड़ना. इन पत्रों द्वारा मैंने लंबे समय तक तुमसे बात की है, पर अब तुम पर भी मेरा हक़ नहीं रहा. बस, अब दो दिन और हैं ये पत्र मेरे साथ. कल सगाई की रस्म है, परसों अवश्य इन्हें नष्ट कर दूंगी. यह वादा है मेरा स्वयं से.’  पत्रों को सामने खोल विमूढ-सा बैठा हूं. हतभाग्य! यह कैसा खेल खेला विधाता ने मेरे साथ! मैं छोटी मेज़ और लिफ़ाफ़ा लिए बाहर चला आया. रात को पहनने के लिए जिस बैग में कपड़े लाया था, उसी में वह पैकेट रखकर मैं काम में लग गया. अभी कुछ भी सोचने का समय नहीं था मेरे पास और सगाई के दूसरे ही दिन बनारस लौट गया. काम तो कुछ था नहीं, कुछ करने को मन भी नहीं था. दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहा. नींद तो क्या आनी थी, यूं ही लेटा रहा बस. अब तो सिद्धि के बारे में सोचना भी गुनाह हो गया था. दूसरे दिन बनारस में रहनेवाले साथियों को मेरे आने का पता चल गया और मिलने आ गए, तो वह दिन बीत गया. उसके अगले दिन अनेक कोशिशों के बावजूद मन रघु चाचा के घर में ही अटका रहा. आज की ही तारीख़ थी, सिद्धि के विवाह की. ख़ूब ज़ोर-शोर से तैयारियां हो रही होंगी. शामियाना तन चुका होगा. दिन ही नहीं बीत रहा था. सोचा गंगा पर जाकर सिद्धि का काम ही कर आऊं. लिफ़ाफ़ा निकाला, छूने से चिट्ठियों का बंडल लगा मुझे, खोला तो डोरी से कसकर बंधी हुई चिट्ठियां ही थीं. हाथ में लिए देर तक बैठा रहा. सिद्धि की अमानत थी, उसे ख़ुद से अलग करने का मन नहीं हो रहा था, पर उसकी बात भी रखनी थी. निकलने लगा, तो मन ने फिर रोक लिया. उत्सुकता हुई. ज़रा देख तो लूं किसके नाम हैं ये चिट्ठियां? मैं स्वयं को रोक नहीं पाया. प्यार में तो सब जायज़ है न? मैंने बंडल की डोरी खोली और बारी-बारी से चिट्ठी निकालकर पढ़ने लगा. यह भी पढ़ेलघु उद्योग- कैंडल मेकिंग: रौशन करें करियर (Small Scale Industries- Can You Make A Career In Candle-Making?)
  1. ‘यह एकतरफ़ा प्यार निभाना भी कितना कठिन होता है? जब से तुम गए हो, कोई खोज-ख़बर ही नहीं ली. पत्र लिख भी रही हूं और जानती भी हूं कि भेजूंगी नहीं. पता नहीं तुम मेरे बारे में क्या सोचने लगो?’ बाकी इधर-उधर की अनेक बातें थीं. अन्य परिचितों की बातें. अपनी दिनचर्या के बारे में लिखा था. कॉलेज की बातें की थीं. छोटी बहन की पढ़ाई के बारे में लिखा था. ठीक जैसे अपने किसी निजी के साथ हालचाल बांटा जाता है. कौन हो सकता है यह?
मैंने दूसरा पत्र निकाला.
  1. ‘क्यों मुझे लगता रहा कि तुम भी मुझे उसी तरह चाहते रहे हो, जिस तरह से मैं? क्या यह मेरी कोरी कल्पना ही थी? यूं ही मुझे तुम्हारी आंखों में प्यार नज़र आता रहा? चूंकि मेरे मन में तुम्हारे प्रति अथाह प्यार था, तो क्या मैंने यही मान लिया कि तुम्हारे मन में भी मेरे प्रति वही भावना है. लेकिन शायद यह महज़ मेरी ख़ुशफ़हमी थी. तुमने तो कभी कुछ कहा ही नहीं. कितने ही तो अवसर मिले थे हमें.’
  2. ‘कल शकु चाची से मुलाक़ात हुई थी. बहुत जी चाहा तुम्हारे बारे में पूछने को, पर यह मेरे ही मन का चोर था जिसने मुझे रोके रखा.’
मेरा माथा ठनका, मेरी मां को ही तो दोनों बहनें शकु चाची बुलाती थीं. उनका वास्तविक नाम शकुंतला है. इसके आगे भी बहुत कुछ लिखा था, परंतु अब उन बातों की ओर मेरा ध्यान नहीं जा रहा था.
  1. ‘घर में मेरे विवाह की चर्चा चल रही है. किससे कहूं? क्या कहूं? किस अधिकार से मां को मना करूं? जब तुमने अभी तक कुछ कहा ही नहीं?’
  2. ‘कभी-कभी स्वयं पर ग़ुस्सा भी आता है. तुमने नहीं कहा था, तो मैं ही कह देती, पर मन में डर था, यदि तुम्हारे मन में मेरा कोई स्थान न हुआ तो? कितना अपमान होगा मेरा? क्या सोचते तुम मेरे बारे में? नहीं मैं तुम्हारी नज़रों में गिरना नहीं चाहती थी.’
  3. ‘अब जा रही हूं मन में तुम्हारी याद लेकर. जानती हूं मुझे इन पत्रों को नष्ट कर देना चाहिए, वह भी जाने से पहले. करूंगी भी, बस, हर रोज़ कल पर टाल रही हूं. इनसे बिछड़ना मतलब तुमसे बिछड़ना. इन पत्रों द्वारा मैंने लंबे समय तक तुमसे बात की है, पर अब तुम पर भी मेरा हक़ नहीं रहा.
बस, अब दो दिन और हैं ये पत्र मेरे साथ. कल सगाई की रस्म है, परसों अवश्य इन्हें नष्ट कर दूंगी. यह वादा है मेरा स्वयं से.’ पत्रों को सामने खोल विमूढ-सा बैठा हूं. हतभाग्य! यह कैसा खेल खेला विधाता ने मेरे साथ! यह भी पढ़ेशब्दों की शक्ति (Power Of Words) गोस्वामी तुलसीदासजी कह गए हैं ‘नयन बिनु वाणी।’ नयनों की वाणी चाहे न हो, मन का आईना होते हैं वह. हू-ब-हू व्यक्त कर देते हैं मन की बात. बस पढ़नेवाले की नज़र चाहिए. इसके विपरीत जो बात शब्दों द्वारा व्यक्त की जाती है, वह मस्तिष्क से निकली होती है, उसमें समाज का अंकुश रहता है, निज स्वार्थ का पुट हो सकता है. काश! मैने सिद्धि के नयनों पर विश्‍वास कर लिया होता. usha vadhava         उषा वधवा

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/