बात इकोनॉमिक पार्टिसिपेशन यानी आर्थिक रूप से भागीदारी की हो, फाइनेंशियल प्लानिंग की हो या फिर फाइनेंस से जुड़े अन्य मुद्दे, महिलाओं में वित्तीय जागरूकता की कमी साफ़ नज़र आती है. किसी भी देश व समाज के विकास के लिए यह ज़रूरी है कि फाइनेंस को लेकर जो लिंगभेद है, वह दूर हो. आख़िर क्या वजह है कि महिलाओं में वित्तीय जागरूकता की इतनी कमी है, जानने का प्रयास करते हैं.
- रिसर्च बताते हैं कि विश्व में मात्र 20% महिलाओं को ही फाइनेंशियल कॉन्सेप्ट की समझ है.
- इसकी कई वजहें हैं और उनमें से एक वजह यह भी है कि ख़ुद महिलाएं ही इसमें दिलचस्पी नहीं लेतीं.
- दरअसल, बचपन से हमारे समाज में महिलाओं को घरेलू कामों में दक्ष बनाने पर अधिक ज़ोर दिया जाता है बजाय अन्य गुणों के विकास पर.
- इस वजह से महिलाओं की मानसिकता ऐसी बन जाती है कि वित्तीय मामलों की समझ व उन पर निर्णय लेना पुरुषों का काम है.
- घर में भी बचपन से वो देखती हैं कि पिता या भाई ही इस तरह के ़फैसले लेते हैं, मां का हस्तक्षेप ना के बराबर होता है और यहां तक कि उनसे राय भी नहीं ली जाती, तो वो भी अपना रोल उसी के अनुसार समझ लेती हैं.
- भारत में ट्रेड एसोसिएशन द्वारा किए गए सर्वे भी इस ओर साफ़-साफ़ इशारा करते हैं कि स्वयं महिलाएं भी वित्तीय मामलों में सेकंडरी रोल प्ले करके ख़ुश व संतुष्ट रहती हैं. अपने पिता, भाई या पति से ही वो उम्मीद करती हैं कि फाइनेंस व पैसों के मामले वही हैंडल करें.
- इस रिपोर्ट में वो कारण भी सामने आए, जो भारत में महिलाओं में फाइनेंशियल लिट्रसी यानी वित्तीय साक्षरता को प्रभावित करते हैं.
- सबसे पहली वजह है- आत्मनिर्भरता व ख़ासतौर से आर्थिक आत्मनिर्भरता की कमी. पैसों के लिए आज भी अधिकांश महिलाएं अपने पति पर ही निर्भर रहती हैं, जिससे उन्हें फाइनेंशियल आत्मनिर्भरता का ख़्याल तक नहीं आता.
- सामाजिक व पारिवारिक संरचना भी एक बड़ी वजह है. हमारे समाज व परिवार में पुरुष को ही घर का मुखिया माना जाता है. यही वजह है कि पैसों से जुड़े सारे मामलों में उनकी ही रज़ामंदी होती है. चाहे घर ख़रीदना हो, बेचना हो, लोन लेना हो, कहीं घूमने जाना हो- सब वो ही मैनेज करते हैं. महिलाएं न तो इसमें दिलचस्पी लेती हैं और न ही उन्हें इतने अधिकार हैं कि आर्थिक मसलों पर वो आगे बढ़कर बड़े फैसले ले सकें.
- शैक्षिक योग्यता आज भी बड़ा कारण है. महिलाओं को स्पेशलाइज़्ड कोर्सेस कम कराए जाते हैं. उनकी परवरिश शादी को ध्यान में रखकर अधिक की जाती है बजाय करियर के. ऐसे में उनकी एजुकेशन का मतलब होता है- होम साइंस, ग्रैजुएशन, फैशन डिज़ाइनिंग, कुकिंग आदि...
- आत्मविश्वास की कमी के चलते भी महिलाएं आर्थिक मामलों में कमज़ोर रहती हैं. उन्हें डर लगता है कि कहीं उनका निर्णय ग़लत न साबित हो जाए. ऐसे में घर व आस-पड़ोस के लोग भी उसे ताने मारने से बाज़ नहीं आएंगे.
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- इन सब कारणों के अलावा एक अन्य वजह यह भी है कि उनके पास इतने पैसे ही नहीं होते कि वो कोई निर्णय ले सकें. अगर बाहर काम करनेवाली महिलाओं की बात छोड़ दें, तो अधिकांश हाउसवाइफ का अपना अलग अकाउंट तक नहीं होता. पति के नाम पर या फिर जॉइंट अकाउंट होता है, जिसमें पैसों व ख़र्च के लिए वो पार्टनर पर ही निर्भर रहती हैं. ऐसे में उनकी पहुंच ही नहीं होती इतनी कि वो आर्थिक मामलों के बारे में कुछ सोच सकें.
- यही नहीं, नौकरीपेशा महिलाएं भी अपनी ही सैलरी या कमाए हुए पैसों से संबंधित निर्णय अकेले नहीं ले पातीं. उन्हें यह छूट ही नहीं है. वो घरवालों से व पार्टनर से पूछे बिना कोई कदम नहीं उठातीं.
- कई बार मात्र अपने पार्टनर के ईगो को संतुष्ट करने के लिए व घर में शांति बनाए रखने के लिए भी महिलाएं इस तरह के निर्णय लेने से हिचकिचाती हैं.
- ज़्यादातर महिलाएं यही कहती हैं कि पति इस बारे में हमसे बेहतर जानते हैं और इसीलिए उनका निर्णय ही फाइनल व बेस्ट होगा.
- ऐसे में यह भी संभव होता है कि महिलाओं को आर्थिक मुद्दों की समझ व बेहतर जानकारी होने के बाद भी वो इनसे जुड़े मामलों में हस्तक्षेप नहीं करतीं.
- हालांकि सरकार व प्रशासन द्वारा कई ऐसी योजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें महिलाओं को ध्यान में रखकर उन्हें आर्थिक तौर पर जागरूक, शिक्षित व सक्षम किया जा सके. कई बैंक भी महिलाओं के लिए ख़ासतौर से अलग व नई स्कीम्स लाते रहते हैं, जिससे आर्थिक मामलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़े, लेकिन इनकी जानकारी भी बहुत कम महिलाओं को होती है या वो इनका लाभ लेने की ज़रूरत ही महसूस नहीं करतीं. घरवाले भी यही कह देते हैं कि तुम्हें इसकी क्या ज़रूरत...?
- चूंकि महिलाओं के करियर को भी पुरुषों के मुक़ाबले कम तवज्जो मिलती है, इसलिए उनकी सैलरी भी पुरुषों से कम होती है, उनका करियर ग्राफ भी ऊपर-नीचे होता रहता है और फाइनेंस को लेकर पति भी सारी बातें डिसकस नहीं करते.
- शादी के बाद, बच्चे होने के बाद महिलाओं को ही अपने करियर से समझौता करना पड़ता है.
क्यों ज़रूरी है फाइनेंशियल अवेयरनेस?
- चाहे पुरुष हो या महिला यह सबके लिए ज़रूरी है.
- निर्णय लेने की आज़ादी व जागरूकता के चलते आप अपने पैसों को बेहतर तरी़के से मैनेज कर सकती हैं.
- बुरे व़क्त के लिए प्लानिंग कर सकती हैं.
- सेविंग्स के अधिक ऑप्शन्स यूज़ कर सकती हैं.
- आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा.
- आप छोटा-मोटा बिज़नेस भी शुरू कर सकती हैं.
- छुट्टियों या हॉलीडे प्लान के लिए अलग से कुछ सोच सकती हैं. ट्रैवल फंड अलग से जमा कर सकती हैं.
- अपनी लाइफस्टाइल बेहतर बना सकती हैं.
- हर छोटी-मोटी ज़रूरतों के लिए पति पर निर्भर रहने की मजबूरी नहीं रहेगी, तो आपकी आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी.
- आर्थिक निर्णयों में आपकी राय को भी अहमियत मिलेगी.
सोच बदलें...
और भी कई कारण हैं, जिनके चलते आपके लिए वित्तीय मामलों में जागरूक होना ज़रूरी है. बेहतर होगा कि अपनी जानकारी बढ़ाएं. बैंक के काम अपने हाथों में ले लें, नई स्कीम्स का पता करें. बैंक जाने या लोन संबंधी जानकारी लेने से हिचकिचाएं नहीं. सरकारी योजनाओं का भी लाभ उठाएं. पूरे समाज की उन्नति तभी संभव है, जब हर वर्ग व हर तबका जागरूक होगा. लिंग के आधार पर आपको दोयम दर्जा मिले, यह सही नहीं है, लेकिन इसके लिए आपको ही पहला कदम उठाना व बढ़ाना पड़ेगा. अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलें और देखें दुनिया बहुत अलग है. चुनौतियों का सामना करें, ताकि आपको अपने अस्तित्व के एहसास से संतुष्टि मिले. पति तो सब देख ही रहे हैं, हमें अपना दिमाग़ ख़राब करने की क्या ज़रूरत है... इस सोच से बाहर निकलें और अपनी आर्थिक जागरूकता को बढ़ाएं और इस आर्थिक आज़ादी का आनंद लें.
- गीता शर्मा