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सिंगल चाइल्ड जरूरी है सही परवरिश

कभी देर से शादी, कभी आर्थिक मजबूरी, तो कभी काम की मजबूरी और व़क्त की कमी के कारण आजकल ज़्यादातर कपल्स सिंगल चाइल्ड को ही तरजीह देते हैं. वो एक से ज़्यादा बच्चे की ज़िम्मेदारी नहीं उठाना चाहते, मगर इकलौते बच्चे की परवरिश आसान काम नहीं है. अकेले बच्चे के बिगड़ने की संभावना भी ज़्यादा रहती है. क्या है सिंगल चाइल्ड के नफ़ा-नुक़सान और कैसे करें उनकी सही परवरिश? बता रही हैं कंचन सिंह.
shutterstock_287823248 बड़े लाड़-प्यार में पली 8 साल की अनैशा इकलौती संतान होने के कारण माता-पिता उसकी हर मांग तुरंत पूरी कर देते. नतीजा ये हुआ कि इतनी छोटी उम्र से ही वो मां-बाप की नहीं, बल्कि मां-बाप उसकी मर्ज़ी से चलने लगे. कपड़े पहनने से लेकर खाने तक में हर जगह अनैशा की ही मर्ज़ी चलती. अनैशा की ज़िद्द अब उसके पैरेंट्स के लिए भी सिरदर्द बन चुकी है, मगर अब वो करें तो क्या करें, इकलौती बेटी की हर इच्छा पूरी करना अपना कर्त्तव्य समझने वाले अनैशा के माता-पिता को अब एहसास होता है कि ज़रूरत से ज़्यादा दुलार ने ही उनकी बेटी को बिगाड़ दिया है. अक्सर सिंगल चाइल्ड के पैरेंट्स यही ग़लती करते हैं. यदि आप भी सिंगल चाइल्ड के पैरेंट्स हैं, तो ऐसी ग़लती न करें.
क्यों बढ़ रहा है सिंगल चाइल्ड का चलन?
शहरों में तेज़ी से टूटते परिवार और पति-पत्नी दोनों के वर्किंग होने के कारण अक्सर कपल्स एक ही बच्चे की चाहत रखते हैं, जिससे उनकी ज़िम्मेदारी भी कम रहे और एक बच्चे की देखभाल करने के साथ ही मां अपनी नौकरी भी जारी रख सके. इसके अलावा कई कपल्स सोचते हैं कि पहले करियर सेट कर लें फिर फैमिली के बारे में सोचेंगे. इस चक्कर में उम्र बढ़ने के कारण महिलाओं को कई तरह की कॉम्प्लिकेशन्स हो जाती हैं या 35-36 की उम्र में पहला बच्चा होने के बाद वो ख़ुद को शारीरिक व मानसिक रूप से दूसरे बच्चे के लिए तैयार नहीं कर पातीं. कई महिलाओं के लिए तो पहली प्रेग्नेंसी का अनुभव इतना दर्दनाक होता है कि डर की वजह से वो दूसरे बच्चे के बारे में सोचती ही नहीं हैं. एक अन्य कारण है बढ़ती महंगाई. आज की इस महंगाई के दौर में बच्चों की पढ़ाई से लेकर बाकी सारी चीज़ें इतनी महंगी हो गई हैं कि पैरेंट्स दूसरे बच्चे के बारे में सोच ही नहीं पाते.
क्या हैं नुक़सान?
अपनी सहूलियत के मुताबिक पैरेंट्स एक ही बच्चा चाहते हैं, मगर इकलौते बच्चे के कुछ नुक़सान भी हैंः शेयरिंग नहीं सीख पाते घर में भाई-बहनों के रहने पर बच्चा कोई भी चीज़ चाहे वो खिलौना हो या खाने का सामान, उनके साथ बांटता है, उनके साथ अपनी भावनाएं व्यक्त करता है. इससे बाहर भी लोगों के साथ एडजस्ट होने में उसे दिक्क़त नहीं होती. अकेला बच्चा न तो शेयरिंग सीख पाता है और न ही दूसरों के साथ जल्दी सहज ही हो पाता है. स्पेशल ट्रीटमेंट की आदत ऐसे बच्चे अपनी चीज़ों के प्रति बहुत पज़ेसिव होते हैं. पैरेंट्स बचपन से ही उन्हें स्पेशल फील करवाते रहे हैं इसलिए वो हर जगह ऐसे ही ट्रीटमेंट की उम्मीद रखते हैं और ऐसा न होने पर उन्हें बुरा लग जाता है. उन्हें जो चीज़ चाहिए यदि उन्हें नहीं मिली तो सबके सामने ज़िद्द करने से भी वो पीछे नहीं हटते. चीज़ों की कद्र नहीं करते साइकोलॉजिस्ट नीता शेट्टी कहती हैं, “पैरेंट्स बच्चे के एक बार कहने भर से ही उसकी हर मांग पूरी कर देते हैं. इससे बच्चे को चीज़ों की और पैसों की कद्र नहीं होती. उसे लगता है कि सब कुछ आसानी से मिल सकता है.” ऐसे बच्चे बड़े होने पर भी चीज़ों की कद्र नहीं करते और तब यदि आप उन्हें कोई चीज़ देने से मना करेंगे, तो वो आपके भी ख़िलाफ़ हो जाएंगे या फिर आप से नाराज़ हो जाएंगे.” गैजेट्स की लत बच्चे का अकेलापन दूर करने के लिए पैरेंट्स उसे टीवी, लैपटॉप, वीडियोगेम, मोबाइल आदि सब दे देते हैं, ताकि खाली समय में बच्चा इनसे अपना मन बहला सके, मगर बच्चे को बिज़ी रखने का ये तरीक़ा तब ग़लत साबित हो जाता है, जब उसे इनकी लत लग जाती है. इन सब गैजेट्स के होने पर वो पढ़ाई छोड़कर पूरा समय इन पर बर्बाद करने लगता है. टीवी, लैपटॉप में व्यस्त रहने के कारण बच्चे का संपूर्ण मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक विकास भी नहीं हो पाता. इंट्रोवर्ड हो जाते हैं बचपन से ही अकेले रहने के कारण इकलौते बच्चे अक्सर बड़े होने पर भी अंतर्मुखी ही बने रहते हैं. वो मन की बात मन में ही रखते हैं, किसी से अपनी भावनाएं शेयर नहीं करते. ऐसे बच्चे सामाजिक भी नहीं बन पाते. रिश्तों के लिए ख़तरे की घंटी सिंगल चाइल्ड का बढ़ता चलन हर रिश्ते के लिए ख़तरे की घंटी है. ज़रा सोचिए, यदि हर परिवार में एक ही बच्चा रहे, तो उसे भाई-बहन, चाची/चाचा, मौसी, बुआ, मामा जैसे रिश्तों के बारे में कैसे पता चलेगा? वो इन रिश्तों की अहमियत कैसे जान पाएगा? एक तरह से देखा जाए तो आगे चलकर पहले से ही सीमित हो चुके परिवार शायद बिल्कुल ख़त्म ही हो जाएंगे. बच्चे की दुनिया बस अपने आप तक ही सीमित रह जाएगी. हमारे सामाजिक व पारिवारिक ढांचे के लिए ये बहुत ख़तरनाक स्थिति होगी.
क्या हैं फ़ायदे?
वर्तमान दौर के कपल्स एक ही बच्चे के पीछे तर्क देते हैं कि इससे उनका प्यार बंटता नहीं है. वो अपने इकलौते बच्चे पर पूरा प्यार लुटाते हैं, उसकी हर सुख-सुविधा का ख़्याल रख सकते हैं. 38 वर्षीया कोमल कहती हैं, “एक ही बच्चा होने पर हम उसे अच्छी एज्युकेशन और लाइफस्टाइल दे सकते हैं, जबकि एक से ज़्यादा होने पर ख़र्च बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में पैरेंट्स को हर समय पैसों के कारण अपनी इच्छाओं को दबाना पड़ता है, क्योंकि आर्थिक बोझ बढ़ जाता है, जिससे पैरेंट्स अपने लिए नहीं जी पाते.” साइकोलॉजिस्ट नीता शेट्टी की भी कुछ ऐसी ही राय है, वो कहती हैं, “सिंगल चाइल्ड होने पर पैरेंट्स उसे पूरा अटेंशन दे पाते हैं, फाइनांशियल बर्डन भी कम रहता है. उसकी अच्छी तरह देखभाल करने के साथ ही मां को अपने लिए भी समय मिल पाता है. वो अपने करियर पर ध्यान दे पाती है.”

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