एक घर में नौ महिलाएं एक साथ रहती हैं. हर किसी की अपनी कहानी और दर्द है. इसमें काजोल, नेहा धूपिया, श्रुति हसन, नीना कुलकर्णी की अदाकारी की बहुत तारीफ़ हो रही है. नारी की पीड़ा, बलात्कार व संघर्ष को पूरी ईमानदारी व गंभीरता से दिखाया गया है.
इस घर में रह रही स्त्रियां अलग भाषा, पहनावे और धर्म से हैं. कोई शिक्षित है, तो कोई अनपढ़. किसी को अंग्रेज़ी की लत है, तो किसी को अल्कोहल की. सभी महिलाएं एक कमरे में बैठ बहस कर रही हैं. इसमें कुछ शांत हैं, तो कोई बोल नहीं पाती है. सभी नारियां आपस में वाद-विवाद कर रही हैं कि बाहर जो है, उसे घर के अंदर लेना है या नहीं. सबके अपने तर्क और मजबूरियां है. काजोल की भाव-भंगिमाएं और अभिनय लाजवाब है.
देवी में एक संदेश देने की कोशिश की गई है. हर पूर्वाभास से परे होकर हमें एकजुट होकर रहना चाहिए. फिल्म को लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. काजोल, नेहा धूपिया, श्रुति हसन अपने स्तर पर इसका प्रमोशन कर ही रही हैं.
देवी की निर्देशक प्रियंका बनर्जी ने थोड़े में बहुत बड़ी बात कह दी है. वे इस शॉर्ट फिल्म की लेखिका भी हैं. इसमें जितनी भी महिला क़िरदार हैं, सभी ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है. टॉप पर काजोल तो हैं ही उनके साथ नेहा धूपिया, श्रुति हसन, नीना कुलकणी, मुक्ता बर्वे, शिवानी रघुवंशी, रमा जोशी, यशस्वनी दयामा, संध्या महात्रे हैं. अंत में महिलाओं से जुड़े बलात्कार के चौंकानेवाले कुछ आंकड़े भी दिए गए हैं, जो हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है.
आज इस बात की सख़्त ज़रूरत है कि नारी को देवी तुल्य कह देना ही पर्याप्त नहीं है, उन्हें उस तरह का सम्मानीय दर्जा देना भी ज़रूरी है. देवी हमारे रवैए और सोच पर भी हमें सवालों के कठघरे में खड़ा करती है. आइए, देखते हैं देवी...