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जानें अपने बैंक संबंधी अधिकार (15 Bank Related Rights You Must Know)

Bank Related Rights बैंकों (Banks) की बढ़ती मनमानी को रोकने और ग्राहकों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा संगठित बैंकिंग कोड एंड स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया (बीसीएसबीआई) ने कुछ कस्टमर राइट्स तय किए हैं, जिनके बारे में ज़्यादातर ग्राहकों को मालूम नहीं होता है और वे बैंकों द्वारा दिए गए इन अधिकारों का फ़ायदा उठाने से वंचित रह जाते हैं. इसके लिए ज़रूरी है कि उपभोक्ता अपने बैंक संबंधी अधिकारों के बारे में जानें. किसी भी बैंक में खाता खुलवाने पर बैंक अपने उपभोक्ताओं को कुछ अधिकार देता है, लेकिन उपभोक्ताओं को इन अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है, जिसके कारण उन्हें बैंक की मनमानी बर्दाश्त करनी पड़ती है. यदि उपभोक्ताओं को बैंक द्वारा दिए गए इन अधिकारों की जानकारी होगी, तो वे बैंकों की मनमानी का शिकार होने से बच सकते है. हम यहां पर उन्हीं अधिकारों के बारे में बता रहे हैं. 1 सार्वजनिक व निजी, किसी भी बैंक को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी अन्य संगठन व कंपनी के साथ उपभोक्ता की व्यक्तिगत जानकारियों को शेयर करें. बैंक की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह उपभोक्ताओं की निजी जानकारी को गुप्त रखें. 2 अगर उपभोक्ता भारत का नागरिक है, देश के किसी भी शहर/इलाके में रहता है, तो कोई भी बैंक उसका खाता खोलने से इंकार नहीं कर सकता. अगर उपभोक्ता का कोई परमानेंट एड्रेस (स्थायी पता) नहीं है, तो कोई भी बैंक उसका खाता नहीं खोल सकता है. स्थायी पते की आवश्यकता केवाईसी (नो योर कस्टमर) के लिए होती है. खाता खोलने के लिए कुछ नियम व शर्तें होती हैं, जिनका पालन करने के लिए केवाईसी के तहत स्थायी पता ज़रूरी होता है. 3 बैंक को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने उपभोक्ताओं के साथ लिंग, आयु, जाति, धर्म व शारीरिक अक्षमता के आधार पर भेदभाव करे. बैंकों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपने ग्राहकों को बिना किसी भेदभाव के उन्हें फेयर ट्रीटमेंट दें. 4 यदि उपभोक्ता के पास पुराने, घिसे-पिटे या कटे-फटे नोट हैं, तो वह बैंक की किसी भी ब्रांच में जाकर इन नोटों को बदलवा सकता है. बैंक इनको बदलने से इंकार नहीं कर सकता है. Bank Related Rights   5 उपभोक्ता के खाते से अगर कुछ अनऑथोराइज़्ड ट्रांज़ैक्शन्स हुए हैं यानी उसके साथ कुछ धोखाधड़ी हुई है या फिर उपभोक्ता के खाते के साथ कुछ छेड़छाड़ की गई है, तो बैंक इसके लिए उसे ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकता है. बल्कि बैंक की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इन अनऑथोराइज़्ड ट्रांज़ैक्शन्स को साबित करने में उपभोक्ता की मदद करे. 6 कई बार बैंक की भूल के कारण चेक कलेक्शन में देरी हो जाती है और चेक क्लीयर होने में निर्धारित समय से ज़्यादा समय लग जाता है. ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह बैंक से होनेवाले नुक़सान की भरपाई की मांग कर सकता है. बैंक इस भरपाई से इंकार नहीं कर सकता है. नुक़सान की यह राशि साधारण ब्याज दर के हिसाब से उपभोक्ता को दी जाती है. 7 यदि कोई उपभोक्ता बैंक में डिपॉज़िट अकाउंट खोलना चाहता है, तो बैंक की ज़िम्मेदारी बनती है कि डिपॉज़िट अकाउंट संबंधी सारी जानकारी व शर्तों के बारे में उपभोक्ता को उसी समय बताएं. उपभोक्ता को अकाउंट संबंधी नियम और शर्तें जानने का पूरा अधिकार है. अगर बैंक कर्मचारी ये जानकारी देने से इंकार करे, तो ग्राहक इस बात की शिकायत बैंक के ब्रांच मैनेजर से कर सकता है. और भी पढ़ें: चेक का लेन-देन करते समय बचें इन 9 ग़लतियों से (9 Mistakes To Avoid During Cheque Transactions) 8 कई बार उपभोक्ता के ज़ीरो बैलेंस सेविंग में मिनिमम बैलेंस शून्य रह जाता है. ऐसी स्थिति में बैंक को कोई अधिकार नहीं है कि वह उपभोक्ता का खाता बंद करे. बैंक को इस बात का भी अधिकार नहीं है कि वह मिनिमम बैलेंस के नाम पर उपभोक्ता से ज़ुर्माना वसूल करे. 9 उपभोक्ता यदि अपने बंद हुए खाते को दोबारा शुरू करना चाहता है, तो बैंक इस पर उससे कोई शुल्क वसूल नहीं कर सकता. कुछ निजी बैंक ग्राहकों से पैसा वसूलने के उद्देश्य से ऐसा करते हैं, जिसके बारे में उपभोक्ता को पर्याप्त जानकारी नहीं होती है. यदि कोई बैंक ऐसा करता है, तो उपभोक्ता इसकी शिकायत बैंक मैनेजर से कर सकता है. Bank Rights 10 अगर उपभोक्ता ने बैंक से लोन लिया है और बदले में बैंक में सिक्योरिटी जमा कराई है, तो लोन का पूरा भुगतान करने के बाद उसे 15 दिन के अंदर सिक्योरिटी वापस पाने का अधिकार है. 11 बैंक अपने उपभोक्ता को कोई सेवा या जानकारी देने से इंकार कर देता है, तो उपभोक्ता को उसका कारण जानने का पूरा अधिकार है. 12 प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह किसी भी बैंक के नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रंासफर द्वारा 50 हज़ार रुपए तक की राशि दूसरे बैंक में जमा करा सकता है. मनी ट्रांसफर कराने के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि उस संबंधित बैंक में उपभोक्ता का खाता हो. 13 बैंक और ग्राहक के बीच अगर कोई एग्रीमेंट हुआ है और बैंक उस एग्रीमेंट की नियमों व शर्तों में कोई बदलाव करता है, तो उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह 30 दिन के अंदर इसकी सूचना उपभोक्ता को दे. Bank Related Rights 14 बैंक को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने ग्राहकों पर थर्ड पार्टी के प्रोडक्ट्स, जैसे- म्युच्युअल फंड, बीमा पॉलिसी, शेयर, बॉन्ड्स आदि ख़रीदने के लिए दबाव बनाए. 15 उपभोक्ता को इस बात का पूरा अधिकार है कि यदि वह बैंक की किसी सेवा से संतुष्ट नहीं है या फिर बैंक के किसी कर्मचारी ने उसके साथ अभद्र व्यवहार किया है, तो वह इसकी शिकायत ब्रांच मैनेजर से कर सकता है या फिर बैंक द्वारा दिए गए टोल फ्री नंबर्स पर कॉल करके अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है. उपभोक्ताओं की जानकारी के लिए बता दें कि प्रत्येक बैंक की ब्रांच में एक कंप्लेन ऑफिसर (शिकायत सुननेवाला अधिकारी) होता है, जो उपभोक्ताओं की शिकायतों को सुनकर उस पर कार्रवाई करता है. वहां जाकर उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है. बदले में अधिकारी दर्ज की गई शिकायत की एक कॉपी उपभोक्ता को देता है. क्या है बैंकिंग कोड एंड स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया (बीसीएसबीआई)? रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकिंग कोड एंड स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया (बीसीएसबीआई) का गठन किया है. इस संगठन ने बैंक उपभोक्ताओं की शिकायतों व समस्याओं को दूर करने के लिए कस्टमर राइट्स (ग्राहक अधिकार) तय किए हैं और सभी सार्वजनिक व निजी बैंक इन कस्टमर्स राइट्स का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. ये अधिकार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित किए गए हैं और बीसीएसबीआई द्वारा इनका प्रावधान किया गया है. और भी पढ़ें: 10 चार्जेज़ जो बैंक आपसे वसूल करते हैं (10 Charges Levied By Banks On Your Account)

- पूनम नागेंद्र शर्मा

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