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ग़ज़ल- रेत पे लिखती रही, मिटाती रह...
Home » ग़ज़ल- रेत पे लिखती रही, मिटा...
ग़ज़ल- रेत पे लिखती रही, मिटाती रही, वो तेरा नाम था (Gazal- Ret Pe Likhti Rahi, Mitati Rahi, Woh Tera Naam Tha…)

रेत पे लिखती रही, मिटाती रही, वो तेरा नाम था
रातभर जिसे दिल गुनगुनाता रहा, वो तेरा नाम था…
रूह में उतर गए हो सुकून बनकर
तेरी नज़रों ने छू लिया मुझे चंदन बनकर
सांसों में बस गए हो मेरी नज़्म बनकर
तेरी ख़ुशबू ने भर दिया है मुझे धड़कन बनकर
रेत पे लिखती रही, मिटाती रही, वो तेरा नाम था
रातभर जिसे दिल गुनगुनाता रहा, वो तेरा नाम था…
ख़ूबसूरत हूं, तेरी नज़रों ने माना है मुझे
मैं ज़िंदा हूं, तूने ज़िंदगी से मिलाया है मुझे
ख़्वाबों का नहीं, ख़ुश्क रेत का समंदर था भरा
ख़्वाब देकर तुमने, फूलों के रंग से सजाया है मुझे
रेत पे लिखती रही, मिटाती रही, वो तेरा नाम था
रातभर जिसे दिल गुनगुनाता रहा, वो तेरा नाम था…
कंचन देवड़ा
मेरी सहेली वेबसाइट पर कंचन देवड़ा की भेजी गई ग़ज़ल को हमने अपने वेबसाइट के गीत/ग़ज़ल संग्रह में शामिल किया है. आप भी अपनी शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…
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