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ग़ज़ल- ऐ दोस्त यह जीने का कोई ढंग नहीं है… (Ghazal- Ae Dost Yah Jeene Ka Koi Dhang Nahi Hai…)
ऐ दोस्त यह जीने का कोई ढंग नहीं है
कि सांस चल रही है पर उमंग नहीं है
अब जिससे पूछिए, है इसी बात का गिला
कि ज़िंदगी में पहले सा वो रंग नहीं है
अब ढूंढ़े से भी घर कोई ऐसा नहीं मिलता
जिसमें किसी मसले पे कोई जंग नहीं है
ये ज़िंदगी की राहें भी अजीब हैं यारों
सब साथ चल रहे हैं, पर कोई संग नहीं है...
दिनेश खन्ना
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