Close

कहीं आपका बच्चा बहुत ज्यादा बिज़ी तो नहीं? (Is your child overloaded with studies and curricular activities?)

 
 Pressure on Kids
आज ज़्यादातर पैरेंट्स अपने बच्चे को मल्टी टैलेंटेड बनाने में लगे हैं. स्कूल, ट्यूशन, हॉबी क्लासेस पूरा दिन वे बच्चे का बिज़ी शेड्यूल तय कर देते हैं, ताकि बच्चा भविष्य के लिए पूरी तरह रेडी हो. लेकिन ऐसा करते समय ध्यान रखें कि कहीं आपका बच्चा इतना बिज़ी न हो जाए कि उसका बचपन ही खो जाए और मल्टी टैलेंटेड बनने की जगह वह कुंठित बच्चा बन जाए.
सुबह 7 बजे स्कूल... 2 बजे घर लौटना. लंच, फिर होमवर्क... 4 बजे ट्यूशन... 6 बजे भरतनाट्यम क्लास, फिर स्विमिंग, गिटार, फुटबॉल क्लास... वीकेंड में म्यूज़िक या कोई और हॉबी क्लास... ज़्यादातर बच्चों का हाल आज यही है. अंतहीन एक्स्ट्रा क्लासेज़ के साथ बीतता बचपन... उन्हें मल्टी टैलेंटेड बनाने के चक्कर में बचपन की सीधी-सादी मासूम मौज-मस्ती, दोस्तों के साथ मटरगश्ती, गलियों में क्रिकेट खेलना सब कुछ छिनता जा रहा है. उनके जीवन के लिए मुक़ाम उनके माता-पिता ने तय तो कर दिए हैं, लेकिन इतने बिज़ी बचपन ने बच्चों को बेहद अकेला और नाख़ुश बना दिया है.
क्यों करते हैं पैरेंट्स ऐसा?
* पैरेंट्स डरते हैं कि कहीं आज के कॉम्पटिटिव दुनिया में हमारा बच्चा पिछड़ न जाए, इसलिए वे उसे मल्टी टास्किंग बनाने में जुट जाते हैं. * सोशल प्रेशर और दूसरों की देखादेखी भी कई पैरेंट्स ऐसा करते हैं. * पैरेंट्स ख़ुद बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षी हो गए हैं. उन्हें लगता है जो कुछ वो नहीं कर पाए, अपने बच्चों को उन सब में ट्रेंड कर दें. अपनी अधूरी इच्छाओं को वो अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं. * आजकल ज़्यादातर पैरेंट्स वर्किंग हैं. ऐसे में वो सोचते हैं कि बच्चा अकेले घर में रहकर क्या करेगा, इसलिए वो उसे अलग-अलग हॉबी क्लासेस में डाल देते हैं, ताकि वो एंगेज रहे. * पैरेंट्स वर्तमान में जीना नहीं चाहते, उन्हें बस भविष्य की चिंता है और इसी चिंता में वो बच्चों से उनका बचपन छीन लेते हैं. उन्हें लगता है जितना ज़्यादा वो बच्चों को सिखाएंगे, उनके बच्चे का भविष्य उतना ही ब्राइट होगा. बस इसी चक्कर में वो बच्चों को बिज़ी कर देते हैं. * उन्हें बच्चों का बायोडाटा इंप्रेसिव बनाना होता है, ताकि वो लोगों से बता सकें कि उनका बच्चा कितना टैलेंटेड है.
इन वॉर्निंग सिग्नल्स पर ध्यान दें
बहुत ज़्यादा एक्टीविटीज़ बच्चों को थका सकती हैं और उन्हें स्ट्रेस दे सकती हैं, जो उनकी पर्सनैलिटी और हेल्थ को प्रभावित कर सकता है. इसलिए बेहतर होगा कि पैरेंट्स कुछ सिग्नल्स को पहचानें और अगर आपके बच्चे में भी वे सिग्नल्स दिखाई दें, तो इससे पहले कि आपका बच्चा इससे प्रभावित हो, आप सचेत हो जाएं. - आपका बच्चा हर व़क्त बिज़ी रहता है. उसके पास शांति से बैठने की भी फुर्सत नहीं होती और जब फुर्सत मिलती है, तब तक वो इतना थक चुका होता है कि फैमिली के साथ बैठने या टीवी देखने का भी स्टेमिना नहीं बचता उसके पास. वो जाकर सीधा सो जाता है. - वो हमेशा थका हुआ महसूस करता है. हर समय दर्द की शिकायत करता है. - बिस्तर पर पड़ते ही तुरंत सो जाता है या फिर उसे नींद ही नहीं आती. - वो चिड़चिड़ा हो गया है. मूडी भी और हमेशा स्ट्रेस में नज़र आता है. - पढ़ाई या हॉबी क्लासेस में धीरे-धीरे उसकी दिलचस्पी कम होने लगी है. पहले जो उसकी हॉबीज़ थीं, अब उसे वही बोझ लगने लगी हैं. - उसके एकैडमिक परफॉर्मेंस में भी गिरावट आई है. - आप भी उसे टोकते-टोकते और उसके पीछे पड़कर परेशान हो चुके हैं.
बच्चों पर क्या असर होता है?
- सुबह से शाम तक भागदौड़ व बिज़ी लाइफ से बच्चे शारीरिक व मानसिक रूप से थक जाते हैं. - वो एग्रेसिव हो जाते हैं. बात-बात पर चिढ़ने लगते हैं. - उनमें एंज़ायटी के लक्षण दिखने लगते हैं. वे डिप्रेशन और बिहेवियरल प्रॉब्लम से ग्रस्त हो जाते हैं. - उनकी इम्यूनिटी लो हो जाती है, वे बार-बार बीमार पड़ने लगते हैं. - उन्हें ओबेसिटी, हाइपरटेंशन, लो स्टेमिना जैसी हेल्थ प्रॉब्लम्स हो जाती हैं. - ऐसे बच्चों का फिटनेस लेवल भी ख़राब हो जाता है.
क्या करें पैरेंट्स?
* अति किसी भी चीज़ की अच्छी नहीं होती. अगर आप बच्चों को एक साथ कई एक्टिविटीज़ में डालेंगे, तो वो कंफ्यूज़ हो जाएंगे. हो सकता है कि वो किसी भी चीज़ पर फोकस न कर पाएं. * कई पैरेंट्स बच्चों की उम्र और दिलचस्पी का ख़्याल किए बिना उन्हें एक्टिविटी क्लासेस में डाल देते हैं. उन्हें लगता है उनका बच्चा सब कुछ जल्दी-जल्दी सीख ले. ये सोच ही ग़लत है. ऐसा करने से बचें. * बैलेंस बनाने की कोशिश करें. न तो बच्चे को बैक टु बैक एक्टिविटी क्लासेस भेजें, ना ही उसे दिनभर टीवी देखने या यूं ही पड़े रहने दें. बच्चे की दिलचस्पी को देखते हुए उसे एक-दो हॉबी क्लास में ही डालें, ताकि वो जो कुछ भी सीखे, परफेक्टली सीख सके. * ज़रूरत न हो तो बच्चे को कोचिंग में भी न डालें. अगर बच्चे को स़िर्फ मैथ्स में ट्यूशन की ज़रूरत है, तो उसे स़िर्फ मैथ्स की ट्यूशन लगवाएं. बच्चा बिज़ी रहेगा या सारे सब्जेक्ट की ही कोचिंग कर लेगा, तो बुरा थोड़े ही है... इस सोच को बदलें. * एक्सपर्ट्स के अनुसार पढ़ाई के साथ एक क्रिएटिव एक्टिविटी और एक फिज़िकल एक्टिविटी ही काफ़ी है, बच्चे के डेवलपमेंट के लिए. ये सच है कि आजकल बच्चे स्मार्ट हैं. बहुत जल्दी कुछ भी सीख लेने की क्षमता है उनके पास और ऐसा करने के लिए सोशल प्रेशर भी है उन पर. लेकिन प्रॉब्लम तब ज़्यादा हो जाती है, जब इस प्रेशर के साथ पैरेंट्स का भी प्रेशर बढ़ जाता है. पैरेंट्स सोचते हैं कि वे अपने बच्चे को इतना कुछ सिखा दें कि वे करियर के उस गलाकाट प्रतियोगिता का सामना करने के लिए तैयार हो जाएं, जिसका सामना उन्हें एक दिन करना है. बस, इसी प्रयास में वे बच्चे को इतना बिज़ी कर देते हैं कि उनके पास सांस लेने का समय भी नहीं होता. अगर आप अपने बच्चे को सच में टैलेंटेड बनाना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि आप अपनी सोच को बदलें. अपनी ख़ुशियां या इच्छाएं बच्चे पर थोपने की बजाय उसकी ख़ुशियों और क्षमताओं के बारे में सोचें, ताकि आपका बच्चा बचपन की सीधी-सादी मासूम मौज-मस्ती या ख़ुशियों के साथ बड़ा हो.
- श्रेया तिवारी

Share this article