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काव्य- सावन से पहले चले आना… (Kavay- Sawan Se Pahle Chale Aana…)
सुनो ना...
सावन से पहले चले आना
बड़ा तरसी है आरज़ू तेरी ख़ातिर
इस बरस खुल के बरस जाना
मद्धिम हवा को साथ लिए
कुछ गुनगुनी बूंदों को हाथ लिए
जब दूर कहीं सूरज ढले
जब यहीं कहीं गगन धरा से मिले
दबे पांव
धीमी दस्तक से
दर मेरा खटखटाना
सुनो ना...
सावन से पहले चले आना
- मंजू चौहान
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