द्रौपदी
स्वयंवर
मैं अग्निसुता, मैं स्वयंप्रभा
मैं स्वयं प्रभासित नारी हूं
मैं यज्ञ जन्मा, और पितृ धर्मा
नहीं किसी से हारी हूं
हे सखे बताओ किंचित ये
क्यों हलचल सी मेरे मन में है?
वरण करूं मैं जिसका क्या
ऐसा कोई इस जग में है?
कैसे चुनूंगी योग्य पति
कैसे मैं उसे पहचानूंगी?
गर मेरे योग्य नही है वो,
तो कैसे मैं ये जानूंगी,
मेरे तेज को क्या कोई
सामान्य जन सह पाएगा
फिर सिर्फ़ निशाना साध मुझे
कोई कैसे ले जाएगा?
हे प्रभु, कहा है सखा मुझे
तो सखा धर्म निभाना तुम
क्या करूं क्या नहीं
सही राह दिखलाना तुम!..
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