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कविता- क्यों दर्ज होती हैं ढेरों आपत्तियां… (Kavita- Kyon Darj Hoti Hain Dheron Aapttiyan?..)

मैंने भर दिया ये आकाश
सारा का सारा
नन्हें-नन्हें तारों से
अपनी चुनरी की परवाह किए बिना..

मैंने सूरज को अर्घ्य दिया
ताकि फीकी न हो उसकी चमक
बनते रहें बादल..
बरसती रहे बारिश..
जीवित रहें वृक्ष..
और जीवंत रहें सभ्यताएं..

मैंने थालियों में परोसा स्वाद
ताकि गूंजतीं रहें दोनों ही घरों में
रोटियां थेपनें की मधुर आवाज़ें..

मैं भरती रही उम्मीदों का तेल
डिबिया में रातभर
ताकि पढ़ सको तुम
समृद्धि के लिए..

मैंने स्वीकारी
तुम्हारे ह्रदय की रिक्तता
और बन गई समर्पिता..

आज जबकि गढ़ना चाहती हूं
एक कविता
'सिर्फ़ अपने लिए'
..तो क्यों दर्ज होतीं हैं ढेरों आपत्तियां
मेरे ख़िलाफ़!!

Kavita
Namita Gupta 'Mansi'
नमिता गुप्ता 'मनसी'

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