कभी-कभी
मैं कुछ नहीं भी कहती हूं
तुम
तब भी सुन लेते हो..
कैसे!
कभी-कभी
मैं कुछ कहती हूं
तुम समझते कुछ और ही हो
पता नहीं, क्यों!
कभी-कभी
तुम कहते तो हो
पर, मैं समझना ही नहीं चाहती!
कभी-कभी
बहुत कुछ कहते-सुनते हैं
हम-दोनों
एक-दूसरे के मौन में
और
करते रहते हैं
मन की बात…
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