"टेंशन मत ले। ऐसा नहीं होने दूंगा मैं। आज जो स्टोरी मैं कवर करने जा रहा हूं, वह भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में सबसे डरावनी सच्ची कहानी साबित होगी। मैंने अपने सोर्स से सब जानकारी ले ली है। दिस विल बी ए गेम चेंजर।…"
चैप्टर 1
बदले की शुरुआत...
रात के करीब १२ बज रहे थे। महाराष्ट्र के अमरावती जिले के पास एक जंगल से कुछ दूर हाईवे पर एक SUV कार तक़रीबन 100 किलोमीटर की स्पीड से जा रही थी। ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए राशिद का अचानक फ़ोन बजा। राशिद ने तुरंत अपने कार के इनबिल्ट ब्लूटूथ से कॉल रिसीव किया, "यस , सुप्रिया। में १० मिनट में पहुंच रहा हूं।"
दूसरी तरफ सुप्रिया -"राशिद तुमको मालुम हे ना कल सुबह की डेडलाइन हे। अगर कल तक स्टोरी सबमिट नहीं की तो एडिटर तेरी और मेरी दोनों की नौकरी खा जाएगा। "
राशिद ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ," टेंशन मत ले। ऐसा नहीं होने दूंगा में। आज जो स्टोरी में कवर करने जा रहा हु , वह भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में सबसे डरावनी सच्ची कहानी साबित होगी। मैंने अपने सोर्स से सब जानकारी लेली है। धिस विल बि ए गेम चेंजर । आई हैव गॉट थीस। सी यू लेटर। "इतना बोलते ही राशिद ने फ़ोन कट करदिया | उसके चेहरे पर एक आत्मविश्वास दिख रहा था।
राशिद एक टेलीविज़न न्यूज़ चैनल का एंकर है। पहले वह क्राइम रिपोर्टर था। लेकिन पिछले एक -दो सालो से वह उसी न्यूज़ चैनल के एक हौन्टेड रियालिटी शो के लिए भूत / आत्मा की सच्ची कहानिओ को कवर कर रहा है। आज भी वह एक ऐसी ही स्टोरी को कवर करने जा रहा है।
कुछ देर ड्राइव करने के बाद राशिद को जंगल शुरू होने की सुचना पट्टी दिखी। उसने और 500-मीटर कार ड्राइव करके आगे एक सुमसान जगह पर साइड में कार को पार्क कर दिया। वह इंजन को बंद करके एक पल के लिए कुछ सोचता रहा और एक लम्बी सी सांस लेके अपने स्पेशियल कैमरा को हाथ में लेके गाडी के बाहर उतरा। उसने ब्लैक कलर का जीन्स और ब्लू कलर का टीशर्ट पहन रखा था। ठंडी का मौसम है इसीलिए एक ग्रे कलर का जैकेट भी पहना हुआ था। उसके ऊपर गले में लटका हुआ ID कार्ड उसकी पहचान दे रहा थi। क्लीन शेव और घुंगराले बालो के साथ उसका दिखाव किसी पिक्चर के हीरो से कम नहीं था।
उसने गाडी से उतर कर अपनी आस पास देखा। हाईवे पर इस वक़्त कोई गाडी दिख नहीं रही थी। एक अजीब सा सन्नाटा था वहा पर। ठंडी की वजह से काफी सारा फोग था इसलिए उसने अपने पास रखी हुई टोर्च चालू करदी थी। उसकी घडी में तक़रीबन रात के 12.30 बज रहे थे। उसने अपने फ़ोन से सुप्रिया को फ़ोन किया ,सामने से सुप्रिया ने दो रिंग में ही फ़ोन उठा लिया। राशिद ने उसको बताते हुए कहा , "मैं लोकेशन पर पहुंच गया हु लेकिन कोई दिख नहीं रहा “।
सुप्रिया ने जवाब देते हुए कहा, " यादव अपनी टीम के साथ पहुंच रहा है। मेरी अभी बात हुई है उनके साथ। उनकी गाडी का पंक्चर हो गया है। तक़रीबन 30-40 मिनट में पहुंच जाएँगे वह लोग। ".
राशिद ने तुरंत जवाब दिया, " क्या? इतना सारा वक़्त नहीं है अपने पास। कल सुबह तक मुजे यह स्टोरी कवर करनी है। में उनलोगो की वजह से अपना टाइम बर्बाद नहीं कर सकत। में अपना काम चालू कर रहा हु। उनको बोलो मेरा लोकेशन ट्रैक कर के मुजे जंगल के अंदर ही मिले ."
सुप्रिया ने तुरंत ही गभराते हुए दूसरी तरफ से बोला," नहीं राशिद। जल्दबाज़ी मत करो। अकेले वहा जाना खतरे से खाली नहीं। तुम्हे मालुम है ना वहा पर क्या क्या हो रहा है और काफी लोग मारे जा चुके है !! कुछ देर वैट करलो। "
लेकिन राशिद ने बात ना मानते हुए बोला," मेरी चिंता मत करो। मुजे कुछ नहीं होगा। यह मेरी पहली घोस्ट कवर स्टोरी नहीं है। आई विल मैनेज थीस। यादव को बोलो मेरा लोकेशन ट्रैक कर के मुजे जंगल के अंदर ही मिले। " इतना बोलते ही राशिद ने फिर से फ़ोन कट कर दिया।
दूसरी तरफ सुप्रिया "हेलो, हेलो" बोलती रही लेकिन तब तक फ़ोन कट हो चूका था। उसको मालुम था की कॉल बैक करके फायदा नहीं है क्यों की राशिद एक ज़िद्दी इंसान है। वह उसकी बात नहीं मानेगा। सुप्रिया के चेहरे पर साफ़ - साफ़ चिंता की लकीरे दिख रही थी। उसको पता था अब वह कुछ नहीं कर सकती।
एक बार फिर से राशिद ने अपनी चारो और देखा। कोई दिख नहीं रहा था। उसने अपने जेब से सिगरेट निकाल कर अपने मुँह में रखी और अपने दूसरी जेब में से लाइटर निकाल कर उसको जालाया। 2 – 3 लम्बे कश लेने के बाद उसने सिगरेट को वही फ़ेंक दिया। सिगरेट को अपने पाँव से कुचल कर उसको बूजा दिया और वह जंगल की और बढ़ गया।
राशिद धीरे धीरे जंगल में आगे बढ़ रहा था। काफी सन्नाटा छाया हुआ था चारो और। घने अँधेरे जंगल में कुछ ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा था।राशिद ने अपनी टोर्च चालू कर दी थी लेकिन अँधेरे और फोग की वजह से टोर्च भी ज़्यादा दूर तक रौशनी नहीं दे रही थी। सन्नाटे में जुगनू की आवाज़ और पैर के निचे टूटे हुए पेड़ के सूखे पत्ते एक डरावना माहौल बना रहे थे। कोई जानवर तो नहीं था लेकिन पेड़ो पे लटके हुए जमगादर अपने आवाज़ों से डर का माहौल पैदा कर रहे थे। अब राशिद चलते चलते हाईवे से काफी दूर आ चूका था।
अचानक सामने की झाड़िओ में कुछ आवाज़ आने लगी। ऐसा लग रहा था की झाड़िओ के पीछे कोई है। अचानक से झाडिया हिलने लगी। यह देख कर राशिद चौकन्ना हो गया और उसने अपने स्पेशियल कैमरा को झाड़िओ की तरफ कर के रिकॉर्डिंग चालू करदी। अचानक से झाड़िओ की हिलने की आवाज़ तेज़ हो गयी और तभी अचानक राशिद के हाथ की टोर्च की रौशनी बंधहो गयी। तुरंत ही राशिद टोर्च को अपने हाथो से टपकारने लगा और दूसरी तरफ झाड़िओ की हिलने की आवाज़ और तेज़ हो गयी। अब ऐसा लग रहा था की कोई झाड़िओ में से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है।
इस वक़्त राशिद एकदम डर गया और जोर से अपनी टोर्च को टपकारने लगा। अचानक से टोर्च की रौशनी वापिस आगयी। राशिद ने तुरंत ही झाड़िओ की और देखा तो उसमे से तीन खरगोश बाहर आये। यह देहते ही राशिद गुस्से में बोला , "यू लिटिल शीट …" और अपने पावो से उन करगोशो को डरा के भगा दिया.I अब राशिद ने राहत की सांस लीI अचानक उसको महसूस हुआ की कोई उसके पीछे खड़ा है और ज़ोरो से साँसे ले रहा है। उसने एकदम पलट कर देखा लेकिन वहा पर कोई नहीं था। उसको लगा की शायद उसका भ्रम है। राशिद ने वापिस एक सिगरेट जलाई और कश लेते लेते वह आगे चलने लगा।
राशिद धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था तभी उसको लगा की कोई उसका नाम लेके उससे बुला रहा ह।राशिद ने अपनी टोर्च को चारो और घुमाया लेकिन कोई दिखाई दे नहीं रहा थ।राशिद ने उसको अपना भ्रम समज कर आगे चलना चालू किय। अब वह आवाज़ आना बंध हो गई थ।कही ना कही अपने मन में राशिद सोच रहा था की उसको सुप्रिया की बात मान लेनी चाहिए थी। अब तक वह तक़रीबन 30 मिनट के ऊपर चल चूका था लेकिन अपने शो की स्टोरी के लिए कंटेंट कहलाने लायक कुछ मिला नहीं था।वह सोचने लगा की शायद वह अपना समय बर्बाद कर रहा है और उसको वापिस मूड जाना चाहिए।.
राशिद ने अपनी सिगरेट के दो लम्बे कश लेकर वही फ़ेंक कर पहले की तरह अपने पाँव से बुजा दिय।अब वह वापिस जाने के लिए मुडा ही था की अचानक उससे कुछ आवाज़ आने लग। उसने ध्यान से सुनने की कोशिश की तो ऐसा महसूस हुआ की वह आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई पेड़ काट रहा हो। राशिद को थोड़ा अजीब लगा इसलिए उसने वहा जाकर देखने का फैसला किया।
राशिद धीरे धीरे आवाज़ की तरफ आगे बढ़ रहा था। जैसे जैसे वह आगे बढ़ रहा था वैसे आवाज़ तेज़ होती जा रही थी।तभी अचानक राशिद को दूर एक पेड़ पर कोई कुल्हाड़ी मार रहा हो ऐसा महसूस हुआ। राशिद ने अपने कैमरा को चालू किया और वही दिशा में रिकॉर्ड करते करते धीरे आगे बढ़ा। कुछ कदम चलने के बाद उसको साफ़ साफ़ दिख रहा था की कोई पेड़ को कुल्हाड़ी से काट रहा है.राशिद ने पेड़ काटने वाले को मालुम ना पड़े इस तरीके से धीरे धीरे दूसरी तरफ से आगे बढ़ना चालू किया ताकि वह पेड़ काटने वाले इंसान का चेहरा साफ़ साफ देख सके।
कुछ कदम चलने के बाद राशिद उस जगह पर पहुंच गया जहां से वह पेड़ काटने वाले का चेहरा साफ़ साफ़ देख सके। जैसे ही राशिद वहा पंहुचा, वहा का मंज़र देखते ही राशिद के होश उड़ गए, क्यों की जो इंसान पेड़ काट रहा था, उस इंसान का सर गायब था। वह एक सर-कटा इंसान का भूत था।
यह देखते ही राशिद की आँख फटी की फटी रह गयी। एक पल के लिए उसके दिल की धड़कन बंध हो गयी। तभी अचानक वह सर-कटा इंसान गायब हो गया।अब राशिद पूरी तरह से डर गया था।इतनी ठंडी की मौसम होने के बावजूद भी वह पसीने पसीने हो रहा था।तभी उसको किसी के चलने की आवाज़ आयी। वह आवाज़ वहा से आ रही थी जहा से सर - कटा इंसान कुछ देर पहले गायब हुआ था। वह चलने की आवाज़ को अपनी तरफ आती हुई सुनकर राशिद और डर गया और उसने बिना कुछ सोचे समजे भागना चालू कर दिय। इस हड़बड़ाहट में टोर्च उअके हाथो से गिर गयी। कुछ दूर भागने के बाद अब वह चलने की आवाज़ बंध हो चुकी थी और दूसरी तरफ इतना भागने की वजह से राशिद की साँसे भी फूल गयी थी और वह ज़ोरो से हाफने लगा।
उसने अपने मोबाइल को निकाल ने की कोशिश की तो उससे मालुम पड़ा की वह कही गिर गया है। अब उसके पास कोई जरिया नहीं था जिससे वह किसीको कांटेक्ट कर सके।राशिद पूरी तरह डर चूका था।तभी अचानक कही दूर से कुछ लोगो की चीखने और चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। यह आवाज़े सुनकर राशिद और डर गया। अब वह आवाजे धीरे धीरे नज़दीक आ रही थी लेकिन जंगल में उसके सिवा कोई दिख नहीं रहा था।राशिद को समज में ही नहीं आ रहा था की वह क्या करे।वह वापिस जाने का रास्ता भी भूल चुका था।अब वह आवाज़े तेज़ होती जा रही थ।राशिद साफ़ साफ़ सुन सकता था,अचानक वह गिङगिङाने लगा की “मुजे माफ़ करदो, मुझसे भूल हो गयी। ऐसा लग रहा था की राशिद उन आवाज़ों को पहले से पहचानता है।
तभी राशिद को कोई पीछे से उसकी तरफ आते हुए महसूस हुआ, तुरंत ही राशिद ने वापिस भागना चालू किया।डर और थकान की वजह से उसकी हालत बुरी हो चुकी थी लेकिन वह पूरी कोशिश कर रहा था अपने आप को बचाने की। वह जितना तेज़ भाग रहा था उतनी ही तेज़ कोई चीज़ उसका पीछा कर रही थी।अचानक भागते भागते राशिद का पाँव एक पत्थर से टकराया और वह गिर गया।उसने जैसे ही उठने की कोशिश की तो सामने अचानक कही से वह सीर-कटा हैवान प्रकट हो गया और दूसरी ही पल में उस सर-कटे हैवान ने राशिद के सीर के बीचो - बिच कुल्हाड़ी मार कर उसकी खोपड़ी फाड् दी । उसके सर में से खून की बौछार उडी और वह एक लाश बनकर वही पर गिर गया।उसका बेजान शरीर खून में लथपथ हो रहा था।
थोड़ी देर के बाद यादव अपने दो साथियो के साथ राशिद को ढूंढते ढूंढते जंगल में जा पहुंचा । राशिद का लोकेशन ट्रैक करते करते उन लोगो को राशिद का मोबाइल मिला लेकिन राशिद कही दिखाई नहीं दे रहा था।उस वक़्त घडी में रात के ढाई बज रहे थे। आस पास का माहौल और राशिद का कही नज़र नहीं आना उन लोगो के दिल में डर पैदा कर रहा था। उन लोगो ने फैसला किया की तीनो लोग अलग अलग दिशा में जाएँगे और 20 मिनट के बाद यही वापिस मिलेंगे।उन्हों ने एक पेड़ पर निशान किया और अलग अलग दिशा में आगे बढ़ गए।इस वक़्त गहरा सन्नाटा और अँधेरा एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहा था।यादव और उनके दोनों साथिओ भी एक हद तक डर्रे हुए थे । तक़रीबन 20 मिनट के बाद यादव और उसका एक साथी वापिस वही जगह आ पहुंचे
जहा से वह तीनो अलग हुए थे।
" इस तरफ तो कोई नहीं है।तुजे कुछ दिखा?" यादव ने अपने साथi को पूछा।
उसके साथी ने अपना सर हिलाके ना में जवाब दिया। तभी दोनों को एहसास हुआ की उनका तीसरा साथी वापिस नहीं आया। अब दोनों को थोड़ी चिंता होने लगी और कुछ अनहोनी होने का अंदाजा आ रहा था। दोनों ने एक दूसरे को देखा जैसे इशारो में बात कर रहे हो। दोनों ने फिर वही दिशा में चलना चालु किया जहा पर उनका तीसरा साथी गया था। बिच बिच में वह लोग राशिद और अपने तीसरे साथी का नाम पुकार रहे थे लेकिन कोई जवाब नहीं आ रहा था। यह बात उन लोगो के दील में और डर पैदा कर रही थी।
उन लोगो के हाथ में टोर्च थी लेकिन फॉग होने के कारण ज़्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। तक़रीबन दस मिनट चलने के बाद उनको दूर से ऐसा लगा की कोई ज़मीन पर लेता हुआ है। दोनों ने एक दूसरे को देखा और धीरे धीरे सावधानी से आगे बढे।
कुछ कदम चलने के बाद उनको कोई इंसान जमीन पर गिरा हुआ दिखा। वह उनका तीसरा साथी ही था जो बेहोश हो गया था। वह दोनों जल्दी से भागे और उसके पास पहुंच गए। यादव ने उसका सर अपने पैर पर ले लिया और दूसरे साथी ने अपनी पानी की बोतल में से थोड़ा पानी लेकर उसके चेहरे पर छिटका। कुछ पल में वह होश में आया लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। ऐसा लग रहा था की उसने कोई भूत देख लिया है। उसके चेहरे पर डर साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था।
उसने आगे की तरफ ऊँगली से इशारा कीया लेकिन कुछ बोल नहीं पाया। यादव ने अपने दूसरे साथी को देखा और वह भी जैसे समज गया हो वैसे दोनों ने धीरे धीरे अपने तीसरे साथी को संभलकर खड़ा किया और आगे की और बढे।कुछ कदम चलने के बाद उन लोगो ने देखा की कोई ज़मीन पर गिरा हुआ है। तीनो थोड़े नज़दीक गए और वहा का मंज़र देख कर तीनो के मुँह में से चीख निकलते निकलते रह गयी। वह लोग अपनी फटी आँखों से उस तरफ पुतले की तरह देख रहे थे। वहा निचे ज़मीन पर राशिद की खून मैं लथ-पथ लाश पड़ी थी।
कुल्हाड़ी राशिद के सर के बीचो बिच फसी पडी थी और उसकी आँखे खुली थी। अभी भी उसके सर में से खून निकल कर पुरे शरीर पे फैल रहा था। अचानक से तीनो में एक फुर्ती आगयी और तीनो ने हाईवे की तरफ भागना शुरू किया। कुछ देर बाद वह तीनो अपनी कार के पास पहुंच गए। तीनो ऐसे हाफ रहे थे जैसे की कोई मॅरेथॉन भाग के आये हो। एक ने पुलिस को फ़ोन किया और एक ने सुप्रिया को फ़ोन करके पूरी वारदात की जानकारी दी।राशिद के बारे में मालुम होने के बाद सुप्रिया बेहोश हो गयी। थोड़ी देर में पुलिस भी वहा पहुंच गइ और तहक़ीक़ात शुरू करदी थी।
सुबह के तक़रीबन पांच बज रहे थे। एस.पि.शर्मा अपने कमरे में बेड पर सो रहे थे। उनके बाजू मे उनकी पत्नी भी सोई हुई थी। कमरा काफी बड़ा था और लग रहा था की ऐस. पि. साहब ने काफी खर्चा किया है। अचानक से टेबल पर रखे हुए मोबाइल फ़ोन में रिंग बजी। दो रिंग बजने के बाद एस. पि. शर्मा ने फ़ोन उठा लिया। आधी नींद की आवाज़ में उन्हों ने, "हैलो" कहा। सामने से उनके जूनियर अफसर ने राशिद के खून की जानकारी दी।
सारी बात सुनने के बाद एस.पि. शर्मा ने अफसर को कहा, " 9 बजे मुजे डिटेल रिपोर्ट के साथ ऑफिस में मिलना " और इतना कहने के बाद उन्होंने कॉल कट कर दिया।
दूसरे दिन सुबह 9 बजे अफसर रिपोर्ट के साथ एस. पि शर्मा के ऑफिस में पहुंच गया। एस. पि. शर्मा ने अफसर को बैठने को कहा और अफसर से रिपोर्ट लेकर पढ़ने लगे। रिपोर्ट के पहले ही पन्ने पर राशिद के शव का फोटो था। वह देख कर तुरंत ही एस.पि. शर्मा चौंक गये। उनके चेहरे पर चिंता की रेखा दिखने लगी।
"सर आप ठीक तो है?" अफसर ने तुरंत ही एस. पि. शर्मा की हालत देख कर उनको पूछा। अपने आप को सँभालते हुए एस. पि शर्मा ने कहा, "नथिंग I आई ऍम फाइन। गिव मि ध अपडेट"।
"सर ,इसका नाम राशिद था। एक न्यूज़ चैनल के लिए काम करता था काफी बड़े लोगो के साथ उठाना बैठना था। अपने चैनल के एक शो के लिए शूट कर रहा था", ऑफिसर ने एस.पि शर्मा को जानकारी देते हुए कहा। अपनी बात ख़तम करते वक़्त अफसर के चेहरे पर अजीब सी चिंता दिख रही थी। एस. पि. शर्मा ने तुरंत ही सवाल किया, "क्या हुआ अफसर? ऐसा लग रहा है तुम्हारे दिमाग में कुछ चल रहा है।"
अफसर ने अपने आपको स्वस्थ किया और कहा, "सर, यह इस महीने की तीसरी वारदात है वह जंगल में। पहले दो लोगो की भी इसी तरह निर्मम हत्या की गयी थी "।
एस. पि. शर्मा ने थोड़ी कड़क आवाज़ में पूछा, "तुम कहना क्या चाहते हो अफसर? साफ़ साफ़ अपनी बात कहो । "
अफसर ने जवाब देते हुए कहा, "सर, कही गांव वालो की बात सच तो नहीं ? शायद यह सारी हत्या वह भूत ..." अफसर अपनी बात पूरी करे उसके पहले ही एस. पि. शर्मा गुस्से में, "कैसी पागलो जैसी बात कर रहे हो? अपनी नाकामिनिओ को भूत का नाम मत दो। मीडिया पहले ही पुलिस के पीछे लगी रहती है। ऐसी बात करके और मज़ाक मत बनाओ डिपार्टमेंट का। "
"सॉरी सर", अफसर ने एस. पि. शर्मा से माफ़ी मांगते हुए निचे की और देखा. "तुम जा सकते हो। और मुजे जल्द से जल्द इस केस पर कोई रिजल्ट चाहिए। "
अफसर एस. पि. शर्मा को सल्यूट कर ऑफिस के बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद एस. पि. शर्मा अपनी खुर्सी पर बैठ कर कुछ सोचने लगे। ऐसा लग रहा था की वह किसी बात को लेकर टेंशन में है। तभी उनके मोबाइल पर किसी का फ़ोन आय।मोबाइल स्क्रीन पर ऍम.एल. ए. शिंदे लिख कर आ रहा था। एस. पि. शर्मा ने तुरंत फ़ोन रिसीव किया लेकिन एस. पि. शर्मा कुछ बोले उसके पहले ही सामने से ऍम.एल. ए. शिंदे ने बोलना चालू कर दिया," में जो सुन रहा हु वह सच है? राशिद की हत्या किसने की है?" शिंदे की आवाज़ में काफी हड़बड़ाहट थी।
उसको शांत करते हुए एस. पि. शर्मा ने कहा, "चिंता मत कीजिये। में इस मामले को पर्सनली इन्वेस्टीगेट करुगा।
लेकिन शिंदे शांत नहीं हुआ और पुलिस डिपार्टमेंट की नाकामिनिओ की वजह से काफी खरी-खोटी सुनाई और आखिर में कहा, "तुम सब निकम्मे हो।एक बात समजलो, अगर में डूबा तो सब डूबेंगे" और इतना बोलके शिंदे ने फ़ोन कट कर दिया।
फ़ोन कट होने के बाद एस. पि. शर्मा को गुस्सा तो आया की वह उस एम् .एल. ए के दांत तोड़ दे लेकिन अपने गुस्से पर काबू रख कर वह कुछ गहरी सोच में चले गये। कुछ पल के बाद एस. पि. शर्मा ने अपने फ़ोन से एक नंबर डायल किया और एक दो रिंग में ही सामने से "हैलो" की आवाज़ आयी. "जे .डी. एक बुरी खबर है। कल रात को जंगल में किसी ने राशिद का खून कर दिया है।" एस. पि. शर्मा ने सामने वाले आदमी को पूरी बात बतायी।
"ठीक है। तुम अपना काम चालू रखो में डेविड को भेज रहा हु। " इतना बोल के सामने वाले आदमी ने फ़ोन कट कर दिया ।
वैसे तो अपनी बीस साल की करियर में एस. पि शर्मा ने कही खून के केस सुलझाए लेकिन यह केस एस. पि शर्मा को कुछ अजीब सी परेशानी दे रहा था। अभी तो इन्वेस्टीगेशन शुरू ही हुयी थी लेकिन लग रहा था की जैसे एस. पि. शर्मा को सच पता है।
चैप्टर 2
सब की मौत आएगी....
जंगल में एक लड़की धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। आधी रात का वक़्त था।दूर दूर से जंगली जानवरो के रोने की आवाज़े आ रही थी। चलते चलते लड़की एक पेड़ के पास पहुंची जिसको देख कर ऐसा लग रहा था की अभी अभी किसी ने उस पेड़ को काटने की कोशिश की हो। और वही पर एक ID कार्ड पड़ा हुआ था। लड़की ने उस ID कार्ड को उठाया तो उसपे राशिद का नाम और उसकी तस्वीर थी। अचानक से सामने से एक जमगादर लड़की की तरफ उड़ता हुआ आया। लड़की तुरंत ही डर के मारे निचे जुक गय।लड़की के चेहरे पर डर के मारे पसीना आ रहा था।उसकी हालत देख कर ऐसा लग रहा था की वह किसी को ढूंढ रही हो।
अचानक से उससे लगा की कोई झाड़ियो में से निकल कर उसकी और भाग रहा है। उसने पीछे मूड कर देखा तो उसके मुँह में से एक चीख निकल गयी और चेहरे पर डर साफ़ साफ़ दिख रहा था । लड़की ने अपने जिस्म में जितनी भी ताकत थी उससे भागना शुरू किया। अँधेरे में कभी झाड़ियो से तो कभी पेडो से टकरा रही थी लेकिन वह रुकी नहीं। वह भागते भागते पीछे देख रही थी तो वह चीज़ उसका उतनी ही तेज़ी से पीछा कर रही थी।
अचानक से भागते भागते उसका पाँव एक पत्थर से टकराया और वह निचे ज़मीन पर गिर गयी। दर्द की वजह से वह लड़की कराह ने लगी।जो चीज़ उसके पीछे भाग रही थी उसने उस पर हमला कर दिया।तभी अचानक से सुप्रिया की आँख खुल गयी और उससे एहसास हुआ की वह एक डरावना सपना देख रही थी।डर के मारे वह पूरा पसीना पसीना हो चुकी थी मानो की अभी अभी नहा कर आयी हो। वह ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी। कुछ पल अपने बिस्तर पर ऐसे ही बैठी रही और फिर उसने दीवाल पर टंगी हुई घडी में समय देखा तो इस वक़्त सुबह के साढ़े पांच बज रहे थे। अब वह धीरे धीरे शांत हुई लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी थोड़ा डर दिख रहा था। थोड़ी देर के बाद वह अपने बिस्तर से खड़ी हुई , ऐसा लग रहा था की उसने कोई फैसला किया हो।
"नो! नो सुप्रिया! I can't let you to do this!" सुप्रिया अपने एडिटर की ऑफिस में उसके साथ वही जंगल में जाने की बहस कर रही थी जहा पर राशिद का खून हुआ था लेकिन एडिटर ने मना कर दिया।
" लेकिन सर, प्लीज ट्राय टू अंडरस्टैंड। आई रियली नीड टू डू थीस। मुजे वहा जाकर सचाई की तेह तक जाना है" सुप्रिया ने अपने एडिटर से कहा।
" सुप्रिया मैं जानता हु की राशिद के साथ जो कुछ भी हुआ उससे तुम काफी डिस्टर्ब हो लेकिन मैं तुमको अपनी ज़िंदगी को खतरे में डालने की इज़ाज़त नहीं दे सकता। पहले भी काफी वारदाते हुई है वहा और पुलिस अपना काम कर रही है। में तुम्हे यह करने की इज़ाज़त नहीं दूंगा।" एडिटर ने सुप्रिया को मन करते हुए कहा।
" सर आई ऍम सॉरी लेकिन मैं इस बात की तह तक जाना चाहती हूं।अगर चैनल और आप मेरी मदद नहीं कर सकते तो में अपने आप ही इसका पता लगा लुंगी" इतना बोलते ही सुप्रिया एडिटर की केबिन के बाहर निकल गयी।
एडिटर चाहके भी कुछ नहीं बोल पाया और सुप्रिया को जाते हुए देखता रहा। कुछ पल के बाद एडिटर ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया।एक - दो रिंग में सामने से फ़ोन रिसीव हुआ, " वह नहीं मानी। अब तुम्हे ही कुछ करना पड़ेगा" इतना कहने के बाद एडिटर ने फ़ोन कट कर दिया।
एस. पि शर्मा अपने ऑफिस में केस फाइल पढ़ रहे थे तभी उनका एक कॉन्स्टेबल आया और सेल्यूट करके बोला," जय हिन्द सर, आपसे कोई मुंबई से मिलने आया है"।
एस. पि. शर्मा ने कांस्टेबल को उसको अंदर भेजने के लिए कहा। कांस्टेबल वापिस सेल्यूट करके बाहर चला गया और उस आदमी को अंदर जाने के लिए कहा। कुछ पल के बाद एक मध्यम कद का लेकिन चौड़ी छाती वाला एक आदमी एस. पि. शर्मा की केबिन के अंदर दाखिल हुआ। उसने ब्लू जीन्स और ब्लैक कलर का टी -शर्ट और उसके ऊपर ब्राउन कलर का जैकेट था। हाथो में सोने का ब्रासलेट और दस मे से सात उंगलिओ में सोने की अंगूठी थी। चेहरे पर किसी पुराने ज़ख़्म के निशान थे। उसकी उम्र चालीस साल के आस पास की लग रही थी। वह किसी बॉडीबिल्डर से कम नहीं लग रही थी।उस आदमी को देखते ही एस. पि. शर्मा एक पल के लिए चौंक गये लेकिन दूसरे ही पल में उन्हों ने खुद को संभाल लिया और उस आदमी को बैठने को कहा।
वह आदमी एस.पि. शर्मा की ऑफिस में तक़रीबन तीस मिनट तक था और दोनो के बिच में काफी बाते हुई। कुछ वक़्त के बाद वह आदमी एस.पि. शर्मा की ऑफिस में से निकला तभी दूसरा आदमी सामने की तरफ से आया।दूसरा आदमी इतनी हड़बड़ी में था की वह उस आदमी के कंधे से टकरा गय। दोनों ने एक दूसरे को सॉरी कहा और अपने अपने रास्ते चल बने।दूसरा आदमी एस.पि. शर्मा की ऑफिस में दाखिल हुआ, उसको देख कर एस.पि. शर्मा बोल पड़े,“ अरे आरिफ तुम ! कब आये? “.
लेकिन आरिफ जवाब देने की बजाए रोने लगा। एस.पि. उसको शांत करते हुए, “ हमें भी तुम्हारे भाई की मौत का बहुत अफ़सोस है। हम पर भरोसा रखो हम उसके कातिल को जल्द से जल्द पकड़ लेंगे. इस वक़्त तुम्हे हिम्मत से काम लेना होगा।”
दूसरी तरफ आरिफ रोते हुए, “सर, लेकिन यह कैसे हो गया? एक दिन पहले ही मेरी भाई से बात हुई थी। वह मुजे अगले हफ्ते मिलने भी आने वाले थे।”
एस.पि. शर्मा कुछ बोले नहीं और उसको देखते रहे।कुछ देर बाद एक लम्बी सांस लेते हुए ,“आरिफ, हम इन्वेस्टीगेशन कर रहे है।जैसे ही कुछ मालुम पड़ेगा तो में खुद तुमको बताउगा। फिलहाल हिम्मत से काम लो"।
आरिफ कुछ देर ऐसे ही मायूस होकर बैठा रहा और फिर उसने धीरे धीरे खुद को शांत किया। “सर, जब तक यह इन्वेस्टीगेशन पूरी नहीं हो जाती, में इसी गांव में रहुगा। जिसने भी मेरे भाई को मारा है, उसको सज़ा दिलवाके ही रहुगा” और इतना बोलते ही वह वहा से चला गया।एस.पि. शर्मा ने उसको रोकने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहे।
आरिफ राशिद का छोटा भाई था। दोनों में ज़्यादा उम्र का फर्क तो नहीं था लेकिन आरिफ अपने भाई को एक बाप की तरह मानता था।आरिफ पुणे में आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर था और एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहा था।
राशिद की हत्या को दो – तीन दिन हो चुके थे।पुलिस अपनी इन्वेस्टीगेशन कर रही थी, मीडिया भी अपनी तरफ से प्रशाशन पर दबाव डाल रही थी लेकिन कही से भी कोई सुराग नहीं मिल रहा था।एस. पि शर्मा के लिए यह केस सॉल्व करना जरूरी था क्यों की उनको मीडिया और सरकार के साथ अपने कुछ “ख़ास दोस्तों” को भी जवाब देना था।
मुंबई के एक कैफ़े में सुप्रिया अपने दोस्तों के साथ राशिद के मौत के सिलसिले में बाते कर रही थी।“सुप्रिया, तुम एक बार फिर सोचलो, क्या तुम सही में यह करना चाहती हो?” अनुज ने सुप्रिया को पूछा।
“हा अनुज, मैंने फैसला कर लिया है।अब में खुद राशिद की हत्या का सच ढूंढूगी” सुप्रिया ने अनुज को कहा।
” लेकिन तुम्हे पता है ना वहा जाना कितना खतरनाक है।और तुम ही कह रही थी की राशिद के पहले भी वहा और भी कही ऐसी वारदाते हो चुकी है। और पुलिस तो अपना काम कर ही रही है” रिया ने सुप्रिया को समजाते हुए कहा।
अनुज और रिया सुप्रिया के बहुत अच्छे दोस्त थे और दोनों सुप्रिया को उस जंगल में नहीं जाने के लिए समजा रहे थे लेकिन सुप्रिया अपना फैसला कर चुकी थी।वह अपने दोस्तों की किसी बातो को नहीं मान रही थी।
“सुप्रिया, तुम्हारे पापा एक बड़े बिजनेसमैन है, और काफी पॉलिट्सियन्स से अच्छी पहचान भी है।तुम अपने पापा को बोलकर पुलिस पे दबाव क्यों नहीं बनवाती हो?” रिया ने सुप्रिया को सवाल किया।
“नहीं रिया, तुम तो जानती हो, मुजे पापा के तरीको से सख्त नफरत है। और मेरे लिए राशिद सिर्फ एक मेंटर और सह कर्मचारी ही नहीं लेकिन एक अच्छा दोस्त भी था। उस जंगल पर स्टोरी कवर करने का आईडिया मेरा था।कही ना कही में भी उसकी मौत की जिम्मेदार हु।” इतना बोलते ही सुप्रिया रोने लगी ।
उसके दोस्तों ने उसको संभाला और शांत किया।आखिर में अनुज ने कहा, “वी अंडरस्टैंड यू। लेकिन तुम वहा अकेली नहीं जाओगी।हम दोनों भी साथ आएगे।” अनुज को सुप्रिया मना नहीं कर सकी और उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कराहट खिल उठी।
गनेश, अपनी खोली में अपने आदमीओ के साथ कुछ बात कर रहा था तभी उसका फ़ोन बज उठा। फ़ोन की स्क्रीन पर डेविड लिखा आ रहा था।यह नाम देखते ही गनेश ने फ़ोन रिसीव किया।सामने से उस डेविड नाम के आदमी ने कुछ कहा और जवाब में गनेश सिर्फ हां में हां करे जा रहा था।तक़रीबन दो-तीन मिनट के बाद दोनों की बात ख़तम हुई और गनेश ने फ़ोन रख दिया।
गनेश ने अपने आदमीओ से कहा, “आज रात को वह काम ख़तम करना है|"
तभी उसके आदमी ने उसको कहा,” लेकिन भाई, अभी भी वहा पर पुलिस का कडा बंदोबस्त है।”
तभी दूसरे आदमी ने उसकी बात को समर्थन देते हुए कहा, “और भाई, वह रिपोर्टर की हत्या की वजह से पुलिस ने पहरा और सख्त कर दिया है।गांव में भी अजीब सी बाते हो रही है।”
गनेश ने एक नज़र दोनों की तरफ डाली और फिर बोला, ”पुलिस का टेंशन मत लो तुम लोग। वह जे.डी. शेठ देख लेंगे। बाकी रही गांव वालो की बात, वह हमारे लिए फायदेमंद है। इस अंधविस्वास की वजह से वहा कोई आएगा नही। तुम लोग आज रात की तैयारी करो। ” गनेश की आवाज़ में हल्का सा कड़क पना था। गनेश की बात सुनकर उसके आदमी कुछ और बोल नहीं पाए और रात की तैयारी करने के लिए वहा से निकल गये।
गनेश एक छठा हुआ बदमाश था।ऐसा कोई भी गैर कानूनी काम नहीं था जो वह नहीं करता हो।किडनेपिंग, मर्डर, बलात्कार, एनिमल ट्राफ्फिकिंग और कही गैर कानूनी धंधे चलाता था वह।उसको लोकल पॉलिटिशियन का सपोर्ट भी था इसीलिए उस पर केस तो काफी सारे हुए लेकिन सज़ा एक में भी नहीं हुई। जब भी पुलिस उसे गिरफ्तार करती थी, वह एक या ज्यादा से ज्यादा दो दीनो में छूट जाता। इसी वजह से गांव में कोई भी उसके खिलाफ नहीं जाता और अगर गलती से किसी ने हिम्मत की तो फिर वह इंसान फिर कभी भी नहीं दिखा।
रात के लगभग एक बज रहे थे और गनेश अपने दोनों आदमीओ के साथ अपनी काले कलर की खुली जीप में जा रहा था। तीनो के पास लम्बी वाली बंदूके थी और उसके अलावा जीप में भी कुछ हथियार थे।गनेश ड्राइवर की बाजू वाली सीट पर बैठा था और दूसरा आदमी पीछे बैठा हुआ था।अचानक गनेश की नज़र ड्राइव कर रहे आदमी के गले पर गयी। उसने देखा की उस आदमी ने कुछ तावीज़ जैसा पहना हुआ था।
गनेश ने अपने आदमी को उस के बारे में पूछा। उसके आदमी ने जवाब दिया, “भाई यह मंदिर के पुजारी से लिया है।वह जंगल के अंदर जो बिना सर का भूत घूम रहा है उससे रक्षा करने के लिए। में आप दोनों के लिए भी लाया हु, यह लीजिये।”इतना बोलते ही गनेश के आदमी ने अपनी जेब में से दो और तावीज़ निकाले ।
यह देखते ही गनेश चीड़ उठा और चिल्लाते हुए बोला,” यह क्या बकवास है ! भूत-वूत खुछ नहीं होता। अगली बार ऐसी बेफ़कूफी की ना तो यह बन्दूक की सारी गोलिया तेरे भेजे में डाल दूंगा।” गनेश एक दम से गुस्से में था। उसकी आँखों से जैसे अंगार बरस रही थी।
तभी उसका फ़ोन बज उठा। गनेश ने बिना स्क्रीन देखे फ़ोन उठा लिया। फ़ोन पर सामने एस.पि. शर्मा थे, “कहा हो तुम? तुम 12 बजे तक पहुंचने वाले थे। "
गनेश ने तुरंत ही जवाब देते हुए कहा, “अरे साब आप टेंशन मत लो, बस पहुंच रहा हु । वह रास्ते में गाडी का टायर पंक्चर हो गया था।" गनेश ने बहाना बनाया।
एस.पि. शर्मा ने थोड़े गुस्से से कहा, “डेविड काफी समय पहले वहा पहुंच गया है लेकिन अब उसका फ़ोन नहीं लग रहा।जल्दी जाओ और देखो क्या हुआ है। आज रात को काम ख़तम हो जाना चाहिए।आज रात के लिए मैंने वहा से पुलिस की एक टीम को कही और भेज दिया है।” इतना बोलते ही एस. पि. शर्मा ने फ़ोन कट कर दिया।
गनेश ने अपने आदमी को गाडी की रफ़्तार तेज़ करने को कहा और खुद किसी गहरी सोच में चला गया।तक़रीबन दस मिनट के बाद गनेश के आदमी ने जीप को एक जगह पर रॉक दिया। गनेश अभी भी किसी सोच में डूबा हुआ था।
“भाई पहुंच गये।” ड्राइविं सीट पर बैठे हुए आदमी ने गनेश को कहा। अपने आदमी की आवाज़ सुनते ही गनेश थोड़ा सा चौंक गया लेकिन तुतंत ही खुद को संभल लिया। तीनो अपनी बन्दूक लेके गाडी में से उतरे। तीनो ने अपने पास एक-एक टोर्च भी रखी हुई थी।गनेश ने अपने आदमी को इशारा किया और आस पास देखने को कहा।
तीनो ने थोड़ी देर तक उस जगह का मुआयना किया और जब तस्सली हो गयी की वहा कोई पुलिस या और कोई भी नहीं है, गनेश ने अपने दोनों आदमीओ से बात की। ऐसा लग रहा था की गनेश उन दोनों को समजा रहा था की काम कैसे करना है और जंगल में कैसे आगे बढ़ना है। कुछ पल के बाद तीनो जंगल की तरफ बढे।
जंगल में थोड़ी देर आगे बढ़ने के बाद गनेश ने अपने आदमीओ को इशारा किया, और दोनों आदमी भी उसका इशारा समाज गये और तीनो अलग अलग दिशा में आगे बढे। रात काफी हो चुकी थी। जंगल काफी घनघोर था इसलिए तीनो को अपनी टोर्च चालु करनी पडी। काफी सन्नाटा छाया हुआ था। कही दूर से कुछ जानवरो की रोने की आवाज़ आ रही थी और कही से उल्लू की आवाज़े आ रही थी। यह सब माहौल को पूरी तरह से डरावना बना रहा थे।
तीनो धीरे धीरे अपनी दिशा में आगे बढ़ रहे थे। रात का वक़्त था इसलिए कोई जंगली जानवर हमला ना करे इस वजह से तीनो काफी चौकन्ने थे। तीनो बारी बारी थोड़ी देर में डेविड के नाम की पुकार लगा रहे थे लेकिन किसी को कोई जवाब नहीं मिल रहा था । तीनो को जंगल में दाखिल हुए काफी समय हो चूका था लेकिन डेविड का कोई पता लग नहीं रहा था, ऐसा लग रहा था की जैसे डेविड यहाँ आया ही नहीं हो। गनेश को अब गुस्सा भी आ रहा था क्यों की डेविड कही मिल नहीं रहा था और साथ में अजीब सी परेशानी भी हो रही थी। गनेश ने अपना फ़ोन निकाल कर अपने आदमीओ को बारी बारी कॉल करने की कोशिश की लेकिन दोनों के फ़ोन बंध आ रहे थे।गनेश की परेशानी और बढ़ गइ और उसके मुँह में से गुस्से में एक गाली निकल गयी।
अब गनेश अपनी धीरज खो चूका था और उसने वापिस लौटने का फैसला किया। तभी उसकी नज़र एक चीज़ पर पडी। उसने नज़दीक जाके देखा तो वह किसी आदमी का वॉलेट था। उसने तुरंत ही वॉलेट उठा लिया और उसके अंदर देखा तो वॉलेट में डेविड का ड्राइविंग लाइसेंस था। तुरंत ही गनेश समज गया की डेविड कही आस पास में ही है लेकिन सवाल यह था की वह है किधर! गनेश ने एक बार फिर अपना फ़ोन लिया और डेविड का नंबर डायल किया। कुछ पल में डेविड का फ़ोन जुड़ गया। जंगल में काफी सन्नाटा था इस लिए गनेश को कही से फ़ोन बजने की आवाज़ सुनाई दी।उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कराहट आई लेकिन उसकी खुशी ज्यादा देर तक नहीं थी।
क्यों की फ़ोन की रिंग तो बज रही थी लेकिन कोई उठा नहीं रहा था। गनेश को थोड़ा अजीब लगा और उसने खुद जाके देखने का फैसला किया। वह फ़ोन की रिंग की आवाज़ की दिशा में आगे बढ़ा। फ़ोन की रिंग अभी भी बज रही थी और जैसे जैसे वह आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे आवाज़ भी तेज़ हो रही थी। कुछ तीस कदम चलते ही उसको सामने ज़मीन पर गिरा हुआ फ़ोन दिखा। गनेश ने जल्दी भागकर वह फ़ोन उठा लिया और उसकी स्क्रीन पे अपना नाम देख कर समज गया की वह फ़ोन तो डेविड का है। लेकिन अब सवाल यह था की डेविड है किधर।
गनेश ने चारो तरफ अपनी नज़र गुमाई लेकिन घने अँधेरे और सन्नाटे के सिवा कुछ नहीं था। अब गनेश को थोड़ा सा डर लगने लगा। उसने फिर से अपने आदमियों को फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन अभी भी दोनों के फ़ोन बंध थे। गनेश को अब समज में नहीं आ रहा था की वह अब क्या करे। तभी उसको महसूस हुआ की उसके कंधे पर कुछ गिर रहा है । उसने अपनी ऊँगली वहा लगाईं तो उसे कुछ गिला पन महसूस हुआ। उसने अपनी ऊँगली को ध्यान से देखा तो वह एकदम से चौंक गया क्यों की उस के कंधे पर जो चीज़ गिर रही थी वह खून था। गनेश का डर अब बढ़ रहा था। उसके सर से पसीना बहते हुए गले तक पहुंच गया था। गनेश ने हिम्मत करके ऊपर की तरफ देखा तो उसके मुँह से चीख निकल गयी। एक पल के लिए उसकी धड़कन रुक गइ थी। वहाँ पेड़ की ऊपरी डाली पर डेविड की लाश लटक रही थी। उसके सर के बीचो बिच किसी हथ्यार का गाव था और उसमे से धीरे धीरे खून निकल रहा था।
गनेश अब पूरी तरह डर चूका था। लेकिन यह तो डर की शुरुआत थी।क्यों की जैसे ही उसने अपनी नज़र सामने की और की तो उसके मुँह से एक और चीख निकल गयी, क्यों की उसके बराबर सामने कुछ कदमो की दूरी पर ही वही बिना सर वाला भूत खड़ा था। गनेश का गला जैसे सुख गया था। उसने बिना सोचे समजे भागना शुरू किया।
गनेश हो सके उतना तेज़ भाग रहा था। झाड़िओ के बिच में से रास्ता ढुंघ ढुंघ कर अपने आप को बचाने की कोशिश कर रहा था। काफी देर तक भागने के बाद वह रुक गया। उसकी हालत काफी बुरी हो चुकी थी और वह बुरी तरह से हाँफने लगा। उसने आस पास देखा तो कही भी उसे वह सर कटा भूत नहीं दिखा। अब वह धीरे धीरे शांत हुआ लेकिन डर अभी भी था।गनेश बाहर जाने का रास्ता भूल चूका था। वह जंगल के बाहर जाने की बजाए और अंदर आ गया था। उसने अपनी चारो और देखा लेकिन सिर्फ और सिर्फ अँधेरा ही था। तभी उसको महसूस हुआ की कोई उसकी तरफ आ रहा है। गनेश ने एक पल भी ना गवाते हुए वापीस भागना शुरू किया। कुछ दूर भागने के बाद उसको कही दूर से हलकी सी रौशनी दिखाई दी। गनेश काफी थक चूका था लेकिन उसके पास अपनी जान बचाने के लिए भागने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था।
गनेश भागते भागते उस रौशनी की करीब जा पंहुचा। वहा पर एक छोटा सा घर था। घर के बाहर कुछ पुराना सामान रखा हुआ था। बाहर डोरी पर कुछ कपडे लटक रहे थे। घर के अंदर जलाया हुआ दिया इस घने अँधेरे को चीरने की कोशिश कर रहा था।
गनेश और कुछ भी सोचने के बदले सीधा भागते हुए घर के पास जा कर ज़ोर ज़ोर से दरवाज़े पे दस्तक देने लगा। ”कोई है। प्लीज दरवाज़ा खोलो ! " गनेश डरते हुए दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक द