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पहला अफेयर: इंतज़ार (Pahla Affair: Intezar)

Pahla Affair Kahani
पहला अफेयर: इंतज़ार (Pahla Affair: Intezar)
मुहब्बत इंद्रधनुष की तरह कायनात के एक किनारे से दूसरे किनारे तक फैली हुई है और इसके दोनों सिरे दर्द के अथाह समंदर में डूबे हुए. लेकिन फिर भी जो इस दर्द को गले लगा लेता है, उसे इसी में सुकून मिलता है. बस, मुझे भी इसका एहसास उस व़क्त हुआ, जब उसकी मासूम आंखें और मुस्कुराते होंठों को मैंने देखा. न जाने कैसी कशिश थी उसकी आंखों में कि डूबता ही चला गया और आज तक उबर ही नहीं पाया. वैसे तो मैंने उसे कैफे में देखा था, तभी से खो सा गया था, पर आमने-सामने मुलाक़ात कॉलेज के बाइक स्टैंड पर हुई. “ऐ मिस्टर, तुम समझते क्या हो अपने आप को? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी दोस्त से बदतमीज़ी करने की और ये दादागिरी कहीं और जाकर दिखाना.” मैं ख़ामोश सा बस उसे देखता ही जा रहा था और उसका चेहरा गुस्से में तमतमा रहा था. आंखें चमक रही थीं और माथे पर पसीने की बूंदें थीं. अचानक उसकी सहेली आई और कहने लगी, “ये तू क्या कर रही है, ये वो लड़का नहीं है.” वो अवाक् सी देखने लगी और कहने लगी, “मुझे माफ़ कर दीजिए, मुझे लगा कि...” “कोई बात नहीं, अंजाने में ऐसा हो जाता है.” मेरी बात सुनकर वो तेज़ी से वहां से चली गई. यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: नीली छतरीवाली लड़की… (Pahla Affair: Neeli Chhatriwali Ladki) लेकिन मैं बुत बनकर वहीं खड़ा रहा, जब तक कि मेरे दोस्तों ने आकर मुझे चौंकाया नहीं. फिर तो बस आते-जाते मुलाक़ातें होने लगीं. पहले-पहले वो सकुचाई सी नज़रें उठाती, फिर बाद में मुस्कुराने लगी. उसकी वो मुस्कुराहट मेरे दिल में उतर जाया करती थी. उसकी बोलती आंखें कई ख़्वाब जगाया करती थी. वो भी मुझे पसंद करने लगी थी, कम से कम मुझे तो यही लगने लगा था. हम क़रीब आने लगे थे. एक दिन उसने कहा कि वो विदेश जा रही है, आगे की पढ़ाई के लिए. मैंने कुछ नहीं कहा. अगले दिन फिर उसने कहा. मैंने कहा कि ठीक है. वो कहने लगी, “कुछ कहोगे या पूछोगे नहीं?” मैंने कहा, “तू मुझसे दूरी बढ़ाने का शौक पूरा कर, मेरी भी ज़िद है कि तुझे हर दुआ में मांगूंगा.” वो देखती ही रह गई. पांच साल में शायद बहुत कुछ हो जाता है, लेकिन मेरा प्यार उसके प्रति बढ़ता ही चला गया... बस फिर वो लम्हा आ गया, जब वो सामने आई, लेकिन बदले हुए रूप में. उसके साथ उसका हमसफ़र था और उसके चेहरे की ख़ुशी देखकर मैं मुस्कुरा दिया. बिना किसी शिकवे-गिले के मैंने उसे विदा किया... मेरा पहला प्यार अधूरा रह गया... बस उम्रभर का इंतज़ार दे गया... मैं अब भी उसके लिए ख़ुशियों की दुआ मांगता हूं, क्योंकि प्यार का अर्थ स्वार्थी होना नहीं है, प्यार का मतलब समर्पण और त्याग भी तो है.

- वीना साधवानी

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