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बच्चों पर हाथ उठाना कितना सही? (Is hitting your child the right decision?)

Parenting Tips
किसी ग़लती के लिए, अनुशासन सिखाने के नाम पर या फिर अपना ग़ुस्सा उतारने के लिए बच्चों पर हाथ उठाना हमारे देश में आम बात है. अभिभावक झट से बच्चों पर हाथ तो उठा देते हैं, लेकिन ये सोचने की ज़हमत नहीं करते कि उनकी मार का बच्चों पर क्या असर होता है? सज़ा या अनुशासन के नाम पर बच्चों पर हाथ उठाना कितना उचित है? इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं का विश्‍लेषण करती पेश है ख़ास रिपोर्ट.
हमारे देश में बच्चों को मारना पैरेंट्स अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. कभी सामान तोड़ने, कभी होमवर्क न करने, तो कभी ग़लत व्यवहार के लिए पैरेंट्स उनकी धुनाई कर देते हैं. हां, कई देशों में पैरेंट्स ऐसा नहीं कर पाते. नार्वे, डेनमार्क, फिनलैंड, इटली, आइलैंड जैसे देशों में बच्चों पर हाथ उठाना ग़ैरक़ानूनी माना जाता है. हमारे देश में ऐसा कोई क़ानून नहीं है इसलिए पैरेंट्स बेझिझक बच्चों पर हाथ उठा देते हैं. कई बार तो बच्चा बिना किसी ग़लती के स़िर्फ इसलिए मार खा जाता है, क्योंकि मां का मूड ठीक नहीं और बच्चे ने किसी चीज़ की ज़िद्द पकड़ ली. साइकोलॉजिस्ट पूनम राजभर कहती हैं, “छोटी-छोटी ग़लतियों के लिए बच्चों पर हाथ उठाना सही नहीं है. ये उनका लर्निंग पीरियड होता है. इस समय बच्चे कई चीज़ें सीख रहे होते हैं और सीखने की कोशिश में ही कुछ ग़लत कर बैठते हैं.”
पैरेंट्स क्यों उठाते हैं हाथ?
साइकोलॉजिस्ट पूनम राजभर के मुताबिक, “पैरेंट्स को लगता है कि थप्पड़ मारना बच्चों को सिखाने का शॉर्टकट तरीक़ा है, मारने से वे समझ जाएंगे और दोबारा वही ग़लती नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार तो बच्चे ये भी नहीं समझ पाते कि उन्हें मार क्यों पड़ी?” कई बार बच्चे अकारण भी मार खा जाते हैं. बात-बात पर हाथ उठाने से कुछ बच्चे अग्रेसिव हो जाते हैं, जबकि कुछ हर समय डरे-सहमे रहने लगते हैं. वे किसी से बात करने से भी कतराने लगते हैं. बड़े होने पर ये सारी समस्याएं उनके विकास में बाधक बन सकती हैं."
यूं करें बच्चे को अनुशासित
* मारने की बजाय बच्चे को प्यार से समझाना चाहिए. * पैरेंट्स को समझने की कोशिश करनी चाहिए कि किन हालात में बच्चा ग़लती कर रहा है. * हो सकता है, वो बाहर दूसरे बच्चों को देखकर कुछ ग़लत बातें सीख रहा हो. * अतः स्थिति को समझना बेहद ज़रूरी है. * आप उनके साथ सख़्ती से भले पेश आएं, लेकिन जहां तक संभव हो, हाथ उठाने की ग़लती न करें. * कई बार पैरेंट्स को लगता है कि ज़्यादा लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ जाएंगे, लेकिन ये सोच सही नहीं है. * कई बच्चे कुछ ग़लत करने से इसलिए डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके ऐसा करने से मम्मी-पापा नाराज़ हो जाएंगे या उन्हें बुरा लगेगा. * ऐसी भावना उन्हीं बच्चों में आती है जिन्हें पैरेंट्स का भरपूर प्यार मिलता है. * बार-बार मारने से बच्चों में पैरेंट्स का डर ख़त्म हो जाता है. अतः मारने की बजाय उन्हें तर्क और उदाहरणों से समझाने की कोशिश करें. * बच्चों पर आपकी बातों का असर ऐसा होना चाहिए कि एक कड़ी नज़र ही उनके लिए काफ़ी हो.
पब्लिक प्लेस पर कैसे रखें अनुशासित?
* कहीं बाहर जाने से पहले बच्चे को अच्छी तरह समझाएं कि उसे क्या करना है और क्या नहीं? बच्चे के लिए एक सीमा (बाउंड्री) बना दें. * बच्चे से बात करते समय शांत व स्थिर रहें. अगर वो शैतानी करता है या नखरे दिखाता है, तो सबके सामने उस पर चिल्लाने या डांटने की बजाय उसे अकेले में ले जाकर प्यार से समझाएं. * हर बच्चे का स्वभाव व विकास का तरीक़ा अलग हो सकता है. कुछ बच्चे शांति व प्यार से समझाने पर ही समझ जाते हैं और कुछ को समझाने के लिए थोड़ा डांटना पड़ता है. अतः अपने बच्चे के स्वभाव को जानकर उससे बात करें. * आलोचना व अपमानित किए बिना बच्चे के ग़लत व्यवहार को सुधारने की कोशिश करें. * अच्छा व्यवहार करने पर बच्चे की तारीफ़ करें. बच्चों को अपनी तारीफ़ सुनना अच्छा लगता है. अच्छा बर्ताव करने पर उसकी प्रशंसा होगी ये जानकर बच्चा आपके द्वारा सिखाई गई बातों का ध्यान रखेगा. * अच्छे बर्ताव के लिए न स़िर्फ बच्चे की सराहना करें, बल्कि उसे कुछ इनाम भी दें, मसलन- आप बच्चे को किसी पार्टी में ले गईं और वहां उसने किसी तरह की ऊटपटांग हरकत नहीं की, तो घर आने पर उसे उसकी कोई पसंदीदा चीज़ लाकर दें. इस तरह के इनाम बच्चे को अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करेंगे.
स्मार्ट टिप्स
* बच्चे को अनुशासन सिखाने के नाम पर बहुत से लोग आपको सलाह देंगे. ऐसे में नाराज़ होने की बजाय चुपचाप उनकी बात सुन लें, बाद में ठंडे दिमाग़ से उनकी नसीहतों पर गौर करें. यदि आपको वो सही लगती हैं तो अमल करें, वरना भूल जाएं. * अनुशासन का उद्देश्य बच्चों को सज़ा देना नहीं, बल्कि उन्हें सही-ग़लत की पहचान कराना, अपना निर्णय ख़ुद लेने में सक्षम बनाना, दूसरों का सम्मान और अच्छा व्यवहार करना सिखाना है.
बच्चों को मारने में हाउसवाइफ हैं आगे

हाल ही में मुंबई के एक एज्युकेशन ग्रुप पोद्दार इंस्टिट्यूट ऑफ एज्युकेशन ने मुंबई, पुणे, सूरत, अहमदाबाद, चेन्नई और बेंगलुरु समेत देश के 10 शहरों में एक सर्वे किया, जिसके मुताबिक, घर में रहनेवाली मांएं बच्चों को ज़्यादा मारती हैं. सर्वे में शामिल लोगों में से 65 फीसदी पैरेंट्स ने माना कि वे बच्चों को पीटने से गुरेज़ नहीं करते. मुंबई में 10 में से 7 पैरेंट्स बच्चों पर हाथ उठाते हैं. हैरानी की बात ये है कि 77 प्रतिशत मामलों में मां ही बच्चों को पीटती है. सर्वे में शामिल 4022 परिवारों में से 84 फीसदी लोग ऐसे भी थे जो बच्चों को पीटना नहीं चाहते, लेकिन उनके पास कोई चारा नहीं बचता, इसलिए वे हाथ उठाते हैं. ज़्यादातर पैरेंट्स बच्चों को इसलिए मारते हैं, क्योंकि बच्चे उन्हें परेशान करते हैं और वे अपने ग़ुस्से पर क़ाबू नहीं रख पाते. विशेषज्ञों का मानना है कि हाउसवाइफ ही बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताती हैं इसलिए उनकी ग़लतियों को लेकर वो ज़्यादा सख़्त होती हैं. कामकाजी महिलाओं के पास बच्चों के लिए बहुत कम समय होता है.

- कंचन सिंह

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