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काव्य- जब भी मायके जाती हूं̷...
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काव्य- जब भी मायके जाती हूं… (Poetry- Jab Bhi Mayke Jati Hun…)

By Usha Gupta in Shayeri , Geet / Gazal , Short Stories
जब भी मायके जाती हूं
फिर बचपन जी आती हूं
टुकड़ों में बंटी ख़ुशियों को
आंचल में समेट लाती हूं
अपनी हर मुश्किल का जवाब
मां के ‘सब ठीक हो जाएगा’ में पा जाती हूं
रूखे हो चुके कड़े हाथों से
कोमल थपकी ले आती हूं
सख़्त हो चुकी गोद में से
मीठी झपकी ले आती हूं
पापा ये चाहिए… पापा वो चाहिए…
कहकर इठलाती हूं
भाई से भी जीभर के
झगड़ा करके आती हूं
भूल जाती हूं कि मैं भी एक मां हूं
मायके जाकर फिर से बच्ची बन जाती हूं…
– पायल अग्रवाल
मेरी सहेली वेबसाइट पर पायल अग्रवाल के भेजे गए काव्य को हमने अपने वेबसाइट में शामिल किया है. आप भी अपनी काव्य, कविता, शायरी, गीत, ग़ज़ल, लेख, कहानियों को भेजकर अपनी लेखनी को नई पहचान दे सकते हैं…
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