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काव्य- जब भी मायके जाती हूं… (Poetry- Jab Bhi Mayke Jati Hun…)
जब भी मायके जाती हूं
फिर बचपन जी आती हूं
टुकड़ों में बंटी ख़ुशियों को
आंचल में समेट लाती हूं
अपनी हर मुश्किल का जवाब
मां के ‘सब ठीक हो जाएगा’ में पा जाती हूं
रूखे हो चुके कड़े हाथों से
कोमल थपकी ले आती हूं
सख़्त हो चुकी गोद में से
मीठी झपकी ले आती हूं
पापा ये चाहिए... पापा वो चाहिए...
कहकर इठलाती हूं
भाई से भी जीभर के
झगड़ा करके आती हूं
भूल जाती हूं कि मैं भी एक मां हूं
मायके जाकर फिर से बच्ची बन जाती हूं...
- पायल अग्रवाल
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