देखा था पहली बार
वसंत को
तुम्हारी आंखों से
छलकते प्यार में
महसूस किया था
टेसू की तरह
रक्तिम अपने होंठों पर
हवा में लहराते पत्तों की तरह
सरगोशी करते कुछ शब्दों में
सुनी थी उसकी आवाज़
कानों के बेहद क़रीब
फिर रोम-रोम में
उतर गया था
एक स्पर्श सा वसंत
अमलतास के पीले उजालों सा
कचनार की कलियां
चटक कर खिल गई थी
गालों पर
आज भी
उस वसंत की छुवन
महुए के नशे सी
तारी है दिल पर…
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