Close

कहानी- होली की गुझिया (Short Story- Holi Ki Gujhiya)

क़रीब 10 बजे गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ पर वह बाहर आई, तो “हैप्पी होली” के समवेत स्वर के साथ सास-ससुर आते दिखाए दिए. पैर छूती तूलिका को सास ने गर्मजोशी से बांहों में भर लिया. ससुर ने स्नेहजनित आशीर्वाद भरा हाथ उसके सिर पर रखा. परदेस में सहसा अपने देश की महक उसे भली लगी कि तभी उसकी नज़र समीर को ढ़ूंढ़ने लगी, फिर समीर को देख वह हर्षमिश्रित विस्मय से चिल्ला पड़ी. Holi Story ‘’तूलिका, तुम यहां समंदर के किनारे आराम से  बैठो, मैं डियर आयलैंड और गैब्रियल आयलैंड का टिकट लेकर ट्रैवल एजेंसी से पता करता हूं कि मम्मी-पापा को कहां-कहां घुमाया जा सकता है.” समीर अपने मम्मी-पापा के मॉरिशस आने पर बहुत उत्साहित नज़र आ रहे थे. शीघ्रता से वह जेटी की ओर बढ़ गए. तूलिका समंदर के किनारे बैठकर लहरों का आना-जाना देखने लगी. मॉरिशस में समंदर का नीला पन्ने-सा हरा रंग उसे बहुत भाता है. समीर के साथ अक्सर यहां आकर घंटों बैठती है. किस व़क्त लो टाइड-हाई टाइड होगा, उसे पता है. क़रीब आधे घंटे बैठने के बाद उसने महसूस किया कि समंदर की लहरें रफ़्ता-रफ़्ता आगे बढ़ने लगी थीं. आस-पास की गीली रेत को देख मन गीला-गीला-सा होने लगा था. बीते रविवार की बात मन-मस्तिष्क में घूमने लगी. जब वह सुबह-सुबह  समीर के साथ बैठी इत्मिनान से चाय की चुस्कियां भर रही थी. उस व़क्त उसके मुंह से निकला, “समीर, होली आनेवाली है. काश! हम शादी के बाद की पहली होली इंडिया में मनाते... सच घर की बहुत याद आ रही है.” उसकी बात पर समीर कुछ मौन के बाद बोले, “तूलिका, होली के एक दिन पहले मम्मी-पापा यहां आएंगे...” सास-ससुर  के अप्रत्याशित आगमन की ख़बर सुनकर वह चौंकी, तो समीर कहने लगे, “सोचा था तुम्हें सरप्राइज़ दूंगा, पर तुम पहले भी कई बार होली पर इंडिया जाने की बात कह चुकी हो, तो रहा नहीं गया, इसलिए बता दिया.” यह सुनकर वह आश्‍चर्य से बोली, “मम्मी-पापा के आने का प्रोग्राम कब बना? तुम पहले से जानते थे क्या?” “अरे! अब मॉरिशस का प्रोग्राम अचानक तो नहीं ही बनेगा, क़रीब एक-दो महीने पहले ही मुझे पता चला.” “वाह! और तुम मुझे अब बता रहे हो. अरे! इसमें सरप्राइज़ जैसा क्या था. मम्मी-पापा अचानक मॉरिशस आ जाते, तो मेरे लिए कितनी अजीब सिचुएशन होती.” बेसाख़्ता उसके मुंह से निकला, तो समीर अटपटाकर कहने लगे, “अरे! मैं तो सोच रहा था कि मम्मी-पापा के आने की बात सुनकर तुम ख़ुशी से उछल पड़ोगी, पर तुमने तो बड़ा ठंडा रिस्पॉन्स दिया.” यह भी पढ़ेहोली पर ट्राई करें ये 5 ठंडई रेसिपीज़ (5 Thandai Recipes You Must Try This Holi) “अरे नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है. अब अचानक किसी के आने की ख़बर दोगे, तो थोड़ी हड़बड़ाहट तो होगी न.” तूलिका के कहने पर समीर बोले, “जानती हो, हमारी शादी के पहले मैंने उन्हें कई बार मॉरिशस घूमने आने के लिए कहा, पर वो नहीं आए और अब देखो अपनी बहूरानी के साथ होली खेलने की इच्छा उन्हें मॉरिशस खींच लाई. वो दोनों बड़े उत्साह से यहां आ रहे हैं होली मनाने, ये हमारे लिए बहुत बड़ी बात है.” समीर की बात पर वह संभलकर बोली, “वो तो ठीक है, पर सोचो, तुम्हारे सरप्राइज़ के चक्कर में मेरे इम्प्रेशन की तो बैंड बज जाती. मम्मी-पापा पहली बार घर आते और मैं उन्हें आठ बजे तक सोती मिलती, घर अस्त-व्यस्त मिलता, तो वो यही कहते कि उनकी बहू को घर संभालना भी नहीं आता. आज पूरा दिन साफ़-सफ़ाई में लगना मेरे साथ.” यह सुनकर समीर अदा से बोले, “आज बंदा आपकी सेवा में सहर्ष तत्पर है.” पति-पत्नी के बीच हल्के-फुल्के ढंग से बात का समापन हो गया, पर तूलिका का मन न जाने क्यों होली के अवसर पर सास-ससुर के आने को लेकर असहज था. उसे याद आया कि कुछ दिनों पहले उसने होली पर अपने मायके जाने की बात कही, तो समीर तनाव में आ गए. फिर उसे भारत जाने से ये कहकर रोक लिया कि ऑफिशियल कमिटमेंट के कारण मैं तो भारत जा नहीं सकता, फिर तुम क्या अकेले जाओगी. वो भी होली पर... मुझे अकेले छोड़कर होली का त्योहार मनाना अच्छा लगेगा तुम्हें? तुम्हें रंग लगाए बिना मेरी होली तो फीकी रह जाएगी.” उसके प्रेम के वशीभूत भावुकतावश उसने आगरा जाना टाल दिया, पर अब वह समझ पा रही थी कि यकीनन सास-ससुर के मॉरिशस आने के कार्यक्रम की वजह से उसने उसे मायके जाने से रोका होगा. और तो और समीर ने सास-ससुर को घुमाने के लिए हफ़्ते-दस दिन की छुट्टी के लिए भी अप्लाई कर दिया. सास-ससुर किसी और समय मॉरिशस आते, तो वह उत्साह से भर जाती, पर मायके में होली न मनाकर यहां सास-ससुर के स्वागत के निहितार्थ उसका रुकना मन को बुझा गया. दो-तीन दिन तक सास-ससुर कहां-कहां घूमेंगे, खाने में किस दिन क्या-क्या पकेगा, बाहर कहां क्या खाएंगे... होली के एक दिन पहले वे आ रहे हैं, तो होली में क्या पकवान बनेंगे, इस पर चर्चा होती रही. चर्चा के बीच एक दिन समीर ने उत्साह से उससे पूछा, “तूलिका, तुम्हें गुझिया बनानी आती है?” यह भी पढ़ेबॉलीवुड के इन टॉप 10 गानों के बिना अधूरी है होली की मस्ती ! (Top 10 Bollywood Holi Songs) यह सुनकर तूलिका ने थोड़ी मायूसी से कहा, “नहीं.” “अरे यार! होली में गुझिया नहीं बनेगी, तो मज़ा ही नहीं आएगा.” एक लंबी सांस लेते हुए समीर ने कहा, तो तूलिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. समीर फिर बोले, “चलो कोई बात नहीं. मम्मी से गुझिया बनवाऊंगा. तुम्हें पता है, मम्मी बहुत अच्छी गुझिया बनाती हैं. वह खोए में ड्रायफ्रूट, किशमिश डालती हैं. सच में मज़ा आ जाता है उनके हाथ की गुझिया खाकर, आह!.. याद करके ही मुंह में पानी आ गया.” यह सुनकर तूलिका तपाक से बोली, “गुझिया तो मेरी मम्मी भी बहुत स्वादिष्ट बनाती हैं. उनके हाथ की गुझिया खाओगे, तो सब भूल जाओगे. वह  खोए में नारियल-चिरौंजी डालकर ऐसी स्वादिष्ट गुझिया बनाती हैं कि सालभर तक उसका स्वाद ज़ुबां से जाता नहीं है. पर क्या कहूं, इस साल मैं उनके हाथ की गुझिया और आगरा की होली बहुत मिस करूंगी.” यह सुनकर समीर गंभीर हो गए. उसे भी सहसा भान हुआ कि यूं सास और मां में तुलना करके उसने सही नहीं किया. एकबारगी उसे अफ़सोस हुआ, पर वह भी क्या करती, जाने-अनजाने वह मायके-ससुराल की तुलना पर मायके को श्रेष्ठतर बताकर ही चैन लेती. लहरों के स्वर अब तेज़ हो गए थे. उन्होंने सोच-विचार में खोई तूलिका का ध्यान अपनी ओर एक बार फिर आकर्षित किया. तूलिका ने नज़र भरकर समंदर पर दृष्टि डाली...  फिर समय देखा एक घंटा व्यतीत हो गया था, पर समीर अभी तक नहीं आए. बनस्पत समंदर अब पास आ गया था, इसका अंदाज़ा चट्टानों को देखकर लगाया जा सकता था. कुछ देर पहले जो चट्टानें दिख रही थीं, वे अब समंदर में डूबने लगी थीं. विचारों ने फिर रफ़्तार पकड़ी. क़रीब छह महीने पहले तक वह भी तो इन चट्टानों की भांति शादी न करने का संकल्प लिए अटल थी, पर एक तरफ़ उसके माता-पिता शादी के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे थे, तो दूसरी तरफ़ समीर अपने प्यार की लहरों से उसके संकल्पों को डुबोने का प्रयास कर रहे थे. आख़िरकार तूलिका को मनाने में वह सफल हुए. समीर ने उससे कहा, “इकलौती संतान होने के कारण मैं तुम्हारे पैरेंट्स के प्रति तुम्हारी सोच और कमिटमेंट्स को समझता हूं. मैं भी फैमिली ओरिएंटेड पर्सन हूं. तुम्हारे पैरेंट्स मेरे भी पैरेंट्स होंगे.” समीर की समझदारी भरी बातों पर रीझकर उसके  प्यार और विश्‍वास पर भरोसा करके उसने शादी के लिए ‘हां’ कर दी. पर आज अपनी उस ‘हां’ पर उसे चिंता हो रही है. वह तो उसके मायके को हाशिये पर छोड़कर अपने पैरेंट्स को घुमाने-फिराने और त्योहार मनाने की योजनाएं बना रहा है. इस विचार की गड़ी फांस रह-रहकर मन में टीस उठाती रही. नीले समंदर ने धीरे-धीरे समस्त चट्टानों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था. तूलिका अब बेचैनी-से समीर के आने का इंतज़ार करने लगी. कुछ ही देर में समीर आते दिखाई दिए. आते ही उन्होंने पूरे उत्साह से बताया कि वे ट्रैवल एजेंसी से सारी जानकारी जुटा लाए हैं और फेरी वगैरह के टिकट भी ले आए हैं. वीकेंड होने की वजह से आज वहां काफ़ी भीड़ थी, इसलिए देर हुई. यह भी पढ़ेहोली पर विशेष: क्या है होलिकादहन की पूरी कहानी? (Holi Special: Why Do We Celebrate Holi?) देखते-देखते होली क़रीब आ गई और साथ ही सास-ससुर के मॉरिशस पहुंचने की घड़ी भी. सुबह-सुबह उठकर उसने रसोई की सारी व्यवस्था देखी, फिर चाय का कप लेकर बालकनी में आ बैठी. मन मायके की उस देहरी पर चिड़िया-सा फुदकता जा बैठा, जहां इस व़क्त गुझियों की सुगंध फैली हुई थी. वह आनेवाली होली में खुली आंखों से देखे दृश्य में अपने पापा को अबीर-गुलाल को कटोरियों में सजाए बैठे देख पा रही थी. मां ने चिप्स, पापड़, नमकीन, मठरी जाने क्या-क्या प्लेट में सजाकर रखा था. तूलिका की आंखों के सामने वे दिन घूम गए, जब उसके पापा बाल्टी में रंग घोलकर उसके लिए रखा करते थे और वह अपनी पिचकारी भरकर रंगों भरी बाल्टी खाली कर देती थी. सहेलियों का हुजूम इकट्ठा होता था. पूरा आंगन गीला हो जाता था, मां रेफरी की तरह यहां-वहां रंग न गिराने की सबको हिदायत देतीं, पर उनकी कोई नहीं सुनता था. और तो और मां को भी घेरकर लाया जाता. पापा उन पर रंग डालते, तो वह बड़बड़ाती फिर पापा से रंग छीनकर उन्हें रंग लगाने का प्रयास करतीं. होली का हुड़दंग सबको रंगों से सराबोर कर देता. वह जानती थी कि कल सब उसे बहुत मिस करेंगे. उसने तो मां से कहा भी था कि वह होली पर आगरा आना चाहती है, पर मां ने बड़प्पन दिखाते हुए उसे पति के संग वहीं रहकर होली मनाने की सलाह दे डाली. वह अंदाज़ा लगा रही थी कि आगरा में उसकी अनुपस्थिति में कैसी होली मनेगी. शगुन के तौर पर मां-पापा एक-दूसरे को अबीर-गुलाल का टीका लगाकर एक-दूसरे को गुझिया खिलाकर होली की रवायत पूरी कर लेंगे. तूलिका का मन अपने माता-पिता से बात करने के लिए सहसा छटपटाया, तो वह बात करने के लिए अपना फोन लेने उठी कि तभी समीर ने उसके दोनों गालों में रंग मल दिया. वह अचानक किए गए इस हमले के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए अचकचाकर अपने चेहरे से गुलाल झाड़ते हुए कहने लगी, “अभी तो पूरे घर की सफ़ाई की है और तुम गंदा करने चले आए. और होली आज नहीं, कल है. अभी से परेशान मत करो प्लीज़.” समीर ने उसके चेहरे को ध्यान से देखा, तो उसे उसकी आंखों में नमी दिखाई दी. समीर ने परेशान होकर उसके माथे को छूकर पूछा, “‘क्या हुआ तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? इतनी उदास-सी क्यों दिख रही हो.” तूलिका कुछ अनमनी होकर वहां से जाने लगी, तो समीर उसका रास्ता रोककर कहने लगा, “माना होली कल है, पर तुम्हें रंग आज इसलिए लगा दिया कि कल कहीं मुझसे पहले कोई और रंग न लगा दे. अरे यार, थोड़ा-सा मुस्कुरा दो वरना...”  बात अधूरी छोड़कर वह चुप हो गया. “थोड़ा मुस्कुरा दो, वरना मेरी पेशी हो जाएगी.” यह वाक्य अक्सर वह अपने पैरेंट्स की मौजूदगी में कहता है और सच भी है. मज़ाक में भी वह अपने सास-ससुर से समीर की शिकायत कर दे, तो वह अपने बेटे की अच्छी क्लास ले लेते हैं. सास-ससुर से तूलिका को भरपूर प्यार मिला, इसमें दो राय नहीं थी, फिर भी आज उनके आगमन पर उसके मन में नैराश्य पनपना निस्संदेह ग़लत था. उसके उदास होने की पृष्ठभूमि में मायके जाकर होली न मना पाने का मलाल  था, पर इन सबमें उनका क्या दोष. 10-15 दिनों में वह यहां के अनुभव लेकर चले जाएंगे. नहीं-नहीं, अपनी उदासीनता-खिन्नता से वह त्योहार को फीका नहीं कर सकती और बहुत-से त्योहार आएंगे अपने माता-पिता के संग मनाने के लिए. पूरी ताक़त से उसने नैराश्य को मन से उखाड़ फेंका. नए सकारात्मक विचार की सहसा चली हवा  पूर्वाग्रह के बादल ले उड़ी. अपने उदासीन व्यवहार का संज्ञान लेते हुए वह मुस्कुराकर समीर के हाथों से रंग लेकर उसी को लगाते हुए बोली,  “हैप्पी होली.” कुछ देर बाद समीर अपने पैरेंट्स को लेने एयरपोर्ट चले गए. वह तैयार होकर नाश्ते-खाने की व्यवस्था देखने लगी. क़रीब 10 बजे गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ पर वह बाहर आई, तो “हैप्पी होली” के समवेत स्वर के साथ सास-ससुर आते दिखाए दिए. पैर छूती तूलिका को सास ने गर्मजोशी से बांहों में भर लिया. ससुर ने स्नेहजनित आशीर्वाद भरा हाथ उसके सिर पर रखा. परदेस में सहसा अपने देश की महक उसे भली लगी कि तभी उसकी नज़र समीर को ढ़ूंढ़ने लगी, फिर समीर को देख वह हर्षमिश्रित विस्मय से चिल्ला पड़ी. समीर गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे तूलिका के मम्मी-पापा को उतरने में मदद कर रहे थे. तूलिका की सास तूलिका के मां-पापा की ओर इशारा करते हुए बोली, “तूलिका, तुमसे बार-बार पूछा कि उपहार में क्या लाएं, पर तुमने तो बताया ही नहीं, इसलिए हम ख़ुद ही सरप्राइज़ ले आए...” तूलिका को भौंचक्का देखकर ससुरजी कहने लगे, “हम सब नए साल में आना चाहते थे, पर तुम्हारे मां-पापा का वीज़ा तैयार नहीं था, तो सोचा चलो, होली ही मना आएंगे बच्चों के साथ.” “कैसा रहा सरप्राइज़?” सहसा समीर ने प्यार से तूलिका का हाथ थामते हुए प्रश्‍न किया, तो जवाब में उसने भावविह्वल मुग्ध नज़रों से निहारकर धीमे से उसकी हथेलियों को दबा दिया. “पापा, आपके आने का प्रोग्राम कब बना?” एकांत पाते ही तूलिका ने पूछा, तो वह हंसकर कहने लगे, “अचानक तो नहीं बना. तुम्हारे ससुरालवाले तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहते थे, सो चुप रहना मुनासिब समझा.” “हां तूलिका, समीर और तुम्हारे सास-ससुर  की वजह से संभव हो पाया है यहां आना. मुझे तो जानती ही हो, तीज-त्योहार में घर छोड़कर कहीं आती-जाती नहीं, पर तुम्हारे ससुरालवालों ने घेराव करके मनाया कि जहां बच्चे, वहीं त्योहार. तुम्हारे पापा भी जोश में आ गए और देखो होली मनाने मॉरिशस चले आए.” यह भी पढ़ेहोली में सावधान रहें केमिकल रंगों के अटैक से… (Holi Special: Play Safe Holi) अपनी मां के कहने पर तूलिका आश्‍चर्य से बोली, “मैं तो आगरा आने को बोल रही थी, तब भी नहीं बताया.” “इसीलिए तो तुझे रोका. जो तू आगरा आ जाती, तो हम यहां कैसे आ पाते? पर सच कहूं, इन दो-तीन महीनों तक अपने आने की बात तुझसे छिपाना बड़ा कठिन काम रहा.” यह कहकर मां-पापा हंसने लगे. अपने साथ मां-पापा को यूं उल्लासित पाकर वह आह्लादित थी. यकीनन ये कार्यक्रम तीन-चार महीनों से बन रहा होगा, इसीलिए उसे भारत जाने से रोका समीर ने. यह सोचकर अथाह प्यार और आदर उमड़ आया अपने जीवनसाथी के प्रति. पूरे घर में अनोखी रौनक़ थी. सबके व्यवस्थित होने के बाद वह समीर के पास आई. पत्नी के चेहरे के भाव पढ़कर वह नाटकीय अंदाज़ में बोला, “थैंक्यू मत बोलना. वो तो तुम्हें प्रूव करना था कि मेरी मम्मी तुम्हारी मम्मी से ज़्यादा स्वादिष्ट गुझिया बनाती हैं. अब तुम तो मानने को तैयार थी नहीं, इसलिए हाथ कंगन को आरसी क्या. दोनों को यहीं बुला लिया.” “अरे चलो, ये बात तो महज़ चार दिन पहले हुई है. क्या मैं जानती नहीं कि तुरत-फुरत ऐसे कार्यक्रम नहीं बनते हैं, पर एक बार को तुम्हारी बात मान भी लूं तो भी...” तूलिका रसोईं की ओर इशारा करते फुसफुसाई, “तुम्हारा ये प्रयास तो बेकार गया... वो देखो... मेरी सास और तुम्हारी सास मिलकर गुझिया बना रही हैं, इसलिए गुझिया में नया स्वाद होगा... और हां... कल सबसे पहले तुमसे रंग लगवाऊंगी, ये मेरा वादा है.” त्योहार की चहल-पहल में लगा ही नहीं कि वे भारत में नहीं हैं. नवदंपत्ति बड़े-बुज़ुर्गों की स्नेह छाया में निश्‍चिंतता और उत्साह के साथ त्योहार की तैयारियों में जुटे थे. घर में गुझियों की महक फैलने लगी थी. इस बार की गुझियों में वाक़ई नया स्वाद था. उसमें किशमिश-चिरौंजी-ड्रायफ्रूट और नारियल सब डाले गए थे. रिश्तों की मिठास में पकी गुझिया स्वादिष्ट और सालोंसाल तक याद की जाने लायक बनी थी. आपसी समझ के रंग शरीर के साथ मन को भी सराबोर कर गए थे. Minu tripathi       मीनू त्रिपाठी

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Share this article