“सुन, लड़का जब किचन में घुसने लगे, वहां के कामकाज में दिलचस्पी लेने लगे, तो समझ लेना उसका कोई चक्कर है. आजकल लड़के ख़ुद किचन में जाकर सरप्राइज़ देना चाहते हैं.”
सुलभा कॉलेज में हिंदी पढ़ाती है. पीएच.डी. है. उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं. पति जब तक थे, वे ही बच्चों की पढ़ाई देख रहे थे. पर उनके जाने के बाद उसे ही दोहरी ज़िम्मेदारी उठानी पड़ गई थी. बड़ा बेटा नानू इंजीनियर है और बैंगलोर में नौकरी कर रहा है. छोटा बेटा फ़ाइनल में है. बैंगलोर से नानू का फ़ोन आया था. वह कुछ दिनों के लिए छुट्टियों में घर आ रहा है. सुलभा बहुत ख़ुश थी. वह नानू की पसंद का सामान बाज़ार से ला रही थी. उसे याद है, नानू उसके हाथ का बना खाना बचपन से पसंद करता आया है. कहीं बाहर पार्टी में जाना होता, तो भी बाद में घर पर आकर कुछ न कुछ ज़रूर बनवाता. कहता, “मम्मी, वहां पेट नहीं भरता है.” सुलभा उसकी इसी बात पर निहाल हो जाती थी. व़क़्त तेज़ी से बीत रहा था. एक दिन नानू ने सूचना दी, “मम्मी, कंपनी का यहां ऑफ़िस खुल रहा है, शायद मेरा भी यहीं ट्रांसफ़र हो जाए.” “सच!” सुलभा ख़ुशी से झूम उठी. “क्या भैया...? आप यहां आ रहे हैं...?” छोटू भी ख़ुशी से झूम उठा. “हां.” नानू बोला, “पैकेज वही रहेगा.” “ तुम्हें कब तक आना होगा यहां?” “महीने-दो महीने तो लग ही जाएंगे.” “ठीक है, तुम्हारे कमरे में और ड्रॉइंगरूम में नया पेंट करवा लूंगी.” “हो जाएगा मम्मी... ऐसी भी क्या जल्दी है?” छुट्टियों में नानू घर आया. एक दिन नानू ने कहा, “मम्मी, आज शाम को मेरी दोस्त छाया आ रही है.” “क्या?” सुलभा चौंक गई. “मेरे साथ काम करती है. उसने भी मेरे साथ ही एम.बी.ए. किया था. उसके पापा मुंबई में पुलिस ऑफ़िसर हैं. वह भी यहां आई हुई है. उसका फ़ोन आया था, मैंने उसे बुला लिया है.” “ठीक है.” सुलभा ने ऑफ़िस जाते हुए कहा. “मैं लौटते समय किचन का सामान लेती हुई आऊंगी. हां, और तो किसी को नहीं बुलाया?” “और?” “तुम्हारे चाचा को?” “नहीं, अभी उन्हें इस बारे में कुछ नहीं बताया.” “ठीक है.” सुलभा चली गई. जो नानू आते ही सबसे पहले चाचा के घर दौड़कर जाता था, वही आज उनके नाम पर चुप हो गया है. उसे मन ही मन हंसी आ गई. कॉलेज में उसका मन नहीं लगा. उसे प्रिंसिपल ने बुलाया भी था, पर वह बाद में आने को कह वहां जाना टाल गई. रास्ते में गाड़ी को पाठक के यहां पार्क किया. वहीं से नानू की पसंद की नमकीन और मिठाइयां लीं. कुछ तैयार सब्ज़ियां भी लीं. घर आकर देखा- जो नानू हमेशा आलसी की तरह दीवान पर लेटा रहता था, उसने पूरा ड्रॉइंगरूम, डाइनिंग टेबल, किचन सब सजा रखा है. इतनी सफ़ाई तो पहले उसने कभी नहीं की थी. उसके होंठों पर अनायास मुस्कुराहट-सी आ गई. “लगत़ा है अब नानू बहुत होशियार हो गया है.” वह बुदबुदाई. तभी सहेली शिवांगी की बात याद आ गई. “सुन, लड़का जब किचन में घुसने लगे, वहां के कामकाज में दिलचस्पी लेने लगे, तो समझ लेना उसका कोई चक्कर है. आजकल लड़के ख़ुद किचन में जाकर सरप्राइज़ देना चाहते हैं.” तो क्या नानू ने भी कोई लड़की पसंद कर ली है? उसने बाथरूम में जाकर चेंज किया. आज बहुत दिनों बाद अंकित की याद आ गई. इसी बाथरूम में तो अंकित ने आख़िरी सांस ली थी. बाथरूम में ही स्ट्रोक हुआ. ‘नानू.’ बस यही आवाज़ सुन पाई थी. किवाड़ को धक्के से खोला गया. पता लगा अटैक आ गया है. अस्पताल जाते-जाते अंकित बिछड़ ही गए. तब नानू और छोटू स्कूल में पढ़ रहे थे. वह यंत्रचालित-सी बस चलती रही. सास-ससुर भी साथ ही थे. देवर-देवरानी, उनके बच्चे, जो भी आते, यहीं ठहरते. अंकित की यही इच्छा थी. वह अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते थे. सुलभा ने कभी भी उनकी इच्छा का अनादर नहीं किया. इतने छोटे घर में वह अपने बच्चों तथा सास-ससुर के साथ रही. सुबह घर का सारा काम निपटाकर कॉलेज जाती, वहां से लौटते हुए घर का सामान लेकर आती. शाम को फिर रसोई का काम. नानू कब बड़ा हुआ, पता ही नहीं चला. उसने मुंबई से आई.आई.टी किया, वहीं से एम.बी.ए., फिर नौकरी के लिए बैंगलोर चला गया था. सुलभा को लगा, उसकी साधना पूरी हुई. अंकित जो काम अधूरा छोड़ गए थे, वह पूरा हुआ. सास-ससुर के देहांत पर सभी काम सुलभा ने ही किए. छोटा-सा घर अब बड़ा लगने लगा था. कभी-कभी छुट्टियों में नानू चला आता था, तो घर चहक उठता था. पर आज सुलभा को लग रहा था, मानो एक बार फिर उसका घर किसी अनजानी ख़ुशबू से महक गया हो. उसने बहुत दिन बाद अपनी पसंद की साड़ी पहनी, हल्का मेकअप भी किया. छोटू ने भी अपनी नई जींस व शर्ट निकाली. शाम होते-होते अचानक घर के सामने एक कार आकर रुकी. नानू बाहर ही था. उसने छाया को रिसीव किया. छाया सचमुच बहुत सुंदर थी. सुलभा उसे देखते ही उस पर रीझ गई. लंबी, छरहरी, गौर वर्ण तथा गहरी काली आंखें. वह हल्के मेकअप में भी बहुत सुंदर लग रही थी. नानू ने छाया का परिचय कराया. छाया ने झुककर पांव छूने चाहे. “हमारे यहां लड़कियां पांव नहीं छूतीं.” सुलभा ने उसे बांहों में भरते हुए कहा. “और छोटू कैसे हो?” वह बोली. छोटू अपना नाम सुनकर चौंक गया. “मुझे मालूम है, यह लो.” उसने आईपॉड देते हुए कहा. “यह क्या?” “ग़िफ़्ट.” छोटू अपना ग़िफ़्ट पाकर ख़ुशी से खिल गया. छाया से ही पता लगा कि उसके पापा का प्रमोशन होनेवाला है. जल्द ही आई.पी.एस. हो जाएंगे. उसकी मम्मी टीचर है. एक भाई है, जो पढ़ रहा है. उसने मुंबई से ही इंजीनियरिंग की थी, पर एम.बी.ए. नानू के साथ ही किया है. वह भी नानू की ही कंपनी में है. सुलभा शांत थी. चलो अच्छा ही है. अब बच्चे ही सब कुछ तय कर लेते हैं. इस काम से भी छुट्टी मिली. पर... तभी छाया नानू के कमरे में चेंज के लिए रुक गई. नानू के कमरे से आकर किचन के बीच में ही वो बाथरूम था, जिसका एक दरवाज़ा नानू के कमरे में खुलता था. दूसरा बाहर किचन की तरफ़. डाइनिंग टेबल से सामान उठाते समय सुलभा की साड़ी पर सॉस लग गया था. वह उसे देखते चौंकी और तुरंत बाथरूम की तरफ़ गई. उसे कुछ आवाज़-सी सुनाई दी. ध्यान से सुना तो पहचान गई कि छाया की आवाज़ थी. “नानू, इस घर में हम कैसे रह पाएंगे?” नानू चुप था. “सुनो, कंपनी की ओर से बड़ा फ्लैट मिलेगा. तुम अभी से अप्लाई कर दो. दो-तीन महीने तो मिलने में लगते हैं, फिर पापा से बात करूंगी. वो उसे सही करा देंगे. फ़र्नीचर वहीं आ जाएगा. मम्मी कह रही थीं, आजकल बिल्डर्स ख़ुद सजाकर देते हैं.” “हूं, पर छाया...” “देखो, हम साथ-साथ रह रहे हैं. रहा सवाल शादी का, तो पापा आकर यहां बात करेंगे. अक्टूबर में तारीख़ें हैं. इन लोगों को यहां ज़्यादा कुछ नहीं करना है. पापा कहते हैं, वो सब करा देंगे.” सुलभा से बाथरूम का नल ही नहीं खोला गया. लगा, चक्कर-सा आ गया है. यहीं... यहीं तो अंकित गिर पड़े थे, फिर संभल ही नहीं पाए. लगा अंकित ही हैं, जो सामने आईने से झांक रहे हैं, “नहीं, सुलभा नहीं, होश में आओ, अभी बहुत कुछ करना है.” सुलभा ने मुंह धोया, बाथरूम से बाहर आई. सामने दीवान था. छोटू और छाया बैठे टीवी देख रहे थे. नानू अपने कमरे में ही था. सुलभा सीधे उसके कमरे की तरफ़ बढ़ गई. “नानू बेटा, तुम अब बड़े हो गए हो. तुम्हारी शादी भी होगी. यह कमरा तुम्हारा ही है, पर अब यहां छोटू पढ़ता है. तुम्हें तकलीफ़ न हो, तो बेटा एक बात कहूं. तुम अपनी कंपनी से बात कर लो. वो फ्लैट दे रहे हैं, तो ले लो. जैसे यह तुम्हारा घर होगा, वैसे ही वह भी होगा. हम लोग तुमसे मिलने वहां आ जाएंगे.” “क्या?” नानू अवाक् था. क्या मम्मी ने छाया की बात सुन ली है? उसने सुलभा की तरफ़ देखा. पर उस शांत सरोवर में कोई हलचल नहीं थी, वह पूरी तरह जीवन संग्राम में योद्धा की तरह उतर चुकी थी.- डॉ. नरेंद्र चतुर्वेदी
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