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कहानी- योद्धा (Short Story- Yodha)

"क्या दी आप भी? यहां प्रतिदिन सैंकड़ों संक्रमितों के बीच काम करते हैं. हां, आपको डर लग रहा हो, तो आपके लिए पीपीई किट लेती आऊंगी. वो पहनकर मेरा इंटरव्यू ले लेना."
"रहने दे! तेरे से तो ज़्यादा ही बहादुर हूं. भूल गई बचपन में काॅकरोच और अंधेरे से कौन डरता था?"
"वो फोबिया तो अब भी है. तभी तो हर महीने पेस्ट कंट्रोल करवाती हूं और रात में बाथरूम की लाइट जलाकर सोती हूं… वे पुरानी यादें भी तो ताज़ा करनी हैं… "

"हाय अनु दी, कैसे याद किया? घर में सब ठीक तो हैं?’ मेरी कॉल रिसीव करते ही मधुरिमा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी, तो मैं मुस्कुरा उठी.
"सब ठीक है कोरोना वॉरियरजी! आजकल तो घर-घर आपके ही चर्चे हो रहे हैं."
"हा हा! ड्यूटी कर रही हूं अपनी."
"मैं भी अपनी ड्यूटी ही कर रही हूं. इस अदना पत्रकार को महान डॉक्टर मधुरिमा चौधरी द ग्रेट कोरोना वॉरियर का इंटरव्यू लेने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है. बताओ, कब वीडियोकॉल करूं?"
"अरे कॉल की कहां आवश्यकता है दी? आप घर आइए न. आमने-सामने बैठकर चाय पीते हुए इंटरव्यू करेंगे."
"पर अभी ऐसे समय?"
मेरी हिचकिचाहट भांप मधु हंस दी थी.
"क्या दी आप भी? यहां प्रतिदिन सैंकड़ों संक्रमितों के बीच काम करते हैं. हां, आपको डर लग रहा हो, तो आपके लिए पीपीई किट लेती आऊंगी. वो पहनकर मेरा इंटरव्यू ले लेना."
"रहने दे! तेरे से तो ज़्यादा ही बहादुर हूं. भूल गई बचपन में काॅकरोच और अंधेरे से कौन डरता था?"
"वो फोबिया तो अब भी है. तभी तो हर महीने पेस्ट कंट्रोल करवाती हूं और रात में बाथरूम की लाइट जलाकर सोती हूं… वे पुरानी यादें भी तो ताज़ा करनी हैं. आप आज शाम 6 बजे तक आ जाइए. मैं चाय पर इंतज़ार करूंगी."
मधु से अपांइटमेंट मिल जाने के बाद मैं काम में मन नहीं लगा पाई. मन बार-बार भटककर विगत में विचरण करने लगता था. इंजीनियर चाचा-चाची की संतान मधुरिमा उर्फ मधु अपने बोल्ड निर्णयों के कारण परिवारभर में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखती है. ग्यारहवीं मे जब उसने बायोलॉजी लेकर डॉक्टर बनने का अपना निर्णय सुनाया, तो उसके मम्मी-पापा तक चौंक गए थे. वे तो उसे आईआईटी में प्रवेश दिलाने का सपना देख रहे थे.
"कॉकरोच, चूहे से तो तुझे डर लगता है. बायो क्या खाक पढ़ेगी? फिर उसकी पढ़ाई भी इतनी लंबी है…" चाचा चाची की कोई समझाइश उसके निर्णय को बदल नहीं सकी थी. मधु डाॅ. मधुरिमा बन गई थी. चाचा-चाची उसके लिए देश-विदेश में डॉक्टर दूल्हा खोज रहे थे और इस बीच उसने एक बनिए से शादी कर सबको चौंका दिया था. अपनी साख बनाए रखने की ख़ातिर चाचा-चाची ने तुरंत एक भव्य भोज आयोजित कर इस विवाह पर अपनी स्वीकृति की मुहर चस्पा कर दी थी. किंतु दिल से शायद वे कभी मधु को क्षमा नहीं कर पाए.

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मेरी प्रगतिशील सोच और लगभग हमउम्र होने के कारण मधु अपनी हर बात मुझसे सहजता से शेयर कर लेती थी. हालांकि उसके शादीवाले निर्णय से मैं भी अनजान थी. पर उसे वापस घर बुलाने, चाचा-चाची से सुलह करवाने में मैंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
प्यारी-सी बिटिया कोमल के जन्मोत्सव पर मैं उसके घर गई थी. सास और पति सुमित का छोटा-सा परिवार, पुश्तैनी मकान, दुकान कुल मिलाकर मेरे हिसाब से तो मधु सुखी घर-गृहस्थी की मालकिन थी. किंतु मेकअप के नीचे दबा पीला चेहरा, क्लांत शरीर कुछ अलग ही कहानी बयां करते नज़र आए थे.

Kahaniya

"शायद प्रोफेशन के संग मातृत्व की थकान हो." मैंने ख़ुद को आश्वस्त करना चाहा था. किंतु खोजी पत्रकार मन इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं हुआ था. इसके कुछ समय बाद ही एक मॉल में मुझे सुमित एक युवती के संग नज़र आया था. मैंने उनकी जासूसी की, तो उनकी अंतरंगता भांप मेरे कान खड़े हो गए थे. मैंने मधु को इस बारे में बताया, तो वह निर्लिप्त-सी बनी रही थी.
"मुझे फ़र्क नहीं पड़ता." उसने कंधे उचका दिए थे.
"तुम जानती हो उस लड़की को?"
"एक हो तो ध्यान भी रखूं. रोज़ नई लड़की, नया बिज़नेस… कहां तक लडूं… कहां तक समझाऊं? थक गई हूं दी मैं!" मधु हताश थी.
"कब से चल रहा है यह सब? और क्यूं सहन कर रही है तू?"
"शादी के एक-दो वर्ष बाद से ही. मैं तब गर्भवती थी. पता चला, तब बहुत लड़ी थी उससे, बहुत रोई भी थी."
"फिर?"
"वही घिसे-पिटे जवाब, जो ऐसे मौकों पर दिए जाते हैं. तुम ग़लत समझ रही हो, ओवररिएक्ट कर रही हो, ऐसा कुछ नहीं है, नए बिज़नेस के सिलसिले में काॅन्टेक्ट्स बढ़ा रहा हूं.’… पापाजी के गुज़र जाने के बाद कपड़ों का व्यवसाय मंदा होने लगा था. उसे संभालने की बजाय, सुमित ने उसे बंद कर दिया. तब से कभी फूडचेन, कभी ऑटोमोबाइल… हर ओर हाथ-पांव मारे जा रहा है."
"चाचा-चाची जानते हैं यह सब?"
"मैंने तो कभी आगे बढ़कर कुछ बताया नहीं, क्योंकि उनकी प्रतिक्रिया यही होगी कि तुम्हारा किया धरा है, तुम ही भुगतो. एक बात बताइए दी, यही ग़लती अरेंज मैरिज में भी तो हो सकती है, बल्कि उसमें चांसेज़ ज़्यादा हैं. लव मैरिज में आप अपने पार्टनर को पहले से जानते तो हैं. मेरे आगे-पीछे घूमनेवाला, बेपनाह प्यार बरसानेवाला सुमित ऐसे रंग बदलेगा मैं कैसे अनुमान लगा सकती थी? मेरा तो जीने का मोह ही ख़त्म हो गया है." मधु हताश थी.
"पगली, अभी तो ज़िंदगी शुरू हुई है. इतनी जल्दी हार मान लोगी तो…"
"मैंने पीजी की तैयारी आरंभ कर दी है. मैं अब पूरा वक़्त अपनी पढ़ाई और प्रोफेशन को देना चाहती हूं."
"और कोमल?"
"उसके लिए नैनी रख ली है. वैसे मम्मीजी और सुमित उस पर जान छिड़कते है. दुश्मनी तो सिर्फ़ मुझसे है. वे उसका पूरा ख़्याल रखेगें."
मधु ने इस बार भी जो ठाना था, कर दिखाया. उसकी कड़ी मेहनत और समर्पण का ही नतीज़ा है कि वह आज शहर की मशहूर और व्यस्ततम डॉक्टर है.
मैं इस दौरान अपनी ज़िंदगी में ही उलझकर रह गई. शादी, पति के साथ विदेश प्रवास, बच्चों की परवरिश, पत्रकारिता का उच्चस्तरीय कोर्स आदि… मधु के बारे में जानकारी थी कि वह चिकित्सकीय पेशे में ख़ूब नाम कमा रही है, सुमित का होटल व्यवसाय चल निकला है, उसकी बेटी कोमल ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया है. कुल मिलाकर सबकी ज़िंदगी एक बंधे बंधाए ढर्रे पर चल रही थी कि कोरोना त्रासदी ने सब उलट-पुलट कर डाला. कई घर बैठ गए थे, कई वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे, तो कई मेरे और मधु की तरह मास्क और सेनीटाइजर जैसे अस्त्र-शस्त्रों के सहारे अपने-अपने कार्यक्षेत्र में जुट गए थे. हमारे चैनल की कोरोना योद्धाओं से साक्षात्कार की सूची में मधु का नाम सबसे ऊपर था. किंतु उसकी अत्यधिक व्यस्तता के चलते यह साक्षात्कार स्थगित होता जा रहा था. संपादक को जब हमारे रिश्ते का पता चला, तो तुरत-फुरत यह ज़िम्मेदारी मुझ पर लाद दी गई.
मिलने से पूर्व ही अपनी आत्मीयता और सहृदयता से मधु ने मुझे अंदर तक भिगो डाला. घमंड उसे छू भी नहीं गया था. मन अनायास ही उसके जीवन के घटनाक्रम का विश्लेषण करने लगा. भगवान ने मेरी बहन के साथ बहुत अन्याय किया है. अचानक मेरे दिमाग़ में बिजली-सी कौंधी. कहीं ऐसा तो नहीं कि उसी अन्याय के प्रतिकारस्वरूप ज़िंदगी से निराश मधु ख़ुद को केारोना की आग में झोंक कोरोना वारियर बन गई है?
मधु से इंटरव्यू के लिए मुझे कोई औपचारिक प्रश्नों की सूची नहीं तैयार करनी पड़ी. मैंने जैसा सोचा था लगभग वैसे ही अनौपचारिक वातावरण में हमारी मुलाक़ात और बातचीत शुरू हो गई. मधु चाय का थर्मस और नाश्ते की टेबल सजाए बैठक में मेरा इंतज़ार करती मिली. मन तो हुआ उसे गले लगा लूं, पर परिस्थितियों के तकाजे ने मास्क लगाकर 6 फुट की दूरी पर बैठने को विवश कर दिया.
"कैमरा, रिकाॅर्डर सब लाई हूं. सेट कर देती हूं, पर वे सब औपचारिक बातें हम अंत में करेंगे. अभी तो यह समझो तुम्हारी अनु दी ही तुम्हारे संग चाय पीने आई है… वाह, हम दोनों की पसंद की कड़क मसालेदार अदरकवाली चाय!" पहली चुस्की के साथ ही मेरा तन-मन खिल उठा था.
"सुमित, कोमल, तुम्हारी सास सब कहां हैं?"
"घर पर ही हैं. मैंने उन्हें कह दिया है कि कोई रिपोर्टर मेरा इंटरव्यू लेने आ रहा है. डिस्टर्ब न करें."
"ओह!" मैं समझ गई मेरी पहचान छुपाकर मधु मुझसे एकांत में कुछ शेयर करना चाहती है. बचपन से मैं ही तो उसकी राज़दार रही हूं. एक लंबे समय से उसकी सुध न लेने का मुझे अफ़सोस हुआ. व्यस्तताएं तो हर इंसान की ज़िंदगी में रहती हैं, पर इसका यह मतलब तो नहीं कि हम अपनों से ही विमुख हो जाएं. फिर मैं तो जानती थी कि विपदाओं के किस झंझावात से वह जूझ रही है. फिर भी मैंने उसे अकेला छोड़ दिया?

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"तुम्हारे ओैर सुमित के बीच कुछ ठीक हुआ या अब भी?.. कोमल बड़ी हो गई है, सुमित क्या अब भी?"
"मुझे नहीं मालूम! मैं जानना भी नहीं चाहती."
"फिर अब तक संबंध क्यूं बनाए हुए हो? तलाक़ क्यूं नहीं ले लिया?"
"मात्र दुनिया को दिखाने के लिए कुछ करना मुझे कभी नहीं सुहाया? जब मुझे उसके घर में रहने, न रहने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, तो मात्र दुनिया को दिखाने के लिए क्यूं तलाक लूं? वैसे भी यह मेरा सरकारी आवास है. तो मैं तो यहीं रहूंगी. शेष की शेष जानें! चूंकि मैंने किसी से कोई अपेक्षा रखना छोड़ दिया है, तो मुझे किसी से कोई शिकायत भी नहीं है" उसके स्वर की तल्खी भांप मैंने बात का रूख मोड़ दिया.
"चाचा-चाची कैसे हैं? काफ़ी समय से उनसे मिलना नहीं हो पाया."
"मिली तो मैं भी अरसे से नहीं. ठीक ही होंगे. फोन पर कभी-कभी औपचारिक बातें हो जाती हैं. दिल से माफ़ नहीं कर पाए हैं वे मुझे. मानती हूं दी, मेरी ग़लती बड़ी है. मेरा चयन भी ग़लत था, पर क्या अरेंज मैरिजवाले सारे लड़के हमेशा सर्वगुणसंपन्न ही निकलते हैं? नहीं न? यदि उनके द्वारा खोजा लड़का भी सुमित जैसा निकलता, तब भी भुगतना तो मुझे ही पड़ता न? शादी जुआ ही तो है दी! आप लाख सोच-समझकर दांव लगाओ, पर इस बात की गारंटी तो कोई नहीं ले सकता कि आपके द्वारा चुना गया जीवनसाथी जीवनभर अच्छा ही रहेगा. जिस सुमित से मैंने प्यार किया था, वो मुझसे अपने सच्चे प्यार की क़समें खाता था. मेरे हर कदम पर मेरे साथ खड़ा रहता था… मैं सोच भी नहीं सकती थी वह मुझे इस तरह चीट करेगा." घुटन और क्षोभ से मधु की आंखें छलछला उठीं, तो मैं ख़ुद को रोक नहीं पाई. उसके पास जाकर बैठ गई और उसे धीरज बंधाने लगी. अपनत्व पाकर बरसों से दबा ज्वालामुखी सुलग उठा.

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"…पापा-मम्मी से थोड़ा प्यार और हमदर्दी ही तो चाही थी मैंने. ताने-उलाहने सुनानेवाले तो दुनिया में वैसे ही बहुत हैं. मम्मीजी को भी इस उम्र में क्या कहूं? एकांत में मेरे सम्मुख गिड़गिड़ाती हैं. कहती हैं मेरा बेटा तो नालायक निकला. मैं तो तेरे भरोसे जी रही हूं. सुमित यदि आज कुछ कमा-खा पा रहा है, तो तेरी बदौलत. तूने उसे समय-समय पर आर्थिक मदद न की होती, तो वह कभी अपने पैरों पर खड़ा न हो पाता. क्या मम्मीजी यही सब सुमित को नहीं समझा सकतीं? मुझसे उम्मीद रखती हैं कि मैं सुमित के संग पहले जैसी हो जाऊं. कहती हैं हम औरतों का तो धर्म है हर हाल में परिवार को बिखरने से बचाना. सुमित अब सुधर गया है.
तो? मैं क्या करूँ? मेरे दिल में तो उसके प्रति प्यार समाप्त हो चुका है. दिल क्या केवल उसी के पास है? जब, जिसे मन किया रख लिया, निकाल फेंका? मैं नहीं जानती भविष्य में कभी उसे फिर प्यार कर पाऊंगी या नहीं? पर आज की तारीख़ में नहीं, नहीं और सिर्फ नहीं. पता है दी, सुमित की वजह से कोमल मेरे बारे में क्या राय रखती है?"
"क्या?" कुछ अप्रिय सुनने की आशंका से मैं चौंक उठी.
"वह समझती है अपनी प्रोफेशनल महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए मैंने अपने परिवार को दांव पर लगाया है. मेरी निर्लिप्तता की वजह से सुमित के कदम बहके. मैं कितना चाहती थी कि मेरी बेटी मेरी तरह डॉक्टर बने. स्वयं उसका बचपन में यही सपना था, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई सुमित ने उसके दिलोंदिमाग़ में जाने क्या ज़हर भरा कि उसे डॉक्टरी पेशे से ही नफ़रत हो गई…"
"तुम कोमल को सच्चाई क्यूं नहीं बताती?" मैं अधीर हो उठी.
"मैं नहीं चाहती पिता-पुत्री के रिश्ते में दरार आए. कल को मैं न रहूं…"
"मधु?" आवेश में मैं चिल्ला उठी.
"ग़लत नहीं कह रही. देख तो रही हो किस तरह आग से खेल रही हूं." मधु ने फीकी मुस्कान बिखेर दी.
मेरी आशंका सही थी.
"सॉरी दी! पर मैं नहीं चाहती कि पापा-मम्मी के जिस प्यार से मैं महरूम हो गई हूं, वैसे कोमल भी हो. बहुत प्यार करती हूं उसे, ख़ुद से भी ज़्यादा!" भावातिरेक में मधु की आंखें बरसने लगीं, तो मैंने उसे मुंह धोने भेज दिया.
"जिस काम से आई हूं व, वो तो कर लें."
औपचारिक इंटरव्यू बहुत अच्छा रहा. डाॅ. मधुरिमा ने कोरोना से बचाव, उपचार की सहज और उपयोगी जानकारी शेयर की. चैनल हैड रिर्कार्डिंग देखकर बहुत ख़ुश हुए.
"उम्मीद है इसके प्रसारण के बहुत अच्छे रिजल्ट आएगें."
लेकिन मैं तो उत्सुक हूं उस अनौपचारिक इंटरव्यू का रिज़ल्ट जानने को. जिसकी गुपचुप रिकॉर्डिंग कर मैंने चाचा-चाची, सुमित, कोमल, मधु की सास को भेज दिया था. मुझे उम्मीद है मधु के प्रति उनका व्यवहार अवश्य परिवर्तित होगा. मधु को उसके हक़ का प्यार और सम्मान अवश्य मिलेगा. एक कोरोना योद्धा का मनोबल बढ़ाने के लिए इतना करना, तो हर एक का फर्ज़ बनता है.

Sangeeta Mathur
संगीता माथुर

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