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कहानी- औरत ही रहने दो (Story- Aurat Hi Rahne Do)

कहानी- औरत ही रहने दो “रश्मि, ये कहां लिखा है कि औरत कमज़ोर होती है? जब सृजन का दायित्व ही औरत के कंधों पर है, तो वो कमज़ोर कहां से हुई? हर बच्चा अपनी मां के संरक्षण और उसकी देखरेख में बड़ा होता है, फिर चाहे वो स्त्री हो या पुरुष, फिर औरत कमज़ोर कैसे हुई? ये औरतों की अपनी मानसिकता है कि वो ख़ुद को और अन्य औरतों को भी पुरुषों से कम आंकती हैं." “हेलो रश्मि, मैं अनिकेत.” “हेलो अनिकेत, हाउ आर यू?” “आई एम फाइन. रश्मि, मुझे तुमसे कुछ कहना है.” “हां कहो, कोई ख़ास बात है क्या? हम शाम को मिल ही रहे हैं ना?” “रश्मि... वो... दरअसल... मुझे नहीं लगता हमारा रिश्ता आगे बढ़ पाएगा.” सुनकर रश्मि अवाक् रह गई. एक बार फिर रिजेक्शन?... अब तक हुए सारे रिजेक्शन्स चाहे वो उसने किए हों या लड़केवालों ने, उसे इसका कोई अफ़सोस नहीं हुआ, लेकिन अनिकेत को वो पसंद करने लगी थी. उससे रिश्ता टूटना शायद वो बर्दाश्त न कर पाए. उसे लगा जैसे वो फोन पर ही रो पड़ेगी. बड़ी मुश्किल से उसने अपनी भावनाओं को संभाला और नॉर्मल होने की भरसक कोशिश करते हुए अनिकेत से पूछा, “क्यों अनिकेत, अचानक क्या हुआ?” “रश्मि, क्या तुम मेरे लिए ख़ुद को थोड़ा-सा बदल सकोगी? तुम बहुत प्यारी लड़की हो, मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो, लेकिन जैसी पत्नी की कामना मैं करता हूं तुम वैसी नहीं हो. मुझे पूरा विश्‍वास है कि तुम वैसी बन सकती हो, लेकिन मैं तुम पर दबाव कैसे डाल सकता हूं. तुम आज की लड़की हो इसलिए ये तुम्हारा अपना फैसला होना चाहिए.” फिर वही बात, लड़की को ख़ुद को बदलना होगा. तंग आ गई है रश्मि यह जुमला सुनते-सुनते. क्या कोई लड़का ख़ुद को अपनी पत्नी के लिए बदलेगा? कभी नहीं! फिर उससे ये उम्मीद क्यों लगाई जा रही है? रश्मि का मन तो किया कि अनिकेत को ख़ूब खरी-खोटी सुनाए, लेकिन वो ऐसा कर न सकी. उसने स़िर्फ इतना ही कहा, “अनिकेत, क्या हम ये बातें शाम को मिलकर करें?” “ठीक है”, कहकर अनिकेत ने तो फोन रख दिया, लेकिन रश्मि संयत नहीं हो पा रही थी. उसे लग रहा था जैसे उसके हाथों से उसकी कोई प्यारी-सी चीज़ छिन रही है. वो अनिकेत को खोना नहीं चाहती थी, लेकिन उसकी शर्त रश्मि के स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रही थी. मोबाइल हाथ में लिए रश्मि सोफे पर जैसे धंस सी गई. “रश्मि, तबियत ठीक है ना तुम्हारी? कब से यूं गुमसुम बैठी हो, क्या हुआ?” मां ने रश्मि के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा तो वो अपने आंसुओं को रोक न पाई. वो मां की गोद में सिर रखकर फफक-फफक कर रो पड़ी. अब मां को ग़ुस्सा आने लगा था. उन्होंने रश्मि को ख़ुद से लगभग अलग करते हुए कहा, “रश्मि, तुम जानती हो, तुम्हारा यूं लड़कियों की तरह रोना-धोना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं. तुम एक स्ट्रॉन्ग लड़की हो. तुम्हें हर चीज़ का बहादुरी से सामना करना चाहिए.” “लेकिन हर बात में ताकत कहां लगती है मां? अगर अनिकेत ने भी मुझसे शादी करने से इनकार कर दिया, तो क्या मैं जाकर उन्हें पीटूं और कहूं कि तुमने ऐसा क्यों किया? चलो, मुझसे शादी करो, वरना मुझसे बुरा कोई न होगा?” “रश्मि... क्या हो गया है तुम्हें? तुम्हारे लिए क्या लड़कों की कमी है? पढ़ी-लिखी हो, ख़ूबसूरत हो, स्ट्रॉन्ग हो...” “हां, स्ट्रॉन्ग हूं और यही बात अनिकेत को पसंद नहीं. उसने मुझसे कई बार कहा कि तुम ऐसे टॉम ब्वॉय की तरह क्यों रहती हो? लड़कियोंवाली नज़ाकत तुम में नज़र ही नहीं आती. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आख़िर मुझे कैसे रहना चाहिए? आप कहती हैं लड़कियों की तरह छुईमुई बनकर मत रहो, पापा और दादी को मेरा पहनावा, रहन-सहन पसंद नहीं. और अनिकेत को भी नहीं. मैं क्या करूं मां? मुझे कैसे रहना चाहिए?” “देखो रश्मि, मैं अपनी बेटी को किसी भी पुरुष के आगे कमज़ोर पड़ते नहीं देखना चाहती. बचपन से यही देखती आई हूं मैं. औरत की भावनाओं, उसकी महत्वाकांक्षाओं की किसी को परवाह नहीं होती. हर कोई पुरुष को आगे बढ़ाने में लगा रहता है. बेटी चाहे कितनी भी क़ाबिल क्यों न हो, क़ामयाबी की कामना बेटे से ही की जाती है. मैंने बचपन से ये भेदभाव झेला है. मैं अपने भाई से हर चीज़ में अव्वल थी, लेकिन माता-पिता को मेरी ख़ूबियां कभी नज़र नहीं आईं. मेरा भाई ही उनका दुलारा बना रहा. मैं तो पराया धन थी, मुझ पर ख़र्च करके उन्हें क्या हासिल होना था इसलिए खानापूर्ति के लिए मेरी पढ़ाई पूरी करा दी गई, वो भी सरकारी स्कूल में. पराई अमानत को यूं भी बोझ समझकर ही पाला जाता है. मेरी शादी का फैसला भी मुझसे पूछकर नहीं किया गया. शादी करके कोल्हू के बैल की तरह बस, भेज दिया पराए घर. लेकिन जब तुम पैदा हुई, तो मैंने ख़ुद से वादा किया कि मैं तुम्हें मेरी तरह कमज़ोर, लाचार नहीं बनने दूंगी. तुम्हें हर चीज़ में आगे रखूंगी, ताकि तुम कभी किसी पुरुष के सामने कमज़ोर न पड़ो. मैं तुम्हें कमज़ोर पड़ते नहीं देख सकती रश्मि, तुम मेरा अभिमान हो. मुझे फ़ख़्र है कि मेरी बेटी और लड़कियों की तरह निःसहाय, लाचार नहीं है.” मां की ऐसी प्रेरणादायी बातें हमेशा रश्मि का हौसला बढ़ाती थीं, लेकिन आज उसे मां की बातें अच्छी नहीं लग रही थीं. उसके कानों में बस, अनिकेत की ही बातें गूंज रही हैं, “रश्मि, क्या तुम मेरे लिए ख़ुद को थोड़ा-सा बदल सकोगी?” वो मां की बातों को लगभग अनसुना करते हुए अपने कमरे में चली गई और उसने कमरा बंद कर दिया. शाम चार बजे तक वो घड़ी की सूइयों पर टकटकी लगाए बैठी रही और चार बजते ही वो अनिकेत से मिलने के लिए तैयार हो गई. उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे, जिनका जवाब जानने के लिए वो बेताब थी. नियत समय पर जब वो कॉफी हाउस में अनिकेत से मिली, तो अनिकेत एक पल तो उसे निहारता रहा, फिर ख़ुद को संभालते हुए उसने रश्मि को बैठने को कहा. रश्मि ने बिना कोई भूमिका बांधे सीधे अपना सवाल दागा, “हां अनिकेत, बताओ, तुम मुझसे शादी क्यों नहीं करना चाहते?” अनिकेत शायद उसके मन की व्यथा समझ रहा था, इसलिए उसने रश्मि का हाथ अपने हाथों में लिया और उसे प्यार से समझाते हुए कहा, “रश्मि, ऐसा नहीं है कि तुम मुझे पसंद नहीं हो, लेकिन इस रिश्ते को लेकर जिस आस से मैं तुम्हारे पास आया था, वो मुझे तुम में नहीं मिली. मैं तुम में अपनी मां की छवि देखना चाहता था, तुम्हारे प्यार-दुलार की छांव में अपनी गृहस्थी को फलते-फूलते देखना चाहता था, लेकिन तुम तो मेरे जैसी बनना चाहती हो. मेरी बराबरी करना चाहती हो, लेकिन दो एक जैसे लोग एक-दूसरे के प्रति आकर्षित कैसे हो सकते हैं. आकर्षण तो हमेशा अपोज़िट के प्रति ही होता है ना? शादी के लिए दो अपोज़िट सेक्स की ज़रूरत होती है. हम अपने पार्टनर की उन बातों से आकर्षित होते हैं, जो हम में नहीं होतीं, यही स्त्री-पुरुष के आकर्षण का केंद्रबिंदु है, लेकिन तुम बिल्कुल मेरे जैसी हो, तो मैं किस बात से आकर्षित होऊं? मैंने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था. पापा ने दूसरी शादी नहीं की, इसलिए घर में औरत की कमी हमेशा खली. मैंने सोचा, शादी के बाद हमारा घर फिर वैसा ही हो जाएगा जैसा मां के समय हुआ करता था, लेकिन तुम्हें तो औरतों की तरह रहना पसंद ही नहीं, फिर हम साथ कैसे रह पाएंगे? तुम ऐसी क्यों हो रश्मि? तुम और लड़कियों जैसी क्यों नहीं हो?” “क्योंकि मां नहीं चाहती थी कि मैं और लड़कियों जैसी कमज़ोर-असहाय बनूं, इसलिए उन्होंने मेरी परवरिश उसी तरह की जैसे लड़कों की होती है.” कहानी- औरत ही रहने दो रश्मि की बातों ने अनिकेत को हैरत में डाल दिया. कोई मां अपनी बेटी को ऐसा क्यों बनाना चाहेगी? फिर रश्मि ने अनिकेत को मां के बचपन और उनकी सोच के बारे में बताया. साथ ही अपने बचपन के बारे में भी बताया कि कैसे वो एक प्यारी-सी छुईमुई लड़की से टॉम ब्वॉय बन गई. वो अपना बचपन याद करते हुए अनिकेत को बताने लगी, “पता है अनिकेत, मुझे बचपन में पायल पहनने का बहुत शौक था, लेकिन मां ने मुझे कभी पायल नहीं पहनने दी. एक बार दादी ने मुझे पायल पहनाई तो मां ने उन्हें ख़ूब खरी-खोटी सुनाई और तुरंत मेरे पैरों से पायल उतारकर फेंक दी. मां नहीं चाहती थीं कि मैं आम लड़कियों की तरह बनूं-संवरूं. वो चाहती थीं कि मैं इतनी स्ट्रॉन्ग बनूं कि कोई भी पुरुष मेरी तरफ़ आंख उठाने से पहले दस बार सोचे. मां को लगता था कि औरत होना कमज़ोरी है, इसलिए उन्होंने मुझे इतना स्ट्रॉन्ग बना दिया कि मेरे अंदर की कोमल भावनाओंवाली औरत ने शायद दम तोड़ दिया. मैं लड़कों की तरह क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केट बॉल खेलने लगी. लड़कियों वाले गुड्डे-गुड़ियों के खेल क्या होते हैं, ये मैंने कभी जाना ही नहीं. मेरी नज़ाकत, मासूमियत, शर्मोहया जाने कहां गुम हो गई. मेरे शरीर की स़िर्फ बनावट औरतों जैसी है, मेरी सोच, जीने का तरीक़ा, पहनावा सब कुछ मां ने बदल दिया. कभी-कभी मैं ख़ुद ही कनफ्यूज़ हो जाती थी कि आख़िर मैं हूं क्या? स्त्री या पुरुष?” “रश्मि, ये कहां लिखा है कि औरत कमज़ोर होती है? जब सृजन का दायित्व ही औरत के कंधों पर है, तो वो कमज़ोर कहां से हुई? हर बच्चा अपनी मां के संरक्षण और उसकी देखरेख में बड़ा होता है, फिर चाहे वो स्त्री हो या पुरुष, फिर औरत कमज़ोर कैसे हुई? ये औरतों की अपनी मानसिकता है कि वो ख़ुद को और अन्य औरतों को भी पुरुषों से कम आंकती हैं. मेरे लिए मेरी मां दुनिया की सबसे स्ट्रॉन्ग इंसान हैं, लेकिन शारीरिक बल से नहीं, उनका प्यार, ममता, परिवार को जोड़े रखने की कोशिश उन्हें ख़ास बनाती है. उनके बिना मैंने पापा को कमज़ोर पड़ते देखा है. उनके जाने के बाद हमने क्या खोया ये हम ही जानते हैं. दुनिया का कोई भी पुरुष कभी भी स्त्री की बराबरी नहीं कर सकता. शारीरिक बल से सब कुछ हासिल नहीं किया जा सकता, उसके लिए प्यार, समर्पण, वात्सल्य की ज़रूरत होती है, जो औरत का ख़ास गुण होता है. हम पैसे से दुनिया का अच्छे से अच्छा खाना ख़रीद सकते हैं, लेकिन उसमें क्या वो स्वाद ला सकते हैं जो मां के हाथों से बने खाने में होता है? दुनिया के हर सफल पुरुष की क़ामयाबी के पीछे औरत का हाथ होता है, फिर औरत कमज़ोर कहां से हुई? ये इंसान की फितरत है कि हम दुनिया की हर ख़ूबसूरत चीज़ के प्रति आकर्षित होते हैं. उसे छूना चाहते हैं और मिल जाए तो सहेजकर अपने पास रखना चाहते हैं. औरत भी कुदरत का बनाया एक ऐसा ही नायाब तोहफ़ा है, जिसकी ख़ूबसूरती के प्रति पुरुष आकर्षित होता है और उसे पाना चाहता है. औरत मां के रूप में पुरुष को न स़िर्फ जीवन देती है, बल्कि उसे जीवन का पाठ भी पढ़ाती है. बहन के रूप में वो उसके बचपन की साथी बनती है. पत्नी के रूप में वो उसकी बेस्ट फ्रेंड बनती है और जीवन के हर कठिन मोड़ पर उसके साथ खड़ी रहती है. बेटी के रूप में वो उसका सहारा बनती है, उसके घर में ख़ुशियां लाती है, ससुराल जाकर पिता का नाम रौशन करती है... अपने हर रूप में औरत सबल है, कमज़ोर कहां है? तुम्हारी मां ने अपने दुख का प्रतिशोध लेने के लिए तुम्हें स्ट्रॉन्ग तो बना दिया, लेकिन तुम्हारे अंदर की औरत को मार दिया. उन्होंने तुम्हें एक मज़बूत रोबोट बना दिया, जो दिखता तो औरत जैसा है, लेकिन उसके पास न औरत जैसी भावनाएं हैं, न नज़ाकत और न ही उसके जैसा वात्सल्य. वो बस, ख़ूबसूरत, मज़बूत रोबोट है. मुझे रोबोट नहीं, बीवी चाहिए, जो मुझे समझे, प्यार करे, मेरा घर संवारे, बच्चों की परवरिश उतने ही प्यार-दुलार से करे जैसे मेरी मां ने मेरी की थी. मैं तुम्हारे पास सहारा मांगने आया, लेकिन तुमने अपना क़द इतना छोटा कर दिया कि तुम मेरी बराबरी करने लगी. औरत को पुरुष की बराबरी करने की ज़रूरत ही क्या है? औरत के बिना पुरुष दो क़दम चलने का साहस नहीं कर सकता और जब पुरुष को पग-पग पर औरत के सहारे की ज़रूरत पड़ती है, तो वो उससे कमज़ोर कैसे हो गई? मुझे तुम बहुत पसंद हो, लेकिन एक औरत के रूप में, प्रतिस्पर्धी के रूप में नहीं. यदि तुम मेरी ख़ातिर औरत बन सको, तो मुझे ये रिश्ता मंज़ूर है, वरना तुम्हारी राह अलग, मेरी अलग. ” रश्मि ने अनिकेत का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए कहा, “अनिकेत, तुम कितने बच्चों के पिता बनना चाहते हो? और शादी के बाद मैं रोज़ पायल पहनूंगी, वो भी घुंघरूवाली... और हां, हम अपने बच्चों पर अपनी अपेक्षाओं का बोझ नहीं डालेंगे. हम उन्हें वही बनाएंगे, जो वो बनना चाहते हैं. तुम मेरा साथ दोगे ना?” हंसती-मुस्कुराती रश्मि अचानक छोटे बच्चे की तरह बिलख-बिलखकर रोने लगी. अनिकेत उसके मन की व्यथा समझ रहा था. इतने सालों तक जाने-अनजाने वो एक ऐसी ज़िंदगी जी रही थी, जो उसने कभी चाही नहीं थी. वो तो बस, मां के बताए रास्ते पर चलती गई. कभी किसी ने उसे उसके औरत होने का एहसास ही नहीं कराया. उसका मर्दों की तरह उठना-बैठना, उनकी तरह कपड़े पहनना, बात करना उसे इस बात की झूठी तसल्ली देता रहा कि वो दूसरी लड़कियों की तरह कमज़ोर नहीं, वो हर तरह से मर्दों की बराबरी कर सकती है. बेटी को मर्दों की तरह स्ट्रॉन्ग बनाने की चाह में उसकी मां ने उसके अंदर की औरत को ही मार दिया. आज अनिकेत ने उसे फिर वही छोटी-सी रश्मि बना दिया है, जो पायल पहनकर इठलाना चाहती है, नाचना-गाना चाहती है. घर को अपनी खनखनाती हंसी से सराबोर कर देना चाहती है, सहेलियों के साथ गुड्डे-गुड़िया का खेल खेलना चाहती है. अनिकेत ने प्यार से उसका माथा चूमते हुए कहा, “मैं जानता हूं, मेरी प्यारी-सी रश्मि अपने प्यार और वात्सल्य से मेरे घर को बिल्कुल वैसा ही सजाएगी, जैसा मेरी मां ने उसे संवारा था. मुझे तुम पर पूरा विश्‍वास है. तुम मुझ जैसी नहीं, मुझसे कहीं बेहतर हो रश्मि.” कमला बडोनी
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