मलाना को छुआ, तो पैसे लगेंगे जी हां, मलाना अपीन ख़ूबसूरती के लिए जाना जाता है. यहां रहने वाले लोग आपका आदर तो करेंगे, लेकिन जैसे ही आप वहां की कोई चीज़ छूने की कोशिश करेंगे, तो आपका फाइन देना पड़ेगा, इसलिए गांव को दूर से ही देखें. कुछ भी छूने की ग़लती न करें.यह भी पढ़ें: किड्स डेस्टिनेशन: चलें ज़ू की सैर पर अनोखा मलाना मलाना की कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो आपका दिल जीत लेंगी. यहां के लोग पेड़ पर नाख़ून नहीं लगाते. उनके अनुसार इस तरह से पेड़ को तकलीफ़ होती है. इतना ही नहीं जंगल में लकड़ियां नहीं जलाते और तो और स़िर्फ और स़िर्फ सूखी लकड़ियों का ही उपयोग करते हैं, वो भी जंगल से बाहर. मावाल्यान्नॉन्ग, मेघालय शिलॉन्ग से 90 किलोमीटर दूर दक्षिण में बसा मावाल्यान्नॉन्ग गांव पूरे विश्व में साफ़-सुथरा गांव के रूप में प्रसिद्ध है. बहते पानी के ऊपर पेड़ों की जड़ों से बना ब्रिज आपको यहीं देखने को मिलेगा. इस गांव में आपको प्रकृति की इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना देखने को मिलेगा. 2003 में इसे एशिया के सबसे साफ़-सुथरे गांव के अवॉर्ड से नवाज़ा गया था. ईको टूरिज़्म का एहसास करने के लिए मावाल्यान्नॉन्ग ज़रूर जाएं. कैसे पहुंचे? यहां जाने के लिए दिल्ली और मुंबई से फ्लाइट के ज़रिए आप शिलॉन्ग एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं. शिलॉन्ग से टैक्सी के ज़रिए आप मावाल्यान्नॉन्ग पहुंच सकते हैं. ट्रेन के ज़रिए भी आप पहले शिलॉन्ग रेलवे स्टेशन जा सकते हैं. फिर वहां से लोकल टैक्सी के ज़रिए आप पहुंच सकते हैं. मस्ट डू - ट्रेकिंग के दीवानों के लिए ये जगह बहुत अच्छी है. मावाल्यान्नॉन्ग से लिविंग ब्रिज तक की ट्रेकिंग ज़रूर करें. - प्रकृति की सुंदर कृति बहते झरनों की नीचे नहाएं. - गुफाओं की लाइफ जानने के लिए गुफाओं की सैर ज़रूर करें. दांडी, गुजरात गुजरात का नन्हा-सा गांव, जो कभी गुजरात में ही फेमस नहीं था, महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह ने उसे दुनिया के मानचित्र पर लाकर खड़ा कर दिया. ऐतिहासिक रूप से इस गांव का महत्व तो है ही साथ में प्राकृतिक रूप से भी ये संपन्न है. बच्चों को दांडी की यात्रा ज़रूर कराएं. कैसे पहुंचे? फ्लाइट, रेल, बस से आप दांडी पहुंच सकते हैं. आप सूरत पहुंचकर वहां से दांडी जा सकते हैं. मस्ट डू - दांडी बीच पर जाकर नमक सत्याग्रह यादें ताज़ा ज़रूर करें. - होटल के कमरे तक सीमित रहने की बजाय बच्चों को गांव की सैर कराएं. - वहां के लोगों से नमक सत्याग्रह के बारे में जानें. - हो सके तो दांडी से साबरमती तक की यात्रा करें. इससे आप उस समय को जीने में सफल रहेंगे. याना, कर्नाटक जंगलों और पहाड़ों के बीच शान से बना कर्नाटक का ये गांव आपको प्रकृति के अप्रतिम दृश्य का अवलोकन कराएगा. स्कूल के किताबों में पेड़ों और पहाड़ों को देखने और उन्हें रंगों से भरने वाले बच्चों के लिए ये गांव किसी सपने से कम नहीं लगेगा. ये एक हिल स्टेशन है. दुनियाभर से पर्यटक याना का रॉक फॉरमेशन देखने आते हैं. कैसे पहुंचे? याना गांव पहुंचने के लिए बैंग्लोर नज़दीकी एयरपोर्ट है. ट्रेन से जाने के लिए कोंकण रेलवे का चुनाव करें. कुम्टा नज़दीकी रेलवे स्टेशन है. मस्ट डू - बच्चों के साथ विबुति झरना देखने ज़रूर जाएं. - पहाड़ों के बीच बने याना मंदिर में बच्चों के साथ पूजा करने ज़रूर जाएं. - जंगलों के बीच में बने गुफा में बच्चों के साथ सैर ज़रूर करें. - ट्रेकिंग के शौक़ीन हैं, तो याना में ट्रेकिंग ज़रूर करें.
बहुत कुछ सीखेंगे बच्चे आमतौर पर शहरों के दो कमरों के घरों में रहने वाले बच्चों की दुनिया स़िर्फ आप तक ही सीमित होती है. देश के गांव किस तरह की समस्या से जूझ रहे हैं, उस पर उनका ध्यान नहीं जाता. इस ट्रिप के माध्यम से बच्चे हक़ीकत से रू-ब-रू होंगे और वापस आने के बाद अपने में सुधार करेंगे. उदाहरण के लिए पानी बचाना, इलेक्ट्रीसिटी बचाना, महंगे कपड़ों, खिलौने आदि की ज़िद्द करने से पहले कई बार सोचेंगे.
यह भी पढ़ें: किड्स टूर: टॉप 4 किड्स डेस्टिनेशन्स स्मार्ट टिप्स - गांव का सैर करते समय अपने बैगपैक में कुछ देसी आउटफिट ज़रूर रखें. - हील्स आदि रखने की बजाय फ्लैट फुटवेयर और स्पोर्ट्स शूज़ रखें. - बैग में फर्स्टएड ज़रूर रखें. - अगर बच्चों को कहीं का भी पानी सूट नहीं करता, तो साथ में पैक्ड पानी ले जाएं. - जिस गांव की सैर करने जा रहे हैं, वहां की जानकारी लोकल गाइड से पहले ही ले लें. हो सके तो इंटरनेट के माध्यम से वहां की जानकारी ले लें. - अपने साथ किसी लोकल गाइड को ज़रूर ले जाएं. इससे आप वहां के लोगों से आसानी से बात कर सकेंगे. - इस ट्रिप पर कैमरा साथ रखें. - अभी भी हमारे गांवों में इलेक्ट्रीसिटी की काफ़ी दिक्क़त होती है. ऐसे में मोबाइल को फुल चार्ज रखें औऱ हो सके तो घूमने के समय इंटरनेट का उपयोग कम करें. इससे बैटरी बचेगी. - गांव के लोगों से बात करते समय नम्रता बरतें. - किसी भी अनजान पर विश्वास करने की ग़लती न करें.न उड़ाएं मज़ाक शहर और गांव के कल्चर में बहुत फर्क़ होता है. कपड़ों से लेकर बातचीत, खान-पान आदि में विभिन्नता होती है. ऐसे में वहां के लोगों को देखकर हंसने या उनका मज़ाक उड़ाने की ग़लती न करें.