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पहला अफेयर: यादों का झोंका (Pahla Affair: Yaadon ka Jhonka)

पहला अफेयर:  यादों का झोंका (Pahla Affair: Yaadon ka Jhonka)

तुम्हारी याद अब भी बहुत आती है. मुद्दत गुज़र गए तुमसे बिछड़े, पर मेरी यादों के कारवां में आज भी तुम मेरे साथ हो. तन्हाई में जब भी बैठती हूं, तुम्हारी तस्वीर पलकों की चिलमन पर आंसू की बूंद बन आ बैठती है. वे कितने ख़ुशनसीब पल थे, जब तुम मेरे साथ थे. तुमने अपनी मुहब्बत का इज़हार खुलेआम कभी नहीं किया था, पर क्या मुहब्बत शब्दों की मोहताज होती है? मेरी हर वक़्त फ़िक्र करना, अपनी हर बात मुझसे शेयर करना, मेरी हर समस्या का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश करना... क्या ये सब बातें गवाह नहीं थीं कि तुम मुझसे कितना प्यार करते थे?

तुम मेरे परिवार की भी उतनी ही फ़िक्र करते थे. पापा बीमार थे, तो मैंने कहा था तुमसे, "मैं अकेली हूं. कभी-कभी मिलने आते रहना." तो तुम हमेशा उनकी बीमारी के दौरान अपने व्यस्ततम पलों से समय निकालकर पापा को देखने आते रहे. मैं कॉलेज में व्यस्त थी, तुम पत्रकारिता के छात्र थे. तुम्हारा करियर नहीं बना था. तुम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी काफ़ी मेहनत से कर रहे थे.

तुम्हारी भाषा अच्छी थी, अच्छा लिखते थे. मुझे उम्मीद थी कि तुम सफल पत्रकार बनोगे. मैं कविताएं लिखती थी. मेरी हर कविता के पाठक थे तुम और शायद प्रशंसक भी. मुझे ऐसा लगता था कि तुम मुझसे कभी नहीं बिछड़ोगे, हमेशा साथ रहोगे, पर मुझे क्या पता था कि वक़्त एक ऐसा तूफ़ान लाएगा कि हमारी ज़िंदगी बिखर जाएगी और हम ऐसे अलग होंगे कि फिर कभी नहीं मिल पाएंगे.

मुझे तो उस नादां उम्र में पता भी नहीं था कि हमारे बीच यह जो कुछ भी है, उसे प्यार कहते हैं. यह सच है कि यह ऐसा प्यार था कि हमने एक-दूसरे को कभी स्पर्श तक नहीं किया था. स़िर्फ मन की छुअन थी हमारे बीच, लेकिन जब तुम्हें मुझसे अलग किए जाने की कोशिश की जाने लगी, तो मैं दर्द से तड़प उठी और शायद तुम्हारा भी यही हाल हुआ और तब मैंने जाना कि तुम्हारे और मेरे बीच और कुछ नहीं, बल्कि प्यार ही था.

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मेरे और तुम्हारे प्यार के बीच मेरा परिवार आड़े आया और यह मैं आज तक नहीं जान पाई कि क्यों? हम एक ही जाति के थे, जाति-बंधन की समस्या नहीं थी. तुम बहुत ही अच्छे परिवार के सभ्य, सुसंस्कृत व नेक लड़के थे. तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल था. हम विवाह बंधन में भी बंध सकते थे. फिर क्यों मेरे परिवार, ख़ासकर पापा ने तुम्हारा इतना उग्र विरोध किया? वो भी इतने दिनों के घनिष्ठ घरेलू संबंधों के बाद. अचानक उनके व्यवहार में बदलाव आने लगा.

तुम तो जानते भी नहीं थे. तुम्हारे आने पर मुझे कमरे में कैद कर दिया जाता था. तुमसे कोई बात भी नहीं करता. अपनी नहीं, तुम्हारी इस उपेक्षा से आहत होकर एक दिन मैंने तुमसे कह ही दिया, "प्लीज़, आप मत आइए, पापा मना करते हैं." और तुमने जवाब में बस इतना ही कहा था, "अगर पीछे हटना ही था, तो आगे बढ़ना ही नहीं चाहिए था." पर शायद लड़ते-लड़ते मुझमें विद्रोह की ताक़त ख़त्म हो गई थी और मैं परास्त हो गई थी और इसी वजह से तुम मुझसे इस कदर रूठ गए कि फिर वापस नहीं लौटे.

लौटते तो जानते कि तुम्हें खोकर मेरी हालत पागलों जैसी हो गई थी. मेरा प्यार भी इतना ही मुक़म्मल था, जितना तुम्हारा, शायद तुमसे भी ज़्यादा हेमंत. हम दोनों को अलग करने के लिए मेरे परिवार ने वह मोहल्ला ही छोड़ दिया. तुमसे संपर्क के सारे रास्ते उन्होंने मेरे लिए बंद कर दिए. कितने दिनों तक मैं तुम्हारी बाट जोहती रही, जीने की आस मरी नहीं थी, इसलिए ज़िंदा लाश बनकर जीती रही, पर तुम नहीं आए. अब तो सारी आस ही छोड़ चुकी हूं.

बस, सोचा कि मेरी सहेली को लिखकर अपने दिल का बोझ हल्का कर लूं. मैं जानती नहीं कि तुम आज कहां हो? किस हाल में हो? शादी कब की हो गई होगी, पर मैंने तो शादी भी नहीं की. इसी परिवार में उम्ऱकैद चुन लिया है मैंने. तुम्हारे लिए मेरी बस यही आरज़ू है, ङ्गङ्घमेरे दामन में कांटे ही कांटे आए तो क्या, रब तुम्हारी झोली फूलों से भर दें.फफ तुम जहां भी हो, मुझे माफ़ कर देना कि मैं अपना प्यार पाने के लिए तुम्हारा उस वक़्त साथ नहीं दे पाई, जिसकी सज़ा मैं आज तक भुगत रही हूं.

सभी प्यार करनेवालों के लिए मेरी यही दुआ है कि दुनिया छूटे, रब छूटे, पर साथी का साथ न छूटे.

- निमिषा कुमारी

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