बॉलीवुड इंडस्ट्री की पहली महिला कॉमेडियन कहें या फिर देश की पहली महिला कॉमेडियन कहें, दोनों ही मामले में जानी मानी दिवंगत एक्ट्रेस टुनटुन का नाम है नंबर वन पर. 11 जुलाई 1923 को जन्मी टुनटुन ने अपनी पूरी ज़िंदगी लोगों को हंसाने और गुदगुदाने में लगा दिया. लेकिन आपको शायद ही पता हो, कि उस हंसमुख चेहरे के पीछे कितना दर्द छुपा था. बचपन से लेकर जवानी तक उन्होंने कितनी तकलीफें देखीं. यहां तक इंडस्ट्री में आने के लिए उन्हें कितना बड़ा कदम उठाना पड़ा. इस आर्टिकल में टुनटुन की ज़िदगी के कुछ सच्चाई से आप अवगत होंगे, जिसके बारे में कम लोगों को ही पता है.
टुनटुन की असली नाम उमा देवी खत्री था - गोल मटोल और हंसमुख छवी वाली टुनटुन का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके माता-पिता ने उनका नाम उमा रखा था, चुकी उनका सरनेम खत्री था, इसलिए उनका पूरा नाम उमा देवी खत्री पड़ा. उनका परिवार काफी गरीब था.
ज़मीन विवाद में हुई माता-पिता की हत्या - टुनटुन जब काफी छोटी उम्र की थी तो एक जमीन विवाद के चलते उनके माता-पिता की हत्या कर दी गई थी. एक इंटरव्यू के दौरान खुद उन्होंने इस बात का जिक्र किया था. उन्होंने बताया था कि, "मुझे तो अपने मां-बाप का चेहरा तक याद नहीं कि वो कैसे दिखते थे. मेरा 8-9 साल का एक भाई था, उसकी भी हत्या कर दी गई. उन दिनों मैं 4-5 साल की थी."
माता-पिता मृत्यू के बिदा टुनटुन अपने चाचा के यहां रहा करती थीं. गरीबी इतनी ज्यादा थी कि भोजन के लिए दूसरों के घर में झाड़ू तक लगाना पड़ता था. जब उनकी उम्र 23 साल की हुई, तो वो घर से भाग गईं, क्योंकि वो अपनी लाइफ में कुछ करना चाहती थीं. इसलिए वो भागकर मुंबई चली आईं. मुंबई आकर वो जाने माने संगीतकार नौशाद जी के पास चली गईं और बोलीं कि, "मैं बहुत अच्छा गाना गाती हूं मुझे एक मौका दे दीजिए वर्ना मैं मुंबई के समुद्र में कूद जाऊंगी." ऐसे में नौसाद जी ने उनका ऑडिशन लिया और एक गाना गाने का मौका दे दिया.
साल 1947 में आई फिल्म 'दर्द' का एक गाना 'अफसाना लिख रही हूं दिल-ए-बेक़करार का' टुनटुन ने ही गाया है. ये गाना काफी ज्यादा सुपरहिट रहा. इसके बाद उन्होंने और भी कई गाने गाए, जिनमें से कई गाने काफी ज्यादा हिट भी रहे, लेकिन फिर लता मंगेश्कर जैसी और भी कई गायिकाओं की एंट्री इंडस्ट्री में हुई जिसकी वजह से उन्हें गाने के ऑफर मिलने कम हो गए. ऐसे में नौसाद जी ने उन्हें एक्टिग करने का सलाह दी.
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टुनटुन ने नौसाद जी से कहा कि वो एक्टिंग तो करेंगी, लेकिन सिर्फ दिलीप कुमार के साथ. किस्मत ने भी उनका साथ दिया और साल 1950 में आई फिल्म 'बाबुल' में दिलीप कुमार के साथ काम मिल गया. इस फिल्म में उनका नाम टुनटुन रख दिया गया, जिसके बाद पूरी दुनिया में वो टुनटुन के नाम से ही फेमस हो गईं. इस फिल्म में दिलीप कुमार के साथ लीड एक्ट्रेस नरगिस थीं.
अपनी पहली ही फिल्म से टुनटुन ने हर किसी का दिल जीत लिया. उसके बाद तो वो लगातार फिल्में करती चली गईं. उन्होंने अपने पूरे करियर में करीब 200 फिल्मों में काम किया. 24 नवंबर 2003 को उनकू मृत्यू हो गई. आज भले ही वो इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी याद हर चाहनेवालों के दिलों में हमेशा रहेगी.